सिद्धार्थनगर के एस.पी मोहित गुप्ता से बस्ती के कमिश्नर अनुराग श्रीवास्तव के सवाल को लेकर कई भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारीयों ने इस्तीफे तक दे दिए थे लेकिन दो घंटे से ज्यादा मुख्य सचिव अनूप मिश्र से बातचीत के बाद पुलिस अधिकारी मान गए। बातचीत में मुख्य सचिव के सामने आइ.पी.एस अधिकारीयों ने शासन से सीधे आदेश दिए जाने का चलन बंद करने, डी.एम की अध्यक्षता में होने वाली अपराध समीक्षा बैठक बंद करने, थाना इन्चार्जों की नियुक्ति पुलिस अधिकारीयों द्वारा स्वयं करने तथा जिला मजिस्टेट सीधे सी.ओ और थाना इंचार्ज से बात न करे जैसी मांगे सामने आयीं जिसको मुख्य सचिव ने मान लिया तथा बस्ती पुलिस कमिश्नर के खिलाफ जांच के बाद कार्यवाई करने का भी आश्वासन दिया। मुख्य बात यह है कि पुलिस अधिकारी जब जिला मजिस्टेट के अधीनस्थ की हैसियत से कार्य करते हैं तो विभिन्न मामलों में उनकी जवाबदेही भी बनती है। काफी समय से रिटायर्ड पुलिस अधिकारीयों ने यह बात स्वीकारी है कि थाना इन्चार्जों कोतवाली में इन्स्पेक्टर की तैनाती मुख्य भूमिका रुपये की होती है। समय-समय पर अधिकारीयों ने यह भी स्वीकार किया है कि तैनाती के बाद मंथली रुपया पद पर बने रहने के लिये देने पड़ता है। रुपये लेने के विभिन्न मद बने हुए हैं। रुपया इकठ्ठा होता है और फिर उसका बंटवारा होता है। मुख्य झगडा रुपये के बटवारे का ही होता है। अगर पुलिस या प्रशासनिक अफसरों के खर्चों और संपत्तियों की जांच की जाये तो अधिकांश आर्थिक अपराधी हैं और इन आर्थिक अपराधियों की जगह प्रशासनिक या पुलिस सेवा नही बल्कि जेल है।
आन्ध्र प्रदेश के मुख्य गृह सचिव बी.पी आचार्य भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किये जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में अगर जांच की जाएगी तो अधिकांश अफसर जेल में ही नजर आयेंगे। घूस लेने में कोई नियम, कानून आड़े नहीं आता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
सुमन
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