मध्य प्रदेश से कम्युनिस्ट सांसद होमी दाजी को चुनाव न जीतने देने के लिये बिरला जी ने जमकर रुपया कांग्रेसी उम्मीदवार के ऊपर खर्च किया था। बिरला जी ने टेबल पर गुस्से में मुट्ठी ठोककर कहा कि मै देखता हूँ अब दाजी कैसे संसद में आता है। दाजी को लोकसभा चुनाव न जीतने देने के लिये पूंजीपतियों की पैसों की पोटलियाँ खुल गयीं। उसके पहले तक चुनाव में पैसों का ऐसा दखल नहीं होता था। दाजी के सामने कांग्रेस की तरफ से प्रकाश चन्द्र सेठी थे। उन्होंने दोनों हाथों से बिरला का पैसा बांटा। चुनाव के समय, जब हम गाँवों में प्रचार के लिये जाते थे तो गाँव की भोली-भाली, अनपढ़ महिलाएं कहती थी कि पंजे वाले लोग हमें एक-एक साडी, एक-एक शराब की बोतल और 10 किलो गेंहू दे गए हैं।
संसद में होमी दाजी ने कहा था कि मेरे प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश से बदल कर सरकार बिरला प्रदेश क्यों नहीं रख देती ?
मुख्यमंत्री का बेटा, वित्तमंत्री का बेटा, मुख्य सचिव का बेटा, मुख्य सचिव की पत्नी का भाई, सचिव का भाई-ये सब बिरला के कर्मचारी हैं। और ये सब किसी तकनीकी पद के लिये नहीं नियुक्त किये गए हैं। ये सब उनके जन संपर्क अधिकारी (पी.आर.ओ) हैं जिनका एक मात्र काम मध्य प्रदेश के सचिवालय के चक्कर लगाना और कंपनी के लिये लाइसेंस और लीज हासिल करना है।
यह तथ्य हैं कि मतदाताओं की खरीद फरोख्त का कार्य सबसे पहले कांग्रेस ने ही प्रारंभ किया था और उसके बाद जैसे-जैसे देश का विकास हुआ। उद्योगपति बढे उन्होंने अपने हितों के लिये विभिन्न राजनितिक दलों को खरीद कर चुनाव लड़ाने लगे।
लाल रंग से लिखे गए वाक्य पेरिन दाजी द्वारा लिखित तथा विनीत तिवारी द्वारा सम्पादित "यादों की रौशनी में" से साभार लिये गए हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
शुरूआत किसी ने भी की हो, परंतु आजकल तो सब यही करते हैं।
sach he kaha hai
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