सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

विकास व 'समृद्धि ' के नाम पर जलसा


प्रदेश विधान सभा चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद हिन्दी दैनिक स्टेन्डडर्ट ने समृद्धि के नाम से उत्तर प्रदेश विकास कार्यक्रम पर एक उच्च स्तरीय जलसे का आयोजन किया था |यह जलसा उच्च स्तरीय इसलिए भी था कि इसमें निम्न स्तरीय लोग नही थे |बड़े ,मझोले स्तर के उद्योग ,व्यापार बैंक प्रतिनिधियों के अलावा इस जलसे में विभिन्न पार्टियों के उच्च स्तरीय नेता तथा विद्वान् बुद्धिजीवी पत्रकार प्रोफेसर आदि मौजूद थे |कुल मिलाकर कहे तो 'समृद्धि 'के नाम के इस जलसे में समृद्ध लोग ही थे ,जो प्रदेश के विकास के लिए विधान सभा के चुनावी एजेंडों पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए थे |विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधियों ने कृषि क्षेत्र को प्रमुखता देते हुए उसकी बेहतरी का वादा किया |सभी ने खेती पर निर्भर प्रदेश कि 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को प्राथमिकता देने की घोषनाये भी की |गाँवों तथा किसानो के लिए अपने -अपने एजेंडे और प्राथमिकताये बतायी |लेकिन किसी ने भी जलसे में साधारण मजदूरो ,छोटे सीमांत किसानो ,बुनकरों ,दस्तकारो ,साधारण दुकानदारों के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति पर चिंता नही जतायी
|उसकी जगह स्वंय उनके घोषित प्रतिनिधि बनकर बोलते रहे |उद्योग व्यापार के प्रतिनिधियों से वार्तालाप करते रहे |
प्रदेश विकास के लिए समृद्धि का कार्यक्रम एक उदाहरण है कि प्रदेश और (देश )के सत्ता संचालन में लगे लोग विकास के कार्यक्रमों के लिए किस्से वार्तालाप करते है |किनके सुझाव को सुनते -मानते और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते है |
'समृद्धि 'कार्यक्रम एक बानगी है , प्रचार माध्यमो की पहल कदमी व अन्य अग्रणी भूमिकाओं की भी ,जिसके अंतर्गत ऐसे जलसों ,मीटिंगों ,गोष्ठियों ,चर्चाओं ,परिचर्चाओ का आयोजन किया व कराया जाता है |
चाहे वह आयोजन समाचार पत्रों के जरिये कराया जाता रहा हो ,चाहे रेडियो -टेलीविजन जैसे प्रचार माध्यमो के जरिये कराया जाता रहा हो |
क्या ऐसे जलसों गोष्ठियों कार्यक्रमों का आयोजन ग्रामीण स्तर पर या कस्बाई स्तर पर नही हो सकता है |एकदम हो सकता है और होना भी चाहिए |ऐसे जलसों और मीटिंगों में ही आम मजदूर ,किसानो ,बुनकरों आदि के प्रतिनिधि अपने एजेंडे पर उसी तरह से अपनी बात कह सकते है ,जिस तरह से उद्योग व्यापार के प्रतिनिधियों ने अपनी बाते 'समृद्धि 'जलसे में रखी |
लेकिन ऐसे जलसे ,मीटिंगों को कराएगा कौन ?
धनाढ्य कम्पनियों द्वारा प्रायोजित रेडियो ,टी0 वी0 ,कार्यक्रमों या उन्ही के मालो , सामानों , के प्रचारों को अब प्रमुखता दे रहे समाचार -पत्रों से जनसाधारण की समृद्धि व विकास के लिए जलसों के आयोजन की कोई उम्मीद नही की जा सकती |जहा तक विभिन्न राजनितिक पार्टियों के बड़े नेताओं का सवाल है ,उन्हें खूब पता है की आम मजदूरों , किसानो दस्तकारो ,बुनकरों ,दुकानदारों और नौजवानों की बढती समस्याए उनका एजेंडा नही है |उनके प्रति उनका एजेंडा तो उनसे चुनावी समर्थन लेकर अपनी समृद्धि व विकास तथा प्रदेश व (देश )के अन्य समृद्ध लोगो के विकास व समृद्धि को तय करना है |उसकी नीतिया बनाना व लागू करना है | इसीलिए उनके अपने चुनावी एजेंडे में दलित वोट का एजेंडा तो है , लेकिन साधनहीन दिहाड़ी मजदूरों के रूप में दलितों एवं गैर दलित की स्थायी बहुसंख्या के रोजगार का कोई एजेंडा नही हैं |साधारण मजदूरों के निम्न स्तरीय एवं निरन्तर संकटग्रस्त होते जीवन के लिए कोई एजेंडा नही है |उसी तरह पिछड़ी जातियों से वोट लेने का एजेंडा तो है पर सीमांत व छोटे किस्सानो के रूप में तथा दस्तकारी व अन्य आवश्यक देशो में लगी पिछड़ी जातियों की रोजी -रोजगार की बढती समस्याओं के लिए खेती -किसानी की बढती समस्याओं के लिए कोई एजेंडा नही है |बड़ी जातियों से भी हिन्दू धर्म के नाम पर या जातीय आधार पर चुनावी टिकट आदि देकर उनका वोट बटोरने का एजेंडा तो है , लेकिन छोटे या मध्यम वर्गीय किसानो के रूप में उनके बढ़ते संकटों के लिए कोई एजेंडा नही हैं |इसी तरह से मुसलमानों से चुनावी वोटे लेने का एजेंडा तो हैं पर बुनकरों एवं अन्य परम्परागत उद्देश्यों के छोटे मालिको , मजदूरों की बहुसंख्या के रूप में मौजूद मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम लोगो के बढ़ते संकटों के लिए कोई एजेंडा नही है |इसी तरह से उनके पास विभिन्न धर्म ,जाति,उपजाति के नौजवानों को इसी आधार पर आकर्षित करने का एजेंडा तो है पर उनमे बढती ,बेकारी ,बेरोजगारी तथा शिक्षा के अभाव व कमियों के लिए कोई एजेंडा नही हैं |
इसीलिए किसी भी पार्टी को मजदूरो , किसानो दस्तकारो ,बुनकरों ,दुकानदारों एवं आम घरो के नौजवानों से उनकी बुनियादी समस्याओं पर वार्तालाप भी नही करना है |उन्हें तो उनके धर्म , सम्प्रदाय ,जाति , उपजाति के आधार पर उनसे वार्तालाप करनी है |क्योंकि यही उनका एजेंडा है , जो पिछले 25 -30 सालो से लगातार बढाया जा रहा है |फिर यह एजेंडा भी धर्म ,सम्प्रदाय ,जाति ,उपजाति के रूप में मौजूद अंतर्भेदो,दुरावो ,उंचाइयो ,नीचाइयो को मिटाने के लिए नही है ,बल्कि उसे इस या उस रूप में बनाये रखने के लिए है |उनमे परस्पर सामाजिक बराबरी ,एकता और समरसता बढाने के लिए नही है बल्कि उस एकता को तोड़ने और परस्पर दूरी -दुराव ,दंगे ,झगड़े बढाने के रूप में हैं |
इसलिए अब प्रदेश (व देश )के गाँवों में जनसाधारण में उनके समस्याओं पर उसनी समृद्धि व विकास पर चर्चा व परिचर्चा का आयोजन उपरी हिस्सों किया भी नही जा सकता |लेकिन तब अपने संकटों व समस्याओं और उसके समाधान पर ऐसे जलसों मीटिंगों गोष्ठियोंको आयोजित करने का काम ,जनसाधारण के प्रबुद्धजनो का विभिन्न पार्टियों के इमानदार कार्यकर्ताओं का बनता है |यह उनका आवश्यक दायित्व बनता है जिसे पूरा करने के लिए उन्हें आगे आना ही होगा |

सुनील दत्ता
पत्रकार

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