वरिष्ठ सफ़ेद लोमड़ी
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ला की भी गिरफ्तारी सी.बी.आई ने कर ली है। इसके पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की भी गिरफ्तारी सी.बी.आई द्वारा की जा चुकी है। इस घोटाले में 70 जिलों के जिलाधिकारी भी संलिप्त हैं इस तरह से यह साबित होता है कि उत्तर प्रदेश के अन्दर तैनात वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर भ्रष्टाचार में बुरी तरह से लिप्त हैं यदि सत्तर जिला अधिकारीयों की इस सन्दर्भ में जांच होती है। तो सभी के सभी जेलों में होंगे।
उत्तर प्रदेश में बजट जारी होने से लेकर क्रियान्वन तक हर अधिकारी का घूस का प्रतिशत तय है उसके बाद बची हुई धनराशि से कार्य होता है जिलाधिकारी जिला मजिस्टेट भी होता है वह अपराधियों के फैसले भी करता है। उसके फैसलों की भी अगर समीक्षा की जाए तो एक भी फैसला तर्कसंगत नहीं होता है। न ही विधि के अनुरूप। जिलाधिकारी का कार्य संविधान व विधि के अनुसार जो कुछ भी हो उसका वर्तमान में कार्य सिर्फ इतना है कि विभिन्न विभागों से सुबह-शाम अपने हिस्से की घूस के प्रतिशत की वसूली करना होता है। यदि वह लुटेरा प्रवृत्ति का नहीं है तो लाखों रुपये सामान्य क्रम में उसके पास मासिक आते हैं। यदि लुटेरा किस्म का है तो अरबों रुपये का वह घोटाला कर डालता है।
मनरेगा योजना में उत्तर प्रदेश में अरबों रुपये के घोटाले हुए हैं। इसकी भी जांच अगर होगी तो प्रदेश की सारी सरकारी मशीनरी जेल में ही नजर आएगी। खाद्यान्न घोटाले की जांच सिर्फ दो तीन जिलों में ही हुई है जिस में भी उन जिलो में तैनात प्रशासनिक अफसर जेल की हवा खा रहे हैं और कुछ खाने वाले हैं।
आज जरूरत इस बात की है कि प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार की व्यापक जांच हो और उनको संविधानिक संरक्षण न देकर मुक़दमे चलाये जाएँ। यह सफ़ेद लोमड़ियाँ ब्रिटिश काल से ही जनता के ऊपर शासन कर उनका लहू पीने के अतिरिक्त कुछ नही करती रही हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
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