गुरुवार, 19 जुलाई 2012

खेत मजदूरी, मजबूरी का पेशा है


अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के महासचिव, पूर्व सांसद श्री नागेन्द्र नाथ ओझा का साक्षात्कार लोक संघर्ष पत्रिका के प्रबंध सम्पादक रणधीर सिंह सुमन द्वारा खेत मजदूरों की समस्याओं परः

प्रश्न- खेत मजदूरों की मुख्य समस्याएँ क्या है ?

नागेन्द्रनाथ ओझा- भूमिहीनता है और उसके चलते व्यापक गरीबी है। अशिक्षा, बेरोजगारी तथा ऋणग्रस्तता भी है।
इसीलिए कृषि क्षेत्र में मजदूरी करना उसकी विवशता है। कम मजदूरी के कारण उसकी पारिवारिक आय अत्यन्त अल्प होती है। जिससे वह अपना व परिवार का भरण पोषण नहीं कर सकता है। खेत मजदूरों की सामाजिक बनावट को देखें। इनका एक बड़ा हिस्सा दलित, आदिवासी, अति पिछड़ी जाति से है। सामाजिक रूप से अति पिछड़े दलित होने के कारण अपनी मजदूरी तय करने में असमर्थ है। खेती के समय बहुत सारे गाँवों में मजदूरी की दर प्रतिदिन 20 रूपये से 40 रूपये तक होती है। इस कारण उचित मजदूरी या न्यूनतम मजदूरी की बात ही नहीं हो पाती है। इसका मुख्य कारण आर्थिक व सामाजिक भी है।
खेत मजदूरों में संगठन का अभाव है। इसलिए जो भी कानून व योजनाएँ बनती हैं वे कागजों पर ही रह जाती हैं। खेत मजदूरों से सम्बंधित योजनाओं का क्रियान्वयन नौकरशाहों के हाथों में है। नौकरशाही भ्रष्ट है और नौकर शाही के अपने वर्गीय निहित स्वार्थ हैं। वर्गीय स्वार्थ के कारण खेत मजदूरों के कल्याण में उनकी रूचि नहीं होती है।
प्रश्न खेत मजदूरों की मजदूरी कम होने का मुख्य कारण क्या है?

नागेन्द्रनाथ ओझा- कृषि क्षेत्र के किसानों की आय कम है। कृषि घाटे का सौदा है। खेती सामूहिक आधार पर ही होती है। सरकार को चाहिए कि खेत मजदूरों को जीने लायक न्यूनतम मजदूरी किसानों से दिलाए। यह तभी संभव है जब भारतीय खेती को घाटे से उबारने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए। छोटे और मध्यम किसानों को कृषि उपज का लाभकारी मूल्य दिया जाए।
प्रश्न खेत मजदूरों की ऋण ग्रस्तता के सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं?

नागेन्द्रनाथ ओझा- उत्तर भारत में खेत मजदूर व छोटे किसान अपने ही गाँव के सूदखोरों के चंगुल में हैं। 90 प्रतिशत से अधिक खेत मजदूर जितना कमाते नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा सूद बड़े किसानों व महाजनों के बही खातों में लिखा जाता है। खाने के लिए गेंहू भी वह बड़े किसानों व महाजनों से ड़ेी पर लेता है ड़ेी का मतलब होता ली गई वस्तु का छः महीने बाद ड़े गुना देना होता है। जोंक की तरह ये यह सूदखोर खेत मजदूरों का रक्त चूसते हैं।

प्रश्न मनरेगा के सम्बन्ध में आपको क्या कहना है?

नागेन्द्रनाथ ओझा- मनरेगा में खेत मजदूरों को 100 दिन का कार्य देने का कानून है। लेकिन पूरे देश में कोई भी ऐसा जिला नहीं है जिसने 100 दिन मजदूरों को कार्य दिया हो। 33 दिन ही कार्य देने का औसत है। न्यूनतम मजदूरी भी मनरेगा में लागू नहीं हो पा रही है। न्यूनतम खेत मजदूरी कुछ राज्यों में मनरेगा से भी कम मजदूरी है। सरकार ही न्यूनतम खेत मजदूरी अपने यहाँ लागू नहीं कर रही है।

प्रश्न खेत मजदूरों को संगठित करने के लिए अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन क्या कर रही है?

नागेन्द्रनाथ ओझा- खेत मजदूर यूनियन सम्पूर्ण भारत में खेत मजदूरों को संगठित करने का काम कर रही है। जगहजगह आन्दोलन चला रही है। खेत मजदूर यूनियन के नेतागण झोला डण्डा लेकर जिलों जिलों में जा रहे है॥ खेत मजदूरों का संगठित होने का आह्वाहन किया जा रहा है। मुझे पूरी उम्मीद है कि खेत मजदूरों को समस्याएँ उनके संघर्ष से ही हल होंगी। उक्त दिशा में सीमित साधनों के होने बावजूद सम्पूर्ण प्रयास जारी है।

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