गुरुवार, 19 जुलाई 2012

आनंद मरा नही ... आनंद कभी मरते नही ....


आनंद ने सिखाया की मौत तो आनी है लेकिन हम जीना नही छोड़ सकते | जिन्दगी लम्बी नही बड़ी होनी चाहिए |

इस दुनिया में जिन्दगी का एक नया फलसफा गढने वाला '' बाबू मोशाय , ''हम सब तो रंगमंच की कठपुतलिया है , जिसकी डोर उपर वाले के हाथ में है , कौन कब कहा उठेगा , कोई नही जानता | ' इस फलसफा को देने वाला आनद अब चिर विलीन हो गया एक अदृश्य दुनिया में |भारतीय सिनेमा जगत में पहली बार स्टारडम लाने वाले राजेश खन्ना ही थे | इन्होने ही बताया की सुपर स्टार होता क्या है ? 29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में पैदा हुए राजेश खन्ना को स्कूल और कालेजो से ही अभिनय का शौक था उन्होंने रंगमंच पर भी कार्य किया नए चेहरों की तलाश में सन 1965 में यूनाटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेअर द्वारा टैलेंट हंट से फिल्म इंडस्ट्री में उनका पदार्पण हुआ दस हजार में से आठ लकड़ो का चुनाव हुआ , जिनमे एक राजेश खन्ना भी थे | राजेश खन्ना ने उस प्रतियोगिता में ही अपने अभिनय की क्षमता को जजों के सामने मनवा दिया और अन्त में जजों ने उनको विजेता घोषित किया | राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन खन्ना है | 1969 से 1975 के दरम्यान राजेश ने बहुत सारे सुपर हिट फिल्मे दी |इन्होने फिल्म इंडस्ट्री को नया आयाम दिया सुपर स्टार का वही से सुपर स्टार शब्द प्रचलित भी हुआ |फिल्म इंडस्ट्री उन्हें प्यार से काका कह के बुलाती थी |1967 में '' आखरी खत '' सिनेमा से उनके फ़िल्मी पारी की शुरुआत हुई | 1969 में अराधना और दो रास्ते की सफलता के बाद राजेश खन्ना सीधे शिखर पर जा बैठे | उन्हें सुपर स्टार घोषित कर दिया गया और लोगो के बीच उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई वास्तव में ऐसी लोकप्रियता किसी को हासिल नही हुई जो राजेश को हुई | उनके आकर्षण का वह एक अजीब दौर था | स्टूडियो या किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफ़ेद कार रूकती थी तो लडकिया उस कार को ही चूम लेती थी राजेश खन्ना ने रोमांटिक हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया | उनकी आँख झपकाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा के लोग दीवाने हो गये |' मेरे सपनो की रानी और ' रूप तेरा मस्ताना ' जैसे रोमांटिक गीतों के भावो को अपनी जज्बाती अदाकारी से जीवन्त करने वाले राजेश खन्ना ने अपने जमाने में लगातार 15 हिट फिल्मे देकर बालीवुड को '' सुपर स्टार '' की परिभाषा दी थी | उनसे पहले के स्टार राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे लेकिन इस बात पे कोई शक नही की जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी , वैसी पहले या बाद में कभी नही दिखी 1969 में आई अराधना ने बालीवुड में काका का असली दौर शुरू हुआ इसमें राजेश खन्ना और हुस्न पारी शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का वो गजब चित्रण किया की लाखो युवतियों की रातो की नीद उड़ने लगी | अराधना का वो गीत '' कोरा कागज था ये मन मेरा - लिख लिया नाम इसपे तेरा , सुना आगन था जीवन मेरा बस गया प्यार इसपे तेरा ...................नारी के सौन्दर्य की अनुभूति को कुछ इस तरह व्यक्त किया रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना ..................राजेश कहना ने जहा रोमांटिक फिल्मो के किरदार को भरपूर जीया वही उन्होंने ऐसी फिल्मे दी जो भारतीय फिल्मो में मील का पत्थर है उन्होंने जब बाबर्ची का किरदार निभाकर समाज को यह सन्देश दिया की एक संयुक्त परिवार में कैसे रहा जाता है '' भोर आई गया अंधियारा सारे जग में हुआ उजियारा नाचे झूमे ये मन मतवाला ......................वो पूरे समाज को यह भी बता दिया की एक अंधियार के बाद नए सूरज का स्वागत कैसे किया जाता है | जब वो जीवन के फलसफा को कुछ इस तरह बया करते है '' तुम बिन जीवन कैसा जीवन फूल खिले तो दिल मुरझाये , आग लगे जब बरसे सावन जैसे गीत से जिन्दगी की गहरी फालसा को बताया वही काका ने यह भी कहा '' दुनिया में रहना है तो काम करो , हाथ जोड़ो सबको सलाम करो प्यारे इसमें काम के उस तरीके को कहा की प्यार ही दुनिया के लिए है | '' अमर प्रेम के जरिये उन्होंने एक ऐसी प्रेम की परिभाषा गढ़ी जो अपने में बेमिशाल है ..................उन्होंने दुनिया के उन लोगो का जबाब दिया जो बेवजह कही भी टांग अडाते है उन्होंने साफ़ कहा की '' कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना छोडो बेकार की बातो में कही बीत ना जाए रैना ..............से प्रेम की पराकाष्ठा व्यक्त किया , दर्द की बेइन्तहा को बया किया न हसना मेरे गम पे इन्साफ करना जो मैं रो पडू तो मुझे माफ़ करना , जब दर्द नही था सीने मीन , तब ख़ाक मजा था जीने में ....................काका ने दोस्ती की वो निशाल पेश की जो शायद फिल्म इंडस्ट्री में आज तक किसी ने नही किया नमक हराम में एक दोस्त अपने अनमोल दोस्त के लिए हँसते हुए अपनी जान तक कुर्बान कर देता है यह कहते हुए '' दीये जलते है फूल खिलते है ,बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते है ऐसी मिशाल दी काका ने दोस्ती का .............राजेश कहना ने अपने मर्मस्पर्शी अभिनय के साथ सवाद अदायगी से भारिटी सिनेमा को अनमोल बना दिया और गुरु कुर्ता पहनने वाला आनद समन्दर किनारे जब यह गाता है की जिन्दगी को कैसे ज़िया जाता है '' जिन्दगी कैसी है पहेली हाय कभी तो हसाए कभी ये रुलाये , कभी देखो मन नही चाहे पीछे पीछे सपनो के भागे , एक दिन सपनो का राही चला जाए सपनो से आगे कहा .......................आनद के किरदार के इतने रंगों को राजेश खन्ना ने जिस खूबी सी ज़िया आनद ने सिखाया की मौत तो आनी है लेकिन हम जीना नही छोड़ सकते | जिन्दगी लम्बी नही बड़ी होनी चाहिए | जिन्दगी जितनी जियो , दिल खोलकर जियो | हिन्दी सिनेमा का यह आनद अब हमारे बीच नही रहा लेकिन उसका दिया फलसफा हमेशा हमे याद दिलाता रहेगा की जिन्दगी लम्बी नही बड़ी होनी चाहिए और जिन्दगी को खुलकर जीना चाहिए |
काका को मेरा शत शत नमन


-सुनील दत्ता
पत्रकार

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