भारत-पाकिस्तान क्रिकेट श्रृंखला
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने घोषणा की है कि वह इस साल दिसम्बर में पाकिस्तानी टीम को भारत में सीमित ओवरों की क्रिकेट श्रृखंला खेलने के लिए आमंत्रित करेगा। इस निर्णय की मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई है। कुछ पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी, जिनमें सुनील गावस्कर और कीर्ति आजाद शामिल हैं, ने इस निर्णय की आलोचना की है। दूसरी ओर, सीमा के दोनों तरफ इस निर्णय का स्वागत भी हुआ है। पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान, जो अब पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ हैं, ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने में मदद मिलेगी और आपसी चर्चा से विवादों को सुलझाने की दिशा में प्रगति होगी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कहा है कि इससे भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी विश्वास की कायमी में मदद मिलेगी।
दोनों देशों के आपसी रिश्तों में अनेक उतार-चढ़ाव आए हैं। भारत और पाकिस्तान तीन युद्ध लड़ चुके हैं परंतु इसके बावजूद उनके बीच के विवाद जस के तस बने हुए हैं। स्पष्टतः, हिंसा और युद्ध से सभी समस्याएं हल नहीं हो सकतीं। दक्षिण एशियाई देश, और विशेषकर भारत और पाकिस्तान, लंबे समय तक साम्राज्यवादी ताकतों के अधीन रहे हैं और उनके आपसी विवादों के लिए साम्राज्यवादी देशों की नीतियां काफी हद तक जिम्मेदार हैं। आज भी अमरीका जैसे साम्राज्यवादी देश, इस इलाके में अपना वर्चस्व बनाए रखनें के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इन्हीं ताकतों के चलते, कश्मीर की जनता लंबे समय से त्रासदी भोग रही है। कश्मीर समस्या भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के सामान्यीकरण में एक बड़ी बाधा है और इसका हल केवल कई अलग-अलग स्तरों पर बातचीत और मेलमिलाप के जरिए ही निकाला जा सकता है। इस समय दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का गहरा भाव है। यह तथ्य दोनों देशों की एक-दूसरे के नागरिकों को वीजा देने संबंधी नीति में भी प्रतिबिंबित हो रहा है। भारत और पाकिस्तान में वैसे रिश्ते नहीं हैं जैसे कि दो अच्छे पड़ोसियों में होने चाहिए। अभी स्थिति यह है कि अगर कोई भारतीय नागरिक पाकिस्तान जाना चाहता है तो उसे केवल सीमित शहरों में जाने की इजाजत होती है और उसे पाकिस्तान पहुंचते ही स्थानीय पुलिस को अपने आगमन की सूचना देनी होती है। इसी तरह के कई प्रतिबंध भारत आने वाले पाकिस्तानियों पर भी लागू हैं।
भारत में एक आम धारणा है कि देश में होने वाले सभी आतंकी हमलों के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के नागरिक अपनी कई समस्याओं के लिए भारत के बेजा हस्तक्षेप को दोषी ठहराते हैं। भारत में पाकिस्तान का नाम लेते ही दहशत और घृणा का वातावरण बन जाता है। 26/11 के मुंबई हमले की जांच अभी जारी है परंतु इसके कारण भारतीयों के मन में पाकिस्तान के प्रति वैरभाव बढ़ा है। विभाजन के बाद से ही, और विशेषकर पिछले तीन दशकों से, दोनों देशों के नागरिकों के मन में एक-दूसरे की नकारात्मक छवि बन गई है। अमरीका की अफगान-तालिबान-अल्कायदा के प्रति नीति का निर्धारण, तेल की राजनीति से होता रहा है और पूरी दुनिया के तेल संसाधनों पर कब्जा करने के अमरीका के लक्ष्य की पूर्ति में पाकिस्तान की सेना की अहम भूमिका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम भारतीय, पाकिस्तानी सेना-अमरीका गठबंधन और पाकिस्तानी जनता-प्रजातांत्रिक सरकार के बीच विभेद नहीं करते। सभी समस्याओं के लिए पूरे पाकिस्तान को दोषी ठहरा दिया जाता है जिससे पड़ोसी के प्रति हमारे मन में नकारात्मक भाव बढ़ता है। पाकिस्तान के प्रति देश में फैली भ्रांतियों का एक प्रतिफल यह है कि सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि भारतीय मुसलमान, पाकिस्तान के प्रति अधिक वफादार हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इस आरोप में कोई दम नहीं है और यह कोरी बकवास है। इसी भ्रांति का उपयोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोधरा कांड के बाद मुसलमानों का हत्याकांड प्रायोजित करने के लिए किया था। मोदी ने गोधरा कांड के लिए पाकिस्तानी आईएसआई को दोषी ठहराया और वे अपने भाषणों में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ-जिन्होंने प्रजातांत्रिक सरकार के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था-को चुनौती देते रहे। इस मुद्दे को इस हद तक हवा दी गई कि गुजरात में चुनावों के दौरान सैकड़ों ऐसे पोस्टर लगाए गए जिनमें एक ओर नरेन्द्र मोदी की तस्वीर थी और दूसरी ओर जनरल मुशर्रफ की। ऐसा लग रहा था मानो मोदी, जनरल मुशर्रफ के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इस तरह के भाषणों और प्रचार सामग्री के जरिए मोदी यह संदेश देना चाह रहे थे कि मुशर्रफ रूपी मुसलमान भारत के दुश्मन हैं और मोदी, देश के रक्षक। जनरल मुशर्रफ को भारतीय मुसलमानों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस कुटिल चाल के जरिए मोदी ने गुजरात की जनता को साम्प्रदायिक आधार पर इस हद तक विभाजित करने में सफलता प्राप्त कर ली कि दंगे रोकने में अपनी प्रशासनिक असफलता और पूरे देश में उनकी थू-थू के बावजूद वे चुनाव में बहुमत पाने में सफल रहे।
यह सुखद है कि दोनों देशों के नागरिक और सरकारें शनैः-शनैः इस बात को समझ रही हैं कि दोनों देशों का भविष्य और भाग्य आपस में गुंथे हुए हैं और दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते कायम करना उनके आपसी हित में है। इसी से समस्याओं का हल निकलेगा। न तो पाकिस्तान की सेना और न ही भारत के अति राष्ट्रवादी-साम्प्रदायिक तत्व दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध चाहते हैं। परंतु ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो दक्षिण एशिया में शांति स्थापना के पक्षधर हैं। इस सिलसिले में “भारत-पाक पीपुल्स फोरम“ जैसी संस्थाओं को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है, जो दोनों देशों के नागरिकों के बीच संवाद स्थापित करने की पहल कर रहे हैं। इस फोरम ने कई मौकों पर सकारात्मक भूमिका निभाई है जिनमें दोनों देशों के मछुआरों को एक-दूसरे के सुरक्षा बलों द्वारा पकड़ लिए जाने की घटनाएं शामिल हैं। यह उन कई कदमों में से एक है जो दोनों देशों के बीच शांति और सद्भाव की स्थापना में मदद कर सकता है। इसी तरह, “अमन की आशा“ नामक कार्यक्रम, जो कि भारत और पाकिस्तान के दो बड़े समाचारपत्रों “द टाईम्स ऑफ इंडिया“ और “जंग“ की संयुक्त पहल है, भी शांति स्थापना के काम में मदद कर रहा है।
इस सिलसिले में दक्षिण एशियाई देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए सार्क को पुनर्जीवित किए जाने की भी आवश्यकता है। सार्क से हम सबको बहुत उम्मीदें थीं परंतु कुछ समय से यह मंच बिल्कुल ठंडा पड़ा है। भारत और पाकिस्तान, दक्षिण एशिया के दो मुख्य स्तंभ हैं। अन्य दक्षिण एशियाई देशों व भारत और पाकिस्तान की विरासत एक सी है और कुछ हद तक उनकी समस्याएं भी। स्पष्टतः आपसी सहयोग से सभी दक्षिण एशियाई देशों को लाभ ही होगा। दक्षिण एशियाई देशों के कई शांतिप्रिय व्यक्ति और संगठन इन देशों के नागरिकों के बीच संवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।
पाकिस्तान में भी भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने और शांति स्थापना के लिए पहल करने की मांग उठ रही है। पाकिस्तानी सेना, जिसके अपने निहित स्वार्थ हैं, यह कतई नहीं चाहती कि दोनों देशों के बीच शांति स्थापित हो। हमें यही आशा करनी चाहिए कि पाकिस्तान में प्रजातंत्र की जड़ें गहरी और मजबूत हों ताकि वहां की सेना कि देश के नीति-निधार्रण में भूमिका न्यूनतम हो सके। इस संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि “पड़ोसी देश“ का डर दिखाकर दोनों ही देशों की सरकारें हर वर्ष अपने रक्षा बजट में भारी वृद्धि करती जा रही हैं। जाहिर है कि रक्षा बजट के बढ़ने का विपरीत प्रभाव समाज कल्याण योजनाओं पर पड़ता है, जिनकी दोनों देशों में सख्त जरूरत है।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच तो खेले ही जाने चाहिए, व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में भी आपसी संबंधों को मजबूत किया जाना आवश्यक है। दोनों देशों को अपने वीजा नियमों में भी ढ़ील देनी चाहिए ताकि भारत और पाकिस्तान के नागरिक एक-दूसरे के देशों में आसानी से आ-जा सकें। इससे भ्रांतियों का निवारण होगा और आपसी समझ बढ़ेगी।-राम पुनियानी
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