आज जब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है और आर्थिक संकट का समाधान नहीं हो पा रहा है। समाजवादी अर्थ तंत्र के विशेषज्ञ जोजेफ स्तालिन ने अपनी अंतिम रचना में समाजवादी अर्थतंत्र के समस्यायों के निदान के सम्बन्ध में चर्चा की थी। इस पुस्तक को जोसेफ स्तालिन के मरने के बाद पुन: प्रकाशित नहीं होने दिया गया था। इस पुस्तक का अनुवाद श्री सत्य नारायण ठाकुर ने किया है जिसके कुछ अंश: यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं। आप के सुझाव व विचार सादर आमंत्रित हैं।
-सुमन
लो क सं घ र्ष !-सुमन
कुछ साथी मानते हैं कि माल का उत्पादन बनाए रखकर पार्टी ने गलत काम किया है जबकि पार्टी ने देश में सत्ता हासिल कर ली और उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण कर लिया। उनकी सोच है कि पार्टी को चाहिए था कि माल का उत्पादन उसी समय और तत्काल बंद कर देते। इस सिलसिले में वे ऐंगेल्स को उद्घृत करते हैं जिन्होंने कहा है समाज द्वारा उत्पादन के साधनों पर कब्जा करना माल के उत्पादन को समाप्त कर देना है, उसी तरह उत्पादक के ऊपर उत्पादन के प्रभुत्व का भी’’। (ऐंटी ड्यूहरिंग) ऐसे साथी पूरी तरह गलतफहमी में हैं।
हम लोग ऐंगेल्स के फारमूले की जांच करें। ऐंगेल्स के फारमूले को साफ तौर पर इस रूप में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि उससे यह स्पष्ट नहीं है कि समाज द्वारा उत्पादन के सभी साधनों पर कब्जा की वे बात करते हैं या केवल उसके एक भाग का जिसका रूपांतरण सामाजिक सम्पत्ति के रूप में हो चुका है। इसलिए ऐंगेल्स के फारमूले को दूसरे तरीके से समझा जा सकता है।
ऐटीड्यूहरिंग’ में ही ऐंगेल्स एक जगह लिखते हैं कि उत्पादन के सभी साधनों पर कब्जा करना अर्थात उत्पादन के सभी साधनों पर नियंत्रण। इस तरह इस फारमूला के अंदर ऐंगेल्स के दिमाग में उत्पादन के साधनों पर एक भाग नहीं, बल्कि संपूर्ण साधनों का राष्ट्रीयकरण है। इसका मतलब है न केवल उद्योग में बल्कि कृषि में भी उत्पादन के सभी साधनों का सामाजिक सम्पत्ति के रूप में राष्ट्रीयकरण।
जहाँ उत्पादन का संकेन्द्रण इतना ऊँचा हो गया हो, उद्योग और कृषि के क्षेत्रों में वहाँ उत्पादन के सभी साधनों का सामाजिक सम्पत्ति के रूप में रूपांतरण संभव है। ऐंगेल्स ऐसे देशों के बारे में सोचते हैं कि उत्पादन के सभी साधनों के राष्ट्रीयकरण के साथ ही माल उत्पादन का अंत होना चाहिए और वह सचमुच सही है। जब ॔ऐंटीड्यूहरिंग’ का प्रकाशन हुआ था उस समय गत शताब्दी के अंत में, केवल एक देश वैसा था ब्रिटेन। वहाँ पूँजीवाद का विकास उस सीमा तक हो गया था, उद्योग और कृषि दोनों क्षेत्रों में कि सर्वधारा द्वारा सत्ता हाथ में लेने के बाद यह संभव था कि देश के संपूर्ण उत्पादन साधनों का राष्ट्रीयकरण करके उसे सामाजिक सम्पत्ति बना दिया जाय और माल उत्पादन का अंत कर दिया जाय।
मैं यहाँ इस प्रश्न को छोड़ देता हूँ कि ब्रिटेन के लिए विदेश व्यापार का कितना महत्व है। इसकी राष्ट्रीय व्यवस्था में विदेश व्यापार की बड़ी भूमिका है। मैं समझता हूँ इस प्रश्न की जांच करने के बाद ही अंतिम तौर पर निश्चय किया जा सकेगा कि ब्रिटेन में सर्वधारा के सत्ता में आने पर और उत्पादन के सभी साधनों के राष्ट्रीयकरण हो जाने पर वहाँ के माल के उत्पादन का क्या भविष्य होगा।
तो भी, पिछली शताब्दी के अंत ही नहीं, बल्कि आज तक भी कोई देश पूँजीवादी विकास के उस बिन्दु पर नहीं पहुँचा है और कृषि में उत्पादन का संकेन्द्रण वहाँ नहीं पहुँचा है, जैसा ब्रिटेन में देखा जा रहा है। देहातों में पूँजीवादी विकास के होते हुए भी, जैसे अन्य देशों में अनेक छोटे और मझोले देहाती माल उत्पादक होते हैं जिनके भविष्य के बारे में निश्चय किया जायगा, अगर सर्वहारा सत्ता में आएगा।
लेकिन यहाँ एक सवाल है हमारे जैसे देश में सर्वहारा और उसकी पार्टी क्या करेगी जहाँ सर्वहारा के सत्ता में आने की परिस्थिति अनुकूल है और पूँजीवाद के उखाड़ फेंकने की भी तथा जहाँ उद्योग में उत्पादन का संकेन्द्रण उस बिन्दू पर पहुँच गया है कि उसे सामाजिक सम्पत्ति में बदला जा सकता है, लेकिन जहाँ पूँजीवादी विकास के बावजूद कृषि क्षेत्र अनेकानेक छोटे एवं मझोले उत्पादक मालिकों में उस सीमा तक बँटा है कि उन्हें समाप्त करने के बारे में सोचना भी असंभव है।
ऐंगेल्स का फारमूला इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता। लेकिन हमारे सामने जो प्रश्न है उसका उत्तर यहाँ नहीं है, क्योंकि यह प्रश्न एक दूसरे प्रश्न से खड़ा हुआ है कि माल के उत्पादन का क्या भविष्य होगा जहाँ उत्पादन के तमाम साधनों का समाजीकरण हो गया है?
और इसलिए वहाँ क्या करना है, आज तमाम नहीं बल्कि उत्पादन साधनों के केवल एक भाग का ही समाजीकरण हुआ है, तब भी सर्वहारा द्वारा सत्ता में आने की स्थिति अनुकूल है तो क्या सर्वहारा को सत्ता ग्रहण करना चाहिए और सत्ता ग्रहण करने के तुरन्त बाद माल उत्पादन समाप्त कर देना चाहिए?
ऐसे में कतिपय अपरिपक्व अधकचड़े माक्र्सवादियों के उत्तर को हम स्वीकार नहीं कर सकते जिनका विश्वास है कि वैसी स्थिति में जो कुछ करना है वह यह कि सत्ता ग्रहण करने से बचना चाहिए और तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक पूँजीवाद को लाखों छोटे एवं मझोले उत्पादकों को लूटने और उन्हें खेत मजदूरों में बदलने में सफलता नहीं मिल जाती और कृषि उत्पादन के साधनों का पूर्ण संकेन्द्रण नहीं हो जाता और इसके बाद ही सर्वहारा द्वारा सत्ता ग्रहण के बारे में सोचा जा सकता है एवं तभी उत्पादन के तमाम साधनों का समाजीकरण संभव होगा। जाहिर है, कोई माक्र्सवादी यह समाधान स्वीकार नहीं कर सकता।
हम लोग ऐंगेल्स के फारमूले की जांच करें। ऐंगेल्स के फारमूले को साफ तौर पर इस रूप में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि उससे यह स्पष्ट नहीं है कि समाज द्वारा उत्पादन के सभी साधनों पर कब्जा की वे बात करते हैं या केवल उसके एक भाग का जिसका रूपांतरण सामाजिक सम्पत्ति के रूप में हो चुका है। इसलिए ऐंगेल्स के फारमूले को दूसरे तरीके से समझा जा सकता है।
ऐटीड्यूहरिंग’ में ही ऐंगेल्स एक जगह लिखते हैं कि उत्पादन के सभी साधनों पर कब्जा करना अर्थात उत्पादन के सभी साधनों पर नियंत्रण। इस तरह इस फारमूला के अंदर ऐंगेल्स के दिमाग में उत्पादन के साधनों पर एक भाग नहीं, बल्कि संपूर्ण साधनों का राष्ट्रीयकरण है। इसका मतलब है न केवल उद्योग में बल्कि कृषि में भी उत्पादन के सभी साधनों का सामाजिक सम्पत्ति के रूप में राष्ट्रीयकरण।
जहाँ उत्पादन का संकेन्द्रण इतना ऊँचा हो गया हो, उद्योग और कृषि के क्षेत्रों में वहाँ उत्पादन के सभी साधनों का सामाजिक सम्पत्ति के रूप में रूपांतरण संभव है। ऐंगेल्स ऐसे देशों के बारे में सोचते हैं कि उत्पादन के सभी साधनों के राष्ट्रीयकरण के साथ ही माल उत्पादन का अंत होना चाहिए और वह सचमुच सही है। जब ॔ऐंटीड्यूहरिंग’ का प्रकाशन हुआ था उस समय गत शताब्दी के अंत में, केवल एक देश वैसा था ब्रिटेन। वहाँ पूँजीवाद का विकास उस सीमा तक हो गया था, उद्योग और कृषि दोनों क्षेत्रों में कि सर्वधारा द्वारा सत्ता हाथ में लेने के बाद यह संभव था कि देश के संपूर्ण उत्पादन साधनों का राष्ट्रीयकरण करके उसे सामाजिक सम्पत्ति बना दिया जाय और माल उत्पादन का अंत कर दिया जाय।
मैं यहाँ इस प्रश्न को छोड़ देता हूँ कि ब्रिटेन के लिए विदेश व्यापार का कितना महत्व है। इसकी राष्ट्रीय व्यवस्था में विदेश व्यापार की बड़ी भूमिका है। मैं समझता हूँ इस प्रश्न की जांच करने के बाद ही अंतिम तौर पर निश्चय किया जा सकेगा कि ब्रिटेन में सर्वधारा के सत्ता में आने पर और उत्पादन के सभी साधनों के राष्ट्रीयकरण हो जाने पर वहाँ के माल के उत्पादन का क्या भविष्य होगा।
तो भी, पिछली शताब्दी के अंत ही नहीं, बल्कि आज तक भी कोई देश पूँजीवादी विकास के उस बिन्दु पर नहीं पहुँचा है और कृषि में उत्पादन का संकेन्द्रण वहाँ नहीं पहुँचा है, जैसा ब्रिटेन में देखा जा रहा है। देहातों में पूँजीवादी विकास के होते हुए भी, जैसे अन्य देशों में अनेक छोटे और मझोले देहाती माल उत्पादक होते हैं जिनके भविष्य के बारे में निश्चय किया जायगा, अगर सर्वहारा सत्ता में आएगा।
लेकिन यहाँ एक सवाल है हमारे जैसे देश में सर्वहारा और उसकी पार्टी क्या करेगी जहाँ सर्वहारा के सत्ता में आने की परिस्थिति अनुकूल है और पूँजीवाद के उखाड़ फेंकने की भी तथा जहाँ उद्योग में उत्पादन का संकेन्द्रण उस बिन्दू पर पहुँच गया है कि उसे सामाजिक सम्पत्ति में बदला जा सकता है, लेकिन जहाँ पूँजीवादी विकास के बावजूद कृषि क्षेत्र अनेकानेक छोटे एवं मझोले उत्पादक मालिकों में उस सीमा तक बँटा है कि उन्हें समाप्त करने के बारे में सोचना भी असंभव है।
ऐंगेल्स का फारमूला इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता। लेकिन हमारे सामने जो प्रश्न है उसका उत्तर यहाँ नहीं है, क्योंकि यह प्रश्न एक दूसरे प्रश्न से खड़ा हुआ है कि माल के उत्पादन का क्या भविष्य होगा जहाँ उत्पादन के तमाम साधनों का समाजीकरण हो गया है?
और इसलिए वहाँ क्या करना है, आज तमाम नहीं बल्कि उत्पादन साधनों के केवल एक भाग का ही समाजीकरण हुआ है, तब भी सर्वहारा द्वारा सत्ता में आने की स्थिति अनुकूल है तो क्या सर्वहारा को सत्ता ग्रहण करना चाहिए और सत्ता ग्रहण करने के तुरन्त बाद माल उत्पादन समाप्त कर देना चाहिए?
ऐसे में कतिपय अपरिपक्व अधकचड़े माक्र्सवादियों के उत्तर को हम स्वीकार नहीं कर सकते जिनका विश्वास है कि वैसी स्थिति में जो कुछ करना है वह यह कि सत्ता ग्रहण करने से बचना चाहिए और तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक पूँजीवाद को लाखों छोटे एवं मझोले उत्पादकों को लूटने और उन्हें खेत मजदूरों में बदलने में सफलता नहीं मिल जाती और कृषि उत्पादन के साधनों का पूर्ण संकेन्द्रण नहीं हो जाता और इसके बाद ही सर्वहारा द्वारा सत्ता ग्रहण के बारे में सोचा जा सकता है एवं तभी उत्पादन के तमाम साधनों का समाजीकरण संभव होगा। जाहिर है, कोई माक्र्सवादी यह समाधान स्वीकार नहीं कर सकता।
क्रमश:
अनुवादक- सत्य नारायण ठाकुर
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