सफ़दर की कविता : आज़ादी
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कल ही शाम को शर्माजी ने
टोपी नई खरीदी
घर पर टी.वी. देख रहे थे
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कल ही शाम को शर्माजी ने
टोपी नई खरीदी
घर पर टी.वी. देख रहे थे
पापा, मम्मी, दीदी
लाल किले के आसपास है
आज़ादी का मेला
सबसे ऊपर नाच रहा है
झंडा एक अकेला
क़दम मिलाते बंद बजाते
फौजी आते जाते
पूरे लाँन में बच्चे बूढ़े
चने मुरमुरे खाते
सब ही कहते आज के दिन
आज़ाद हुआ था देश
आज के ही दिन अंग्रेजों का
राज हुआ था शेष
अपनी तो कुछ समझ न आए
आज़ादी और देश
हम तो छत से देख रहे हैं
पतंग-पतंग के पेच
हमसे कोई पूछे, "बच्चों
आज़ादी क्या होती है"
हम कह देंगे "उस दिन सबकी
पूरी छुट्टी होती है."
लाल किले के आसपास है
आज़ादी का मेला
सबसे ऊपर नाच रहा है
झंडा एक अकेला
क़दम मिलाते बंद बजाते
फौजी आते जाते
पूरे लाँन में बच्चे बूढ़े
चने मुरमुरे खाते
सब ही कहते आज के दिन
आज़ाद हुआ था देश
आज के ही दिन अंग्रेजों का
राज हुआ था शेष
अपनी तो कुछ समझ न आए
आज़ादी और देश
हम तो छत से देख रहे हैं
पतंग-पतंग के पेच
हमसे कोई पूछे, "बच्चों
आज़ादी क्या होती है"
हम कह देंगे "उस दिन सबकी
पूरी छुट्टी होती है."
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत खूबसूरत रचना………………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
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