शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

अधकचड़े मार्क्सवादियों...


कतिपय अन्य तरह के अधकचड़े मार्क्सवादियों के उत्तर को भी हम स्वीकार नहीं कर सकते जो सोचते हैं कि सत्ता हमें ग्रहण करना चाहिए और उसके तुरन्त बाद छोटे एवं मझोले देहाती उत्पादकों को समाप्त करके उनके उत्पादन साधनों का समाजीकरण कर लेना चाहिए। सच्चे माक्र्सवादी इस प्रकार के वाहियात और अपराधपूर्ण मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते क्योंकि वह मार्ग समाजवादी क्रान्ति की जीत के सभी अवसरों को ही नष्ट कर देना और कृषकों को लंबे समय तक के लिए सर्वहारा के दुश्मनों के शिविर में धकेल देगा। इस प्रश्न का उत्तर लेनिन की मशहूर रचना ‘‘टैक्सइन काइन्ड’’ और ‘‘कोआपरेटिव प्लान’’ में दिया गया है, जिसका सारांश निम्न प्रकार है-
क. सत्ता ग्रहण की अनुकूल परिस्थिति में नहीं चूकना चाहिए। सर्वहारा को सत्ता ग्रहण करना चाहिए। उस समय तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि पूँजीवाद छोटे, मझोले व्यक्तिगत उत्पादकों को लूटकर समाप्त करने में सफल होगा।
ख. उद्योग क्षेत्र के उत्पादन साधनों का समाजीकरण करना चाहिए।
ग. छोटे एवं मझोले उत्पादकों को धीरे-धीरे उत्पादकों की सहकारिता में संगठित करना, जैसे सामूहिक फार्म और बड़े कृषि संस्थान।
घ. उद्योग को पूर्ण विकसित करना चाहिए और फार्म को बृहत्तर उत्पादन के लिए आधुनिक तकनीकी आधार पर उत्तम श्रेणी के ट्रैक्टर एवं अन्य मशीनों की आपूर्ति उदारता के साथ करनी चाहिए। इसे समाप्त नहीं करना है बल्कि उन्नत करना है।
ड़. शहर और देहात में आर्थिक सम्बन्ध सुनिश्चित करने के लिए और इसी तरह उद्योग और कृषि में आर्थिक सम्बन्ध कायम करने के लिए माल का उत्पादन (खरीद और बिक्री द्वारा विनियम) एक निश्चित अवधि तक के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। कृषकों और शहर के साथ आर्थिक सम्बन्ध रखने के लिए यही एक स्वीकार्य उपाय है। सोवियत व्यापार अर्थात राजकीय सहकारिता और सामूहिक फार्म को पूर्ण रूप से विकसित करना चाहिए और व्यापार से पूँजीपतियों के सभी अवशेषों एवं पहचानों को समाप्त करना चाहिए।
हमारे देश के समाजवादी निर्माण के इतिहास ने साबित किया है कि लेनिन द्वारा बताया गया विकास का यह मार्ग बिल्कुल सही है। इसमें संदेह नहीं है कि अन्य पूँजीवादी देशों में भी जहाँ कमोवेश अनेक छोटे और मझोले उत्पादकों के अस्तित्व हैं, वहाँ विकास का यही माग समाजवाद की जीत के लिए संभव और वांछित होगा।
कहा जाता है कि माल उत्पादन प्रत्येक स्थिति में पूँजीवादी अवस्था को जन्म देता है और कि ऐसा लाजिमी है। यह सच नहीं है। प्रत्येक स्थिति में नहीं और बराबर ऐसा नहीं होता। माल उत्पादन को यहाँ पूँजीवादी उत्पादन के साथ नहीं देखना चाहिए। ये दो भिन्न भिन्न चीजें हैं। माल उत्पादन की सबसे ऊँची अवस्था है पूँजीवादी उत्पादन। अगर उत्पाद के साधनों का निजी स्वामित्व है, अगर श्रमशक्ति को बाजार में माल की तरह पूँजीपतियों द्वारा खरीदा जाता है और उसका उत्पादन प्रक्रिया में शोषण किया जाता है तथा अगर परिणाम स्वरूप पूँजीपतियों द्वारा पगार पाने वालों की शोषण प्रणाली देश में मौजूद हैं, तभी माल उत्पादन से पूँजीवाद का निर्माण होता है। पूँजीवादी उत्पादन तभी प्रारम्भ होता है जब उत्पादन के साधन निजी हाथों में केन्द्रित होता है और जब मजदूरों को उत्पादन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है तथा उसे अपनी श्रमशक्ति माल की तरह बेचने के लिए विवश कर दिया जाता है। इसके अभाव में ऐसा कुछ भी नहीं होता है, जिसे पूँजीवादी उत्पादन कहा जाय।
हाँ, तो और क्या करना चाहिए अगर माल उत्पादन का पूँजीवादी उत्पादन में रूपांतरण की स्थिति मौजूद नहीं हो, अगर उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व नहीं हो, बल्कि सामाजिक सम्पत्ति हो, अगर श्रम उजरत की प्रणाली विद्यमान नहीं हो और श्रम शक्ति एक माल के रूप में न हो, और अगर शोषण प्रणाली समाप्त कर दी गई हो, तो क्या तबभी ऐसा माना जाएगा कि माल का उत्पादन किसी भी स्थिति में पूँजीवाद का निर्माण करेगा? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अब हमारा समाज स्पष्ट रूप से ऐसा समाज है, जहाँ उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व, श्रम उजरत प्रणाली, और शोषण प्रणाली का, काफी दिन हुए, खात्मा हो गया है।
माल उत्पादन को अपने आप में पूर्ण नहीं समझा जाना चाहिए। यह चतुर्दिक आर्थिक अवस्था से स्वतंत्र नहीं है। पूँजीवादी उत्पादन से पुराना है माल का उत्पादन। यह दास युग में भी मौजूद था और इसने दास युग की सेवाएँ की, किन्तु इससे पूँजीवाद उत्पन्न नहीं हुआ। यह सामंत युग में भी था इसकी भी सेवाएँ थी किन्तु तब भी यद्यपि इसने पूँजीवादी की कुछ स्थितियाँ तैयार कीं, फिर भी उससे पूँजीवाद का निर्माण नहीं हुआ। फिर क्यों नहीं उसी तरह एक खास अवधि तक बिना पूँजीवाद की ओर गए, इस तथ्य के मद्देनजर कि हमारे देश में माल उत्पादन पूँजीवाद की तरह अनियंत्रित नहीं है, बल्कि एक मजबूत तंत्र में बंधा है, यह हमारेसमाजवादी समाज की सेवाएँ करेगा?
कहा जाता है कि जबसे हमारे देश में उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व का प्रभुत्व कायम हो गया है और श्रम उजरत प्रणाली और शोषण का खात्मा हो गया है, तबसे माल के उत्पादन का कोई अर्थ नहीं रह गया है, और इसलिए इससे फुरसत पा लेना चाहिए।
यह भी सही नहीं है। अभी हमारे देश में समाजवादी उत्पादन के दो बुनियादी स्वरूप हैं। राजकीय अथवा सार्वजनिक स्वामित्व का उत्पादन और सामूहिक कृषि फार्म का उत्पादन जिसे सार्वजनिक स्वामित्व नहीं कहा जा सकता। राजकीय प्रतिष्ठानों में उत्पादन के साधन और उत्पाद वस्तुएँ राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं। सामूहिक फार्मों में यद्यपि उत्पादन के साधन (जमीन, मशीन) राज्य के हैं, किन्तु वहाँ की उत्पादन वस्तुएँ सामूहिक फार्मों की सम्पत्ति है क्योंकि श्रम एवं बीज उनके हैं, जबकि जमीन, जिसे सामूहिक फार्म में बदल दिया गया, का उपयोग वे अपनी सम्पत्ति की तरह करते हैं। इस तथ्य के बावजूद वे इसे बेच नहीं सकते, खरीद नहीं सकते, लीज अथवा बंधक भी नहीं रख सकते।
इसका फल यह है कि सरकार केवल राजकीय फार्म के उत्पाद को निबटाती है, जबकि सामूहिक फार्म के उत्पादन को, चूँकि यह उनकी ही सम्पत्ति है, सामूहिक फार्म द्वारा ही निष्टाया जाता है। लेकिन सामूहिक फार्म माल के रूप के अलावा अन्य किसी भी रूप में अपने उत्पाद को निबटाना नहीं चाहता। वह अपने उत्पाद के बदले में अपनी जरूरत की अन्य वस्तुएँ लेना चाहता है। वर्तमान में सामूहिक फार्म शहर से किसी अन्य प्रकार का आर्थिक संबंध जोड़ना नहीं चाहता। वर्तमान में जो सम्बन्ध विद्यमान है वह सिर्फ माल विनियम है, अर्थात माल के खरीद और बिक्री द्वारा विनियम। इस कारण से माल का उत्पादन और व्यापार हमारे लिये अनिवार्य है, जैसी आवश्यकता तीस वर्ष पूर्व थी, व लेनिन ने व्यापार को पूर्ण विकसित करने पर जोर दिया था।

क्रमश:
अनुवादक- सत्य नारायण ठाकुर

आज जब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है और आर्थिक संकट का समाधान नहीं हो पा रहा हैसमाजवादी अर्थ तंत्र के विशेषज्ञ जोजेफ स्तालिन ने अपनी अंतिम रचना में समाजवादी अर्थतंत्र के समस्यायों के निदान के सम्बन्ध में चर्चा की थीइस पुस्तक को जोसेफ स्तालिन के मरने के बाद पुन: प्रकाशित नहीं होने दिया गया थाइस पुस्तक का अनुवाद श्री सत्य नारायण ठाकुर ने किया है जिसके कुछ अंश: यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैंआप के सुझाव विचार सादर आमंत्रित हैं
-सुमन
लो क सं घ र्ष !

1 टिप्पणी:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 05/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

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