हाँ वह अस्तित्व में है, और वह काम भी करता है। जहाँ कहीं माल और माल का उत्पादन होता है, वहाँ मूल्य का नियम काम करता है।
हमारे देश में मूल्य का नियम सबसे पहले माल के परिचलन, खरीद और बिक्री द्वारा माल का विनिमय, व्यक्तिगत उपभोग के लिए सामग्रियों का विनियम के क्षेत्र में काम करता है। यहाँ इस क्षेत्र में एक सीमा तक मूल्य का नियम सही माने में नियमन कार्य को संरक्षित करता है।
किन्तु मूल्य नियम केवल माल के परिचलन क्षेत्र तक ही सीमित नहीं होता है। इसका विस्तार उत्पादन क्षेत्र में भी है। यह सच है कि मूल्य नियम हमारे समाजवादी उत्पादन का नियामक नहीं है फिर भी यह हमारे उत्पादन को प्रभावित करता है। उत्पादन निर्धारित करते समय हम इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते। वास्तव में उपभोक्ता सामान, जिसकी जरूरत उत्पादन प्रक्रिया में खर्चित श्रम शक्ति की क्षतिपूर्ति के किए होती है, हमारे देश में मूल्य नियम के अन्तर्गत ही माल के रूप में उत्पादित और प्राप्त किए जाते हैं। इसी रूप में मूल्य नियम उत्पादन पर प्रभाव डालता है। इस मामले में लागत लेखा ;बवेज ंबबवनदजपदहद्धए लाभदायकता, उत्पादन लागत, दाम, इत्यादि जैसी चीजें हमारे प्रतिष्ठानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मूल्य नियम को ध्यान में रखे बगैर हमारे प्रतिष्ठान काम नहीं कर सकते और अवश्य ही करना भी नहीं चाहिए।
क्या यह अच्छी बात है? यह बड़ी बात भी नहीं है। वर्तमान समय में यह सचमुच बड़ी बात नहीं है। यह हमारे प्रतिष्ठानों के व्यावसायिक प्रबंधकों को, उत्पादन को युक्तिसंगत मितव्ययिता कुशलता के आधार पर अनुशासित करने के क्षेत्र में प्रशिक्षित करता है। यह इसलिए बड़ी बात नहीं है क्योंकि यह हमारे प्रबंधकों को सिखाता है कि उत्पादन परिणाम की कैसे गणना की जाय, और यह भी कि इसके विस्तार और महत्व को ठोस रूप में कैसे रेखांकित किया जाय, अनुमानित आंकड़े जैसे गोल मटोल हवाई और वाहियात बातों से कैसे बचा जाय। यह बड़ी बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे प्रबंधक को सिखाता है कि हमारे उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्निहित आम स्रोतों को कैसे देखा जाय, उन्हेंकैसे पाया जाय और उनका बेहतर इस्तेमाल किया जाय तथा उन्हें पैसे तले रौंदकर बर्बाद होने से कैसे बचाया जाय। यह बड़ी बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे प्रशासन को उत्पादन की सुसंगत उन्नति, उत्पादन लागत कम करने, लागत लेखा के अनुशासन के अनुपालन और प्रतिष्ठानों के अधिकाधिक उपयोगी एवं लाभदायक बनाने की विधि सिखाता है। यह एक अच्छा व्यावहारिक विद्यालय है जो हमारे प्रबंधक कर्मियों की क्षमता को बढ़ाता है और उन्हें हमारे समाजवादी उत्पादन की वर्तमान अवस्था के अच्छे परिपक्व नेता के रूप में विकसित करता है।
कठिनाई यह नहीं है कि हमारे देश का उत्पादन मूल्य नियम से प्रभावित है। कठिनाई यह है कि कुछेक अपवाद को छोड़कर हमारे प्रशासक और योजनाकार मूल्य नियम के परिचालन से बहुत कम अवगत हैं, वे उनका अध्ययन नहीं करते और अपनी गणना में इसका हिसाब रख पाने में असमर्थ हैं। दाम निर्धारण नीति के क्षेत्र में अस्पष्टता इस बात का प्रतीक है कि इस मामले में पूरी दिशाहीनता व्याप्त है। ऐसे अनेकों उदाहरणों में एक यह है कि कुछ समय पहले यह निश्चिय किया गया कि कपास और अनाज के दामों, कपास उगाने के हित में समंजन किया जाय, कपास उत्पादकों को बेचे जाने वाले अनाज की कीमत और ज्यादा सही किया जाय और राज्य को आपूर्ति किए जाने वाले कपास का दाम बढ़ा दिया जाय। हमारे प्रशासकीय प्रबंधन और योजनाकारों ने एक प्रस्ताव इसके लिए प्रस्तुत किया जा आश्चर्यजनक एवं अजीबोगरीब था। प्रस्ताव में सुझाव दिया गया कि एक टन अनाज का दाम व्यावहारिक रूप से एक टन कपास के बराबर निर्धारित किया जाय और फिर एक टन अनाज का दाम एक टन सेंकी हुई रोटी के बराबर किया जाय। केन्द्रीय कमेटी के सदस्यों द्वारा जब यह पूछा गया कि एक टन रोटी का दाम निश्चित रूप से एक टन अनाज से ज्यादा होना चाहिए क्योंकि उसे आटा पीसने और सेंकने में अतिरिक्त खर्च पड़ता है तो उसका कोई तर्क संगत उत्तर प्रस्तावक योजनाकारों द्वारा नहीं दिया जा सका। तब पूरे मामले को केन्द्रीय कमेटी ने अपने हाथों में लिया। अनाज का दाम कम कर दिया गया और कपास का दाम बढ़ा दिया गया। तब क्या होता अगर इन साथियों के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता? जाहिर है, कपास उगाने वालों का दिवाला पिट जाता और हम बिना कपास के हो जाते।
तो क्या इसका मतलब यह है कि मूल्य नियम के परिचालन का क्षेत्र हमारे यहाँ भी उतना ही बड़ा है जितना पूँजीवाद में? और क्या यह हमारे देश के उत्पादन का भी नियामक है?
नहीं, ऐसा नहीं है। असल में मूल्य नियम परिचालन का क्षेत्र हमारी आर्थिक व्यवस्था में अत्यंत ही सीमित है और उसे निश्चित बंधन में रखा गया है। पहले ही कहा जा चुका है कि माल उत्पादन का परिचालन क्षेत्र निर्धारित बंधनों के अंदर रखा गया है। यही बात मूल्य नियम के बारे में भी कही जानी चाहिए। निःसंदेह यह तथ्य कि हमारे यहाँ उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व का अस्तित्व नहीं है और इसका समाजीकरण (शहर और देहात में) हो गया है, मूल्य नियम के प्रभाव और क्षेत्र विस्तार को रोकता है।
क्रमश:
अनुवादक- सत्य नारायण ठाकुर
हमारे देश में मूल्य का नियम सबसे पहले माल के परिचलन, खरीद और बिक्री द्वारा माल का विनिमय, व्यक्तिगत उपभोग के लिए सामग्रियों का विनियम के क्षेत्र में काम करता है। यहाँ इस क्षेत्र में एक सीमा तक मूल्य का नियम सही माने में नियमन कार्य को संरक्षित करता है।
किन्तु मूल्य नियम केवल माल के परिचलन क्षेत्र तक ही सीमित नहीं होता है। इसका विस्तार उत्पादन क्षेत्र में भी है। यह सच है कि मूल्य नियम हमारे समाजवादी उत्पादन का नियामक नहीं है फिर भी यह हमारे उत्पादन को प्रभावित करता है। उत्पादन निर्धारित करते समय हम इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते। वास्तव में उपभोक्ता सामान, जिसकी जरूरत उत्पादन प्रक्रिया में खर्चित श्रम शक्ति की क्षतिपूर्ति के किए होती है, हमारे देश में मूल्य नियम के अन्तर्गत ही माल के रूप में उत्पादित और प्राप्त किए जाते हैं। इसी रूप में मूल्य नियम उत्पादन पर प्रभाव डालता है। इस मामले में लागत लेखा ;बवेज ंबबवनदजपदहद्धए लाभदायकता, उत्पादन लागत, दाम, इत्यादि जैसी चीजें हमारे प्रतिष्ठानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मूल्य नियम को ध्यान में रखे बगैर हमारे प्रतिष्ठान काम नहीं कर सकते और अवश्य ही करना भी नहीं चाहिए।
क्या यह अच्छी बात है? यह बड़ी बात भी नहीं है। वर्तमान समय में यह सचमुच बड़ी बात नहीं है। यह हमारे प्रतिष्ठानों के व्यावसायिक प्रबंधकों को, उत्पादन को युक्तिसंगत मितव्ययिता कुशलता के आधार पर अनुशासित करने के क्षेत्र में प्रशिक्षित करता है। यह इसलिए बड़ी बात नहीं है क्योंकि यह हमारे प्रबंधकों को सिखाता है कि उत्पादन परिणाम की कैसे गणना की जाय, और यह भी कि इसके विस्तार और महत्व को ठोस रूप में कैसे रेखांकित किया जाय, अनुमानित आंकड़े जैसे गोल मटोल हवाई और वाहियात बातों से कैसे बचा जाय। यह बड़ी बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे प्रबंधक को सिखाता है कि हमारे उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्निहित आम स्रोतों को कैसे देखा जाय, उन्हेंकैसे पाया जाय और उनका बेहतर इस्तेमाल किया जाय तथा उन्हें पैसे तले रौंदकर बर्बाद होने से कैसे बचाया जाय। यह बड़ी बात नहीं है, क्योंकि यह हमारे प्रशासन को उत्पादन की सुसंगत उन्नति, उत्पादन लागत कम करने, लागत लेखा के अनुशासन के अनुपालन और प्रतिष्ठानों के अधिकाधिक उपयोगी एवं लाभदायक बनाने की विधि सिखाता है। यह एक अच्छा व्यावहारिक विद्यालय है जो हमारे प्रबंधक कर्मियों की क्षमता को बढ़ाता है और उन्हें हमारे समाजवादी उत्पादन की वर्तमान अवस्था के अच्छे परिपक्व नेता के रूप में विकसित करता है।
कठिनाई यह नहीं है कि हमारे देश का उत्पादन मूल्य नियम से प्रभावित है। कठिनाई यह है कि कुछेक अपवाद को छोड़कर हमारे प्रशासक और योजनाकार मूल्य नियम के परिचालन से बहुत कम अवगत हैं, वे उनका अध्ययन नहीं करते और अपनी गणना में इसका हिसाब रख पाने में असमर्थ हैं। दाम निर्धारण नीति के क्षेत्र में अस्पष्टता इस बात का प्रतीक है कि इस मामले में पूरी दिशाहीनता व्याप्त है। ऐसे अनेकों उदाहरणों में एक यह है कि कुछ समय पहले यह निश्चिय किया गया कि कपास और अनाज के दामों, कपास उगाने के हित में समंजन किया जाय, कपास उत्पादकों को बेचे जाने वाले अनाज की कीमत और ज्यादा सही किया जाय और राज्य को आपूर्ति किए जाने वाले कपास का दाम बढ़ा दिया जाय। हमारे प्रशासकीय प्रबंधन और योजनाकारों ने एक प्रस्ताव इसके लिए प्रस्तुत किया जा आश्चर्यजनक एवं अजीबोगरीब था। प्रस्ताव में सुझाव दिया गया कि एक टन अनाज का दाम व्यावहारिक रूप से एक टन कपास के बराबर निर्धारित किया जाय और फिर एक टन अनाज का दाम एक टन सेंकी हुई रोटी के बराबर किया जाय। केन्द्रीय कमेटी के सदस्यों द्वारा जब यह पूछा गया कि एक टन रोटी का दाम निश्चित रूप से एक टन अनाज से ज्यादा होना चाहिए क्योंकि उसे आटा पीसने और सेंकने में अतिरिक्त खर्च पड़ता है तो उसका कोई तर्क संगत उत्तर प्रस्तावक योजनाकारों द्वारा नहीं दिया जा सका। तब पूरे मामले को केन्द्रीय कमेटी ने अपने हाथों में लिया। अनाज का दाम कम कर दिया गया और कपास का दाम बढ़ा दिया गया। तब क्या होता अगर इन साथियों के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता? जाहिर है, कपास उगाने वालों का दिवाला पिट जाता और हम बिना कपास के हो जाते।
तो क्या इसका मतलब यह है कि मूल्य नियम के परिचालन का क्षेत्र हमारे यहाँ भी उतना ही बड़ा है जितना पूँजीवाद में? और क्या यह हमारे देश के उत्पादन का भी नियामक है?
नहीं, ऐसा नहीं है। असल में मूल्य नियम परिचालन का क्षेत्र हमारी आर्थिक व्यवस्था में अत्यंत ही सीमित है और उसे निश्चित बंधन में रखा गया है। पहले ही कहा जा चुका है कि माल उत्पादन का परिचालन क्षेत्र निर्धारित बंधनों के अंदर रखा गया है। यही बात मूल्य नियम के बारे में भी कही जानी चाहिए। निःसंदेह यह तथ्य कि हमारे यहाँ उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व का अस्तित्व नहीं है और इसका समाजीकरण (शहर और देहात में) हो गया है, मूल्य नियम के प्रभाव और क्षेत्र विस्तार को रोकता है।
क्रमश:
अनुवादक- सत्य नारायण ठाकुर
आज जब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है और आर्थिक संकट का समाधान नहीं हो पा रहा है। समाजवादी अर्थ तंत्र के विशेषज्ञ जोजेफ स्तालिन ने अपनी अंतिम रचना में समाजवादी अर्थतंत्र के समस्यायों के निदान के सम्बन्ध में चर्चा की थी। इस पुस्तक को जोसेफ स्तालिन के मरने के बाद पुन: प्रकाशित नहीं होने दिया गया था। इस पुस्तक का अनुवाद श्री सत्य नारायण ठाकुर ने किया है जिसके कुछ अंश: यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं। आप के सुझाव व विचार सादर आमंत्रित हैं।
-सुमन
-सुमन
1 टिप्पणी:
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