गुरुवार, 13 सितंबर 2012

मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तीसरा मोर्चा बनेगा

मुलायम सिंह यादव देश की अवसरवादी राजनीति का प्रतीक हैं जब उन्हें राजनीति में लाभ उठाना होता है तो वह  उसी पाले में जाकर बैठ जाते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने क्रांतिकारी मोर्चा बना कर प्रदेश स्तर का नेता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। शासन में आने क बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश शाखा का समाजवादी पार्टी में विलय कराने का काम भी मुलायम सिंह यादव ने किया था। वाम दलों में जब यूपीए सरकार से परमाणु करार के मुद्दे पर समर्थन वापस लिया तो सरकार बचाने में समाजवादी पार्टी सबसे आगे थी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को कहा कि तीसरे मोर्चे के गठन पर 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही निर्णय किया जायेगा।

समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की दो दिवसीय बैठक के बाद यादव ने कहा, ‘‘तीसरे मोर्चे के गठन के बारे में निर्णय 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद लिया जायेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हम अभी गठबंधन की बात नहीं कर रहे हैं और वामपंथी या दक्षिणपंथी दलों से सहयोग नहीं करेंगे।’’ सपा सुप्रीमो ने कहा कि दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा कमजोर हो रही है और आपस में संघर्ष कर रही है, ऐसे में लोकसभा के समय से पहले चुनाव होने की संभावना है। मुलायम सिंह यादव ने कहा, ‘‘ कांग्रेस और भाजपा दोनों लोगों की आकांक्षओं को पूरा करने में विफल रही है और इसके लिए सपा को आगे आना पड़ेगा।’’ यादव ने कहा कि सपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।
      वस्तुस्तिथि यह है कि जहाँ  उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की  सरकार जैसे जनता की इच्छा  को पूरा कर रही हो। केंद्र में यूपीए व एन डी ए सरकार फेल रही हैं तो प्रदेश में समाजवादी सरकार भी फेल है।  कानून व्यवस्था का बुरा हाल है, भ्रष्टाचार बढ़ा  है, घोटालेबाजों को संरक्षण का काम समाजवादी सरकार ही कर रही है।  आइ ए एस प्रदीप शुक्ला से लेकर अन्य घोटालेबाजों को भी सरकारी संरक्षण प्राप्त है। बेरोजगारी भत्ता से लेकर किसान कर्ज तक चुनाव पूर्व की गयी बातें हवा हवाई हो गई हैं। बेगुनाह मुस्लिम नवजवानों को अभी तक रिहा नहीं किया गया है। मुसलमानों का उत्पीडन एस टी ऍफ़ व ए टी ऍफ़ द्वारा किया जा रहा है. चुनाव लड़ने में समझौता नहीं करेंगे क्यूंकि उसमें अन्य दलों को भी सीटें देनी पड़ेंगी और चुनाव बाद उन्ही दलों की मदद से तीसरा मोर्चा बना कर प्रधानमंत्री बनने  की उनकी ख्वाहिश भी पूरी नहीं होगी।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

प्रधानमंत्री का पद भला कौन नही पाना चाहेगा,लेकिन ये सब चुनाव के पहले संभव नही है,चुनाव के बाद
परिस्थितियाँ क्या बनती है उसके ऊपर निर्भर करता है,फिर भी सपना देखने में क्या बुराई है,और सपने कभी२ सच भी हो जाते है,,,,,

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Gyan Darpan ने कहा…

इस अवसरवादी प्रतीक को आगे बढ़ायेगी भी वामपंथी पार्टी|
क्योंकि दोनों का ही कोई दीन-ईमान नहीं रह गया| बस किसी बहाने सत्ता चाहिए बेशक तुष्टिकरण का सहारा लेना पड़े|

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

मनमोहन सिंह जी नरसिंघा राव जी के परम प्रिय शिष्य हैं। राव साहब ने अपने हटने से पहले कांग्रेस को सत्ताच्युत करने का बंदोबस्त कर दिया था और दो वर्षों के अंतराल मे भाजपा को सत्तासीन होने का अवसर प्रदान कर दिया था। मनमोहन जी उसी नीति का अनुसरण कर रहे हैं। एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं जिंनका खामियाजा कांग्रेस चुनावों मे भुगतेगी। गत वर्ष अपनी पार्टी अध्यक्ष की गैर हाजिरी मे उनके द्वारा RSS/देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों की मदद से अन्ना आंदोलन खड़ा करा कर पार्टी महासचिव राहुल को अन्ना से भिड़ाने का उपक्रम किया था। राहुल ने चुप्पी साध कर उनकी योजना पर पानी फेर दिया था। इस बार जन-विरोधी निर्णयों को लागू करके अपनी पूरी पार्टी की कब्र उन्होने खोद दी है। इतिहास मे वह आत्मभंजक के रूप मे ही जाने जाएँगे।

लेकिन इस बार एल के आडवाणी साहब ने भी ठान लिया है कि वह अपनी पार्टी और उसके नेता को पी एम नहीं बनने देंगे। ऐसी सूरत मे यदि बामपंथ ने साथ न दिया तो मुलायम वाया आडवाणी भाजपा के समर्थन से भी पी एम बन सकते हैं भले ही छह माह के लिए ही सही।

यदि बामपंथ मे कुछ नेता केंद्र सरकार मे मंत्री बनने के इच्छुक होंगे तो निश्चित रूप से बामपंथ भाजपा को रोकने के नाम पर मुलायम के तीसरे मोर्चे को ही समर्थन दे देगा बनिस्बत कांग्रेस के।

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