गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

भूमि अधिग्रहण कानून आखिर किसके लिए?

आगरा एक्सप्रेसवे के लिए क्या किसान सहमत थे?  नवी​ ​ मुंबई के बेदखल गांवों की कहानी पुरानी है। उत्तरप्रदेश, दिल्ली और हरियामा के गांवों के सीने पर राजधानी के कायकल्प में हालांकि खून का  दाग नहीं दीख रहा है और न कातिलों के निशान कहीं हैं, लेकिन भूमि अधिग्रहण के पीछे की कहानी प्रकट है।परमाणु दीवानगी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेज, ​​इंड्सट्रीयल कारीडोर,मेगा सिटी और एनएसआईजेड के लिए जमीन अधिग्रहण के पैमाने बदल देने की छूट राज्य सरकारों को मिल ही रही है। खान परियोजनाओं का किस्सा अलग है। नियमागिरि में क्या हो रहा हैए सभी जानते हैं। इस सिलसिले में खास बात तो यह है कि वेदांत से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धज्जियां उधेड़ते हुए कांग्रेस और भाजपा, पक्ष और विपक्ष ने हजारों करोड़ हड़प लिये। वनाधिकार अधिनियम, संविधान की पांचवीं छठीं अनुसूची, अभयारण्य, समुद्र्तट सुरक्षा अधिनियमए पर्यावरण कानून, स्थानीय निकाय कानूनए पीसा, आदि कानूनों का उल्लंघन​ ​ करते हुए जमीन के काले धंधे में सभी राजनीतिक दलों के चेहरे कालिख से पुते हुए हैं, नये भूमि अधिग्रहण बिल से क्या हालात बदल जायेंगे?
भूमि अधिग्रहण कानून आखिर  किसके लिए? जमीन बेचने लिए 3 में से 2 मालिकों की सहमति लेना जरूरी होगा।सहमति हासिल करना क्या मुश्किल है धन बल बाहुबल और राष्ट्रशक्ति के सैन्यबल के आगे पहले ही निहत्था आदमी जल जंगल जमीन​​ और आजीविका के हक हकूक खो चुका है। सहमति और मुआवजा के जुमले उछालकर कारपोरेट हित में तैयार कानून का मसविदा अभी हाल में  सत्याग्रह यात्रा का अंत करने वाले समझौते पर सवालिया निशान खड़ा करता है। अनुसूचित क्षेत्रों में जमीन के हस्तांतरण पर प्रतिबंध के ​​मद्देनजर सहमति का यह मुहावरा संवैधानिक सुरक्षाकवच को तोड़ने का काम जरूर करेगा।ज्यादातर आदिवासी गांव बतौर राजस्व गांव ​​रिकार्ड हैं नहीं, आदिवासियों को संविधान के पांचवीं और छठीं अनुसूची के मुताबिक स्वयत्तता का अधिकार या प्रकृतिक संसाधनों का मालिकाना हक मिला ही नहीं, भूमि सुधार लागू ही नहीं हुआ और नागरिकता बायोमैट्रिक हो गयी। पर उनकी सहमति से मुआवजा और पुनर्वास का गाजर​​ दिखाकर बिना प्रतिरोध जमीन छीनने का राजमार्ग तैयार हो रहा है। वनाधिकार कानून का हश्र क्या हुआ, क्या इससे सबक लेने की ​​जरुरत नहीं  हैघ्राज्य सरकारों को अपने लिए अलग कानून बनाने की छूट दी गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे चुनिंदा मामलों में ही सरकार जबरन जमीन अधिग्रहण करेगी।रेलवे, पोर्ट, सड़क और नहरों के लिए जमीन लेने पर लोगों की राय लेना जरूरी नहीं होगा। लेकिनए 100 एकड़ से ज्यादा जमीन लेने पर 80 फीसदी लोगों की सहमति जरूरी होगी। नए कानून की हर 20 साल पर समीक्षा का प्रस्ताव है।ताकतवर लोग कैसे कानून की धज्जियां उड़ाकर जमीन पर कब्जा कर रहे हैंए अरविंद केजरीवाल के ताजा खुलासे से इसमें सर्वदलीय साझेदारी बेनकीब हुई है। इसके मद्देनजर जमीन के अधिग्रहण में कोई गड़बड़ी नहीं होगी, इसकी क्या गारंटी हैघ् जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में आंदोलित कई राज्यों में सैकड़ों ग़रीब किसानों एवं आदिवासियों को पुलिस की गोलियों का शिकार होना पड़ा। उनका दोष स़िर्फ इतना था कि वे किसी भी क़ीमत पर अपनी पुश्तैनी ज़मीन देने के लिए तैयार नहीं थे। ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 बनाया था। आज़ादी के बाद उसी क़ानून की आड़ में देश की सरकारों ने निजी स्वार्थ के चलते पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए करोड़ों किसानों एवं आदिवासियों को दांव पर लगा दिया। भूमि अधिग्रहण के चलते जिन किसानों की मौत हुईए उसे नरसंहार कहने में कोई गुरेज़ नहीं। इसकी ज़िम्मेदार केंद्र और राज्य की सरकारें हैं, जिनका दामन निर्दोष किसानों के खून से दाग़दार है।
गौरतलब है कि उदारीकरण का दौर शुरू होते ही जब सवा सौ साल पुराने भूमि अधिग्रहण क़ानून ने अपना असर दिखाना शुरू किया, तब कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को यह मुद्दा अपनी छवि बनाने के एक अवसर के रूप में दिखा। नतीजतन, अपनी तऱफ से उन्होंने इस कानून में यथाशीघ्र संशोधन कराने की घोषणा कर दी। घोषणा चूंकि राहुल गांधी ने की थीए इसलिए उस पर संशोधन का काम भी शुरू हो गया।संशोधित बिल भी कॉरपोरेट घरानों के खजानों को भरने के लिए बनाया गया है। शायद तभी पूरे देश भर से हजारों लोग दिल्ली आकर इस क़ानून का तीन दिनों तक विरोध करते हैं। अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में ;21 से 23 अगस्त के बीचद्ध ज़मीन की लूट और जन विरोधी संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिला़फ आयोजित जनमोर्चा में जंतर.मंतर पर हज़ारों लोग जुटे। ज़मीन की लूट और कॉरपोरेट्‌स के भ्रष्टाचार एवं शोषण के खिला़फ आयोजित तीन दिवसीय धरने एवं जनमोर्चा में यह बात सामने आई कि यूपीए सरकार उचित मुआवज़े, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन का अधिकार अधिनियम 2011 लाकर देश की संसद और लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है।
आगरा एक्सप्रेसवे के लिए क्या किसान सहमत थे?  नवी​ ​ मुंबई के बेदखल गांवों की कहानी पुरानी है। उत्तरप्रदेश, दिल्ली और हरियामा के गांवों के सीने पर राजधानी के कायकल्प में हालांकि खून का  दाग नहीं दीख रहा है और न कातिलों के निशान कहीं हैं, लेकिन भूमि अधिग्रहण के पीछे की कहानी प्रकट है।परमाणु दीवानगी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेज, ​​इंड्सट्रीयल कारीडोर, मेगा सिटी और एनएसआईजेड के लिए जमीन अधिग्रहण के पैमाने बदल देने की छूट राज्य सरकारों को मिल ही रही है। खान परियोजनाओं का किस्सा अलग है। नियमागिरि में क्या हो रहा है, सभी जानते हैं। इस सिलसिले में खास बात तो यह है कि वेदांत से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धज्जियां उधेड़ते हुए कांग्रेस और भाजपा, पक्ष और विपक्ष ने हजारों करोड़ हड़प लिये। वनाधिकार अधिनियमए संविधान की पांचवीं छठीं अनुसूची, अभयारण्य, समुद्र्तट सुरक्षा अधिनियम, पर्यावरण कानूनए स्थानीय निकाय कानून, पीसा, आदि कानूनों का उल्लंघन​ ​ करते हुए जमीन के काले धंधे में सभी राजनीतिक दलों के चेहरे कालिख से पुते हुए हैं, नये भूमि अधिग्रहण बिल से क्या हालात बदल जायेंगे?
 बहरहाल बहुप्रतीक्षित भूमि अधिग्रहण विधेयक को मंत्रियों के विशेषाधिकार प्राप्त समूह जीओएम, ने मंजूरी दे दी। बिल को लेकर जीओएम के बीच आम राय बन गई है और अब भूमि अधिग्रहण बिल दो हफ्ते में कैबिनेट के पास भेजा जा सकता है। साथ ही भूमि अधिग्रहण बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है।केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा, भूमि अधिग्रहण बिल दो हफ्ते में कैबिनेट के पास भेजा जा सकता है। साथ ही भूमि अधिग्रहण बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है। ग्रामीण विकास मंत्री के मुताबिक ड्राफ्ट के तहत जमीन बेचने लिए 3 में से 2 मालिकों की सहमति लेना जरूरी होगा। जीओएम में जमीन बिक्री पर ग्रामसभाए पंचायतों की मंजूरी जरूरी करने पर चर्चा हुई है।
 बीजेपी ने बुधवार को जमीन अधिग्रहण बिल पर किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। पार्टी ने कहा कि इस बिल को पूरी तरह परख करने के बाद ही कोई टिप्पेणी करेंगे।
बीजेपी के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि पार्टी किसानों के हितों की रक्षा करने की पक्षधर है और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि देश का विकास जारी रहे। इसलिए पहले हम इस बिल के अंतिम स्वूरूप को देखना चाहते हैं और इसके बाद ही कोई ठोस प्रतिक्रिया देंगे।
उधर कांग्रेस ने मंत्रियों के एक समूह द्वारा भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे को मंजूरी दिये जाने का स्वागत किया और कहा कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद किसानों और खासकर गरीब किसानों को फायदा होगा।
कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने यहां संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि जीओएम ने भूमिअधिग्रहण विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है। अब यह कैबिनेट में जाएगा और उम्मीद है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इसे पारित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में भूमि अधिग्रहण और भूमि सुधार के बारे में सौ साल पुराने कानून के स्थान पर एक नया कानून देश को देने का वादा किया था। सरकार इस वादे को लागू करने जा रही है।
अल्वी ने कहा कि इस नए कानून से किसानों और खासकर गरीब किसानों को फायदा पहुंचेगा।
जयराम रमेश का कहना है कि जमीन अधिग्रहण बिल 2 हफ्ते में कैबिनेट के पास भेजा जा सकता है। जमीन अधिग्रहण बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है।
नए जमीन अधिग्रहण कानून के तहत प्रस्ताव है कि पब्लिक प्राइवेट प्रोजेक्ट के लिए कानून सख्त किए जाएंगे। पीपीपी प्रोजेक्ट में कंपनी के 90 फीसदी जमीन खरीदने के बाद ही सरकार का दखल होगा।मौजूदा जमीन अधिग्रहण पर भी मुआवजा नए कानून के तहत तय किया जाएगा। गांवों में जमीन के बाजार भाव का 4 गुना मुआवजा दिए जाने का प्रस्ताव है। शहरों में जमीन के बाजार भाव का 2 गुना मुआवजा देने का प्रस्ताव है।नए कानून के तहत हर विस्थापित को 5 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। साथ ही, विस्थापित परिवार को 20 साल तक 3000 रुपये प्रति महीना मुआवजा मिलेगा।जमीन अधिग्रहण बिल के तहत जमीन के मालिक को 20 फीसदी जमीन डेवलप करके वापस करनी होगी। जमीन का मालिकाना हक ट्रांसफर होने पर 10 साल तक मूल मालिक को मुनाफे का 20 फीसदी मिलेगा।
हालत यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच गुड़गांव में जमीन को लेकर हुए करार को रद्द करने वाले हरियाण के वरिष्ठ अधिकारी अशोक खेमका को अज्ञात लोगों की ओर से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। यह दावा खेमका के करीबी मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम गुप्ता ने किया है। गुप्ता ने मंगलवार को बातचीत में कहा कि खेमका ने मुझे बताया कि उन्हें कुछ फोन आए हैं, जिनमें फोन करने वाले की ओर से कहा गया है कि अपनी गतिविधियों पर रोक लगा दो नहीं तो खत्म कर दिए जाओगे।गुप्ता ने कहा कि धमकी देने वालों ने यह भी कहा है कि उन्होंने उन्हें ;खेमका, मारने के लिए सुपारी दे रखी है। हरियाणा सरकार ने 11 अक्टूबर को लैंड कंसोलिडेशन एंड लैंड रिकॉर्डस.कम.इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन के महानिदेशक अशोक खेमका के स्थानांतरण का आदेश दिया था। वह 15 अक्टूबर तक कार्यालय में थे और उन्होंने उसी दिन वाड्रा व डीएलएफ के बीच सौदा रद्द करने का आदेश दिया।
कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नेता अरविंद केजरीवाल को खुलेआम धमकी दी है। उन्होंने कहा कि बहुत दिन से उनके हाथों में कलम है। उन्हें वकीलों का मंत्री बनाया गया था और कहा गया था कि वो कलम से काम करें लेकिन वो अब लहू;खून से भी काम करेंगे।अरविंद केजरीवाल के फर्रूखाबाद जाकर प्रचार करने पर सलमान खुर्शीद ने कहा कि अरविंद फर्रूखाबाद जाएं लेकिन लौट कर भी आएं फर्रूखाबाद से। सलमान ने ये भी कहा कि सवाल करने वाले भूल जाएंगे कि सवाल कैसे पूछा जाता है।
इन दोनों मामलों से जाहिर है कि जब समर्थ लोगों के सवाळ उठाने पर जान पर बन आती है तो निहत्था आम आदमी अगर भूमि ​​अधिग्रहण के लिए सहमत न हो , तो उसकी क्या गत हो सकती है।
 मेधा पाटकर के मुताबिक  भूमि अधिग्रहण कानून का नया मसौदा तैयार है लेकिन इस गंभीर मसले को लेकर राजनीतिक पार्टियां और सरकार अभी भी ईमानदार नहीं दिख रहे हैं। इनकी प्राथमिकताओं में अभी भी औद्योगिक घराने हैं। भूमि अधिग्रहण कानून जिस साम्राज्यवादी सोच की उपज रहा हैए उससे दिल्ली अब तक नहीं उबर पाई है। हाशिये पर पड़े लोगों की अनिवार्य आवश्यकताओं से अधिक उन्हें औद्योगिक घरानों की पूंजी के विकास की चिंता है। नए मसौदे में जिस व्यापक विकास नियोजन के कानून को प्रस्तावित करने की जरूरत थी वह नहीं दिखता। इसका कारण इतना भर दिखता है कि देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों द्वारा उठा आंदोलन किसी तरह दिशा भटक जाए या फिर शांत हो जाए।
मेरी समझ से सबसे अहम जरूरत यह है कि कृषि से गैर कृषि कार्यों में जमीन का हस्तानांतरण बिल्कुल निषिद्ध हो। पर्यावरण रक्षण को देखते हुए हमने जिस तरह इस बात पर सैद्धांतिक सहमति बनाई है कि कुल भूमि का एक तिहाई हिस्सा वनों के लिए आरक्षित होना चाहिए उसी तरह इस बात पर भी सैद्धांतिक सहमति बननी चाहिए कि ज्यादातर भूमि को अनाज उत्पादन के कार्यों में ही उपयोग में लाया जाना चाहिए। इस संबंध में एक बड़ी जरूरत ग्राम सभाओं के अधिकार से जुड़ी है। ग्राम सभाओं को यह संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिए कि उसकी सहमति के बगैर किसी भी तरह की भूमि अधिग्रहित न की जाए। अभी देश में करीब छह लाख गांव हैं और हमारा देश ग्रामीण पृष्ठभूमि का खेतीहर देश है इसलिए किसी भी तरह के अधिग्रहण में गांवों की सहमति को अनिवार्य कर देना हमारी आवश्यकता है फिर जिस भी जमीन का अधिग्रहण हो, उसमें इस बात का पूरा.पूरा ध्यान रखा जाए कि किस तरह सबसे कम विस्थापन हो। साथ ही पर्यावरण को भी कैसे कम से कम नुकसान पहुंचे।
मेधा पाटकर के मुताबिक  आज हो यह रहा है कि हमारे किसान गलत अधिग्रहण कानून और अन्य नीतियों के कारण मजदूरों में तब्दील हो रहे हैं और इसने विस्थापन को भी काफी बढ़ावा दिया है। याद रखिए कि जब तक विस्थापन न्यूनतम स्तर पर नहीं होगा तब तक सही तौर पर पुनर्वास की व्यवस्था भी नहीं हो पाएगी फिर नए मसौदे में पुनर्वास की स्पष्ट और न्यायपूर्ण व्याख्या भी जरूरी हैए जो अपना घर.बार और जमीन खो रहे हैं, उन्हें केवल कुछ पैसे और कहीं दूर दो कमरे का एक आवास दे देना भर पुनर्वास नहीं है। विस्थापन में जिन परिवारों ने अपनी अधिकांश विरासत खो दीए उन्हें जीविका का जरिया अनिवार्य तौर पर मिलना ही चाहिए। आखिर हम एक आजाद देश के वासी हैं और भूमि अधिग्रहण पर राज्य की सार्वभौमिक सत्ता का वह रूप हमें स्वीकार्य नहीं हो सकता जो गुलामी के दौर में था। रोजगार और विकास के नाम पर बरगलाने का खेल हमारे साथ अब और नहीं खेला जा सकता है।सरकार को चाहिए कि वह अब विकास के प्रति सही समझ पैदा करे। एकांगी विकास से किसी देश का भला नहीं हो सकता। केवल अरबपति पैदा करना समृद्धि का लक्षण नहीं है। प्रत्येक वर्ष देश के हजारों लोग अपनी जमीन से बेदखल होते हैं। किसान ही नहीं, आदिवासियों तक को अपने आशियानों से दर.ब.दर होना पड़ रहा है। इतना ही नहींए वंचितों के विद्रोह को दबाने का भी हर संभव प्रयास किया जा रहा है। उन पर गोलियां चलाई जा रही हैं। डंडे बरसाए जा रहे हैं। यह आर्थिक विषमता और लोगों के हक छीनने का ही नतीजा है कि नक्सलवाद जैसी समस्याएं पैदा हुई हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि नक्सलवाद के पीछे भी मूल रूप से आर्थिक विषमता और जमीन का सही बंटवारा नहीं होना है। सरकार जमीन का सही वितरण करने की जगह जमीन जबरन छीन औद्योगिक घरानों को दे रही है। सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून पर हालांकि कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैए यह याद रखना चाहिए।
इंडिया अगेंस्ट करप्शन ;आइएसी के अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी ;भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी पर निशाना साधा है। केजरीवाल ने कहा कि गडकरी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ;राकांपा के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बीच संबंधों की जांच होनी चाहिए। वहीं भाजपा अध्यक्ष ने केजरीवाल के इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। वहीं पार्टी भी पूरी तरह से अध्यक्ष के बचाव में आ गई और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने खुद गडकरी का बचाव किया।अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर खुलासा करते हुए बुधवार को सवाल उठाए हैं कि वो किसके हक में काम कर रहे हैं। वो किसके इंट्रेस्ट को रिप्रेजेंट करते हैं? महाराष्ट्र में 71 हजार करोड़ का सिचाई घोटाला सामने आया है। कांग्रेस.एनसीपी की मिलीजुली सरकार के दौरान बीजेपी ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी मदद नहीं की। गडकरी ने अंजली दमानिया को कहा कि शरद पवार से उनके अच्छे रिश्ते हैं। चार काम वो करते हैं तो चार काम वो उनका करते हैं।हालांकि बाद में मीडिया में गडकरी ने इससे इंकार किया था। मुंबई में आईएसी की सदस्य अंजली दमानिया और प्रीति ने सिंचाई घोटाले की जांच की। एक महीने की जांच में चौंकानेवाले तथ्य सामने आए हैं। अरविंद ने सवाल उठाया कि विदर्भ में किसान खुदकुशी क्यों कर रहे हैं? जब आईएसी की सदस्य एक महीने में जांच कर तथ्य सामने ला सकती हैं तो सरकारें क्या कर रहीं हैं? जांच एजेंसियां क्या कर रही हैं?अन्ना आंदोलन के दौरान अंजली दमानिया ने आरटीआई दाखिल की जिसके बाद उनको सबूत मिले की 70 हजार करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी किसानों को फायदा नहीं क्यों नहीं मिले? अरविंद ने खुलासा किया कि नागपुर के खुर्सापुर गांव में डैम बनाने के लिए जमीन अधिग्रहित की गई। इलाके के किसान गजानन रामभावजी घडगे की जमीन अधिग्रहित की गई। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि जितनी जमीन चाहिए थी उससे ज्यादा जमीन अधिग्रहित की गई।लेकिन डैम बनाने के बाद भी जमीन खाली पड़ी थी जिसपर सिंचाई विभाग के आदेश से गजानन उसपर खेती कर रहे थे, इसके लिए उन्होंने सिंचाई विभाग से आज्ञा ले रखी थी। बांध बन गया। 100 एकड़ जमीन खाली पडी थी। सिंचाई विभाग के इंजीनियर ने 18 एकड़ जमीन पर खेती की प्रमीशन दी। इसके बाद साल 2000 में किसानों ने सूबे के शासन को चिट्ठी लिखी और मांग की कि फालतु खाली पड़ी जमीन पर वो खेती करना चाहते हैं। वो जमीन उनको लीज पर या बेच दी जाए। लेकिन सिंचाई विभाग का जवाब आया कि जमीन पर सिंचाई बंद कर दी जाए। इस खाली पड़ी जमीन पर सौंदर्यीकरण का काम करना है।
4 जून 2005 को बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अजित पवार को चिट्ठी लिखी की उनको 100 एकड़ जमीन चाहिए। अजित पवार ने चार दिन यानि 8 जून को वीआईडीसी को कहा कि गडकरी के प्रस्ताव को 22 जून की बैठक में पेश किया जाए। इस बैठक में नितिन गडकरी की मांग को मंजूरी दे दी गई। हालांकि इसका सिंचाई विभाग ने विरोध किया कि कानून के तहत ऐसा करना संभव नहीं है।
28 नवंबर 2007 को एक और मीटिंग हुई और 100 एकड़ जमीन गड़करी को दे दी गई। 6 जून 2008 को घडगे ने लोकल एमएलए को लिखा कि ज्यादा अधिग्रहण होने पर बची हुई जमीन किसानों को वापस होनी चाहिए ऐसा कानून है। ये हमें वापस मिलनी चाहिए।
21 जून 2008 को घड़गे को बुलाया गया एवहां गड़करी की कंपनी के कुछ अधिकारी थे, घड़गे को कहा गया कि ये जमीन अब गड़करी की कंपनी को दे दी गई है। इसे आपको छोड़ना होगा। 28 जून 2008 को जब वो लौटा तो गड़करी की कंपनी के एमडी ने कहा कि जो कर सकते हो कर लोए अब ये जमीन हमारी है।
उसी गांव में पंचायत ने प्रस्ताव पारित किया 19 अगस्त 2007 को प्रस्ताव पारित किया कि गड़करी की कंपनी का जो पावर प्लांट हैए उसका गंध पीने के पानी में मिलता है। इसे बंद किया जाए।
अरविंद ने खुलासा करते हुए कहा कि नितिन गडकरी का बड़ा एंपायर है। उनका इसमें व्यासायिक इंट्रेस्ट हैं। क्या वो महाराष्ट्र के विदर्भा के किसानों के विरोध में है? क्या महाराष्ट्र के अंदर व्यवसाय किसानों की खुदकुशी पर हो रहा है? केजरीवाल ने कहा कि वो एक प्रश्न देश के सामने रखना चाहते हैं कि क्या बीजेपी देश की विपक्षी पार्टी है या बीजेपी सत्ताधारी पार्टियों से मिली हुई है। सवाल उठाते हुए अरविंद ने खुलासा किया कि गडकरी साहब का इंटरेस्ट क्या है। उनके बिजनेस हित क्या महाराष्ट्र के किसानों के हितों से टकरा रहे हैं? महाराष्ट्र के अंदर जो गड़करी के हित हैं उनकी कीमत किसान चुका रहे हैं?जिस वक्त अरविंद केजरीवाल गडकरी के बारे में खुलासा कर रहे थे तो उसी वक्त गडकरी के घर पर बीजेपी के बड़े नेता सुषमा स्वराज, विजय गोएल, बलबीर पुंज और प्रकाश जावड़ेकर मौजूद थे।
राबर्ट वड्रा से के भूमि सौदे की जांच की मांग को खारिज करते हुए कांग्रेस ने आज कहा कि हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका द्वारा सोनिया गांधी के दामाद से संबंधित भूमि सौदे की जांच का आदेश बाद में विचारित काम है।
पार्टी प्रवक्ता राशिद अल्वी ने यहां संवाददाताओं से बातचीत करते हुए वड्रा के खिलाफ आरोपों को पूरी तरह से आधारहीन बताया। उन्होंने कहा कि किसी जांच की जरूरत नहीं। जांच आवश्यक नहीं है। मैं सिरे से नकारता हूं। उनसे संववाददाताओं ने पूछा था कि क्या कांग्रेस इस मामले में व्यापक जांच कराने की वकालत करेगी क्योंकि हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने वाड्रा के भूमि सौदों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
अल्वी ने कहा कि यदि कोई जांच करवाई जानी है या कोई कदम उठाया जाना है तो वह भारत सरकार या किसी उपयुक्त एजेंसी के समक्ष की गई शिकायत के आधार पर होनी चाहिए। खेमका के तबादले के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अधिकारी का तबादला 11 अक्टू बर को हो गया था और उन्होंने वड्रा से जुड़े भूमि के बारे में निर्णय बारह और पंद्रह अक्तूबर को लिया। यानी तबादले से इस निणर्य का कोई वास्ता नहीं है।
अल्वी ने कहा कि मीडिया की खबरों के मुताबिक उक्त अधिकारी का 40 बार तबादला हुआ है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि आखिर 39 बार जब उनका तबादला हुआ था तो किसी ने उनके तबादले पर सवाल नहीं उठाया।
अल्वी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि कि बगैर किसी कारण के 39 तबादले हुए होंगे। कोई न कोई कारण रहा होगा। इसके पीछे जरूर कोई न कोई प्रशासनिक कारण रहा होगा जिसके बारे में हरियाणा के मुख्यमंत्री बेहतर बता सकते हैं। अल्वी ने कहा कि हरियाण सरकार ने खेमका द्वारा उठाए गए मुद्दे की जांच के लिए एक समिति गठित की है। जो एक महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट दे देगी।

-एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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