बाराबंकी। अभियुक्त तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद को 24 दिसम्बर लखनऊ जेल पहंचाया गया जहां मौजूद एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके पुलिस ने 9 दिन की रिमाण्ड हासिल करने के बाद अभियुक्तो पर जुल्म ढाए गए और सारी हदे पार कर दी गयी। उन्हे पुलिस की तरफ से सरकारी गवाह बनाने की भी पेशकश की गयी। इसके बाद दोनो अभियुक्तो को फैजाबाद जेल ले जाया गया जहां 8 जनवरी को मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में पुलिस ने रिमाण्ड हासिल किया और एक बार फिर अभियुक्तो पर जुल्म ढाने का सिलसिला चल पड़ा। कानून के रखवालो के जुल्म ढाने के बाद इंसाफ के घर मंे इंसाफ पाने में भी काफी दिक्कतो ं का सामना करना पड़ा। एक मौके पर तो अभियुक्तों के वकील को भी मारा पीटा गया। इसके साथ साथ पुलिस इन्हे रिमाण्ड हासिल करने के बाद गोमती नगर के एक मकान मंे ले गयी
जहां उनके ऊपर बेइन्तिहा जुल्म ढाए गए सोने तक का मौका नही दिया गया, टांगो को चीरा जाता था, बाल उखाड़े जाते थे, इनके अजू तनासिल (वृषण) को डोरी से बांध कर इसमें वजन लटका दिया जाता था जिससे इन्हे बहुत अधिक तकलीफ होती थी तथा इनके मुँह में जबरन शराब उड़ेली जाती थी पेशाब पीने को दिया जाता था। उनके पैखाने के मुहाने में पेट्रोल डाला जाता था जिससे इन्हें असहनीय दर्द होता था। इन्हे सुअर का गोश्त खिलाया जाता था कड़ाके की ठण्ड में बर्फ की सिल्लियो पर लेटाया जाता था, करन्ट के झटके दिए जाते थे। इसी दौरान हैदराबाद,राजस्थान,गुजरात,मुम्बई, बंगाल, दिल्ली और कई और राज्यो की पुलिस पूछताछ करने इनके पास आती थी।इनसे एस0टी0एफ0 ने रटा रटाया बयान याद करवाया। एक बार राजस्थान और दिल्ली की पुलिस के सामने सही बयान दे दिया यह सोचकर कि ये उ0प्र0 की पुलिस नही है सच बता देंगे तो मुझे यह लोग छोड़ देंगे लेकिन सही बयान देने पर उनके ऊपर और अधिक जुल्म ढाने शुरू हो गए। दोनो अभियुक्तो ने अदालत को दिए गए बयान में कहा है कि 17 जनवरी को एक बैटरी जिस पर कुछ चिकनाहट लगा हुआ था इनके हाथ में पकड़वायी गयी इनके हाथ और पैरो के निशान लिए गए और सादे कागज पर इनके हाथ व पैर के निशान लिए गए। पुलिस अधिकारी निशान लेते समय आपस में बात कर रहे थे कि ऐसे सबूत तैयार करो कि इन्हे फांसी के फन्दे तक ले जाने के लिए काफी हों।दोनो ही अभियुक्तो ने बताया कि पुलिस इन्हे सरकारी गवाह बनाने के लिए कह रही थी किन्तु इन्होने सरकारी गवाह बनने से मना कर दिया। इनकी कानूनी पैरवी के लिए अधिवक्ता पहले आगे नही आए और फिर जब लखनऊ के मुहम्मद शुएब एडवोकेट ने हिम्म्त दिखायी तो इन्हे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बाराबंकी सिविल कोर्ट में जब वह पहली बार आए तो उस समय जिला बार के महामंत्री प्रदीप सिंह ने भी शुएब एडवोकेट को यह सलाह दी कि वह आतंकवाद के आरोप में निरूद्ध अभियुक्तो की पैरवी न करे वरना उनकी सुरक्षा नही कर पाएंगे। माहौल खराब देखकर शुएब एडवोकेट वापस लखनऊ अपने घर चले गए, लेकिन वहां से उन्होने इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश शिकायत पत्र भेजकर कहा कि अधिवक्ताओं द्वारा उन्हें धमकी दी गयी है। उस समय जिला जज पीयूष कुमार से रिपोर्ट तलब कर ली जिन्होने सरदार बेन्त सिंह और प्रदीप सिंह समेत कई अधिवक्ताओं को नोटिस भेजकर इनका बयान दर्ज कराया गया। अपने खिलाफ हाईकोर्ट का सख्त कार्यवायी देखकर अधिवक्ताओं के तेवर ढीले पड़ गए। इसी समय धर्मनिरपेक्ष मानसिकता के तेजतर्रार अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन ने खुद अभियुक्तो की पैरवी करने की पहल की जिसे इन्होने कबूल कर लिया जिसके नतीजे में अभियुक्तो की कानूनी पैरवी की शुरूआत हो सकी। इस तरह अभियुक्तो तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद को न्याय के मंदिर में भी अन्याय का दर्द सहना पड़ा। जबकि कानून यह कहता है कि जब तक अदालत के सामने इसका अपराध साबित न हो जाए तब तक वह निर्दोष है। लेकिन अभियुक्तो की बदकिस्मती देखिए कि कानून की रखवाली करने वाले न्याय के मंदिर में भी इन अधिवक्ताओें के दंगा फसाद का रवैया का सामना करना पड़ा जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कत्ल के आरोपी नाथूराम गोडसे के घिनौने अपराध की पैरवी करने पहली कतार में खड़े थे।
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खालिद |
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तारिक |
-मुहम्मद तारिक खान
अनुवादक -नीरज वर्मा एडवोकेट
(इंकलाब से साभार)
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