शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

सीरिया का गृहयुद्ध और अमरीका

पिछले कई वर्षों से सीरिया अमरीकी साम्राज्यवाद के निशाने पर है। ज्ञातव्य है कि इसराइल और सीरिया की साझी सीमा रेखाएँ हैं। यह भी वास्तविकता है कि सीरिया के रणनैतिक महत्व वाले क्षेत्र गोलान हाइट्स पर इसराइल ने 1967 से ही गैरकानूनी कब्जा जमा रखा है। लीबिया में सत्ता परिवर्तन की सफलता के पश्चात से एंग्लो अमरीकी साम्राज्यवाद ने सीरिया में भी सत्ता परिवर्तन के इरादे से देश (सीरिया) के अन्दर गृहयुद्ध छेड़ रखा है। सरकारी सैनिक संगठनों और एंग्लो-अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा संगठित बलों के बीच मुठभेड़ों में अब तक हज़ारों सैनिक मारे जा चुके हैं और लाखों घायल अवस्था में जी रहे हैं।
    प्रश्न यह नहीं है कि वर्तमान में सीरिया में मौजूदा शासन व्यवस्था का स्वभाव, रूप क्या और और कैसा है। प्रश्न यह है कि किसी देश में वहाँ की राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के निर्धारित करने का अधिकार उस देश के निवासियों को है अथवा किसी साम्राज्यवादी शक्ति को? जो लोग विदेशी समर्थन की बात करते हैं वे या तो जान बूझकर अथवा अनजाने में साम्राज्यवादियों के मार्ग को प्रशस्त करने का समर्थन करते हैं और उन्हें दखलन्दाजी करने को आमंत्रित करते हैं; अवसर देते हैं।
    सभी जानते हैं कि इस समय पश्चिम एशिया में ईरान अमरीकी साम्राज्यवाद का मुख्य निशाना बना हुआ है। सीरिया ईरान का मित्र देश है। इसने अमरीकी साम्राज्यवाद और इसराइल के सम्मुख घुटने नहीं टेके हैं। वह लेबनान में हिज्बुल्लाह का समर्थन करता है। सीरिया रूस का भी मित्र देश है। वास्तव में सीरिया में गृहयुद्ध करवाकर सत्ता परिवर्तन करवाने का लक्ष्य है: उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के तेल से सम्पन्न राजनैतिक क्षेत्र पर एंग्लो-अमरीकी आधिपत्य जमाना। अमरीका और उसके साथी देश चाहते हैं कि रूस को रोका जाए और चीन, भारत एवं अन्य राष्ट्र जिन्हें ऊर्जा की आवश्यकता है, उनकी ऊर्जा आपूर्ति पर उनका नियंत्रण हो।
    अमरीका ने सीरिया के गृहयुद्ध में विरोधी सैनिक बलों को आर्थिक सहायता देने के लिए तुर्की को प्रोत्साहित किया। उसने ‘अरब लीग’ को सीरिया के विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाने और सैन्य कार्यवाहियाँ करने के लिए प्रोत्साहित किया। सभी जानते हैं कि ‘अरब लीग’ अमरीका द्वारा नियंत्रित एक गठबंधन है।
    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव रखा गया जिसके अन्तर्गत अन्य चीजों के साथ, सीरिया में बसर अल असद सरकार पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाने की अनुमति देने की बात उल्लेखित थी परन्तु 4 फरवरी 2012 को रूस और चीन ने इस प्रस्ताव को बीटो कर दिया। वास्तविकता यह है कि इस प्रस्ताव को पारित करने के लिए पिछले कई महीनों से अमरीका और उसके यूरोपीय मित्र देश प्रयास करते रहे हैं और दबाव के साथ पूरी कोशिश की गई थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्य राष्ट्र भी इसका समर्थन करें। भारत सरकार ने पहले तो इस प्रस्ताव का समर्थन करने में संकोच प्रदर्शित किया परन्तु अन्तिम समय में प्रस्ताव के समर्थन में अपना वोट दिया परन्तु रूस और चीन के वीटो के कारण प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
    इस्तांबुल में फारस की खाड़ी स्थित अनेक देशों की बैठक में इस बात पर सहमति बन गई है कि अमरीका, अरब देश, सीरिया के विद्रोहियों को प्रतिमाह वेतन देने के लिए 100 मिलियन डालर की मदद देंगे। न्यूयार्क टाइम्स की एक रपट के अनुसार ओबामा प्रशासन सीरिया के विद्रोहियों को संचार उपकरण देने पर तैयार हो गया है। इस बैठक में भाग लेने वाले सभी देश अमरीका के पिछलग्गू राष्ट्र हैं। बताया गया है कि 100 मिलियन डालर की मदद देने का मकसद सीरिया के राष्ट्रपति असद की सेना छोड़ने वाले सैनिकों को प्रोत्साहित करना है। यह भी बताया गया कि इस फंड का इस्तेमाल विद्रोहियों की ‘‘फ्री सीरिया आर्मी’’ के लिए ब्लैक मार्केट से हथियारों की खरीद के लिए भी किया जा सकता है यह भी बताया गया कि अरब फंड (सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत द्वारा दी गई राशि) की राशि को विपक्षी सीरियन नेशनल कांगे्रस द्वारा वितरित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त अमरीका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी सीरिया के विद्रोहियों के लिए 1.22 करोड़ डालर की मानवीय सहायता की घोषणा की है। स्मरण रहे कि सीरिया में विद्रोह के बाद अमरीका द्वारा दी गई कुल सहायता राशि 2.5 करोड़ डालर की हो गई है। इसके अतिरिक्त अमरीका ने विद्रोहियों को बेहतर तालमेल के  उद्देश्य  से संचार के
अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए हैं।
    वास्तव में अमरीका और उसके साथी देश सीरिया में लीबिया जैसी परिस्थिति पैदा कर उस पर हमला करने के योजना के नक्शे पर चल रहे हैं। विश्व जनमत को सोचना है कि क्या किसी भी देश को दूसरे देश की संप्रभुता पर, किसी भी बहाने हमला करने का कोई भी अधिकार है? इराक, अफगानिस्तान, विलूचिस्तान, लीबिया एवं पश्चिमी एशिया तथा अफ्रीका के अनेक राष्ट्रों में जो स्वयं मानवाधिकारों के उल्लंघन के अपराधी रहे हैं, उन साम्राज्यवादियों को सीरिया में उनके द्वारा किए जा रहे कुकृत्यों के लिए कैसे क्षमा किया जा सकता है?
    पश्चिम एशिया और फारस की खाड़ी के इलाके में अमरीका, ब्रिटेन और उनके साथी राष्ट्र ऐसी भयानक स्थिति थोपने का प्रयास कर रहे हैं जिससे इस क्षेत्र और आस-पास के सभी देशों की संप्रभुता और शान्ति को खतरा पैदा हो गया है। सीरिया के घटनाक्रम पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘भारत हर प्रकार की हिंसा की निन्दा करता है, चाहे वह कोई भी कर रहा हो। भारत मानता है कि सभी देशों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करंे, उनकी उचित आकांक्षाओं को पूरा करें और उनकी शिकायतों को प्रशासनिक, आर्थिक और अन्य उपायों द्वारा दूर करें।
    परन्तु भारत सरकार ने यह नहीं स्पष्ट किया कि क्या किसी भी देश को दूसरे देश की संप्रभुुता पर, किसी भी बहाने हमला करने का कोई भी अधिकार है?
-सुश्री पूनम सिंह
लोकसंघर्ष पत्रिका सितम्बर 2012 अंक में प्रकाशित

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