शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

अथक क्रांतिकारी व संगठनकर्ता शचीन्द्र नाथ सान्याल

अथक क्रांतिकारी व महान संगठनकर्ता शचीन्द्र नाथ सान्याल राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों के सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियो के कई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे द्य इसके साथ ही वे गदर पार्टी और अनुशीलन संगठन के दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रयासों के महान कार्यकर्ता और संगठनकर्ता तथा वे अपने बाद के दौर के क्रान्तिकारियो के पथ प्रदर्शक भी थे द्य याद  रखना होगा कि 1923 में उनके खड़े किए गये हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को ही भगत सिंह एवं साथियो ने हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ के रूप में विकसित किया द्य जीवन में दो बार काले पानी कि सजा पाए शचीन्द्र नाथ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन कि गठन के साथ देश बन्धुओं के नाम एक अपील जारी क की  थी ए जिसमे उन्होंने भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ और सम्पूर्ण एशिया के महासंघ बनाने की परिकल्पना भी प्रस्तुत किया था द्य साथ ही राष्ट्रीय समस्याओं को समझने वाले जागरूक ए चरित्रवान ए त्यागी और दृढ संकल्पि स्वंय सेवको के एक देश व्यापी विराट दल की स्थापना का उद्देश्य भी उसी समय घोषित किया था. इन्ही उद्देश्यों के लयइए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले शचीन्द्र नाथ देश के महान क्रांतिकारी सपूत होने के साथ  साथ पूर्वांचल  ; वाराणसी द्ध के भी एक महान क्रांतिकारी सपूत है द्य इसलिए पूरे देश के लिए स्मरणीय .. अनुकरणीय है द्य उन विदेशी साम्राज्यी ताकतों के शोषण वप्रभुत्व से राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए तथा राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए जागरूक एवं संघर्षशील नौजवानों का दल बनाया था द्धमहान क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल का जन्म वाराणसी में 1893 में हुआ था द्य शचीन्द्र नाथ का शुरूआती जीवन इस देश की महान राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में पला बढा द्य 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद  विरोधी लहर ने उस समय के बच्चो ए नवयुवको को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान कार्य किया द्य शचीन्द्र नाथ सान्याल और उनके पूरे परिवार पर इसका प्रभाव पडा द्य  इसके फलस्वरूप ही चापेकर और सावरकर बन्धुओं की तरह सान्याल बन्धु भी साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे द्य शचीन्द्र नाथ के पिता की मृत्यु 1908 में हो गयी द्य इस समय शचीन्द्र नाथ की उम्र १५ साल की थी. सबसे बड़े होने के नाते परिवार की जिम्मेवारी  भी शचीन्द्र नाथ पर ही सबसे
ज्यादा थी द्य इसके वावजूद शचीन्द्र न केवल देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध होकर स्वंय आगे बढ़ते रहे अपितु अपने तीनो भाइयो को इसी मार्ग परले चलने में सफल रहे द्य इनके अन्य तीन भाई क्रमश: रविन्द्र, जितेन्द्र व भूपेन्द्र थे द्य भूपेन्द्र सबसे छोटे थे द्य काले पानी की सजा के दौरान अपने क्रांतिकारी जीवन और समकालीन क्रान्तिकारियो के जीवन एवं गतिविधियों पर लिखी अपनी पुस्तक श्श् बंदी जीवन श्श् की भूमिका में उन्होंने स्वंय लिखा है कि "जब मैं बालक ही था ए तभी मैंने संकल्प कर लिया था कि भारतवर्ष को
स्वाधीन किया जाना है और इसके लिए मुझे सामरिक जीवन व्यतीत करना है ".
इसी उद्देश्य को अपनाकर शचीन्द्र नाथ वैचारिक एवं व्यहारिक जीवन में निरंतर
आगे बढ़ते रहे 15 वर्ष के शचीन्द्र नाथ ने1908 में काशी में अनुशीलन समिति क़ी स्थापना क़ी द्य इसे बंगाल के क्रान्तिकारियो के अनुशीलन  समिति क़ी शाखा के रूप में स्थापित किया गया था द्य हालाकि बंगाल क़ी समिति से काशी क़ी समिति का कोई सम्बन्ध नही हो पाया था द्य वैसे भी इस समिति का प्रारम्भिक स्वरूप व्यायामशाला का था द्य बाद में जब बंगाल क़ी अनुशीलन समिति अवैध घोषित कर दी गयी तो उन्होंने अपनी संस्था का नाम श्श्यंग मैन्स एसोसिएशन व्यायामशाला से आगे बढकर ब्रिटिश विरोधी क्रान्त्रिकारी संगठन बनने लगा। यह एसोशिएसन शचीन्द्र नाथ द्वारा अपने बूते पर खड़ा किया गया नवयुवक संगठन था ए राष्ट्रवादी संगठन था द्य बंगाल विभाजन के विरोध के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी भावनाए उस समय के जनजीवन में तेजी से प्रभावित हो रही थी द्य तिलक द्वारा दिया गया यह नारा कि "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे . "
जन .. जन का नारा बन गया था
 देश के पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक स्वाधीनता और स्वराज कि अभूतपूर्व लहर उठ खड़ी हुई थी द्य शिंद्र नाथ सान्याल राष्ट्रीय आन्दोलन के इसी युग के अगली पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में प्ले बढ़े . क्रांतिकारी राष्ट्रवादी भावनाओ एवं क्रिया कलापों में शिक्षित .. दीक्षित हुए द्य भारतवर्ष क़ी स्वाधीनता का संकल्प लिय. 
शचीन्द्र नाथ  ने अंडमान निकोबार के जेल में सजा के दौरान लिखी पुस्तक  '' बंदी जीवन '' में यह भी लिखा है कि ' थोड़े समय तक ( लगभग 6 माह ) वह  सत्य व ईश्वर की खोज में साधुओ , सन्यासियों का भी साथ पकडे ' | प्राचीन भारतीय दर्शन व साहित्य का भी अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि आध्यत्मिक गुरुओं ने सत्य की  खोज या ईश्वर चिन्तन के नाम पर कर्म हीन जीवन अपना लिया है | उन्होंने अपनी पुस्तक कि भूमिका में लिखा है '' यदि स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामतीर्थ  के तुल्य महापुरुष भारतीय  क्रांतिकारी आन्दोलन में भी अग्रणी होते , तभी मुझे सन्यासी मार्ग पर चलने  में संतोष होता |  यही सोचकर शचीन्द्र नाथ 1911 में पांडिचेरी  में अरविन्द घोष से मिलने भी गये थे , पर मुलाक़ात नही हो पायी | इस अनुभव के बाद वे पुन: क्रांतिकारी जीवन में वापस लौट आये | अब उन्होंने सबसे पहले बंगाल के  क्रान्तिकारियो के साथ सम्पर्क बनाने का प्रयास किया | 1912 में शचीन्द्र ने बंगाल की यात्रा की | वे ढाका के माखन सेन से मिले , पर उनसे मिलकर उनका मन संतुष्ट नही हुआ | क्योंकि वे धर्म के आधार पर राजनितिक कार्य की बाते  कर रहे थे | शचीन्द्र को यह बात पसंद नही आई | फिर 1913 में वे बंगाल के  अनुशीलन समिति के नेताओं से मिलने गये  | उनमे शशांक मोहन , शिरीष और  प्रतुल गांगुली प्रमुख थे | फिर इन्ही के जरिये शचीन्द्र का परिचय चन्द्र  नगर में रह रहे प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस के साथ हुआ | शचीन्द्र के असाधारण कर्म शक्ति , सरलता तत्परता और तीव्रता को भाप कर ही रास  बिहारी बोस ने उन्हें '' लट्टू '' का उपनाम दे दिया | शचीन्द्र में कूट-कूट कर भरी विद्रोह की भावनाओं के साथ अदम्य क्रियाशीलता  के चलते ही उन्हें कई क्रांतिकारी साथी '' बारूद से भरा अनार '' भी कहते थे |
आगे के  क्रांतिकारी जीवन में शचीन्द्र नाथ , रास बिहारी बोस के अनन्य सहयोगी के  रूप में आगे बढे  | नवम्बर 1914  में  दोनों ही बम -- परीक्षण  के दौरान घायल  nहो गये | ठीक होकर वे पुन: इस काम में जोर -- शोर से जुट गये | दोनों ने  मिलकर संगठन का विस्तार राजस्थान तक किया | राजस्थान में पहले से ही एक  राष्ट्रवादी संगठन काम कर रहा था | इसे खड़ा करने में प्रमुख भूमिका महान  राष्ट्रवादी श्याम जी कृष्ण वर्मा की थी | कृष्ण वर्मा अब लंदन में रहकर प्रवासी  राष्ट्रवादी नेतृत्त्व का कार्य सम्भाले हुए थे | राजस्थान के उस समय के  क्रान्तिकारियो में अर्जुन लाल सेठी , बाल मुकुंद राव , गोपाल सिंह , केसरी सिंह बारहठ , जोरावर सिंह बारहठ , प्रताप सिंह , छोटे लाल , मोती चन्द्र आदि प्रमुख थे | शचीन्द्र नाथ  ने इन्हें साथ लेकर राजस्थान में संगठन के विस्तार के साथ -- साथ दिल्ली में भी संगठन को बढाने का काम किया |
क्रांतिकारी संगठनों के विस्तार का प्रमुख उद्देश्य देश में दूसरे स्वतंत्रता संग्राम को खड़ा करना था | उसके लिए ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देशव्यापी सैन्य बगावत खड़ा करना था | बहुत कम लोग जानते है की 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की विधिवत तैयारी वर्षो से चल रही थी | अमेरिका व कनाडा में बसे प्रवासी भारतीयों ने गदर पार्टी के रूप में इस उद्देश्य को आगे बढाते रहने का काम किया था , तो देश के भीतर बंगाल से पंजाब तक के क्रांतिकारी संगठनों ने इसकी जिम्मेवारी संभाली हुई थी | देश के भीतर इस स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख संयोजक रास बिहारी बोस थे | शचीन्द्र नाथ इनके दाहिने हाथ बने हुए थे | गदर पार्टी और क्रांतिकारी संगठनों ने 1914 से शुरू हुए प्रथम विश्व  युद्ध में अंग्रेजो के फंसे होने के चलते कमजोर पड रहे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध हिन्दुस्तानी सैनिको के विद्रोह के जरिये देश को पूरी तरह से स्वतंत्रत करा लेने का निर्णय लिया हुआ था | 21 फरवरी 1915 को इस सैन्य विद्रोह और स्वतंत्रता संग्राम को आरम्भ करने की तैयारी पक्की कर ली गयी थी | पर गद्दारों और सरकार के भेदियो के चलते उनके इस योजना का पता ब्रिटिश हुकूमत को लग गया | भारी धर -- पकड गिरफ्तारी और दमन का चक्र चला | शचीन्द्र नाथ को 26 जून 1915 को गिरफ्तार कर लिया गया | फरवरी 1916 में उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गयी |  इसमें उन्हें आजन्म कारावास एवं सारी सम्पत्ति के जब्ती का आदेश हुआ | उनके छोटे भाई रवीन्द्र नाथ और जितेन्द्र नाथ की भी गिरफ्तारी हुई | रवीन्द्र नाथ को दो वर्ष की सजा हुई | दो वर्ष बाद भी उन्हें अपने घर में नजरबंद रखा गया | जितेन्द्र नाथ का आरोप सिद्ध नही हो सका | बाद में उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद व भगत सिंह के साथ काम किया |  चार वर्षो तक  अंडमान की सेल्युलर जेल में रहने के बाद शचीन्द्र के मामा  ने उनकी माँ की तरफ से माफीनामे की अर्जी दी और उस पर कारवाई के बाद शचीन्द्र नाथ जेल से छूट कर वापस आ गये | शचीन्द्र नाथ ने अंडमान में कैदियों के प्रति किए जाते रहे अमानवीय व्यवहार की चर्चा उस समय के दिग्गज कांग्रेसी लीडरो से की |
विनायक दामोदर सावरकर व अन्य कैदियों को छुडाने के लिए वे नागपुर जाकर विनायक दामोदर के भाई डाक्टर नारायण सावरकर के साथ मिलकर प्रयास किए | पर कांग्रेसी नेताओ की उदासीनता के चलते उनके प्रयास व्यर्थ हो गये | अब शचीन्द्र नाथ बिखरे हुए क्रांतिकारी संगठनों को एक जुट करने के प्रयास में पुन: जुट गये | इसके लिए वे अपने पूर्व परिचित जदू गोपाल मुखर्जी , अरुण चन्द्र गुहा , विपिन चन्द्र गांगुली , मनोरंजन गुप्त व नरेंद्र नाथ भट्टाचार्य ( मानवेन्द्र राय ) से मिले | संगठन के कार्य को आगे बढाया |
बाद में घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने के फलस्वरूप उन्हें वर्दमान जिले के एक गाँव में ईट भत्ते की शुरुआत करनी पड़ी पर उसमे बुरी तरफ असफल हो गये | तत्पश्चात रेल विभाग में नौकरी किया | फिर उसे भी छोडकर जमशेदपुर में लेबर यूनियन का काम संभाला लेकिन क्रांतिकारी तेवर व संगठन के अभ्यस्त शचीन्द्र वह भी टिक नही सके | वह से वे पुन: उत्तर भारत में क्रांतिकारी संगठनों के बनाने के निकल पड़े | उन्होंने पुराने क्रान्तिकारियो के साथ सम्पर्क करने के साथ कालेजो के नौजवानों से भी सम्पर्क साधने का काम जारी रखा | उन्हें यह देखकर बड़ी निराशा हुई की युवक हंसी -- मजाक व खेलो में ही मस्त रहते है | राजनितिक व साहित्य के प्रश्नों पर वे दिलचस्पी नही लेते है , जबकि देश आंदोलनों के दौर से गुजर रहा था | गिरफ्तारी का आबास होने पर वे पुन: कलकत्ता चले आये | लेकिन उसके पहले 1923 तक उन्होंने पंजाब व संयुक्त प्रांत में पच्चीस क्रान्ति केन्द्रों की स्थापना कर दी थी | दिल्ली के अधिवेशन में उन्होंने पार्टी का नाम हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशंन  रखा था | बाद में चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह तथा उनके साथियो ने इसका नाम एवं रूपांतरण हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक समाजवादी संगठन के रूप में कर दिया | दिल्ली के इसी अधिवेशन में शचीन्द्र नाथ ने देश के बन्धुओं के नाम एक अपील जारी की | इसमें उन्होंने सम्पूर्ण भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य और भविष्य में सम्पूर्ण एशिया का महा संघ बनाने का विचार प्रस्तुत किया | उनके द्वारा '' रिवोल्यूशनरी '' लिखा गया पर्चा एक ही दिन में रंगून से पेशावर तक बाटा गया | इस पर्चे का उद्देश्य यह दिखाना था की देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी संघर्ष अनिवार्य है और उसके लिए देश में एक बृहद संगठन आवश्यक है | पर्चे को लिखने और वितरित करने के आरोप में उन्हें फरवरी 1925 में दो वर्ष की सजा हुई | छूटने के बाद काकोरी केस में पुन: गिरफ्तार किया गया और दुबारा काले पानी की सजा दी गयी | 1937 -- 38 में कांग्रेस मंत्री मंडल  ने जब राजनितिक कैदियों को रिहा किया तो उसमे शचीन्द्र नाथ भी रिहा हो गये | लेकिन उन्हें घर पर नजरबंद कर दिया गया | कठिन परिश्रम कारावास और फिर चिन्ताओ से वे क्षय ग्रस्त हो गये और 1942 में यह भारत का महान क्रांतिकारी जर्जर शरीर के साथ चिर निद्रा में सो गया | दो -- दो बार काले पानी की सजा काटने वाला अपनी आयु का प्रत्येक क्षण स्वतंत्रता संघर्ष के लिए समर्पित करने वाला यह अनमोल क्रांतिकारी देश वासियों के लिए स्मरणीय और पथ प्रदर्शक है | ऐसे वीर क्रांतिकारी को शत शत नमन 

सुनील दत्ता 

4 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

इंकलाब ज़िंदाबाद !

शचीन्द्र नाथ सान्याल ज़िंदाबाद !


दुर्गा भाभी को शत शत नमन - ब्लॉग बुलेटिन आज दुर्गा भाभी की ११० वीं जयंती पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम उनको नमन करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

Unknown ने कहा…

कृपया इनकी जन्म का दिन और महीना बताने का कष्ट करें

Dr.Saumya Sengupta ने कहा…

माता का नाम खिरोदबाशिनी देवी है।

Shiv prasad gupta ने कहा…

माहत्मा शाचिन्द्र नाथ सान्याल का जन्म बनारस के किस मुहल्ले में हुआ था।

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