गुरुवार, 15 नवंबर 2012

गालियों को लिखना भला कैसे अश्लील हो सकता है?

जीवन में तन्मयता पैदा करने वाले गद्यकार हैं काशीनाथ सिंह : प्रो गोपेश्वर सिंह
 
हिन्दू कालेज में काशीनाथ सिंह का रचना पाठ


जिस तरह कविता में बिम्ब होते हैं उसी तरह कथा में पात्र होते हैं और मेरी कोशिश होती है कि पात्र कथा में सुनाई ही नहीं दिखाई भी पड़े। पेन ही हमारा केमेरा और स्केच बुक है। साहित्य अकादमी से सम्मानित सुप्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह ने हिन्दू कालेज में अपने रचना पाठ के दौरान कहा कि मैं कोशिश करता हूँ कि जो लिखा जा चुका है उसकी पुनरावृत्ति न हो और लेखन में वे क्षण चुने जाएँ जिन्हें लिखने का साहस पहले न किया गया हो। उन्होंने हिन्दी साहित्य सभा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अपने चर्चित उपन्यास 'काशी का अस्सी' के अंश 'संतों घर में झगड़ा भारी' के कुछ प्रसंगों का पाठ किया जिस पर बाद में श्रोताओं के सवालों के जवाब देते हुए सिंह ने कहा कि ऐसा यथार्थ निरर्थक है जिसमे सौन्दर्य न हो। वहीं गालियों और अश्लीलता के सवाल पर उनका कहना था कि जो जीवन में है उसे ही लिखना भला कैसे अश्लील हो सकता है? इससे पहले उन्होंने विभाग की हस्तलिखित पत्रिका 'हस्ताक्षर' के नए अंक का लोकार्पण करते हुए कहा कि  जब पारंपरिक सौन्दर्बोध को यांत्रिकता चुनौती दे रही हो तब ऐसी सुरुचिपूर्ण पत्रिका का होना चौंकाने वाला किन्तु महत्त्वपूर्ण काम है। उन्होंने हिन्दी विभाग की भित्ति पत्रिका 'लहर' के नए अंक का विमोचन भी किया।
आयोजन में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो गोपेश्वर सिंह ने काशीनाथ सिंह से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उनका गद्य जीवन में तन्मयता पैदा करने वाला गद्य है। उनका बेलौसपन और ठेठ अंदाज़ भारतेंदु युग के गद्यकारों की याद दिलाने वाला है। यह हथेली पर खैनी मलते किसान की वह भाषा है विशिष्ट नागरिक भाषा होने से इनकार करती है। उन्होंने 'काशी का अस्सी' को उपन्यास का ढांचा बदल देने वाली विरल कृति बताते हुए कहा कि काशीनाथ सिंह अपने ही मुहावरे में कैद होकर रह जाने वाले लेखक नहीं हैं। विभाग के डॉ. रामेश्वर राय ने कहा कि काशीनाथ सिंह का लेखन के सांचे में ढली हुई उस रचनाशीलता को तोड़ता है जो सृजन और आलोचना दोनों ही स्तरों पर हिन्दी में विकसित होती गई है। उन्होंने कहा कि ठेठ ग्रामीण मन और अपने वर्तमान की जटिलता को सृजनशीलता के ताप में घुला देने वाली यह मेधा हमारी जातीय उपलब्धि है और भरोसा भी।
चर्चा में युवा विद्यार्थियों के साथ डॉ. विमलेन्दु तीर्थंकर ने भी भाग लिया। संयोजन कर रहे डॉ. अरविन्द संबल ने अतिथियों का परिचय दिया । अंत में हिन्दी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने आभार व्यक्त किया।  आयोजन में 'धरती' के सम्पादक शैलेंद्र चौहान, बी एच यू  के प्रो कैलाश नारायण तिवारी,डॉ. संजय कुमार, डॉ.अभय रंजन, डॉ.रचना सिंह, डॉ संतोष कुमार, डॉ प्रमोद कुमार द्विवेदी सहित बड़ी संख्या में युवा विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित थे। इस अवसर पर लगाई गई लघु पत्रिका प्रदर्शनी को युवा पाठकों ने सराहा।


-असीम अग्रवाल


1 टिप्पणी:

रविकर ने कहा…

आभार भाई जी ।

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