बाला साहब ठाकरे के बारे में उनके लाखों प्रशंसक कुछ भी कहें, मेरे अनुसार उन्हें इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा जिसने आधुनिक भारत की रीढ़ को तोड़ने का भरसक प्रयास किया था . उस आधुनिक भारत की रीढ़ को जिसकी नींव महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस और भगतसिंह के विचार और आदर्श हैं। ठाकरे उन सभी मूल्यों के विरोधी थे, जिनमें आधुनिक भारत की आत्मा बसती है। वे भारत के उस चरित्र के विरोधी थे, जिसमें सभी धर्मावलंबियों और भाषा.भाषियों को समान सम्मान व अधिकार प्राप्त हैं। वे न्यायपालिका को तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। जब भी किसी अदालत ने उन्हें दंडित करने का प्रयास कियाए उनका उत्तर होता था कि कोई उन्हें छूकर तो देखे, उन्हें छूते ही पूरा बम्बई धू.धू कर जल उठेगा। हमारे देश में कानून का राज है परन्तु वे कानून की कतई परवाह नहीं करते थे। और यह बात भी सही है कि उनके सामने न्यायपालिका और कानून सदा नतमस्तक रहे। सन् 1992 के मुम्बई दंगों की जांच के लिये न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में आयोग बनाया गया। आयोग ने बाला साहब ठाकरे और शिवसैनिकों को दोषी पाया। महाराष्ट्र की सरकार ने आयोग की सिफारिशों पर अमल करने का आश्वासन भी दिया परन्तु उसका आयोग की एक भी सिफारिश पर अमल करने का साहस नहीं हुआ।
ठाकरे ने बम्बई को बदनाम कर दिया। उस महान शहर के बहुवादी चरित्र को बदल दिया। उस बम्बई के चरित्र को, जो देश की औद्योगिक राजधानी होने के साथ.साथ प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, उदार और कासमोपोलिटन विचारों और मूल्यों की राजधानी भी थी, जो ट्रेड यूनियन और मजदूरों की एकता की राजधानी भी थी, जिस नगर में कम्यूनिस्ट नेता एस.ए. डांगे और समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीज की तूती बोलती थी। जार्ज कहते थे कि आज टैक्सियां नहीं चलेंगी और उनके कहने मात्र से पूरी बम्बई में टैक्सियों के पहिये थम जाते थे, जिस शहर में कैफ़ी आजमी, अली सरदार जाफरी, बलराज साहनी और पृथ्वीराज कपूर रहते थे, जिस शहर में ऐसी फिल्में बनीं, जिनका संदेश होता था वह सुबह कभी तो आएगी, जिस शहर ने 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजी साम्राज्य को ललकारते हुये कहा था अंग्रेजों, भारत छोड़ो जिस धरती से यह नारा उठा था कि आज नहीं तो कभी नहीं करो या मरो,जिस शहर में अंग्रेजों के शासनकाल में नौसैनिकों ने हड़ताल कर दी थी और हड़ताल से ब्रिटिश सरकार इतनी घबरा गई थी कि उसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग से हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि वे नौसैनिकों से हड़ताल समाप्त करने की अपील करें।
हमारे देश के इस महान शहर को, जहां भारत की आत्मा बस्ती थी, संकुचित, तानाशाहीपूर्ण विचारों का केन्द्र बना दिया गया। बाला साहब ने घोषित किया कि मुम्बई सिर्फ मराठीभाषियों का है। उनके इस नारे से बम्बई में रहने वाले गैर.मराठीभाषियों का जीना मुश्किल हो गया। इस नारे के बाद दक्षिण भारतीयों पर हमला हुआ। उनकी दुकानों के साइनबोर्ड तोड़ दिये गये। भारी संख्या में दक्षिण भारतीय मुम्बई छोड़कर चले गये। फिर हिन्दीभाषियों को खदेड़ा गया। कहा जाने लगा कि बिहारियों और उत्तरप्रदेशवासियों का बम्बई में क्या काम है। इन्हें भगाओ। ठाकरे और शिवसैनिक भूल गये कि बिहारियों और उत्तरप्रदेश निवासियों के कारण मुंबई चलती है। यदि ये मुम्बई में नहीं रहेंगे तो मुम्बई के पहिये थम जायेगें।
वे वास्तव में एक तानाशाह थे.एक ऐसे तानाशाह जिनकी शक्ति का आधार घृणा थी। घृणा में जनसमुदाय को संगठित करने की गजब की क्षमता होती है। वे हमेशा कहते थे हिटलर मेरा हीरो है और मीन कैम्फ मेरी बाईबिल। हिटलर की ताकत का आधार भी घृणा थी। उसने जर्मनीवासियों के मनोमस्तिष्क में यह भर दिया था कि जर्मनी में जो कुछ भी बुरा है उसके लिये यहूदी जिम्मेदार हैं। यहूदियों को समाप्त करने से जर्मनी में खुशहाली आ जायेगी। इसी तरह ठाकरे कहते थे कि बम्बई से गैर.मराठीभाषियों को हटा दो और बम्बई स्वर्ग बन जाएगा। वे शिवसेना के एकमात्र व सर्वशक्तिमान नेता थे। जैसे हिटलर को प्रजातंत्र पसंद नहीं था उसी तरह ठाकरे ने अपने संगठन में प्रजातंत्र को रत्तीभर की जगह नहीं दी। वे जिन्दगी भर तानाशाह रहे।
तानाशाह की एक विशेषता यह होती है कि उसे अपनी जरा सी भी आलोचना कतई पसंद नहीं आती। ठाकरे के व्यक्त्तिव में भी यह दोष था। जब भी किसी समाचारपत्र ने उनके विरूद्ध लिखा या किसी टी वी चैनल ने उनके विरूद्ध कुछ कहा, उनके अनुयायियों ने उस समाचारपत्र या टी वी चैनल के दफ्तर में जबरदस्ती घुसकर तोड़फोड़ की और पत्रकारों की टांगें भी तोड़ीं।
हिटलर तो केवल यहूदियों के विरूद्ध घृणा फैलाता था परन्तु ठाकरे गैर.मराठीभाषियों के साथ.साथ मुसलमानों के विरूद्ध भी घृणा फैलाते थे। वे स्पष्ट शब्दों में भारत के प्रति उनकी वफादारी पर संदेह करते थे। जब बाबरी मस्जिद टूटी तो उन्होंने इसका श्रेय मेरे लड़कों को दिया। जब बम्बई में दंगा हुआ तो उन्होंने फिर दावा किया कि मेरे सैनिकों ने हिन्दुओं की रक्षा की है।
राजनैतिक मामलों के साथ.साथ वे संस्कृति और खेल के मामलों में भी हस्तक्षेप करते थे। यदि उन्हें कोई फिल्म पसंद नहीं आती थी तो वे उसका प्रदर्शन नहीं होने देते थे। यदि उन्हें कोई पेटिंग पसंद नहीं आती थी तो उनके चेले उसे नष्ट कर देते थे। वे समय.समय पर घोषित करते थे कि कोई पाकिस्तानी खिलाड़ी बम्बई में क्रिकेट नहीं खेल पाएगा। पाकिस्तान को खेलने से रोकने के लिए एक बार शिवसैनिकों ने क्रिकेट मैदान की पिच ही खोद डाली थी। चूँकि फिल्में उनकी मर्जी से चलती थीं इसलिये अमिताभ बच्चन जैसे शीर्ष फिल्म कलाकार तक उनके सामने नतमस्तक रहते थे। लता मंगेशकर तो उनकी बड़ी प्रशंसकों में से हैं।
आखिर बम्बई में उनका इतना दबदबा कायम कैसे हुआ वैसे उनकी जड़ें उस संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में थीं जो पृथक महाराष्ट्र के गठन के लिये किया गया था। उस आंदोलन ने महाराष्ट्रवासियों का नजरिया संकुचित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि राज्य पुनर्गठन आयोग स्वयं पृथक महाराष्ट्र के गठन की सिफारिश कर देता या भारत सरकार स्वयं आयोग की सिफारिश को नामंजूर कर पृथक महाराष्ट्र के निर्माण की मंजूरी दे देती तो बाला साहब ठाकरे जैसा नेता महाराष्ट्र की धरती पर नहीं उभरता। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन ने जिस तरह के संकुचित विचारों को जन्म दिया उसका एक उदाहरण मैं देना चाहूँगा। पृथक महाराष्ट्र के गठन की मांग करते हुये नागपुर में एक आमसभा आयोजित की गई। सभा को संबोधित करते हुये इस आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता प्रोफेसर अत्रे ने कहा कि देश के सभी राज्यों में केवल महाराष्ट्र का इतिहास है और बाकी राज्यों का मात्र भूगोल है। उनकी यह बात सभी को अखरी। परन्तु यही वह नजरिया था जिसने शिवसेना जैसे संगठन और बाला साहब ठाकरे जैसे नेता को जन्म दिया।
महाराष्ट्र प्रांत के गठन के बाद वे ताकतें, जिनने पृथक महाराष्ट्र आंदोलन का नेतृत्व किया था, कमजोर पड़ गईं। महाराष्ट्र राज्य के आंदोलन का नारा था मुंबई सह महाराष्ट्र पाहिजे ;मुंबई सहित पृथक महाराष्ट्र बनना चाहिये। इस आंदोलन में महाराष्ट्र की सभी प्रगतिशील ताकतें शामिल थीं। आंदोलन में कम्यूनिस्ट, सोशलिस्ट, किसानए ट्रेड यूनियनें और अनेक राजनैतिक पार्टियां शामिल थीं। सच पूछा जाए तो इनके संयुक्त प्रयासों से महाराष्ट्र बना था परन्तु उसका श्रेय ये संगठन नहीं ले सके और बंबई पर बाला साहेब ठाकरे का कब्जा हो गया। ठाकरे और शिवसेना को बम्बई के उद्योगपतियों ने पूरी मदद दी। वहीं सेक्यूलर ताकतें कमजोर हो गईं। उनकी संगठन क्षमता और संघर्ष करने का माद्दा समाप्त हो गया। ठाकरे की ताकत इतनी बढ़ी कि सेक्यूलर ताकतों का लगभग सफाया हो गया।
इस बदली हुई पारिस्थिति का लाभ भारतीय जनता पार्टी ने उठाया और उसने सत्ता पाने के लिए शिवसेना से हाथ मिला लिया।
भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार का हिस्सा है। संघ परिवार हिन्दुओं का संगठन होने का दावा करता है। जब शिवसेना कहती है कि बंबई में सिर्फ मराठीभाषी रहेंगें और अन्य नहीं तो उसके इस नारे से सबसे ज्यादा बिहारए उत्तरप्रदेश और दक्षिण भारत का हिन्दू प्रभावित होता है।
इस तरह शिवसेना हिन्दू.हितों के विपरीत काम करती है। मेरी राय में शिवसेना एक तरह से बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितों के विरूद्ध काम कर रही है।
इसके बावजूद भाजपा सत्ता की खातिर शिवसेना से हाथ मिलाये हुये है। वैसे बाला साहेब के जीवनकाल में ही शिवसेना कमजोर हो गई थी। उनके भतीजे राज ठाकरे ने अलग संगठन बना लिया है। क्या इससे शिवसेना की बुनियादी राजनीति कमजोर होगी यह भविष्य ही बताएगा। परन्तु यह सेक्युलर तत्वों के लिये एक सुनहरा अवसर है जिसका लाभ लेकर वे अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
वे वास्तव में एक तानाशाह थे.एक ऐसे तानाशाह जिनकी शक्ति का आधार घृणा थी। घृणा में जनसमुदाय को संगठित करने की गजब की क्षमता होती है। वे हमेशा कहते थे हिटलर मेरा हीरो है और मीन कैम्फ मेरी बाईबिल। हिटलर की ताकत का आधार भी घृणा थी। उसने जर्मनीवासियों के मनोमस्तिष्क में यह भर दिया था कि जर्मनी में जो कुछ भी बुरा है उसके लिये यहूदी जिम्मेदार हैं। यहूदियों को समाप्त करने से जर्मनी में खुशहाली आ जायेगी। इसी तरह ठाकरे कहते थे कि बम्बई से गैर.मराठीभाषियों को हटा दो और बम्बई स्वर्ग बन जाएगा। वे शिवसेना के एकमात्र व सर्वशक्तिमान नेता थे। जैसे हिटलर को प्रजातंत्र पसंद नहीं था उसी तरह ठाकरे ने अपने संगठन में प्रजातंत्र को रत्तीभर की जगह नहीं दी। वे जिन्दगी भर तानाशाह रहे।
तानाशाह की एक विशेषता यह होती है कि उसे अपनी जरा सी भी आलोचना कतई पसंद नहीं आती। ठाकरे के व्यक्त्तिव में भी यह दोष था। जब भी किसी समाचारपत्र ने उनके विरूद्ध लिखा या किसी टी वी चैनल ने उनके विरूद्ध कुछ कहा, उनके अनुयायियों ने उस समाचारपत्र या टी वी चैनल के दफ्तर में जबरदस्ती घुसकर तोड़फोड़ की और पत्रकारों की टांगें भी तोड़ीं।
हिटलर तो केवल यहूदियों के विरूद्ध घृणा फैलाता था परन्तु ठाकरे गैर.मराठीभाषियों के साथ.साथ मुसलमानों के विरूद्ध भी घृणा फैलाते थे। वे स्पष्ट शब्दों में भारत के प्रति उनकी वफादारी पर संदेह करते थे। जब बाबरी मस्जिद टूटी तो उन्होंने इसका श्रेय मेरे लड़कों को दिया। जब बम्बई में दंगा हुआ तो उन्होंने फिर दावा किया कि मेरे सैनिकों ने हिन्दुओं की रक्षा की है।
राजनैतिक मामलों के साथ.साथ वे संस्कृति और खेल के मामलों में भी हस्तक्षेप करते थे। यदि उन्हें कोई फिल्म पसंद नहीं आती थी तो वे उसका प्रदर्शन नहीं होने देते थे। यदि उन्हें कोई पेटिंग पसंद नहीं आती थी तो उनके चेले उसे नष्ट कर देते थे। वे समय.समय पर घोषित करते थे कि कोई पाकिस्तानी खिलाड़ी बम्बई में क्रिकेट नहीं खेल पाएगा। पाकिस्तान को खेलने से रोकने के लिए एक बार शिवसैनिकों ने क्रिकेट मैदान की पिच ही खोद डाली थी। चूँकि फिल्में उनकी मर्जी से चलती थीं इसलिये अमिताभ बच्चन जैसे शीर्ष फिल्म कलाकार तक उनके सामने नतमस्तक रहते थे। लता मंगेशकर तो उनकी बड़ी प्रशंसकों में से हैं।
आखिर बम्बई में उनका इतना दबदबा कायम कैसे हुआ वैसे उनकी जड़ें उस संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में थीं जो पृथक महाराष्ट्र के गठन के लिये किया गया था। उस आंदोलन ने महाराष्ट्रवासियों का नजरिया संकुचित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि राज्य पुनर्गठन आयोग स्वयं पृथक महाराष्ट्र के गठन की सिफारिश कर देता या भारत सरकार स्वयं आयोग की सिफारिश को नामंजूर कर पृथक महाराष्ट्र के निर्माण की मंजूरी दे देती तो बाला साहब ठाकरे जैसा नेता महाराष्ट्र की धरती पर नहीं उभरता। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन ने जिस तरह के संकुचित विचारों को जन्म दिया उसका एक उदाहरण मैं देना चाहूँगा। पृथक महाराष्ट्र के गठन की मांग करते हुये नागपुर में एक आमसभा आयोजित की गई। सभा को संबोधित करते हुये इस आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता प्रोफेसर अत्रे ने कहा कि देश के सभी राज्यों में केवल महाराष्ट्र का इतिहास है और बाकी राज्यों का मात्र भूगोल है। उनकी यह बात सभी को अखरी। परन्तु यही वह नजरिया था जिसने शिवसेना जैसे संगठन और बाला साहब ठाकरे जैसे नेता को जन्म दिया।
महाराष्ट्र प्रांत के गठन के बाद वे ताकतें, जिनने पृथक महाराष्ट्र आंदोलन का नेतृत्व किया था, कमजोर पड़ गईं। महाराष्ट्र राज्य के आंदोलन का नारा था मुंबई सह महाराष्ट्र पाहिजे ;मुंबई सहित पृथक महाराष्ट्र बनना चाहिये। इस आंदोलन में महाराष्ट्र की सभी प्रगतिशील ताकतें शामिल थीं। आंदोलन में कम्यूनिस्ट, सोशलिस्ट, किसानए ट्रेड यूनियनें और अनेक राजनैतिक पार्टियां शामिल थीं। सच पूछा जाए तो इनके संयुक्त प्रयासों से महाराष्ट्र बना था परन्तु उसका श्रेय ये संगठन नहीं ले सके और बंबई पर बाला साहेब ठाकरे का कब्जा हो गया। ठाकरे और शिवसेना को बम्बई के उद्योगपतियों ने पूरी मदद दी। वहीं सेक्यूलर ताकतें कमजोर हो गईं। उनकी संगठन क्षमता और संघर्ष करने का माद्दा समाप्त हो गया। ठाकरे की ताकत इतनी बढ़ी कि सेक्यूलर ताकतों का लगभग सफाया हो गया।
इस बदली हुई पारिस्थिति का लाभ भारतीय जनता पार्टी ने उठाया और उसने सत्ता पाने के लिए शिवसेना से हाथ मिला लिया।
भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार का हिस्सा है। संघ परिवार हिन्दुओं का संगठन होने का दावा करता है। जब शिवसेना कहती है कि बंबई में सिर्फ मराठीभाषी रहेंगें और अन्य नहीं तो उसके इस नारे से सबसे ज्यादा बिहारए उत्तरप्रदेश और दक्षिण भारत का हिन्दू प्रभावित होता है।
इस तरह शिवसेना हिन्दू.हितों के विपरीत काम करती है। मेरी राय में शिवसेना एक तरह से बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितों के विरूद्ध काम कर रही है।
इसके बावजूद भाजपा सत्ता की खातिर शिवसेना से हाथ मिलाये हुये है। वैसे बाला साहेब के जीवनकाल में ही शिवसेना कमजोर हो गई थी। उनके भतीजे राज ठाकरे ने अलग संगठन बना लिया है। क्या इससे शिवसेना की बुनियादी राजनीति कमजोर होगी यह भविष्य ही बताएगा। परन्तु यह सेक्युलर तत्वों के लिये एक सुनहरा अवसर है जिसका लाभ लेकर वे अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
-.एल एस हरदेनिया
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राकेट के अविष्कारक - शेर - ए - मैसूर टीपू सुल्तान - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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