खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की शर्ते , उनके प्रचार और असलियत
खुदरा व्यापार में विदेशी कम्पनियों को छुट देने और उन पर 30% माल को राष्ट्र के छोटे उत्पादकों से खरीदने की शर्त लगाने का स्पष्ट मतलब है कि उन्हें 70% तक विदेशी माल सामानों को खरीदने और राष्ट्र के बाजार में बेचने की छूट दे दी गयी है
केन्द्रीय सरकार ने मलती ब्रांड खुदरा व्यापार के विदेशी मालिको के लिए तीन -- चार शर्तो की घोशनाए की है जो इस प्रकार है 1 -- विदेशी मालिकाने में खुदरा व्यापार के संस्थान उन्ही शहरों में खोले जा सकते है जिसकी आबादी 10 लाख से अधिक हो 2 विदेशी मालिको को खुदरा व्यापार के केंद्र खोलने व चलाने के लिए कम से कम 500 करोड़ रूपये का निवेश करना पडेगा 3 उन्हें अपने निवेश का 50% हिस्सा ढाचागत निर्माण में खर्च करना होगा उदाहरण शापिंग सेंटर , गोदाम , कोल्ड स्टोरेज तथा बिक्री तक माल ढुलाई के लिए ढाचागत निर्माण आदि में | 4 उन्हें अपने खुदरा व्यापार के लिए 30% उत्पाद देश के छोटे उत्पादकों से खरीदना पडेगा जिनका व्यापार 5 करोड़ रूपये से कम हो | जहा तक 10 लाख की आबादी की बंदिश का मामला है तो सरकार द्वारा यह बंदिश 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों के फुटकर दुकानदारों और उनके बिक्री बाजार को ध्यान में रखकर नही लगाईं गई है जैसा कि प्रचार है | बल्कि यह बंदिश विदेशी ( व बड़ी देशी ) धनाढ्य कम्पनियों के विशालकाय बिक्री बाजार के सेंटर और उसके फैलाव विस्तार की संभावनाओं को ध्यान में रखकर लगाईं गयी है | 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में ऐसे उपभोक्ताओं के रहने या बढ़ने की गुंजाइश अभी कम है , जो विदेशी दैत्याकार कम्पनियों के प्रभावी उपभोक्ता बाजार बन सके | ये कम्पनिया भी यह बात बखूबी जानती है कि आमतौर पर ऊँची आय व उच्च वेतन भत्ते तथा बड़े घुस कमिशन आदि की आमदनिया करने वाले हिस्से नजदीक के बड़े शहरों में यानी 10 लाख से ज्यादा आबादी के शहरों में खरीदारिया करने पहुंचते रहते है | इसीलिए भी यह शर्ते उन्हें छोटे शहरों के अपने सक्षम उपभोक्ताओं को पकड़ने में कही से भी बाधक नही है |500 में करोड़ रूपये के निवेश की शर्त भी उनके लिए कोई मायने नही रखती | विश्व के सभी या ज्यातर देशो के खुदरा व्यापार पर कब्जा जमाने में लगी इन खरबपति कम्पनियों के लिए यह रकम बहुत छोटी और तुच्छ है | इससे कम निवेश से उनका आधुनिक सुख -- सुविधाओं तथा ग्राहकों को ललचाने , भरमाने वाले आधुनिकतम साज -- सज्जा से युक्त माल शाप चलना भी नही है | फिर इसी पूंजी निवेश की निर्धारित धनराशी इन दिग्ज्ज कम्पनियों के हिसाब से कम से कम धनराशी है | यह शर्त उनपर कही से कोई बोझ नही है | बल्कि यह उनकी खुद की भी अपेक्षित शर्त है |
जहा तक इन विदेशी व देशी खुदरा व्यापार
कम्पनियों द्वारा अपने 30% मालो सामानों को इस देश के छोटे उत्पादकों से ( 5
करोड़ के सालाना व्यापार से कम की हैसियत के उत्पादकों से ) खरीदने की बात
है , तो इसे देश के छोटे उत्पादकों के हित में प्रचारित किया जा रहा है |
जबकि मामला देश के छोटे उत्पादकों के बिक्री बाजार के हितो के विरुद्ध तथा
उनके राष्ट्र के बाजार पर अधिकार के विरुद्ध है | साथ ही यह शर्त राष्ट्रीय
उत्पादन के भी विरुद्ध है | अभी तक आयातित विदेशी सामानों के अलावा समूचा
खुदरा व्यापार राष्ट्र के उत्पादित सामानों को ही खरीदता और बेचता है |
1997 -- 98 से पहले कुछ चुनिन्दा विदेशी आयातित सामान गिनती की चंद अधिकृत
दुकानों पर ही उपलब्ध थे | 1998 --99 के बाद से आम उपभोग के और
पहले के आरक्षित मालो , सामानों के आयात की अधिकाधिक ढील या कहिये कि
खुदरा बेलगाम छूट देने के बाद से खुदरा व्यापार में विदेशी मालो -- सामानों
का बिक्री बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है | फलस्वरूप देशी उत्पादकों का
खासकर छोटे उत्पादकों का बिक्री बाजार लगातार कटता छटता और टूटता रहा | अब
खुदरा व्यापार में विदेशी कम्पनियों की छूट देने और उन पर 30% माल को
राष्ट्र के छोटे उत्पादकों से खरीदने की शर्त लगाने का मतलब है कि उन्हें
70% तक विदेशी मालो व सामानों को खरीदने और राष्ट्र के बाजार में बेचने की
छूट दे दी गयी है | अब आप ही सोचे इस शर्त को इस देश के छोटे उत्पादकों को
मिले हुए 30% के हित में कहा जाएगा या फिर इसे 70% तक राष्ट्र के बाजार
में छूट पाए हुए विदेशी उत्पादकों के हित में माना व समझा जाय ! इस बाबत
में पुन: ध्यान दिया जाना चाहिए कि खुदरा व्यापार में विदेशी मालिको को
2011 में एकल ब्रांड खुदरा व्यापार में और अब मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार
में छूट देने से पहले ही विदेशी उत्पादकों के मालो व सामानों को राष्ट्र
के बाजार पर कब्जा जमाने , घुसपैठ करने और छा जाने की छूट दी जाति रही है |
इसका परिणाम केवल यहाँ के थोक व खुदरा व्यापारियों के लिए ही नही बल्कि
देशी उत्पादकों के लिए भी घातक है | उन्हें बर्बादी की तरफ ढकेलने वाला है |
इसी से खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश को किसानो के हित में बताने वाले
प्रचारों की यह वास्तविकता भी समझी जा सकती है कि इसमें देश के आम किसानो
की भागीदारी 30% तक ही होनी है | साफ़ बात है कि आम किसानो को खासकर छोटे व
सीमांत किसानो को इन बड़ी विशालकाय कम्पनियों के फुटकर व्यापार में जगह नही
मिल पानी है फिर बहुराष्ट्रीय कम्पनिया अपने खुदरा व्यापार के लिए 30% की
शर्त को भी कितना मानेगी और कितना दाए -- बाए करके विदेशी मालो को और
ज्यादा छूट दे देगी , यह अलग बात है |
खुदरा व्यापार में आने वाली कम्पनिया चूँकि बहुराष्ट्रीय साम्राज्यी कम्पनिया है , इसलिए वे अपने फुटकर व्यापार के लिए विश्व बाजार से सस्ते से सस्ते माल को खरीदकर तथा उसे अपने व्यापारिक केन्द्रों से बिक्री कर वे अधिकतम लाभ लेने में सक्षम होती है और लेती भी है | उदाहरण वालमार्ट और कई दूसरी बहुराष्ट्रीय कम्पनिया दूध से बनने वाले उत्पादों को डेनमार्क , स्वीडन , फिनलैंड व नार्वे से खरीदती है | इन देशो में दुग्ध उत्पादों पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी से ये सामान अत्यंत सस्ते पड़ते है | इसी तरह ये कम्पनिया गोश्त की खरीदारी मुख्यत: आस्ट्रेलिया , ब्राजील अर्जेन्टाइना से करती है | कम्प्यूटर व उसके कल पुर्जे चीन से तथा इलेक्ट्रानिक का सामान ताइवान जैसे देश से खरीदती है | यही बात अन्य दूसरे मालो व सामानों के बारे में भी सच है | इस तरह सरकार ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रही या प्रत्यक्ष विदेशी मालिकाना ले रही बहुराष्ट्रीय साम्राज्यी कम्पनियों के लिए जो शर्त निर्धारित की है , वे शर्ते कही से भी उनके प्रतिकूल नही है बल्कि उनके अनुकूल है | हाँ अगर वे किसी के प्रतिकूल है तो वे है देश के आम व छोटे उत्पादक -- कृषक व गैर कृषि उत्पादक हिस्से | इसलिए व्यापार में विदेशी निवेश से मात्र देश के थोड़े या ज्यादा खुदरा व्यापारियों पर ही पड़ने वाले प्रतिकूल या हानिकारक प्रभाव के रूप में ही नही देखा जाना चाहिए , बल्कि अब इन्हें समूचे राष्ट्रीय उत्पादन व बाजार पर तथा राष्ट्र के उत्पादकों , खासकर छोटे उत्पादकों और उनके बिक्री बाजार पर प्रत्यक्षत: किये जा रहे और लगातार बढाये जा रहे हमले के रूप में देखा जाना चाहिए |
-सुनील दत्ता
खुदरा व्यापार में आने वाली कम्पनिया चूँकि बहुराष्ट्रीय साम्राज्यी कम्पनिया है , इसलिए वे अपने फुटकर व्यापार के लिए विश्व बाजार से सस्ते से सस्ते माल को खरीदकर तथा उसे अपने व्यापारिक केन्द्रों से बिक्री कर वे अधिकतम लाभ लेने में सक्षम होती है और लेती भी है | उदाहरण वालमार्ट और कई दूसरी बहुराष्ट्रीय कम्पनिया दूध से बनने वाले उत्पादों को डेनमार्क , स्वीडन , फिनलैंड व नार्वे से खरीदती है | इन देशो में दुग्ध उत्पादों पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी से ये सामान अत्यंत सस्ते पड़ते है | इसी तरह ये कम्पनिया गोश्त की खरीदारी मुख्यत: आस्ट्रेलिया , ब्राजील अर्जेन्टाइना से करती है | कम्प्यूटर व उसके कल पुर्जे चीन से तथा इलेक्ट्रानिक का सामान ताइवान जैसे देश से खरीदती है | यही बात अन्य दूसरे मालो व सामानों के बारे में भी सच है | इस तरह सरकार ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रही या प्रत्यक्ष विदेशी मालिकाना ले रही बहुराष्ट्रीय साम्राज्यी कम्पनियों के लिए जो शर्त निर्धारित की है , वे शर्ते कही से भी उनके प्रतिकूल नही है बल्कि उनके अनुकूल है | हाँ अगर वे किसी के प्रतिकूल है तो वे है देश के आम व छोटे उत्पादक -- कृषक व गैर कृषि उत्पादक हिस्से | इसलिए व्यापार में विदेशी निवेश से मात्र देश के थोड़े या ज्यादा खुदरा व्यापारियों पर ही पड़ने वाले प्रतिकूल या हानिकारक प्रभाव के रूप में ही नही देखा जाना चाहिए , बल्कि अब इन्हें समूचे राष्ट्रीय उत्पादन व बाजार पर तथा राष्ट्र के उत्पादकों , खासकर छोटे उत्पादकों और उनके बिक्री बाजार पर प्रत्यक्षत: किये जा रहे और लगातार बढाये जा रहे हमले के रूप में देखा जाना चाहिए |
-सुनील दत्ता
पत्रकार
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