रविवार, 30 दिसंबर 2012

चीन समाजवाद या पूँजीवाद की ओर?-1

अभी हाल में पिछले महीने एक राजनैतिक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में चीन जाने का मौका मिला. यह चीन को देखने और समझने तथा वहाँ के ऐतिहासिक स्थलों को देखने का सुनहरा अवसर था। हम मुख्यतः तीन जगहों पर गए शंघाई, शियाँ और बीजिंग तथा एकाध ग्रामीण जगहों पर। शंघाई बहुत पुराना व्यापारिक शहर है और आज तो वह अत्यंत ही विशाल बन गया है। उसकी आबादी ाई करोड़ से ज्यादा ही है. हमें वहाँ के पूर्वी और अधिक विकसित हिस्से, पुडोंग, में रहने और घूमने का अवसर मिला। पुडोंग मात्र पिछले तीन दशकों में विकसित हुआ है। पहले यह एक ग्रामीण और दलदल वाला इलाका था। आज यह गगनचुंबी इमारतों से भरा हुआ है। यदि नदी के एक ओर खड़े हो जाएँ तो दुनियाँ के विशालतम टॉवरों की लाइन दिखाई देगी। उनमे से एक में हम गए जो विश्व की तीसरी सबसे ऊँची इमारत है। उसके 283 वें मीटर पर से शंघाई का अविस्मरणीय दृश्य दीख पड़ता है। शाम की गोधूलि बेला में घुमावदार नदियों के दोनों ओर ऊँची और दमकती बिल्डिंगें चकाचौंध करने को काफी हैं। पुडोंग उपनगर में 50 लाख लोग रहते हैं।
शंघाई, पुडोंग, शियाँ और बीजिंग जहाँ कहीं हम गए, चौड़ी सड़कें, तेज भागती विदेशी कारें, सार्वजनिक और निजी दुकानें और यातायात के साधन दिखाई दिए। सफाई की तारीफ करनी होगी, क्या मजाल की कागज का एक टुकड़ा भी दीख जाए। मैंने इसे एक विशोष मुद्दा बना रखा था और मुझे शायद ही कहीं कोई कागज दिखाई पड़ा हो। हाँ, एक मॉडल ग्राम में मात्र एक स्थल पर एक कूड़े का ेर जरूर मिला, शायद गलती से। इससे यह नतीजा नहीं निकालना चाहिए कि सारा चीन ऐसा ही है। इसके विपरीत भी सुन रखा है, गंदगी इत्यादि के बारे में। ट्रॉफिक बहुत अनुशासित है।
पुडोंग अकाडमी में
हम यहीं ठहरे थे। इसका पूरा नाम है चीन एग्जीक्युटिव लीडरिशप अकाडमी पुडोंग अर्थात ॔सेलअप’। बहुत बड़ी अकाडमी है जो हमारे आई0आई0टी0, बिजनेस मैनेजमेंट और राजनैतिक स्कूलों का मिलाजुला रूप है। पिश्चमी सभ्यता और संस्कृति अपनाने की पूरी कोशिश दिखाई पड़ती है। साथ ही पिश्चमी मैनेजमेंट, तरीके और नाम भी। वहाँ हमने कई विद्वानों से मुलाकात की, उनसे बातचीत की और सवाल जवाब किए तथा लेक्चर भी सुने। फिर ेर सारे सवाल दागे जो स्वाभाविक ही था। उन्होंने बड़े ही धैर्य के साथ जवाब दिया।
उन्होंने तथा अन्य जगहों पर राजनैतिक एवं सरकारी नेताओं ने कई बातें साफ कीं। साम्राज्यवाद, पूँजीवाद, समाजवाद, बाजार, अमीरों की संख्या में वृद्धि, अरबपतियों का विकास, बेकारी, मुद्रास्फीति वगैरह के बारे में खुलकर बातें हुईं। हमें वहाँ का ॔सेज’ तथा मुक्त व्यापार केन्द्र भी दिखाया गया। चीन में अन्य जगहों में भी हमने निजी संस्थाएँ देखीं सुनीं। निजी बाजारों और दूकानों में भी गए।
बड़े पैमाने पर बाजार अर्थव्यवस्था का विकास
उन सभी ने स्पष्ट कर दिया कि आज और अभी चीन का सारा जोर बाजार अर्थतंत्र के विकास पर है। यदि कोई चीन में ॔समाजवाद’ के स्पष्ट चिह्नों को पाने की कोशिश करता है तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी। हम अपने देश में कई जिन बातों का विरोध करते हैं या उनके बारे में संशय प्रकट करते हैं, वे सारी चीजें चीन में धड़ल्ले से लागू की जा रही हैं।
आज चीन में मार्केट’ या बाजार शब्द सबसे आम शब्द है। मार्केट, खुशहाली, धनी बनो’ (गेट रिच), इत्यादि जैसी बातें प्रमुखता से की जाती हैं। चीन के बड़े शहरों, खासकर समुद्री किनारे के इलाकों पर स्थित शहरों में विदेशी पूँजी बड़े पैमाने पर बुलाई जा रही है, उन्हें विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ दी जा रही हैं, और तरहतरह से लुभाया जा रहा है। चीनी अधिकारियों, नेताओं और विद्वानों का कहना है अभी उन्हें तेज विकास और खुशहाली की जरूरत है ताकि लोग बेहतर जीवन बिता सकें। इसके लिए डब्लू0टी0ओ0 में शामिल होने के बाद चीन ने विशोष तौर पर अपना देश खोल दिया है।
केवल पुडोंग में जहाँ 1990 में केवल मुट्ठी भर विदेशी कम्पनियाँ थीं आज उनके प्रतिष्ठानों की संख्या ब़कर 20 हजार से  अधिक हो गई हैं। जहाँ विदेशी पूँजी उस क्षेत्र में केवल 3 करोड़ 40 लाख डॉलर का निवेश था, आज यह ब़कर 53 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। केवल पुडोंग में ही 500 विदेशी मल्टी नेशनल कम्पनियाँ, अर्थात बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आज बिजनेस कर रही हैं : यह बात उन्होंने उस क्षेत्र के एग्जीविशन में बड़े ही गर्व के साथ बताईं। इसे सुनकर हम दंग रह गए। इतना ही नहीं, अरबपतियों की संख्या आज ब़कर 50 के नजदीक पहुँच रही है। अभी हाल के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी महाधिवेशन में चुनी गई केंद्रीय समिति में 6 अरबपति शामिल किए गए हैं।
जब हमनें उनसे पूछा कि इससे आपको खतरा नहीं है तो उन्होंने जवाब दिया कि आज चीन को उनकी जरूरत है। अरबपति और धनी होना 'बुरी बात नहीं है', उनका जवाब था। कैसे? क्योंकि वे चीनी अर्थव्यवस्था के विकास में सहयोग कर रहे हैं। चीनी समाज उनके अनुसार सौहार्द्र पूर्ण विकास कर रहा है जिसमें वर्ग संघर्ष की कोई गुँजाइश नहीं है। वे कहते हैं कि हम धनियों को नियंत्रित कर लेंगे।
असल में वे चीन के विकास को 'समाजवादी बाजार अर्थतंत्र' बताते हैं। उनके अनुसार चीन का समाजवाद विकास की प्राथमिक मंजिल में है जो कम से कम सन 2050 तक चलेगा। उसके बाद ही अन्य बातों पर विचार हो सकेगा।
जाहिर है, ऐसी बातें पचा पाना हमारे लिए जरा मुश्किल ही है। इसमें कोई शक नहीं कि चीन में आर्थिक विकास बहुत हो रहा है। उसके विकास की दर विकासमान देशों में सबसे ज्यादा, 6.5 प्रतिशत है। यह आँकड़ा विश्व मंदी और दूसरे कारणों से 9 प्रतिशत से घट गया है। सड़कें, फ्लाईओवर, रेलें,
आधारभूत संरचनाएँ इत्यादि बहुत विकसित हैं। सड़कें साफ सुथरी हैं, जिन पर भारी संख्या में वाहन दौड़ रहे हैं।
लेकिन क्या गरीब भी नहीं ब़ रहे है? क्या सुदूर ग्रामीण इलाकों में ऐसी ही सुविधाएँ हैं और सबको हैं? हमें इस पर संदेह है। वे भी नहीं छिपते, एक आँकड़े पर गौर कीजिए। सन 2010 में समूचे चीन में ग्रामीण से शहरी इलाकों की ओर 25 करोड़ से अधिक लोगों का माइग्रेशन (प्रवास) हुआ जिससे प्रवासी मजदूरों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई। उनके खाने पीने, रहने, पॄाई, इत्यादि का जाहिर है इंतजाम पूरा नहीं हो पाया है, और इस पर हमने पूछा तो उन्होंने कोई बहुत संतोषजनक और साफ जवाब नहीं दिया। साथ ही यह भी पष्ट है कि वे अब कम छिपाते हैं या छिपाने की क्षमता रखते हैं। आपको गरीबी जहाँतहाँ दिख ही जाएगी।
हम यह नहीं कहते की जादू की छड़ी के समान सबकुछ छूमंतर हो जाएगा। लेकिन बड़ी विदेशी कम्पनियों की भारी पैमाने पर पूँजी का आना, चीनी पूँजीपतियों को ब़ावा देना और भी इतने बड़े पैमाने पर, अरबपतियों को छूट देना इत्यादि, समाजवाद की आरंभिक मंजिल’ से भी मेल नहीं खाता है। हम कुछ पूँजी का आना समझ सकते है। सारा विकास देश के अंदर ही और बिना पूँजी के नहीं हो सकता है। लेकिन आप भविष्य में इन विशाल बड़े पूँजीपतियों को समाजवाद की ओर कैसे मोड़ेंगे? उत्तर वहाँ तो नहीं मिला।
-अनिल राजिमवाले

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