माओवाद की पृष्ठभूमि
यहाँ एक बात समझने की जरूरत है। अब वे भी खुलकर कहते हैं कि माओ ने 50 से 70 के दशकों में गलत नीतियाँ अपनाईं थीं। आज चीन में माओ कम ही दिखाई पड़ते हैं, हालाँकि उनका सम्मान जरूर है। माओ की देखरेख में लंबी छलांग, कुछ ही वर्षो में कम्युनिज्म लाने और 'सांस्कृतिक क्रांति’ की जो विनाशकारी नीतियाँ चलाई गई थीं, आज चीनी उनकी तीखी आलोचना करते हैं। चीन की उत्पादक शक्तियों का भारी विनाश हुआ था। इसलिए उसने पहले उत्पादन, संचार, आधारभूत संरचनाओं, बिजनेस और बाजार का विकास करने का निर्णय लिया। यह काफी हद तक ठीक है। इससे चीन का विकास अवश्य हुआ है। आज चीन विश्व की शक्तियों में से एक है। जीवन स्तर ब़ा है। चीन आज आधुनिक बदलते विश्व को समझने में सक्षम है। वह ज्यादा आसानी से नई चीजों को अपना रहा है। यह सब अच्छा है। पुराने विचार त्याग दिए जा रहे हैं। विज्ञान, तकनीक, मैनेजमेंट इत्यादि तेजी से अपनाए जा रहे हैं।
माओवाद की आलोचना करते हुए वे कहते हैं कि अब वे ऐसी गलती नहीं दोहराएँगे। वे जनता को खुश देखना चाहते हैं। वक्ताओं ने हमें बताया की "पहले हमारे मातापिता भूखे रहा करते थे, आज कम से कम उन्हें और मुझे पेट भर खाना तो मिल जाता है’. इस पर कुछ कहना काफी दुखदाई था। वे कहते हैं कि ठीक है, पूँजी आ रही है, कुछ लोग धनी बनते जा रहे हैं’ लेकिन सब मिलकर समाज और अर्थतंत्र में सहयोग दे रहे हैं। हम असमानता को आगे चलकर दूर करेंगे। बेकारी, भ्रष्टाचार और महँगाई है लेकिन इससे सामान्य विकास से इन्कार नहीं किया जा सकता, वे कहते हैं।
उन्होंने पुडोंग, शियाँ और बीजिंग में स्पष्ट कहा कि 'देखिए, विचारधारा खाना नहीं देती, आज हमें खाना और खुशहाली मिल रही है।
यदि साम्राज्यवाद का नाम लेने और उसकी आलोचना करने से समस्या हल हो जाए तो क्या बात, लेकिन ऐसा नहीं है। इसलिए अब हम साम्राज्यवाद की बात या उसकी आलोचना नहीं करते। हम जानते हैं कि वह क्या हैं लेकिन सोवियत संघ के समान हम शीत युद्ध में उससे टकराना नहीं चाहते।' हम अमरीका के साथ सभी खतरों में सहयोग और परस्पर दोस्ती कर रहे हैं।' बीजिंग और अन्य जगहों में उनके अंतर्राष्ट्रीय विभाग के नेताओं ने कहा कि 'अमरीका और चीन के बीच के संबंध परस्पर निर्भरता के हैं और वे एक दूसरे से अविभाज्य हैं।'
मार्केट या बजार का यही दशर्न पूरे चीन में काम कर रहा है।
इसे वे यह बताते हैं कि चीन ने 'क्रांति और वर्ग संघर्ष से बाजार और सबको धनी बनाने की नीति की ओर संक्रमण किया है।' यह माओ की पुरानी नीतियों पर चोट थी। लेकिन साथ ही इसमे गंभीर अंतर्विरोध और समस्याएँ भी छिपी हुई हैं। उन्होनें स्पष्ट किया कि वे माओवाद और माओवादियों से अब कोई संबंध नहीं रखते।
बाजारों की यात्रा
वहाँ बाजारों और दुकानों में जाना भी अपने आप में एक प्रकार से शिक्षाप्रद ही है। हमें शंघाई, शियाँ और बीजिंग में कई दुकानों में जाने का मौका मिला। डेलिगेशन के साथी खरीदारी भी करना चाहते थे। वहाँ बड़ेबड़े मॉल हैं जिनके सामने हमारे माल बच्चे लगते हैं। वे पूरी तरह पिश्चमी हैं। उनके अलावा ॔स्वयं कार्यशील’ व्यक्तियों की दुकानें और कारोबार हैं जिनमें आप मोलतोल कर सकते हैं। उनमें से कई निजी बनते जा रहे हैं। फिर पूरी तरह मोलतोल करने वाली दुकानें हैं जिनमें चीजों के दाम बड़ी तेजी से घटाए जा सकते हैं। मिनटों में ही दाम दस गुना कम हो जाते हैं! वे बड़ी ही दिलचस्प दुकानें हैं जिनमें खूब बिक्री होती है। इन दुकानों और बाजारों में निजीकरण की ओर तेज झुकाव साफ दिखाई देता है। उनके अलावा सरकारी दुकानें भी हैं।
चीन का अर्थतंत्र
चीनी विशेषज्ञ अपने देश के अर्थतंत्र को तीन हिस्सों में बाँटते हैं। लगभग 1/3 सरकारी या राजकीय क्षेत्र कहा जा सकता है, इसे वे ॔राज्य स्वामित्व वाले उद्यम’ कहते हैं। इनमें ज्यादातर आधारभूत रचनाएँ आती हैं। अन्य 1/3 हिस्से में वह भाग है जिसे वे ॔स्वयं कार्यशील’ कहते हैं, अर्थात वे जो अपना छोटे पैमाने का कारोबार चलाते हैं। वास्तव में यह हिस्सा भी तेजी से निजी व्यवसाय का रूप धारण करता जा रहा है। बाकी 1/3 बड़े पैमाने का निजी कारोबार है जिसमे मुख्य रूप से बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, विदेशी और देशी पूँजी के तहत छोटे पूँजीवादी कारोबारी हैं। चीनी अधिकारियों ने हमें बताया की निकट भविष्य में सार्वजनिक या राजकीय क्षेत्र घटाकर 20 प्रतिशत तक पहुँचा दिया जाएगा।
पार्टी की भूमिका
चीन का राज्य अपनी भूमिका में साफ अंतर ला रहा है। वह अन्य हिस्सों खासकर एम0एन0सी0 और एफ0डी0आई0 के लिए अधिक सुचारु परिस्थितियाँ खत्म कर रहा है, जिसे वे साफ खुले तौर पर कहते हैं। पार्टी की इकाइयाँ भी’ सामुदायिक विकास कार्यों’ में लगा दी गई हैं अर्थात वे विशोष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) समेत सभी जगहों में आर्थिक विकास आसान बनाने का काम करती हैं। वे इस बात को नहीं छिपाते कि पार्टी का काम आर्थिक विकास और विदेशी निवेश को सुचारु बनाना है। पार्टी की केंद्रीय समिति (सी0सी0) में इस बार 6 अरबपतियों को शामिल किया गया है और धनी तबकों की भूमिका ब़ती जा रही है।
चीनी दस्तावेजों और पत्रपत्रिकाओं में तथा अधिकारियों और नेताओं ने स्पष्ट किया कि वैचारिक सिद्घांत आपको रोटी नहीं देते। उनके प्रकाशित दस्तावेज में लिखा उन्होंने दर्ज किया है चीन की पार्टी में वैचारिक समस्याएँ हैं। इसका कारण उनके अनुसार है 'विचारों की स्पष्टता से अस्पष्टता की ओर गमन, पार्टी में समाजवाद और कम्युनिज्म' से मिश्रित विचारों की ओर विकास, जिनमें 'चीनी विशिष्टताओं का समाजवाद, कन्फ्यूशियन सिद्घांत, सोशल डेमोक्रेसी, राष्ट्रवाद और देशभक्ति, भौतिकवाद और उपभोक्तावाद शामिल हैं'। फलस्वरूप, 'वाद शक्तिहीन हो चुका हैं'। (देखिए सेलअप, शंघाई, के दस्तावेज) कन्फ्युशियन और बुद्घा का उन्होंने कई बार उल्लेख किया। वर्तमान नेताओं का कई बार नाम लिया। ॔माक्र्स के विचारों की बात की’ (माक्र्स की नहीं), माओ का भी उल्लेख आलोचनाओं सहित किया। अखबारों में स्टॉक बाजार के इंडेक्स रोज छपते हैं। साथ ही ग्रहनक्षत्रों के आधार पर भविष्यवाणियाँ भी छपती हैं। पूछे जाने पर बताया गया कि 'इसकी हमारे लोगों में माँग बहुत है'!
आम चीनी आदमी बहुत मेहनती है। काम कर रही है। हमें बताया गया की उसकी स्थिति बेहतर हुई है और गरीबी कम हुई है। यह हो सकता है, लेकिन साफ था कि एक चीनी व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की जिंदगी बसर करने के लिए काफी ज्यादा मेहनत करने पर मजबूर है। चीजें आम तौर पर महँगी कही जाएँगी। मुद्रास्फीति ब़ती जा रही है।
ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा
हमारी यात्राएँ बड़ी सुंदर और शानदार रहीं। चीनियों ने बड़े ही सुंदर और सुचारु तरीके से रहने खाने और घूमने तथा बातचीत के कार्यक्रम आयोजित किए। प्रश्नों का बड़े ही धैर्य से जवाब दिया। वे समझते थे कि हमें कौन से सवाल परेशान कर रहे हैं।
हमनें बीजिंग से दो घंटे की दूरी पर दुनियाँ के सात आश्चर्यों में एक चीन की दीवार की यात्रा की। यह बड़ा ही सुखद अनुभव रहा। दीवार विशाल है और उसे देखने के कई प्वाइन्ट या जगहें हैं। बड़ी संख्या में भारतीयों समेत यात्री आते हैं।
फिर टी0एन0 में चौक, माओ का समाधि स्थल जहाँ उनका शरीर रखा हुआ है, ॔फॉरबिडन सिटी’ जो एक ऐतिहासिक महल है और कुछ अन्य जगहें देखीं।
इससे पहले शायन में 2200 वर्ष पुराने 6000 सैनिकों की मिट्टी और पत्थर से बनी मूर्तियों का क्षेत्र देखा। यह अत्यंत ही शिक्षाप्रद रहा। एक अन्य म्यूजियम में चीन का पूरा इतिहास देखने का अवसर मिला।
शियाँ के पास अतिसुंदर मॉडल ग्राम देखा जहाँ एक हजार किसान रहते हैं और जहाँ 160 मॉडल फ्लैट दो मंजिल वाले बने हुए हैं। वहाँ कुछ किसान पेंटिंग भी करते हैं। जाहिर है कुछ अति सुंदर पेंटिंग्स भी खरीदी। उनकी चित्रकारी बेहद शोभादार होती है।
विकास और भविष्य
इसमे शक नहीं की चीन बड़ी तेजी से बदलता और विकास करता जा रहा है। अब सवाल है कि वह जा किधर रहा है। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि इसकी उन्हें बहुत चिंता कम से कम अभी नहीं है। कई सारे सवाल और समस्याएँ वे भविष्य के लिए रखे हुए हैं। अभी उन्हें इस बात की चिंता है कि उत्पादन और आधुनिकीकरण तेजी से हो, शहरीकरण द्रुत गति से हो और चीन विकसित देशों की पाँत में आ जाए, लोग खासकर युवाओं के लिए सभी आधुनिक सुख सुविधाएँ हों, शंघाई जैसे शहर और बसाए जाएँ, चौड़ी सड़कें, फ्लाइओवर, द्रुत रेलें, एक्सप्रेस रोड हों। शाम के वक्त चीन के शहर ऐसे जगमगाते हैं जैसे दीवाली हो।
इन सबके बीच ऐसा लगता है कि वैचारिक और समाजवाद के प्रश्न उन्होंने भविष्य के लिए रखे हुए हैं : 'देखा जाएगा', यह है रुख। यह कैसे होगा इसका कोई जवाब अभी वे देना नहीं चाहते। यदि सचमुच समाजवाद की ओर जाना चाहते हैं वे। अभी समाजवाद या पूँजीवाद का प्रश्न पृष्ठभूमि में है। साथ ही यह भी विवादस्पद प्रश्न है कि आज जो विकास हो रहा है, क्या वह पूँजीवाद को ब़ावा दे रहा है? क्या इतने बड़े पैमाने पर बड़ी पूँजी और एम0एन0सी0 के बगैर विकास नहीं हो सकता है? इसमे शक नहीं कि कुछ पूँजी की जरूरत है लेकिन इसके लिए छोटी और मँझोली पूँजी से सहयोग किया जा सकता है और विशाल मल्टीनेशनल से बचा जा सकता है।
इन सारे सवालों पर अभी चीनी अधिकारी और नेता कुछ कहना नहीं चाहते हैं। वे अपने विकास को ॔समाजवाद की प्राथमिक मंजिल बताते हैं जो कम से कम 2050 तक चलेगी'। वे इसे ॔चीनी रंग का समाजवाद’ भी कहते हैं।’ यह सब 'किधर जा रहा है' इसकी चिंता उन्हें होती नहीं दिखती है।
इस बीच वे तेज विकास करना चाहते हैं और बड़ी शक्ति बनना चाहते हैं, चाहे जैसे भी हो।
-अनिल राजिमवाले
मो0 09868525812
यहाँ एक बात समझने की जरूरत है। अब वे भी खुलकर कहते हैं कि माओ ने 50 से 70 के दशकों में गलत नीतियाँ अपनाईं थीं। आज चीन में माओ कम ही दिखाई पड़ते हैं, हालाँकि उनका सम्मान जरूर है। माओ की देखरेख में लंबी छलांग, कुछ ही वर्षो में कम्युनिज्म लाने और 'सांस्कृतिक क्रांति’ की जो विनाशकारी नीतियाँ चलाई गई थीं, आज चीनी उनकी तीखी आलोचना करते हैं। चीन की उत्पादक शक्तियों का भारी विनाश हुआ था। इसलिए उसने पहले उत्पादन, संचार, आधारभूत संरचनाओं, बिजनेस और बाजार का विकास करने का निर्णय लिया। यह काफी हद तक ठीक है। इससे चीन का विकास अवश्य हुआ है। आज चीन विश्व की शक्तियों में से एक है। जीवन स्तर ब़ा है। चीन आज आधुनिक बदलते विश्व को समझने में सक्षम है। वह ज्यादा आसानी से नई चीजों को अपना रहा है। यह सब अच्छा है। पुराने विचार त्याग दिए जा रहे हैं। विज्ञान, तकनीक, मैनेजमेंट इत्यादि तेजी से अपनाए जा रहे हैं।
माओवाद की आलोचना करते हुए वे कहते हैं कि अब वे ऐसी गलती नहीं दोहराएँगे। वे जनता को खुश देखना चाहते हैं। वक्ताओं ने हमें बताया की "पहले हमारे मातापिता भूखे रहा करते थे, आज कम से कम उन्हें और मुझे पेट भर खाना तो मिल जाता है’. इस पर कुछ कहना काफी दुखदाई था। वे कहते हैं कि ठीक है, पूँजी आ रही है, कुछ लोग धनी बनते जा रहे हैं’ लेकिन सब मिलकर समाज और अर्थतंत्र में सहयोग दे रहे हैं। हम असमानता को आगे चलकर दूर करेंगे। बेकारी, भ्रष्टाचार और महँगाई है लेकिन इससे सामान्य विकास से इन्कार नहीं किया जा सकता, वे कहते हैं।
उन्होंने पुडोंग, शियाँ और बीजिंग में स्पष्ट कहा कि 'देखिए, विचारधारा खाना नहीं देती, आज हमें खाना और खुशहाली मिल रही है।
यदि साम्राज्यवाद का नाम लेने और उसकी आलोचना करने से समस्या हल हो जाए तो क्या बात, लेकिन ऐसा नहीं है। इसलिए अब हम साम्राज्यवाद की बात या उसकी आलोचना नहीं करते। हम जानते हैं कि वह क्या हैं लेकिन सोवियत संघ के समान हम शीत युद्ध में उससे टकराना नहीं चाहते।' हम अमरीका के साथ सभी खतरों में सहयोग और परस्पर दोस्ती कर रहे हैं।' बीजिंग और अन्य जगहों में उनके अंतर्राष्ट्रीय विभाग के नेताओं ने कहा कि 'अमरीका और चीन के बीच के संबंध परस्पर निर्भरता के हैं और वे एक दूसरे से अविभाज्य हैं।'
मार्केट या बजार का यही दशर्न पूरे चीन में काम कर रहा है।
इसे वे यह बताते हैं कि चीन ने 'क्रांति और वर्ग संघर्ष से बाजार और सबको धनी बनाने की नीति की ओर संक्रमण किया है।' यह माओ की पुरानी नीतियों पर चोट थी। लेकिन साथ ही इसमे गंभीर अंतर्विरोध और समस्याएँ भी छिपी हुई हैं। उन्होनें स्पष्ट किया कि वे माओवाद और माओवादियों से अब कोई संबंध नहीं रखते।
बाजारों की यात्रा
वहाँ बाजारों और दुकानों में जाना भी अपने आप में एक प्रकार से शिक्षाप्रद ही है। हमें शंघाई, शियाँ और बीजिंग में कई दुकानों में जाने का मौका मिला। डेलिगेशन के साथी खरीदारी भी करना चाहते थे। वहाँ बड़ेबड़े मॉल हैं जिनके सामने हमारे माल बच्चे लगते हैं। वे पूरी तरह पिश्चमी हैं। उनके अलावा ॔स्वयं कार्यशील’ व्यक्तियों की दुकानें और कारोबार हैं जिनमें आप मोलतोल कर सकते हैं। उनमें से कई निजी बनते जा रहे हैं। फिर पूरी तरह मोलतोल करने वाली दुकानें हैं जिनमें चीजों के दाम बड़ी तेजी से घटाए जा सकते हैं। मिनटों में ही दाम दस गुना कम हो जाते हैं! वे बड़ी ही दिलचस्प दुकानें हैं जिनमें खूब बिक्री होती है। इन दुकानों और बाजारों में निजीकरण की ओर तेज झुकाव साफ दिखाई देता है। उनके अलावा सरकारी दुकानें भी हैं।
चीन का अर्थतंत्र
चीनी विशेषज्ञ अपने देश के अर्थतंत्र को तीन हिस्सों में बाँटते हैं। लगभग 1/3 सरकारी या राजकीय क्षेत्र कहा जा सकता है, इसे वे ॔राज्य स्वामित्व वाले उद्यम’ कहते हैं। इनमें ज्यादातर आधारभूत रचनाएँ आती हैं। अन्य 1/3 हिस्से में वह भाग है जिसे वे ॔स्वयं कार्यशील’ कहते हैं, अर्थात वे जो अपना छोटे पैमाने का कारोबार चलाते हैं। वास्तव में यह हिस्सा भी तेजी से निजी व्यवसाय का रूप धारण करता जा रहा है। बाकी 1/3 बड़े पैमाने का निजी कारोबार है जिसमे मुख्य रूप से बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, विदेशी और देशी पूँजी के तहत छोटे पूँजीवादी कारोबारी हैं। चीनी अधिकारियों ने हमें बताया की निकट भविष्य में सार्वजनिक या राजकीय क्षेत्र घटाकर 20 प्रतिशत तक पहुँचा दिया जाएगा।
पार्टी की भूमिका
चीन का राज्य अपनी भूमिका में साफ अंतर ला रहा है। वह अन्य हिस्सों खासकर एम0एन0सी0 और एफ0डी0आई0 के लिए अधिक सुचारु परिस्थितियाँ खत्म कर रहा है, जिसे वे साफ खुले तौर पर कहते हैं। पार्टी की इकाइयाँ भी’ सामुदायिक विकास कार्यों’ में लगा दी गई हैं अर्थात वे विशोष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) समेत सभी जगहों में आर्थिक विकास आसान बनाने का काम करती हैं। वे इस बात को नहीं छिपाते कि पार्टी का काम आर्थिक विकास और विदेशी निवेश को सुचारु बनाना है। पार्टी की केंद्रीय समिति (सी0सी0) में इस बार 6 अरबपतियों को शामिल किया गया है और धनी तबकों की भूमिका ब़ती जा रही है।
चीनी दस्तावेजों और पत्रपत्रिकाओं में तथा अधिकारियों और नेताओं ने स्पष्ट किया कि वैचारिक सिद्घांत आपको रोटी नहीं देते। उनके प्रकाशित दस्तावेज में लिखा उन्होंने दर्ज किया है चीन की पार्टी में वैचारिक समस्याएँ हैं। इसका कारण उनके अनुसार है 'विचारों की स्पष्टता से अस्पष्टता की ओर गमन, पार्टी में समाजवाद और कम्युनिज्म' से मिश्रित विचारों की ओर विकास, जिनमें 'चीनी विशिष्टताओं का समाजवाद, कन्फ्यूशियन सिद्घांत, सोशल डेमोक्रेसी, राष्ट्रवाद और देशभक्ति, भौतिकवाद और उपभोक्तावाद शामिल हैं'। फलस्वरूप, 'वाद शक्तिहीन हो चुका हैं'। (देखिए सेलअप, शंघाई, के दस्तावेज) कन्फ्युशियन और बुद्घा का उन्होंने कई बार उल्लेख किया। वर्तमान नेताओं का कई बार नाम लिया। ॔माक्र्स के विचारों की बात की’ (माक्र्स की नहीं), माओ का भी उल्लेख आलोचनाओं सहित किया। अखबारों में स्टॉक बाजार के इंडेक्स रोज छपते हैं। साथ ही ग्रहनक्षत्रों के आधार पर भविष्यवाणियाँ भी छपती हैं। पूछे जाने पर बताया गया कि 'इसकी हमारे लोगों में माँग बहुत है'!
आम चीनी आदमी बहुत मेहनती है। काम कर रही है। हमें बताया गया की उसकी स्थिति बेहतर हुई है और गरीबी कम हुई है। यह हो सकता है, लेकिन साफ था कि एक चीनी व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की जिंदगी बसर करने के लिए काफी ज्यादा मेहनत करने पर मजबूर है। चीजें आम तौर पर महँगी कही जाएँगी। मुद्रास्फीति ब़ती जा रही है।
ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा
हमारी यात्राएँ बड़ी सुंदर और शानदार रहीं। चीनियों ने बड़े ही सुंदर और सुचारु तरीके से रहने खाने और घूमने तथा बातचीत के कार्यक्रम आयोजित किए। प्रश्नों का बड़े ही धैर्य से जवाब दिया। वे समझते थे कि हमें कौन से सवाल परेशान कर रहे हैं।
हमनें बीजिंग से दो घंटे की दूरी पर दुनियाँ के सात आश्चर्यों में एक चीन की दीवार की यात्रा की। यह बड़ा ही सुखद अनुभव रहा। दीवार विशाल है और उसे देखने के कई प्वाइन्ट या जगहें हैं। बड़ी संख्या में भारतीयों समेत यात्री आते हैं।
फिर टी0एन0 में चौक, माओ का समाधि स्थल जहाँ उनका शरीर रखा हुआ है, ॔फॉरबिडन सिटी’ जो एक ऐतिहासिक महल है और कुछ अन्य जगहें देखीं।
इससे पहले शायन में 2200 वर्ष पुराने 6000 सैनिकों की मिट्टी और पत्थर से बनी मूर्तियों का क्षेत्र देखा। यह अत्यंत ही शिक्षाप्रद रहा। एक अन्य म्यूजियम में चीन का पूरा इतिहास देखने का अवसर मिला।
शियाँ के पास अतिसुंदर मॉडल ग्राम देखा जहाँ एक हजार किसान रहते हैं और जहाँ 160 मॉडल फ्लैट दो मंजिल वाले बने हुए हैं। वहाँ कुछ किसान पेंटिंग भी करते हैं। जाहिर है कुछ अति सुंदर पेंटिंग्स भी खरीदी। उनकी चित्रकारी बेहद शोभादार होती है।
विकास और भविष्य
इसमे शक नहीं की चीन बड़ी तेजी से बदलता और विकास करता जा रहा है। अब सवाल है कि वह जा किधर रहा है। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि इसकी उन्हें बहुत चिंता कम से कम अभी नहीं है। कई सारे सवाल और समस्याएँ वे भविष्य के लिए रखे हुए हैं। अभी उन्हें इस बात की चिंता है कि उत्पादन और आधुनिकीकरण तेजी से हो, शहरीकरण द्रुत गति से हो और चीन विकसित देशों की पाँत में आ जाए, लोग खासकर युवाओं के लिए सभी आधुनिक सुख सुविधाएँ हों, शंघाई जैसे शहर और बसाए जाएँ, चौड़ी सड़कें, फ्लाइओवर, द्रुत रेलें, एक्सप्रेस रोड हों। शाम के वक्त चीन के शहर ऐसे जगमगाते हैं जैसे दीवाली हो।
इन सबके बीच ऐसा लगता है कि वैचारिक और समाजवाद के प्रश्न उन्होंने भविष्य के लिए रखे हुए हैं : 'देखा जाएगा', यह है रुख। यह कैसे होगा इसका कोई जवाब अभी वे देना नहीं चाहते। यदि सचमुच समाजवाद की ओर जाना चाहते हैं वे। अभी समाजवाद या पूँजीवाद का प्रश्न पृष्ठभूमि में है। साथ ही यह भी विवादस्पद प्रश्न है कि आज जो विकास हो रहा है, क्या वह पूँजीवाद को ब़ावा दे रहा है? क्या इतने बड़े पैमाने पर बड़ी पूँजी और एम0एन0सी0 के बगैर विकास नहीं हो सकता है? इसमे शक नहीं कि कुछ पूँजी की जरूरत है लेकिन इसके लिए छोटी और मँझोली पूँजी से सहयोग किया जा सकता है और विशाल मल्टीनेशनल से बचा जा सकता है।
इन सारे सवालों पर अभी चीनी अधिकारी और नेता कुछ कहना नहीं चाहते हैं। वे अपने विकास को ॔समाजवाद की प्राथमिक मंजिल बताते हैं जो कम से कम 2050 तक चलेगी'। वे इसे ॔चीनी रंग का समाजवाद’ भी कहते हैं।’ यह सब 'किधर जा रहा है' इसकी चिंता उन्हें होती नहीं दिखती है।
इस बीच वे तेज विकास करना चाहते हैं और बड़ी शक्ति बनना चाहते हैं, चाहे जैसे भी हो।
-अनिल राजिमवाले
मो0 09868525812
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