रविवार, 3 मार्च 2013

भगवा आतंकवाद के उद्गम स्थल की पुष्टि-1


       
          जयपुर चिन्तन शिविर के बाद आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के खुले अधिवेषन में गृहमंत्री सुशील  कुमार सिंदे  ने एक खुले रहस्य से परदा उठा दिया। एक ऐसा रहस्य जिससे देष पहले से वाकिफ था। एक ऐसा वक्तव्य जिससे एक वर्ग कांग्रेस के हृदय परिवर्तन से हैरान और उत्साहित हो गया। उसे लगा कि आतंकवाद के नाम पर उसके साथ जो अन्याय हो रहा था अब यह उसके अन्त का संकेत है। दूसरा वर्ग षिंदे के इस दुस्साहस पर आष्चर्यचकित, बौखलाया हुआ और आक्रोशित था। अपनी तीव्र प्रतिक्रिया से शायद वह देष को यह जताना चाहता था कि गृहमंत्री ने कोई नई और तथ्यहीन बात कह दी हो। भाजपा को सबसे अधिक आपत्ति हिन्दू आतंकवाद कहे जाने पर थी।  राजनाथ सिंह ने भाजपा अध्यक्ष चुने जाते ही देषव्यापी आन्दोलन का एलान कर दिया और साथ ही यह कहा कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की माफी से कम कुछ भी मंजूर नहीं। माफी न माँगने पर संसद को भी न चलने देने की धमकी भी दे डाली। षिंदे के आरोप और भाजपा की प्रतिक्रिया ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को दो तरफा चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया। इस विषय पर बात करने से पहले यह जान लेना आवष्यक है कि षिंदे ने कहा क्या था?
    खुफिया एजेंसियों का हवाला देते हुए षिंदे ने कहा उनके पास ऐसी रिपोर्ट आई है जिससे साबित होता है कि भाजपा और संघ अपने कैम्पों में आतंकवाद की ट्रेनिंग दे रहे हैं। (अमर उजाला, पेज-13, 21 जनवरी, 2013)। हमारे पास ऐसी रिपोर्ट आई है कि संघ के लोगों ने कई बम लगाए हैं। (दैनिक जागरण, पेज-3, 21 जनवरी 2013)। ‘षिंदे ने कहा कि आर0एस0एस0 और बी0जे0पी0 के लोग बम प्लांट करते हैं ताकि इसका दोष अल्पसंख्यकों पर मढ़ा जा सके‘। (अमर उजाला, पेज-13, 21 जनवरी 2013)। उन्होंने कहा कि हमें भाजपा के विष फैलाने वाले प्रचार को रोकना होगा। (अमर उजाला, पेज-13, 21 जनवरी 2013)। ‘बी0जे0पी0 या आर0एस0एस0 के लोग, उनके ट्रेनिंग कैम्प हैं जो हिन्दू दहषतगर्दी को फरोग दे रहे हैं। इस पर हमारी गहरी नजर है। (इंकलाब उर्दू, पेज-1, 21 जनवरी 2013)। ‘बवाल मचने पर बाद में सफाई देते हुए षिंदे ने कहा कि उन्होंने हिंदू आतंकवाद नहीं भगवा आतंकवाद कहा था। (अमर उजाला, पेज-13, 21 जनवरी, 2013)। भाजपा ने ‘हिंदू आतंकवाद‘ कहे जाने पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की। संघ प्रवक्ता राम माधव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना गलत है। सवाल यह है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ने की परम्परा का सृजन और जन-जन तक उसको पहुँचाने का काम भी तो भा0ज0पा0 और संघ के लोगों ने ही किया था। सर संघचालक से लेकर भजपा अध्यक्ष और इन संगठनों के तमाम पदाधिकारियों और नेताओं ने इस्लामी आतंकवाद कहने में कोई संकोच नहीं किया। इस्लामी आतंक, जेहादी आतंक, मुस्लिम आतंक, जेहादी साहित्य यह सब शब्दावलियाँ किसी और ने नहीं संघ और भा0ज0पा0 के लोगों ने ही प्रचारित की थीं। आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों की छवि को खराब करने का कोई भी अवसर कभी हाथ से नहीं जाने दिया। ऐसा वातावरण निर्मित हो गया कि आतंकवाद का मतलब ही मुस्लिम आतंकवाद हो कर रह गया था। ऐसे में आतंकवाद के इस देर से पहचाने गए चेहरे को जाहिर करने के लिए नए प्रतीक की जरूरत तो पड़नी ही थी। समय रहते यदि आतंकवाद को मात्र आतंकवाद समझने दिया गया होता तो उसके विरुद्ध अधिक प्रभावी तरीके से लड़ा जा सकता था। इतना ही नहीं आतंकवादी वारदातों में लिप्त आरोपियों के प्रति संघ परिवार और उस मानसिकता के लोगों ने साबित किया कि कोई डार्लिंग आतंकवादी है और कोई दुष्मन आतंकवादी, और इस भेदभाव का आधार भी धर्म ही था। एक पृष्ठभूमि के आरोपी की अदालत में पेषी के समय वकीलों द्वारा पिटाई का सामना और जेल में कैदियों के हमले का जोखिम तो दूसरे का फूलों से स्वागत और श्रद्वा भरी नजरों का नजराना। एक के लिए बार कौंसिलों द्वारा आतंकी का मुकदमा न लड़ने का फरमान और पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं पर हमले तो दूसरे के लिए अच्छे वकीलों का प्रबंध और मुकदमा लड़ने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन तथा आर्थिक सहायता की अपील। एक तरह के आरापियों का नाम आते ही फाँसी पर लटकाने की माँग और दूसरे की सिफारिष के लिए प्रधानमंत्री तक से मुलाकात तथा जाँच अधिकारियों पर भारी दबाव और
धमकियाँ। क्या इस आचरण से आतंकवाद के खिलाफ देष के अभियान को झटका नहीं लगा? आतंकवाद के नाम पर इन अनैतिक, गैरकानूनी एंव फिरकापरस्त कारगुजारियों का औचित्य ढूँढने वाले कौन लोग थे। निष्चित रूप से इसके पीछेे संघ और भा0ज0पा0 से जुड़े बडे़ नाम अवष्य मिल जाएँगे। आज यदि हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद की संज्ञा दी गई है तो यह पूर्व में आतंकवाद को इस्लामी या जेहादी नाम से जोड़ने का दुष्परिणाम ही तो है।
    यह बात भी ढकी छुपी नहीं है कि संघ परिवार के कुछ संगठनों ने खुलेआम अपने कैम्पों में आधुनिक हथियारों को चलाने का सामूहिक प्रषिक्षण दिया है और उसकी तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छप चुकी हैं। इसमें किसी अगर-मगर या किन्तु-परन्तु की कोई गुंजाइष नहीं है। रहा आतंकवाद के प्रषिक्षण का मामला तो संघ से जुड़े कई कार्यकर्ता बम बनाते और एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते समय विस्फोट में मरे और घायल हो चुके हैं। यह भी सही है कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा की खुलेआम वकालत करते हैं। एस्थान, प्रतापगढ़ के दंगों के तुरंत बाद विष्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगडि़या ने उस क्षेत्र से मुसलमानों को बल पूर्वक निकाल देने के लिए हिन्दुओं को ललकारा था। फैजाबाद में देवकाली मंदिर चोरी के मामले में योगी आदित्य नाथ ने मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला और असम में मुसलमानों को कत्ल करने के लिए बोडो चरम पंथियों की जमकर तारीफ भी की। इस तरह फैजाबाद में उन दंगों की बुनियाद रखी जिसमें एक तरफा मुसलमानों के सैकड़ों दुकानें और मकान जला दिए गए। मध्य प्रदेष के जनपद ीरोंज के कस्बे दामोह में कहा ‘यदि हम इस देष के प्रधानमंत्री बन जाएँ तो सबसे पहले मुसलमानों से वोट का अधिकार छीन लेंगे। देष के किसी भी विधिक पद पर मुसलमानों को नहीं रहने देंगे‘। (अनुवाद उर्दू इनकलाब, 2, फरवरी, 2013 पेज-1)। ऐसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। परन्तु हमारा मीडिया धड़ल्ले के साथ इन संगठनों को समाज का सेवक बनाकर प्रस्तुत करता है और शासन प्रषासन की आँखें इनकी तरफ से बन्द होती हैं। परन्तु अकबरुद्दीन ओवैसी यदि ऐसा कोई बयान दे दें तो पुलिस प्रषासन स्वयं नोटिस लेकर मुकदमा दर्ज करता है और तुरंत कार्रवाई होती है। वह मीडिया जो तोगडि़या और योगी जैसे लोगों की देष भक्ति के अलावा कुछ नहीं लिखता अचानक बड़ी-बड़ी खबरें छापने लगता है। दरअसल मीडिया में कुछ सफेद पोष भी वही काम कर रहे हैं जो मिषन योगी और तोगडि़या का है। षिंदे के बयान के समर्थन में बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने हाफिज सईद को ‘साहब‘ कह दिया। बनारस से प्रकाषित होने वाले हिन्दी के एक समाचार ने 22, जनवरी को इस पूरे प्रकरण पर सम्पादकीय लिखा जिसमें कहा गया ‘आखिर षिंदे के बयान के बाद दिग्विजय सिंह का जमात उद दावा के प्रमुख और भारत में वांछित आतंकी हाफिज सईद के नाम का अदब से जिक्र करने का क्या मतलब है? यदि वाकई यह वोट बैंक की राजनीति नहीं है तो षिंदे के इस बयान की अभी जरुरत भी नहीं थी‘। यह बात बिल्कुल सही है कि इस बयान को बहुत पहले आना चाहिए था और मात्र बयान ही नही कार्रवाई भी होनी चाहिए थी। परन्तु शायद सम्पादक की यह मंषा नहीं थी। उनके हिसाब से यह बयान आना ही नहीं चाहिए था। इतना ही नहीं इसमें ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया है कि सरसरी तौर पर पाठक को ऐसा लगे कि भगवा आतंक पर बयान देने और हाफिज सईद का नाम अदब से लेने से भारतीय मुसलमान खुष होता है।   
-मसीहुद्दीन संजरी

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