शनिवार, 2 मार्च 2013

अफजल गुरू की फांसी कांग्रेस हित में या देश हित में?-5

वर्ष 2005 से फाँसी के सजायाफ्ता कैदी अफजल गुरू को फाँसी कब दी जाएगी यह भा0ज0पा0 व शिवसेना जैसे हिन्दू कट्दरवादी संगठनों के प्रबल मुद्दे थे। उसके पश्चात 9/11 मुम्बई हमला कांग्रेस के नेतृत्व में केन्द्र में स्थापित यू0पी0ए0 सरकार के दामन पर एक और बड़ेदाग के रूप में लगा जिसने आर्थिक उदारीकरण के दम पर देश के आर्थिक विकास और औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने वाली कांग्रेस सरकार को काफी हद तक विचलित कर दिया। इन सबसे परेशान कांग्रेस अभी पूरी तरह से सँभल भी नहीं पाई थी कि भ्रष्टाचार एवं घोटालों के खुलासे का बाजार देश में गरम हो गया। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा व इसके नेतृत्व में चलने वाली एन0डी0ए0 कांग्रेस को घेरकर अति प्रसन्न हो रही थी। कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कर्नाटक के भाजपा मुख्यमंत्री बी0एस0 येदुरप्पा का तख्ता पलट भ्रष्टाचार के मुद्दं पर कर दिया। अपनी सफलता पर उत्साहित कांग्रेसियों ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जो कि दुबारा अध्यक्ष के सपने संजोए हुए थे जिनके मोह से ग्रसित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा पर दबाव बनाकर पार्टी संविधान में संशोधन कर उनकी अध्यक्षी की राह आसान कर दी थी उन पर भ्रष्टाचार का आरोप मढ़कर कांगे्रस ने पूरी शक्ति से हमला बोलकर भाजपा को रक्षात्मक स्थिति में ला खड़ा किया।
    भाजपा और आर.एस.एस. ने अपनी रणनीति में परिवर्तन कर हिन्दुत्व के चैम्पियन नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना प्रारम्भ कर दिया जिसकी कोई काट कांग्रेस को फिलहाल नजर नहीं आ रही थी। राजस्थान के मरूस्थलीय भूमि पर चिन्तन बैठक करके कांग्रेस ने जहाँ एक ओर राहुल गांधी को अघोषित प्रधानमंत्री बनाने की दागबेल डाल दी थी वहीं शायद गुपचुप तरीके से अफजल गुरू को सूली पर चढ़ाकर मिशन 2014 में विजय पताका  फहराने का मसौदा भी तैयार कर लिया गया था।
    सेब के बागो के गाँव सोपोर के रहने वाले अफजल गुरू ने मीडिया को सुरक्षा एजेन्सियों के दबाव में दिए गए अपने कबूलनामे के बाद उसे नकारते हुए जो पत्र अपने परिजनों को लिखा था उसमें इस बात का जिक्र है कि मोहम्मद नाम के जिस आतंकवादी को संसद भवन हमले में मार गिराया गया था उससे एस.टी.एफ. कर्मियों ने हमले से कुछ दिनों पूर्व मिलाया था और उसके लिए दिल्ली में रुकने के लिए एक आवास की व्यवस्था करने को कहा था उससे उसकी कई बार मोबाइल पर बात भी कराई गई थी जिसकी बाद में गिरफ्तार होने के पश्चात जाँच एजेन्सियों ने पहचान भी कराई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी बाटला हाउस काण्ड मुठभेड़ में मारे गए इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा द्वारा प्रस्तुत आतंकियों के काल डिटेल रिकार्ड तथा अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत गवाहान की गवाही का अध्य्ययन करने के पश्चात अफजल गुरू की संसद पर हमले के समय बातचीत पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए थे।
    अफजल गुरू के ऊपर त्वरित न्यायालय में चले मुकदमें की सुनवाई ठीक ढंग से न किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय में भी प्रश्न चिह्न अभियुक्तों के वकील सुशील कुमार द्वारा खड़े किए गए थे जिसमें कहा गया था कि पी0डी0 पंचोली जो कि त्वरित न्यायालय में अभियुक्तों की वकालत कर रहे थे न तो कभी अभियुक्तों से जेल में मुलाकात की और न ही अभियोजन द्वारा गवाहों से प्रतिपरीक्षा ही की जिसकी शिकायत अफजल गुरू ने अन्य वकील नियुक्त किए जाने के लिए की थी। अफजल गुरू की फाँसी पर अधिकांश विधिशास्त्रियों ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले पर टिप्पणी की है कि फैसला विधि सम्मत न होकर जनता के सम्मान में दिया गया है, जो एक गलत नज़ीर बनाती है। कांग्रेस 2014 के चुनाव में अफजल गुरू की फाँसी से भले ही लाभान्वित हो जाए परन्तु जो कश्मीर विगत कई वर्षों से शांति के पथ पर अग्रसर था, अलगाववाद की चिंगारी को अवश्य गति प्रदान कर सकता है और दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया एवं मध्य एशिया में साम्राज्यवादी शक्तियों का नेतृत्व कर रहे अमरीका के वर्षों पुरानी कश्मीर में अपना सैन्य अड्डा बनाने की मनोकामना को भी बल प्रदान कर सकता है और दुर्भाग्यवश यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस की नेतृत्व वाली यू0पी0ए0 सरकार प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रपति के संयुक्त कृत को इतिहास सदैव एतिहासिक भूल में याद रखेगा।  
     -तारिक खान
   मो-09455804309

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