
‘मन्टो साहब मैंने आज तक किसी का मशवरा नहीं किया। जब भी कोई मुझे राय देता है मैं कहता हूँ सुबहान अल्लाह। वह मुझे बेवकूफ़ समझते हैं। लेकिन मैं इन्हें अक़्लमन्द समझता हूँ इसलिए कि इनमें कम अज़ कम इतनी अक़्ल तो थी जो मुझमें ऐसी बेवकूफ़ी को शिनाख्त कर लिया जिससे इनका उल्लू सीधा हो सकता है। बात, दरअसल ये है कि मैं शुरू से फ़कीरों और कंजरों की सोहबत में रहा हूँ। मुझे इनसे कुछ मुहब्बत सी हो गई जब मेरी दौलत ख़त्म हो जाएगी तो किसी तकिए पर जा बैठूँगा। रण्डी का कोठा और पीर की मज़ार, बस ये दो जगह हैं जहाँ मेरे दिल को सुकून मिलता है। रण्डी का कोठा छूट जाएगा इसलिए कि जेब ख़ाली होने वाली है हिन्दुस्तान में हज़ारों पीर है किसी एक के मजार पर चला जाऊँगा।
इन दोनों जगहों पर फ़र्श से लेकर अर्श तक धोखा ही धोखा होता है। जो आदमी ख़ुद को धोखा देना चाहे उसके लिए इससे अच्छा मुक़ाम और क्या हो सकता है।’’ (बाबू गोपी नाथ)
मन्टो अपने नाम के साथ एक और अफ़साने ‘जानकी’ के किरदार की शक्ल में नज़र आते है। हालाँकि इस अफ़साने में इन्होंने मन्टो के बजाय अपने नाम का पहला जुज़ सआदत इस्तेमाल किया है। इत्तेफाक़ से ये अफ़साना भी उनके मजमूअे ‘चुग़द’ में शामिल है जिसका एक अफ़साना ‘बाबू गोपी नाथ’ है। जानकी और बाबू गोपी नाथ में बड़ा फ़र्क है। जानकी एक सादा सा बयानिया है जिसमें कोई ऊँच नीच नहीं जिसका मौज़्ाू फि़ल्म इण्डस्ट्री में औरत का जिस्मानी इस्तहसाल म्गचसवपजंजपवद है जिसे नरायन; अज़ीज और सईद तीन किरदारांे के ज़रिए ज़ाहिर करने की कोशिश की गई है। इसमें बार-बार जिन्सी तालुक़ात का जि़क्र है जिस पर जानकी कभी मोतरिज़ भी नहीं होती अपने किरदार के बावजूद मन्टो इस अफ़साने में कोई ऐसी चमक नही पैदा कर सके जिससे अफ़साने का क़द बुलन्द होता। उन्होंने अपना किरदार शामिल करके इसे हक़ीक़त का रंग देने की कोशिश की है। वह एक फिल्मी सहाफ़ी की हैशियत से भी मुम्बई फि़ल्म इण्डस्ट्री के बाज़ किरदारांे के बारे में लिखते रहते थे। ये कहानी कुछ इसी तरह जानकी, नरायन, अज़ीज़ और सईद के जिन्सी रवैयों और फि़ल्म इण्डस्ट्री के अन्दरूनी सूरत हाल का इज़हार है।
मन्टो अपने किरदारों की तरफ़ बहुत तवज्जों नहीं देते। बाज़ अफ़साना निगारों का क्राफ़्ट ही इनकी किरदार निगारी होती है लेकिन मन्टो बेख़ौफ लिखते चले जाते हैं। बाज़ वक़्त तो ये महसूस होता है कि वह सोच कुछ और रहे हंै और इनका क़लम लिख कुछ और रहा है और इसी कैफि़यत में इनके किरदार खुद कहानी में अपनी जगह बना लेते हैं। इनका एक और किरदार जो अपनी जे़हनी बेतरतीबी बेरब्ती और दीवानगी के बावजूद जे़हन पर नक़्श हो जाता है वह सरदार बिशन सिंह है। जो इनके अफ़साने टोबा टेक सिंह का बुनियादी किरदार है। तक़्सीम मुल्क के अलमिए पर इससे ज्यादा पुर असर और पुरदर्द अफ़साना कोई नहीं होगा। ये अफ़साना अपनी मिट्टी से लगाव और हिजरत के कर्ब की अजीबो ग़रीब कहानी है जिसे एक दीवाने किशन सिंह के किरदार के जरिए मन्टो ने पेश किया है। पागल ख़ाने के पस मन्ज़र में लिखे गए इस अफ़साने में कई किरदार हैं अफ़साने की टेकनिक और फ़न के लिहाज़ से ये अफ़साना उर्दू ही नहीं बल्कि आलमी अदब के चन्द अच्छे अफ़सानांे में शुमार हो गया। ये अफ़साना मन्टो के सियासी नज़रियात की भी ताबीर है। मन्टो के यहाँ जि़न्दगी का एक नज़रिया है और इनकी तहरीर में वह छुपा हुआ नहीं है। इन्होंने हिन्दुस्तान की सियासत और आज़ादी की मुत्तहदा कोशिशों को हिन्दू, मुसलमान फिरका परस्ती और दो क़ौमी नजरिए में तक़्सीम होते देखा था। वह जलियाँ वाला बाग के सानिहे से लेकर तक़्सीम मुल्क के सानिहे तक के गवाह थे। सरदार विशन सिंह कोई और नहीं मन्टो ख़ुद हैं जिसने उस तंग नज़र सियासत को कभी क़बूल नहीं किया।
मन्टो ने मतनुअ मौज़्ाूआत पर अफ़साने लिखे हैं लेकिन तवायफ़ और तक़्सीम मुल्क से पैदा होने वाले हालात और फ़सादात के तहत औरतों के साथ होने वाली ज़्यादतियों और दर बदरी पर इन के बहुत से अफ़साने हैं। जिन में अक्सर को फ़ोहाशी में शुमार किया गया और बाज़ पर मुक़दमात भी चले जिनमें एक अफसाना ‘ठण्डा गोश्त’ है। आज इसे पढ़ने के बाद जे़हन में ये सवाल पैदा होता है कि इस पर मुकदमा क्यों चला? मुमकिन है कि अख़बारात में कुछ लोगों ने मन्टो के खि़लाफ जो मुहिम छेड़ रखी थी उसके नतीजे में हुकूमत ने ये कदम उठाया वरना ये एक नफ़्सियाती अफ़साना है जो ये ज़ाहिर करता है कि बुराई या ज़्ाुल्म का रद्देअमल ख़ुद उस शख़्स पर क्या हो सकता है। ईश्वर सिंह तक़्सीम मुल्क के बाद होने वाले फ़सादात का एक किरदार है जिसका काम लोगों को क़त्ल करना इनके जे़वरात और पैसे लूट लेना, इनकी औरतो को बेआबरू करना है ये एक किरदार नहीं ऐसे अनगिनत किरदार उस वक़्त मौजूद थे। ईश्वर सिंह एक बहुत ख़ूबसूरत लड़की से जिस्मानी तालुक़ात क़ायम करता है जो दहशत की वजह से मर चुकी थी जिसके ख़ानदान के छः अफ़राद को उसकी निगाहों के सामने क़त्ल करके ईश्वर सिंह उसे कांधों पर लादकर ले आया था जिसका नफ्सियाती रद्देअमल ये होता है कि वह ख़ुद अपनी बीबी कुलवन्त कौर के जिस्मानी मतालबे को पूरा नहीं कर पाता और कुलवन्त किसी दूसरी औरत से तालुक़ क़ायमकरने पर गुस्से में ईश्वर सिंह को उसी की कृपाण से ज़ख्मी कर देती है। ईश्वर सिंह मरते वक़्त उसका एतराफ़ इन अलफ़ाज़ में करता है।
‘‘ईश्वर सिंह ने अपनी बन्द होती आँखें खोलीं और कुलवन्त कौर के जिस्म की तरफ़ देखा जिसकी बोटी-बोटी थिरक रही थी।
‘‘वह-वह मरी हुई लाश थी। बिल्कुल ठण्डा गोश्त। जानी मुझे अपना हाथ दे।’’
कुलवन्त कौर ने अपना हाथ ईश्वर सिंह के हाथ पर रखा जो बर्फ से ज्यादा ठण्डा था’’ (ठण्डा गोश्त)
फसादात के मौज़्ाूँ पर मन्टो की बहुत सी कहानियाँ हैं। उस वक़्त दहशत व बरबरीयत के बदले का जो भूत कुछ लोगांे पर सवार था उसने अच्छाई, बुराई, नेकी और बदी, गुनाह और सवाब की तफ़रीक़ ख़त्म कर दी थी। मन्टो ने इस सारे मन्ज़र को क़रीब से देखा था। ऐसा नहीं है कि उर्दू के दूसरे अदीबों और अफ़साना निगारों ने इसके बारे में न लिखा हो। कृष्ण चन्द्र, राजेन्द्र सिंह बेदी, इस्मत चुग्ताई, महेन्द्र नाथ, रामानन्द सागर ने ख़ास तौर पर इन हालात को अपने अफ़सानों का मौज़्ाूँ बनाया है। हर हस्सास इन्सान इन हालात से दिल बर्दाश्ता और दहशत ज़दा था। इसमें वह लोग भी थे जिन्हें ख़ुद अपना मुल्क छोड़ना पड़ा था लेकिन मन्टो ने इस मौज़्ाू के मुख्तलिफ पहलुओं पर और ख़ास तौर पर औरतों पर होने वाले मज़ालिम को शिद्दत से अपना मौज़्ाू बनाया है। इसके लिए बड़ी जुर्रत की ज़रूरत थी इन्हें इस जुर्रत की बड़ी क़ीमत भी चुकानी पड़ी। जमीनदार अख़बार ने तो इनके खि़लाफ एक महाज खोल दिया था। इनके अफ़साने दरअसल अफ़साने नहीं इनके जिन्दगी के तजुर्बात और मुशाहिदात हैं। इनके हर अफ़साने की बुनियाद कोई हक़ीक़ी वाकि़या या कोई हक़ीक़ी किरदार है। मन्टो का फन इसी के पेश करने के तरीके पर है। मन्टो ने उर्दू अफ़साने को जि़न्दगी के नए पहलू या उसकी हक़ीकतो और उसकी तल्खि़यों से आशना किया। मन्टो के अफ़सानों की दुनिया बहुत अजीब है। इसमें आम बेजरर इन्सान भी है। इसमें राज किशोर (मेरा नाम राधा) जैसे रियाकार भी हैं, ईश्वर सिंह जैसे क़ातिल और ममद भाई जैसे दोहरी शखि़्सयत वाले भी हैं, इनमें तवायफ़ें भी हैं, और मर्दो की दस्तदराज़ी का शिकार मज़लूम औरतें भी। ऐसी उसअत और जि़न्दगी की ऐसी मतनूअ तस्वीरें वहीं मिल सकती थीं जहाँ लिखने वाले का अपना तजुर्बा उतना ही मतनूअ हो।
मन्टो ने अफ़साने के फ़न को जिस तरह बरता और उसकी टेक्निक जो तजुर्बे किए उसने उर्दू अफ़साने की दुनिया को वसीअ कर दिया। इनके अफ़सानांे की ख़ूबी यही है कि इनका हर अफ़साना अपने क़ारी से मुकालमा करता हुआ नज़र आता है और उसके दायरे से ता द़ेर वह बाहर नहीं निकल पाता। यही मन्टो का फ़न है।
- शारिब रुदौलवी
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