मंगलवार, 12 मार्च 2013

बलात्कार के बहाने से



यह तुम्हारी सभ्य आदिम सभ्यता
पाशविक धन-लोभलोलुप कामलोलुप
हर जगह व्यापार फैला है तुम्हारा
योनि निष्कासन से मिट्टी में दफन तक
एक नैपी से दो गज लंबे कफन तक
प्रक्रियाएँ यह कमाने हेतु तेरी,
रंडियों के पुत्र! फन की आड़ लेकर,
रोज गढ़ तू मध्यवर्गी पॉर्न फिल्में
जिस्म सिलिकॉन की चमक से चमचमाता
आह भरते हैं नरो के लिंग रह-रह
वीर्य विक्षोभन तुम्हारी कला सारी
अधखुले स्तन बने हैं योजना सारी
और होते हैं जो दिल्ली में हजारों
और लाखों देश  भर में
प्रांत जनपद, गिन नही पाते हैं
इतने बलात्कार
उन सभी को भूल
दामिनी की चीख तुमने चीख ली पर
चीख से लोगों ने अरबों फिर बनाए,
यह चतुर्थ स्तंभ अंदर से है पोला
बेटियाँ हैं तीन जिसकी
बाप बोला,

 -संतोष अर्ष


1 टिप्पणी:

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में अर्ज सुनियेकृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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