गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

खुफिया एजेंसियों के भड़काने पर आन्दोलन

उत्तर प्रदेश सरकार ने आतंकवाद के नाम पर फर्जी फंसाए गए निर्दोष लोगों के ऊपर से मुकदमा हटाने की पहल शुरू की है जिसके तहत गोरखपुर में आतंकवाद के मामले में आरोपित तारिक कासमी का वाद वापसी का आदेश दिया है और कहा है कि जिला मजिस्ट्रेट गोरखपुर न्यायलय में वाद वापसी का शपथ पत्र दाखिल करें। यह समाचार आने के बाद खुफिया एजेंसियों के इशारे पर वाद वापसी का विरोध कुछ लोगों द्वारा नियोजित तरीके से प्रारंभ कर दिया गया है। यह वह लोग हैं जो जंग ऐ आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ थे और आज अमेरिकी साम्राज्यवाद के हित पोषक हैं। जब भी जनता से जुडी हुई बात आती है तो यह लोग व्यवस्था से लाभ लेने के लिए उसकी चापलूसी में लग जाते हैं. खुफिया एजेंसियों के लोग मीडिया में अपने समर्थकों से आतंकवाद के नाम पर की गयी गिरफ्तारियों को सही साबित करने के लिए माहौल बनाने में लग गयी हैं और मीडिया के कुछ लोग बड़ी तेजी से इस मुहीम में लग गए हैं कि केस वापस न होने पाए।
                     गृह सचिव सर्वेश चंद मिश्र ने पत्रकारों को सरकार के इस फैसले से अवगत कराया। गृह सचिव ने बताया कि गोरखपुर के डीएम व एसएसपी से आख्या प्राप्त करने और न्याय विभाग के परामर्श से मुकदमा वापस करने का निर्णय किया गया है। अग्रिम कार्रवाई के संदर्भ में उन्होंने बताया कि सम्बंधित अदालत, डीएम व एसएसपी को इस सिलसिले में न्याय विभाग से पत्र भेजा जायेगा। मुकदमा वापसी की प्रक्रिया पर उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों पर उच्च स्तरीय समिति का फैसला होता है, जिसमे प्रमुख सचिव न्याय और प्रमुख सचिव गृह का परामर्श होता है।बाराबंकी में तारिक की गिरफ्तारी को गलत ढंग से दिखाए जाने और निमेष आयोग की रिपोर्ट के मसले पर उन्होंने स्वीकार किया कि आयोग ने एसटीएफ की कार्रवाई पर संदेह व्यक्त किया है।
 अब सरकार की नियत अगर साफ़ है तोह बाराबंकी, फैजाबाद, लखनऊ में चल रहे मुकदमों को वापस ले लेगी क्यूंकि आर डी निमेष कमीशन ने तारिक व खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी को संदेहस्पद माना है और बरामदगी को भी फर्जी माना है। इस तरह से आर डी एक्स , जिलेटिन राड, डेकोनेटर आदि एस टी एफ के लोग लाये कहाँ से। वैसे उक्त कथित सामग्री किसी न्यायलय के समक्ष पेश नही की गयी है। न्यायलय को यह सूचना दी गयी है कि उक्त विस्फोटक पदार्थ निष्क्रिय करा दिए गए हैं। अब खुफिया एजेंसियों की सारी  बातें  गलत साबित होने पर उनकी प्रतिष्ठा फंसी हुई है कि किसी भी तरह से केस वापसी न होने पाए और अपनी हिकमतमली से न्यायलय में फर्जी मुक़दमे में सजा करा दे। अभी हाल में झारखण्ड में जीतेन्द्र मरांडी को न्यायलय द्वारा फांसी की सजा सुनाई गयी थी किन्तु उच्च नयायालय ने उनको रिहा करने का आदेश पारित कर दिया। निचली अदालतों पर खुफिया एजेंसी व जिला प्रशासन अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सजा कराने का कार्य भी करती है। 

सुमन 

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