मध्यकाल
में नारी होना ही बहुत बड़ी सजा थी | हिन्दू -- मुस्लिम समाज में फिर भी
उनमे से एक ऐसी वीरागना मलिका रजिया बेगम ने अपने साहस -- आत्मबल से उस
काल में यह साबित कर दिया कि नारी की शक्ति किसी पुरुष से कम नही आंकी जा
सकती है |
दिल्ली
का सुलतान इल्तुतमिश , कुतुबुद्दीन ऐबक का योग्तम दास था , ऐबक स्वंय भी सुलतान मुहम्मद गोरी का दास था , सुलतान के दास का दास होने के कारण उसे राजगद्दी पर बैठते समय अनेक समस्यायों , संघर्षो और चुनौतियों का सामना करना पडा था |
इल्तुतमिश ने 26 वर्ष तक सफलता पूर्वक राज किया था , कुतुबुद्दीन ऐबक ने जितने भी भारतीय प्रदेश जीते थे उस ने उन सबको संगठित क्र के शासन सूत्र में पिरो दिया और एक सुदृढ़ साम्राज्य की नीव डाली दी |
सन 1236 के अप्रैल का महीना था , मौसम सुहाना था , अभी वातावरण में ज्यादा गर्मी नही थी , प्रतापी सुलतान इल्तुतमिश दिल्ली के शाही महल में चार महीनों से बीमार पडा हुआ था |
गत दिसम्बर माह में जब वह खोख्रो का दमन करने के लिए हिमालय की ठंठी पहाडियों में भटक रहा था तो उसे वही सर्दी लग गयी थी , जुकाम और बुखार ने उस के बूढ़े शरीर को बुरी तरह जकड़ लिया था , वैद्य , हकीमो ने कितनी ही दवाइया दी लेकिन कोई असर नही हुआ |
सुलतान की दशा दिन --- प्रतिदिन बिगडती ही चली गयी , कुछ समय पहले उस का बड़ा पुत्र महमूद युवावस्था में ही मर गया था , बूढ़े सुलतान को यह चोट रात दिन खलती रहती थी कयोकि उस के बाकी पुत्र नाबालिग थे , हाँ उस की पुत्री रजिया अवश्य समझदार और योग्य थी , रजिया की अभी सत्तरह -- अठारह वर्ष की ही थी , लेकिन उस में एक सुयोग्य राजकुमार और सशक्त उत्तराधिकारी के समस्त गुण विद्यमान थे |
29 अप्रैल , 1236 ई . को सुलतान की दशा अचानक बहुत शोचनीय हो गयी थी | लगता था , मानो उस का अंतिम दिन आ पहुंचा है , एक ओर शाही हकीम सिर झुकाए खड़ा था , दूसरी ओर सुलतान का प्रधान मंत्री , मुशरिफ अल ममालिक विराजमान था , एक ओर ' चालीसी तुर्क '' अमीर खड़े थे , सुलतान ने इन '' चालिसियो '' की एक जमात बना दी थी | हिन्दुस्तान की बड़ी -- बड़ी जागीरे , और प्रशासन में ऊँचे -- ऊँचे पद इन्ही लोगो के हाथो में थे , इस ' चालीसी अमीर ' गुट को सुलतान ने अपने समर्थन के लिए बनाया था | इस में उस ने अपने चुने हुए विश्वस्त साथियो को रखा था , ये '' चालिसिये '' उस के साम्राज्य के आधार स्तम्भ थे |
मरणासन्न सुलतान के बराबर वाले कमरे में उसका परिवार था , जहा उस की बेगमे और बच्चे दम साध कर , चिक से सारा दृश्य देख रहे थे , अपने पिता की यह शोचनीय दशा देख कर रजिया बहुत गंभीर हो
उठी थी , उस की आँखे बार -- बार भर आती थी | सुलतान ने अपने '' चालिसियो '' की ओर देखकर कहा , '' लगता है , अल्लाह के यहाँ से मेरा बुलावा आ गया है , अब मुझे केवल आप लोगो पर भरोसा है , कही ऐसा न हो कि जिस सल्तनत को हम ने खून से सींच कर खड़ा किया है , उस की ईट - ईट बिखर जाये . |चालिसियो में से बदरुद्दीन सुकर नामक एक तुर्क अमीर ने अपनी जमात की ओर से सुलतान को यह आश्वासन दिया , '' हुजुर , हम पर भरोसा रखे , हम लहू की आखरी बूंद तक आप के नमक का हक अदा करेगे , इस सल्तनत और शाही खानदान पर किसी तरह की आंच न आने पाएगी ''
अपने वफादार साथियो से यह आश्वासन पा कर , सुलतान के पीले और मुरझाए मुखं पर संतोष की छाया दिखाई दी . उस ने कापते हाथो से , अपने सिरहाने रखी अपनी वसीयत निकाली और उसे वजीरे आजम , मुशरिफ अल ममालिक के हाथो सौपते हुए कहा , '' वजीरे आजम , इस वसीयत में मैं ने अपनी इच्छा प्रगट कर दी है, मेरी यही ख्वाहिश है कि मेरे बाद मेरी बेटी रजिया हिन्दुस्तान की मलिका बने . ''
'' रजिया ? '' आश्चर्यचकित हो कर वजीरे आजम ने कहा |
''हाँ रजिया , '' सुलतान ने प्रयत्न कर के स्वर में दृढ़ता लाते हुए कहा ,
मेरे सभी बच्चो में रजिया सुयोग्य है , मुझे पूरा भरोसा है कि वह मेरे बाद हिन्दुस्तान की सल्तनत को अच्छी तरह संभाल सकेगी , रजिया , बेटी रजिया , रजिया को बुलाओ , वजीरे आजम '' रजिया पास के कमरे में ही थी , पिता का सन्देश पाते ही सत्तरह -- अठ्ठारह साल की उस तेजस्वी शहजादी ने धीर -- गंभीर कदमो से उस कमरे में प्रवेश किया , उसने अपने मुख पर नकाब या बुर्का नही डाल रखा था , उस का सारा शरीर मोती जैसी आभा से दमकता था | मुंख मंडल को गहरी उदासी ने घेर रखा था , बड़ी -- बड़ी आँखों में करुणा उतर आई थी | चमकता मुख , स्टेज आँखे उदात्त और भव्य व्यक्तित्व , रोम रोम में टपकता हुआ लावण्य -- इन सब विशेषताओं से वह उस भीड़ में अलग ही दिखाई देती थी |
अभी उस का विवाह नही हुआ था , वह किशोरी ही थी | लेकिन उस ने शस्त्र विद्या और राजनीति शास्त्र का अच्छा ज्ञान था वह पिता के साथ राजकाज में हाथबटाती थी | शिकार में भी साथ रहती थी | संकटो से जूझना उस ने सीख लिया था | रजिया धीरे -- धीरे चलकर अपने पिता के पैरो की ओर खड़ी हो गयी , उसकी बड़ी -- बड़ी सतेज आँखे इस समय सजल थी , रजिया की उपस्थिति ने उस उदास वातावरण को कुछ हल्का कर दिया |अपनी बेटी को सामने देखकर सुलतान की आँखों में चमक आ गयी , उसने '' चालिसियो '' को संकेत कर के कहा कि वे उसे पलंग पर बैठा दे |
दो अमीरों ने सुलतान को सहारा दे कर पलंग पर बैठा दिया | सुलतान ने अपनी वाणी में बल ला कर कहा , '' मैं अपने सभी वफादार वजीरो और अमीरों के सामने पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी बेटी रजिया को सल्तनते हिन्द की मलिका मुकर्रर करता हूँ | वह मेरी दौलत और सारी सल्तनत की एक मात्र वारिस है , आज से आप सभी रजिया को ही सुलतान मान कर उसके हुकम को पूरा करे और हर तरह से उस की रक्षा करे , ''
वजीरे आजम ने हिचकते हुए कहा , '' हुजूरे आला , रजिया औरत है , इतनी बड़ी सल्तनत के बोझ को वह अपने नाजुक कंधो पर कैसे उठा सकेगी ? सल्तनतो में कई तरह की मुश्किलात पेश आती है , सल्तनत के बाहर चंगेजखान के लड़ाकू खूंखार मंगोल कबीले देशो को उजाड़ते फिर रहे है ; न जाने हिन्दुस्तान की ओर कब उन का रुख हो जाए , ऐसे नाजुक वक्त में रजिया को तख़्त पर बैठाना कहा तक मुनासिब होगा
जहापनाह ? '' सुलतान इल्तुतमिश ने कड़ी नजरो से वजीर के ओर देखा , उस नजर में घृणा थी ,
सुलतान ने कहा , '' वजीरे आजम , रजिया को मैंने जन्म दिया है , मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि उस में कितनी योग्यता है , उसमे किसी भी नौजवान से अधिक शक्ति है , हथियार चलाने और निशाना लगाने में अच्छे -- अच्छे योद्धा उस का मुकाबला नही कर सकते , राजनीति और शासन प्रबंध में उस की बुद्धि खूब मंजी
हुई है , यदि उसे वफादार साथी मिल गये तो वह अपना और अपने खानदान का नाम इतिहास में जरुर रोशन करेगी , इसीलिए आप सब लोग अपने सुलतान की इस आखरी इच्छा को अवश्य पूरा करे , मेरी रजिया एक दिन बड़ी बनेगी और खूब नाम कमाएगी .
यह कहते -- कहते सुलतान की आँखे भर आई , स्वर काप उठा , उसने प्यार से अपनी होनहार बेटी के सिर पर हाथ फेरा , रजिया अपने पिता की छाती पर सिर रखकर सिसक उठी . वातावरण में गहरी उदासी छा गयी , ''
चालिसियो ' ने कुरआन पाक पर हाथ रख कर कसम खाई कि वे रजिया के प्रति वफादार रहेगे और जी जान से उस की सेवा करते रहेगे , वजीर मुशरिफ अल ममालिक ने भी रजिया को मलिका बनाने की स्वीकृति दे दी .| सुलतान के मुख पर शान्ति छा गयी , धीरे -- धीरे उस की आँखे बन्द होती गयी , सांस रूकती गयी ,
कुछ ही क्षण बाद उस प्रतापी सुलतान का जीवन दीप बुझ गया , रजिया अपने पिता के शव पर पछाड़ खा कर गिर पड़ी और फूट - फूट कर रोने लगी |
सुलतान के मरते ही उसकी बेगमो और बच्चो ने उस कमरे में रोते -- रोते प्रवेश किया , वे लाश को घेर कर विलाप करने लगे , सभी वजीर और अमीर बाहर निकल सभा भवन में इकट्ठे हुए , भविष्य की योजनाये बनने लगी |
न जाने क्यों वे रजिया को सुलताना नही बनाना चाहते थे , संभवत: उन के पुरुष होने का दंभ इस का कारण
हो , पुरुष होकर वे एक औरत का हुकम माने , उसके आगे सिर झुकाए इससे बढ़कर दुसरा अपमान उन के लिए और क्या हो सकता था ? वे भूल गये कि अभी -- अभी मृत सुलतान के सामने वे रजिया के प्रति वफादार रहने और उसे सुलतान बनाने की सौगंध खा कर आ रहे है , उधर सुलतान की आँखे बन्द हुई और इधर इन विशवासघाती कृतघ्न अमीरों ने कुरआन पाक की सौगंध भुला दी |
मध्यकाल में नारी ही बहुत बड़ी सजा थी , हिन्दू --- मुस्लिम दोनों समाज में उसके उपर बंधन ही
बंधन थे | वह पुरुषो की वासना तृप्ति का साधन और उस के लिए बच्चो को जन्म देने वाली एक मशीन मात्र थी उसकी शिक्षा का कोई प्रबंध न था | अपने हरमो में भेड़ -- बकरियों की तरह स्त्रियों की भीड़ इकट्ठी करने वाले पाखंडी पुरुष के अपने दुराचार की कोई सीमा न थी | परन्तु वह स्त्रियों से फिर भी पवित्रता और पतिव्रत धर्म की निष्ठा की आशा करता था | इसलिए शंकालु पुरुष उन्हें घर से बाहर कदम न रखने देता था , बुर्का और घुघट के कठोर बन्धनों में उन्हें कस दिया गया था | ऐसे भयंकर अन्धकार पूर्ण युग में एक स्त्री का राजगद्दी पर बैठना दम्भी पुरुषो की दृष्टि में अनहोनी दुर्घटना तो थी ही , युग -- युग से अधिकार भोगने वाला घमंडी पुरुष भला यह कैसे सह सकता था कि एक औरत उस पर हुक्म चलाए ?सुलतान इल्तुतमिश के अंतिम संस्कार के पश्चात वजीरे आजम ममालिक तथा '' चालीसी '' अमीरों ने रजिया को उत्तराधिकारी पद से वंचित कर के रुकनुद्दीन नामक शहजादे को राजगद्दी पर बैठाया , जिसकी माँ शाह तुरकान कभी शाही महल में नौकरानी थी , पर बाद में अपने हुस्न और नाज नखरो से बेगम बन बैठी थी ,| वह बड़ी ही निष्ठुर और क्रूर औरत थी , साथ ही बड़ी ही महत्वाकाक्षी और अधिकार लोलुप भी ,
सल्तनत की सर्वेसर्वा यही दुष्ट स्त्री बनी हुई थी कयोकि इस का बेटा रुकनुद्दीन बड़ा ही मुर्ख , विलासी और आराम पसन्द नवयुवक था | विदूषक , भाड़ और सारंगी वादकों की संगति में उसे खूब मजा आता था , नई -- नई सुंदरी बालाओं के साथ मौज मस्ती करना उस का मनोरंजन था |
वह शराब के नशे में धुत्त रहता था , अपनी इन वासनाओं की पूर्ति के लिए वह पानी की तरह धन भा देता था , कभी -- कभी वह शराब पी कर हाथी पर चढ़ जाता और दिल्ली के बाजारों व गलियों में सोने के सिक्के बिखेरता चलता था | सुलतान को भोग विलास से वक्त ही नही मिलता था कि वह राज्य का प्रबंध भी देख सके , राज्य तो उस निष्ठुर माँ के हाथ में था , वह तो उसके हाथ की कठपुतली मात्र था |
शाह तुरकान ने अधिकार पाते ही कुछ ऐसा रुख बदला कि उसके अत्याचारों से सारे राज्य में हाहाकार मच गया | वह नौकरानी से रानी बनी थी अत: अपने निम्न विचारों की ग्लानी को धोने के लिए उसने अपनी उच्च विचार रखने वाली सौतो को खूब पीड़ित किया |
इल्तुतुमिश की इन बेगमो को उस ने शाही महल से धक्के दे कर बाहर निकल दिया और उन्हें दिल्ली की गलियों में भीख मांगने के लिए विवश कर दिया , उसने दिगवंत सुलतान के नन्हे से शहजादे कुतुबुद्दीन की आँखे निकलवा ली और उसे कत्ल कर के फिकवा दिया |
बेगम शाह तुरकान के इन घृणित कार्यो से राज्य में भारी आतंक फ़ैल गया , '' चालीसी गुट '' के अमीरों में भी बेचैनी फैली बेगम शाह तुरकान के इन घृणित कार्यो से राज्य में भारी आंतक फ़ैल गया , ' चालीसी गुट '' के अमीरों में भी बेचैनी फैली कयोकि उसका बेटा तो सुलतान बन कर शराब और शबाब के नशे में रात दिन खोया रहता था | और इधर यह क्रूर स्त्री अपने आये दिन के अत्याचारों और अनुचित हस्तक्षेपो से शासन तंत्र को चौपट कर रही थी , सल्तनत के भीतर बहुत अराजकता फ़ैल गयी थी |
कुतुबुद्दीन की हत्या से उत्तजित हो कर उसके भाई अवध के सूबेदार गियासुद्दीन मुहम्मद ने अवध में विद्रोह खड़ा कर दिया और बंगाल से दिल्ली की ओर आते हुए शाही खजाने को लुट लिया |
बदायु में भी विद्रोह भड़क उठा था और बंगाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी , उधर बाहर से साम्राज्य की उत्तर [ पश्चिमी सीमाओं पर भी नया संकट उपस्थित हो गया , चंगेजखान के सेनापति मलिक
शैफुद्दीन ने पंजाब पर हमला कर दिया और मंगोलों के दल सुलतान के दरवाजो तक पहुँच गये थे , पर सौभाग्य से कच्छ के सूबेदार ने उन्हें परास्त कर के सिंध पार धकेल दिया |इस विजय के बाद उत्तर पश्चिमी सुबो के सूबेदारों ने , जो चालीसी गुट में से थे , सुलतान रुकनुद्दीन के विरुद्ध एक मोर्चा बना लिया था , वह इन विद्रोहियों को दबाने के लिए दिल्ली से पंजाब की ओर रवाना हुआ किन्तु उस का मंत्री जुनैदी सेना के एक बड़े भाग के साथ विद्रोही अमीरों से जा मिला , मंत्री के इस विश्वासघात से रुक्नुद्धीन घबरा उठा , उधर दिल्ली वासी ने भी उस की माँ के अत्याचारों से दुखी हो कर विद्रोह कर दिया |
दिल्ली
का सुलतान इल्तुतमिश , कुतुबुद्दीन ऐबक का योग्तम दास था , ऐबक स्वंय भी सुलतान मुहम्मद गोरी का दास था , सुलतान के दास का दास होने के कारण उसे राजगद्दी पर बैठते समय अनेक समस्यायों , संघर्षो और चुनौतियों का सामना करना पडा था |
इल्तुतमिश ने 26 वर्ष तक सफलता पूर्वक राज किया था , कुतुबुद्दीन ऐबक ने जितने भी भारतीय प्रदेश जीते थे उस ने उन सबको संगठित क्र के शासन सूत्र में पिरो दिया और एक सुदृढ़ साम्राज्य की नीव डाली दी |
सन 1236 के अप्रैल का महीना था , मौसम सुहाना था , अभी वातावरण में ज्यादा गर्मी नही थी , प्रतापी सुलतान इल्तुतमिश दिल्ली के शाही महल में चार महीनों से बीमार पडा हुआ था |
गत दिसम्बर माह में जब वह खोख्रो का दमन करने के लिए हिमालय की ठंठी पहाडियों में भटक रहा था तो उसे वही सर्दी लग गयी थी , जुकाम और बुखार ने उस के बूढ़े शरीर को बुरी तरह जकड़ लिया था , वैद्य , हकीमो ने कितनी ही दवाइया दी लेकिन कोई असर नही हुआ |
सुलतान की दशा दिन --- प्रतिदिन बिगडती ही चली गयी , कुछ समय पहले उस का बड़ा पुत्र महमूद युवावस्था में ही मर गया था , बूढ़े सुलतान को यह चोट रात दिन खलती रहती थी कयोकि उस के बाकी पुत्र नाबालिग थे , हाँ उस की पुत्री रजिया अवश्य समझदार और योग्य थी , रजिया की अभी सत्तरह -- अठारह वर्ष की ही थी , लेकिन उस में एक सुयोग्य राजकुमार और सशक्त उत्तराधिकारी के समस्त गुण विद्यमान थे |
29 अप्रैल , 1236 ई . को सुलतान की दशा अचानक बहुत शोचनीय हो गयी थी | लगता था , मानो उस का अंतिम दिन आ पहुंचा है , एक ओर शाही हकीम सिर झुकाए खड़ा था , दूसरी ओर सुलतान का प्रधान मंत्री , मुशरिफ अल ममालिक विराजमान था , एक ओर ' चालीसी तुर्क '' अमीर खड़े थे , सुलतान ने इन '' चालिसियो '' की एक जमात बना दी थी | हिन्दुस्तान की बड़ी -- बड़ी जागीरे , और प्रशासन में ऊँचे -- ऊँचे पद इन्ही लोगो के हाथो में थे , इस ' चालीसी अमीर ' गुट को सुलतान ने अपने समर्थन के लिए बनाया था | इस में उस ने अपने चुने हुए विश्वस्त साथियो को रखा था , ये '' चालिसिये '' उस के साम्राज्य के आधार स्तम्भ थे |
मरणासन्न सुलतान के बराबर वाले कमरे में उसका परिवार था , जहा उस की बेगमे और बच्चे दम साध कर , चिक से सारा दृश्य देख रहे थे , अपने पिता की यह शोचनीय दशा देख कर रजिया बहुत गंभीर हो
उठी थी , उस की आँखे बार -- बार भर आती थी | सुलतान ने अपने '' चालिसियो '' की ओर देखकर कहा , '' लगता है , अल्लाह के यहाँ से मेरा बुलावा आ गया है , अब मुझे केवल आप लोगो पर भरोसा है , कही ऐसा न हो कि जिस सल्तनत को हम ने खून से सींच कर खड़ा किया है , उस की ईट - ईट बिखर जाये . |चालिसियो में से बदरुद्दीन सुकर नामक एक तुर्क अमीर ने अपनी जमात की ओर से सुलतान को यह आश्वासन दिया , '' हुजुर , हम पर भरोसा रखे , हम लहू की आखरी बूंद तक आप के नमक का हक अदा करेगे , इस सल्तनत और शाही खानदान पर किसी तरह की आंच न आने पाएगी ''
अपने वफादार साथियो से यह आश्वासन पा कर , सुलतान के पीले और मुरझाए मुखं पर संतोष की छाया दिखाई दी . उस ने कापते हाथो से , अपने सिरहाने रखी अपनी वसीयत निकाली और उसे वजीरे आजम , मुशरिफ अल ममालिक के हाथो सौपते हुए कहा , '' वजीरे आजम , इस वसीयत में मैं ने अपनी इच्छा प्रगट कर दी है, मेरी यही ख्वाहिश है कि मेरे बाद मेरी बेटी रजिया हिन्दुस्तान की मलिका बने . ''
'' रजिया ? '' आश्चर्यचकित हो कर वजीरे आजम ने कहा |
''हाँ रजिया , '' सुलतान ने प्रयत्न कर के स्वर में दृढ़ता लाते हुए कहा ,
मेरे सभी बच्चो में रजिया सुयोग्य है , मुझे पूरा भरोसा है कि वह मेरे बाद हिन्दुस्तान की सल्तनत को अच्छी तरह संभाल सकेगी , रजिया , बेटी रजिया , रजिया को बुलाओ , वजीरे आजम '' रजिया पास के कमरे में ही थी , पिता का सन्देश पाते ही सत्तरह -- अठ्ठारह साल की उस तेजस्वी शहजादी ने धीर -- गंभीर कदमो से उस कमरे में प्रवेश किया , उसने अपने मुख पर नकाब या बुर्का नही डाल रखा था , उस का सारा शरीर मोती जैसी आभा से दमकता था | मुंख मंडल को गहरी उदासी ने घेर रखा था , बड़ी -- बड़ी आँखों में करुणा उतर आई थी | चमकता मुख , स्टेज आँखे उदात्त और भव्य व्यक्तित्व , रोम रोम में टपकता हुआ लावण्य -- इन सब विशेषताओं से वह उस भीड़ में अलग ही दिखाई देती थी |
अभी उस का विवाह नही हुआ था , वह किशोरी ही थी | लेकिन उस ने शस्त्र विद्या और राजनीति शास्त्र का अच्छा ज्ञान था वह पिता के साथ राजकाज में हाथबटाती थी | शिकार में भी साथ रहती थी | संकटो से जूझना उस ने सीख लिया था | रजिया धीरे -- धीरे चलकर अपने पिता के पैरो की ओर खड़ी हो गयी , उसकी बड़ी -- बड़ी सतेज आँखे इस समय सजल थी , रजिया की उपस्थिति ने उस उदास वातावरण को कुछ हल्का कर दिया |अपनी बेटी को सामने देखकर सुलतान की आँखों में चमक आ गयी , उसने '' चालिसियो '' को संकेत कर के कहा कि वे उसे पलंग पर बैठा दे |
दो अमीरों ने सुलतान को सहारा दे कर पलंग पर बैठा दिया | सुलतान ने अपनी वाणी में बल ला कर कहा , '' मैं अपने सभी वफादार वजीरो और अमीरों के सामने पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी बेटी रजिया को सल्तनते हिन्द की मलिका मुकर्रर करता हूँ | वह मेरी दौलत और सारी सल्तनत की एक मात्र वारिस है , आज से आप सभी रजिया को ही सुलतान मान कर उसके हुकम को पूरा करे और हर तरह से उस की रक्षा करे , ''
वजीरे आजम ने हिचकते हुए कहा , '' हुजूरे आला , रजिया औरत है , इतनी बड़ी सल्तनत के बोझ को वह अपने नाजुक कंधो पर कैसे उठा सकेगी ? सल्तनतो में कई तरह की मुश्किलात पेश आती है , सल्तनत के बाहर चंगेजखान के लड़ाकू खूंखार मंगोल कबीले देशो को उजाड़ते फिर रहे है ; न जाने हिन्दुस्तान की ओर कब उन का रुख हो जाए , ऐसे नाजुक वक्त में रजिया को तख़्त पर बैठाना कहा तक मुनासिब होगा
जहापनाह ? '' सुलतान इल्तुतमिश ने कड़ी नजरो से वजीर के ओर देखा , उस नजर में घृणा थी ,
सुलतान ने कहा , '' वजीरे आजम , रजिया को मैंने जन्म दिया है , मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि उस में कितनी योग्यता है , उसमे किसी भी नौजवान से अधिक शक्ति है , हथियार चलाने और निशाना लगाने में अच्छे -- अच्छे योद्धा उस का मुकाबला नही कर सकते , राजनीति और शासन प्रबंध में उस की बुद्धि खूब मंजी
हुई है , यदि उसे वफादार साथी मिल गये तो वह अपना और अपने खानदान का नाम इतिहास में जरुर रोशन करेगी , इसीलिए आप सब लोग अपने सुलतान की इस आखरी इच्छा को अवश्य पूरा करे , मेरी रजिया एक दिन बड़ी बनेगी और खूब नाम कमाएगी .
यह कहते -- कहते सुलतान की आँखे भर आई , स्वर काप उठा , उसने प्यार से अपनी होनहार बेटी के सिर पर हाथ फेरा , रजिया अपने पिता की छाती पर सिर रखकर सिसक उठी . वातावरण में गहरी उदासी छा गयी , ''
चालिसियो ' ने कुरआन पाक पर हाथ रख कर कसम खाई कि वे रजिया के प्रति वफादार रहेगे और जी जान से उस की सेवा करते रहेगे , वजीर मुशरिफ अल ममालिक ने भी रजिया को मलिका बनाने की स्वीकृति दे दी .| सुलतान के मुख पर शान्ति छा गयी , धीरे -- धीरे उस की आँखे बन्द होती गयी , सांस रूकती गयी ,
कुछ ही क्षण बाद उस प्रतापी सुलतान का जीवन दीप बुझ गया , रजिया अपने पिता के शव पर पछाड़ खा कर गिर पड़ी और फूट - फूट कर रोने लगी |
सुलतान के मरते ही उसकी बेगमो और बच्चो ने उस कमरे में रोते -- रोते प्रवेश किया , वे लाश को घेर कर विलाप करने लगे , सभी वजीर और अमीर बाहर निकल सभा भवन में इकट्ठे हुए , भविष्य की योजनाये बनने लगी |
न जाने क्यों वे रजिया को सुलताना नही बनाना चाहते थे , संभवत: उन के पुरुष होने का दंभ इस का कारण
हो , पुरुष होकर वे एक औरत का हुकम माने , उसके आगे सिर झुकाए इससे बढ़कर दुसरा अपमान उन के लिए और क्या हो सकता था ? वे भूल गये कि अभी -- अभी मृत सुलतान के सामने वे रजिया के प्रति वफादार रहने और उसे सुलतान बनाने की सौगंध खा कर आ रहे है , उधर सुलतान की आँखे बन्द हुई और इधर इन विशवासघाती कृतघ्न अमीरों ने कुरआन पाक की सौगंध भुला दी |
मध्यकाल में नारी ही बहुत बड़ी सजा थी , हिन्दू --- मुस्लिम दोनों समाज में उसके उपर बंधन ही
बंधन थे | वह पुरुषो की वासना तृप्ति का साधन और उस के लिए बच्चो को जन्म देने वाली एक मशीन मात्र थी उसकी शिक्षा का कोई प्रबंध न था | अपने हरमो में भेड़ -- बकरियों की तरह स्त्रियों की भीड़ इकट्ठी करने वाले पाखंडी पुरुष के अपने दुराचार की कोई सीमा न थी | परन्तु वह स्त्रियों से फिर भी पवित्रता और पतिव्रत धर्म की निष्ठा की आशा करता था | इसलिए शंकालु पुरुष उन्हें घर से बाहर कदम न रखने देता था , बुर्का और घुघट के कठोर बन्धनों में उन्हें कस दिया गया था | ऐसे भयंकर अन्धकार पूर्ण युग में एक स्त्री का राजगद्दी पर बैठना दम्भी पुरुषो की दृष्टि में अनहोनी दुर्घटना तो थी ही , युग -- युग से अधिकार भोगने वाला घमंडी पुरुष भला यह कैसे सह सकता था कि एक औरत उस पर हुक्म चलाए ?सुलतान इल्तुतमिश के अंतिम संस्कार के पश्चात वजीरे आजम ममालिक तथा '' चालीसी '' अमीरों ने रजिया को उत्तराधिकारी पद से वंचित कर के रुकनुद्दीन नामक शहजादे को राजगद्दी पर बैठाया , जिसकी माँ शाह तुरकान कभी शाही महल में नौकरानी थी , पर बाद में अपने हुस्न और नाज नखरो से बेगम बन बैठी थी ,| वह बड़ी ही निष्ठुर और क्रूर औरत थी , साथ ही बड़ी ही महत्वाकाक्षी और अधिकार लोलुप भी ,
सल्तनत की सर्वेसर्वा यही दुष्ट स्त्री बनी हुई थी कयोकि इस का बेटा रुकनुद्दीन बड़ा ही मुर्ख , विलासी और आराम पसन्द नवयुवक था | विदूषक , भाड़ और सारंगी वादकों की संगति में उसे खूब मजा आता था , नई -- नई सुंदरी बालाओं के साथ मौज मस्ती करना उस का मनोरंजन था |
वह शराब के नशे में धुत्त रहता था , अपनी इन वासनाओं की पूर्ति के लिए वह पानी की तरह धन भा देता था , कभी -- कभी वह शराब पी कर हाथी पर चढ़ जाता और दिल्ली के बाजारों व गलियों में सोने के सिक्के बिखेरता चलता था | सुलतान को भोग विलास से वक्त ही नही मिलता था कि वह राज्य का प्रबंध भी देख सके , राज्य तो उस निष्ठुर माँ के हाथ में था , वह तो उसके हाथ की कठपुतली मात्र था |
शाह तुरकान ने अधिकार पाते ही कुछ ऐसा रुख बदला कि उसके अत्याचारों से सारे राज्य में हाहाकार मच गया | वह नौकरानी से रानी बनी थी अत: अपने निम्न विचारों की ग्लानी को धोने के लिए उसने अपनी उच्च विचार रखने वाली सौतो को खूब पीड़ित किया |
इल्तुतुमिश की इन बेगमो को उस ने शाही महल से धक्के दे कर बाहर निकल दिया और उन्हें दिल्ली की गलियों में भीख मांगने के लिए विवश कर दिया , उसने दिगवंत सुलतान के नन्हे से शहजादे कुतुबुद्दीन की आँखे निकलवा ली और उसे कत्ल कर के फिकवा दिया |
बेगम शाह तुरकान के इन घृणित कार्यो से राज्य में भारी आतंक फ़ैल गया , '' चालीसी गुट '' के अमीरों में भी बेचैनी फैली बेगम शाह तुरकान के इन घृणित कार्यो से राज्य में भारी आंतक फ़ैल गया , ' चालीसी गुट '' के अमीरों में भी बेचैनी फैली कयोकि उसका बेटा तो सुलतान बन कर शराब और शबाब के नशे में रात दिन खोया रहता था | और इधर यह क्रूर स्त्री अपने आये दिन के अत्याचारों और अनुचित हस्तक्षेपो से शासन तंत्र को चौपट कर रही थी , सल्तनत के भीतर बहुत अराजकता फ़ैल गयी थी |
कुतुबुद्दीन की हत्या से उत्तजित हो कर उसके भाई अवध के सूबेदार गियासुद्दीन मुहम्मद ने अवध में विद्रोह खड़ा कर दिया और बंगाल से दिल्ली की ओर आते हुए शाही खजाने को लुट लिया |
बदायु में भी विद्रोह भड़क उठा था और बंगाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी , उधर बाहर से साम्राज्य की उत्तर [ पश्चिमी सीमाओं पर भी नया संकट उपस्थित हो गया , चंगेजखान के सेनापति मलिक
शैफुद्दीन ने पंजाब पर हमला कर दिया और मंगोलों के दल सुलतान के दरवाजो तक पहुँच गये थे , पर सौभाग्य से कच्छ के सूबेदार ने उन्हें परास्त कर के सिंध पार धकेल दिया |इस विजय के बाद उत्तर पश्चिमी सुबो के सूबेदारों ने , जो चालीसी गुट में से थे , सुलतान रुकनुद्दीन के विरुद्ध एक मोर्चा बना लिया था , वह इन विद्रोहियों को दबाने के लिए दिल्ली से पंजाब की ओर रवाना हुआ किन्तु उस का मंत्री जुनैदी सेना के एक बड़े भाग के साथ विद्रोही अमीरों से जा मिला , मंत्री के इस विश्वासघात से रुक्नुद्धीन घबरा उठा , उधर दिल्ली वासी ने भी उस की माँ के अत्याचारों से दुखी हो कर विद्रोह कर दिया |
निष्ठुर
बेगम शाह तुरकान ने इल्तुतमिश की लाडली बेटी रजिया की हत्या का षड्यंत्र
रचा कयोकि रजिया वास्तव में राज्य की सच्ची उत्तराधिकारिणी थी , साथ ही वह
बहुत वीर और गुणवती भी थी | इसलिए प्रजा भी उसे बहुत चाहती थी |
शाह तुरकान ने रजिया के क़त्ल के लिए जो हत्यारे भेजे , वे अपने काम में सफल न हो सके कयोकि रजिया को पहले ही इस षड्यंत्र की गंध लग चुकी थी | इसलिए वह अपने शुभ चिंतको के बीच एक गुप्त स्थान पर छिप गयी थी |
दिल्ली वासी को जब इस षड्यंत्र और रजिया के पलायन की खबर लगी तो उन का धैर्य जाता रहा , नगर वासी क्रुद्ध हो उठे , उन्होंने शाही महल घेर लिया और बेगम शाह तुरकान को बंदी बना लिया |
सुलतान रुकनुद्दीन को जब दिल्ली वासी के विद्रोह और अपनी माँ के बन्दी होने का समाचार मिला तो वह तुरंत राजधानी लौटा , उसकी आधी सेना को वजीर जुनैदी अपने साथ बहका कर ले गया था और विद्रोही अमीरों से मिल गया था ; शेष सेना ज्यो ही वह दिल्ली में घुसा त्यों ही वह सेना भी उसे छोड़ कर दिल्ली वासियों की ओर चली गयी और रजिया का समर्थन करने लगी |
अब तो रुकनुद्दीन अकेला पड़ गया , वह घबरा कर किलोखड़ी में जा छिपा , इन '' चालीसी ' तुर्क अमीरों ने माँ बेटे को कैद कर लिया और 9 नवमबर 1236 ई , में शहजादी रजिया को राजगद्दी पर बैठा दिया और इस तरह सुलतान की अंतिम इच्छा पूरी की |
लेकिन राजगद्दी पर बैठते समय रजिया के चारो ओर समस्याए मुंह बाए खड़ी थी , साम्राज्य में चारो ओर अराजकता और अव्यवस्था फैली हुई थी , वजीर विश्वासघात पर उतारू थे | अधिकाँश '' चालीसी '' अमीर उस की जड़ काटने के लिए तैयार थे |
रजिया को दिल्ली के तख्त से उखाड़ने के लिए वजीर मुहम्मद जुनैदी तथा मुल्तान , लाहौर , हांसी और बदायु के सूबेदार अपनी -- अपनी सेनाये लेकर दिल्ली पर चढ़ आये | परिस्थिति बड़ी ही विकट थी , रजिया ने अपनी सहायता के लिए अवध के सूबेदार नुसरतुद्दीन तयारसी को बुलाया , वह अभी गंगा पार भी नही कर पाया था कि '' चालीसी ' तुर्क अमीरी ने उस पर हमला कर के उसे मार डाला |
इस तरह रजिया का अंतिम सहारा भी जाता रहा , फिर भी रजिया सुल्ताना ने धैर्य और साहस न खोया , वह अपनी छोटी सी सेना लेकर राजधानी से बाहर निकली और विद्रोही अमीरों के सामने यमुना किनारे मोर्चा जमा लिया |
शत्रु की सेना अधिक थी , इसीलिए रजिया ने कूटनीति से काम लिया , उसने बदायु के सूबेदार इजुददीन जानी और मुल्तान के सूबेदार अयाज के पास अपने गुप्त निमत्रण भेजे कि इस दुनिया में अकेली रजिया को केवल उन्ही के बांहों का सहारा चाहिए , वह अपने इन वफादार अमीरों का स्वागत शाही महल में करना चाहती है न कि युद्ध क्षेत्र में , वह उनसे मिलने के लिए बेचैन है और उनके लिए पलके बिछाए बैठी है |
रजिया जैसी सुंदरी मलिका किसी को प्रेम निमंत्रण दे और वह न पसीजे , ऐसा भला कैसे संभव होता ? इसलिए इन दोनों प्रबल सूबेदारों ने रजिया की वफादारी का प्रेम निमंत्रण झटपट स्वीकार कर लिया और उस से मिलने के लिए समय माँगा | रजिया ने मुल्तान और बदायु के सूबेदारों से मिले वफादारी के पत्रों को को विद्रोही अमीरों की छावनी में खूब प्रचारित करवाया जिसे उनके संघ में अविश्वास और फूट की भावना पैदा हो गयी , उन में इतनी घबराहट फैली कि हांसी का सूबेदार शैफुद्दीन कुजी , लाहौर का सूबेदार अलाउद्दीन जानी तथा वजीरे आजम जुनैदी -- ये तीनो घोड़ो पर बैठकर निकल भागे |
रजिया को ज्यो ही इन विश्वासघातियो के पलायन का समाचार मिला , उसने तुरंत उनके पीछे अपने घुड़सवार दौडाए , घुड़सवारो ने तेजी से उनका पीछा किया और कुजी तथा जानी को रास्ते में ही मार डाला , लेकिन जुनैदी बच कर पहाड़ो में जा छिपा और वही भूखा प्यासा भटक कर मर गया |
अपने शत्रुओ का इस प्रकार से आधार तोड़कर रजिया ने दृढ़ता से अपने पैर जमाए औए शासनतंत्र को सुसंगठित किया , बंगाल और सिंध जैसे दूरवर्ती प्रदेशो में भी अनुकूल व्यवस्था की जिससे ब्रम्हपुत्र से ले कर देवल तक सभी प्रदेशो में शान्ति चा गयी | उसने सभी सुबो में अपने विश्वस्त सरदार और सूबेदार नियुक्त किये , अपनी शक्ति , कुशलता राजनीतिक निपुणता और प्रतिभा के बल पर रजिया ने राज्य को स्थिरता प्रदान की , सभी लोग उसके गुणों की प्रशंसा करते न अघाते थे |रजिया में एक श्रेष्ठ शासक के सभी गुण विद्यमान थे | उसमे केवल एक ही अवगुण था कि वह स्त्री थी , उस भयंकर मध्यकालीन राजनीति में एक स्त्री के लिए कोई स्थान न था , लेकिन रजिया किसी और ही धातु की बनी हुई थी , उसने बुर्का एक ओर उठा कर रख दिया , वह पुरुष वेश धारण कर के दरबार लगाती थी , एक योद्धा की तरह हथियारों से सुसज्जित होकर , घोड़े पर सवार होकर वह अपनी सेनाओं का निरीक्षण करती थी | रजिया का यह शाही रॉब और चमक दमक '' चालीसी '' अमीरों को जरा भी नही सुहाता था , पर रजिया को इन ईर्ष्यालु मर्दों की जरा भी प्रवाह नही थी , तुर्क अमीरों की द्वेषाग्नि पर घी की तरह एक घटना ने भी काम किया |
रजिया ने अबीसीनिया के एक हब्शी युवक जलालुद्दीन याकुत को शाही घुडसाल का नायक बना दिया , जब कभी रजिया दरबार में जाने , छावनी में निरीक्षण करने अथवा शिकार खेलने के लिए जाते समय घोड़े पर सवार होती तो यही अफ़्रीकी युवक याकुत उसे अपनी बलिष्ठ बाहों में उठाकर घोड़े की पीठ पर सवार करता था , इसी तरह वही उसे अपनी बाहों में उठाकर नीचे उतारता था |
अभिमानी तुर्क अमीर अपनी सुल्ताना को एक हब्शी की बाहों में उतरते -- चढ़ते देख इर्ष्या व क्रोध से भभक उठते , उनका वश चलता , तो वे याकुत को कच्चा ही चबा जाते पर रजिया के भय से विवश थे | उन्होंने रजिया को बदनाम करने के लिए याकुत के साथ उसका नाम जोड़ना शुरू कर दिया , लेकिन उस युग के इतिहासकारों को रजिया के इस काम में प्रेम की गंध दिखाई नही दी थी , यदि कोई ऐसी वैसी बात होती तो वे इसका उल्लेख अवश्य करते |
शाह तुरकान ने रजिया के क़त्ल के लिए जो हत्यारे भेजे , वे अपने काम में सफल न हो सके कयोकि रजिया को पहले ही इस षड्यंत्र की गंध लग चुकी थी | इसलिए वह अपने शुभ चिंतको के बीच एक गुप्त स्थान पर छिप गयी थी |
दिल्ली वासी को जब इस षड्यंत्र और रजिया के पलायन की खबर लगी तो उन का धैर्य जाता रहा , नगर वासी क्रुद्ध हो उठे , उन्होंने शाही महल घेर लिया और बेगम शाह तुरकान को बंदी बना लिया |
सुलतान रुकनुद्दीन को जब दिल्ली वासी के विद्रोह और अपनी माँ के बन्दी होने का समाचार मिला तो वह तुरंत राजधानी लौटा , उसकी आधी सेना को वजीर जुनैदी अपने साथ बहका कर ले गया था और विद्रोही अमीरों से मिल गया था ; शेष सेना ज्यो ही वह दिल्ली में घुसा त्यों ही वह सेना भी उसे छोड़ कर दिल्ली वासियों की ओर चली गयी और रजिया का समर्थन करने लगी |
अब तो रुकनुद्दीन अकेला पड़ गया , वह घबरा कर किलोखड़ी में जा छिपा , इन '' चालीसी ' तुर्क अमीरों ने माँ बेटे को कैद कर लिया और 9 नवमबर 1236 ई , में शहजादी रजिया को राजगद्दी पर बैठा दिया और इस तरह सुलतान की अंतिम इच्छा पूरी की |
लेकिन राजगद्दी पर बैठते समय रजिया के चारो ओर समस्याए मुंह बाए खड़ी थी , साम्राज्य में चारो ओर अराजकता और अव्यवस्था फैली हुई थी , वजीर विश्वासघात पर उतारू थे | अधिकाँश '' चालीसी '' अमीर उस की जड़ काटने के लिए तैयार थे |
रजिया को दिल्ली के तख्त से उखाड़ने के लिए वजीर मुहम्मद जुनैदी तथा मुल्तान , लाहौर , हांसी और बदायु के सूबेदार अपनी -- अपनी सेनाये लेकर दिल्ली पर चढ़ आये | परिस्थिति बड़ी ही विकट थी , रजिया ने अपनी सहायता के लिए अवध के सूबेदार नुसरतुद्दीन तयारसी को बुलाया , वह अभी गंगा पार भी नही कर पाया था कि '' चालीसी ' तुर्क अमीरी ने उस पर हमला कर के उसे मार डाला |
इस तरह रजिया का अंतिम सहारा भी जाता रहा , फिर भी रजिया सुल्ताना ने धैर्य और साहस न खोया , वह अपनी छोटी सी सेना लेकर राजधानी से बाहर निकली और विद्रोही अमीरों के सामने यमुना किनारे मोर्चा जमा लिया |
शत्रु की सेना अधिक थी , इसीलिए रजिया ने कूटनीति से काम लिया , उसने बदायु के सूबेदार इजुददीन जानी और मुल्तान के सूबेदार अयाज के पास अपने गुप्त निमत्रण भेजे कि इस दुनिया में अकेली रजिया को केवल उन्ही के बांहों का सहारा चाहिए , वह अपने इन वफादार अमीरों का स्वागत शाही महल में करना चाहती है न कि युद्ध क्षेत्र में , वह उनसे मिलने के लिए बेचैन है और उनके लिए पलके बिछाए बैठी है |
रजिया जैसी सुंदरी मलिका किसी को प्रेम निमंत्रण दे और वह न पसीजे , ऐसा भला कैसे संभव होता ? इसलिए इन दोनों प्रबल सूबेदारों ने रजिया की वफादारी का प्रेम निमंत्रण झटपट स्वीकार कर लिया और उस से मिलने के लिए समय माँगा | रजिया ने मुल्तान और बदायु के सूबेदारों से मिले वफादारी के पत्रों को को विद्रोही अमीरों की छावनी में खूब प्रचारित करवाया जिसे उनके संघ में अविश्वास और फूट की भावना पैदा हो गयी , उन में इतनी घबराहट फैली कि हांसी का सूबेदार शैफुद्दीन कुजी , लाहौर का सूबेदार अलाउद्दीन जानी तथा वजीरे आजम जुनैदी -- ये तीनो घोड़ो पर बैठकर निकल भागे |
रजिया को ज्यो ही इन विश्वासघातियो के पलायन का समाचार मिला , उसने तुरंत उनके पीछे अपने घुड़सवार दौडाए , घुड़सवारो ने तेजी से उनका पीछा किया और कुजी तथा जानी को रास्ते में ही मार डाला , लेकिन जुनैदी बच कर पहाड़ो में जा छिपा और वही भूखा प्यासा भटक कर मर गया |
अपने शत्रुओ का इस प्रकार से आधार तोड़कर रजिया ने दृढ़ता से अपने पैर जमाए औए शासनतंत्र को सुसंगठित किया , बंगाल और सिंध जैसे दूरवर्ती प्रदेशो में भी अनुकूल व्यवस्था की जिससे ब्रम्हपुत्र से ले कर देवल तक सभी प्रदेशो में शान्ति चा गयी | उसने सभी सुबो में अपने विश्वस्त सरदार और सूबेदार नियुक्त किये , अपनी शक्ति , कुशलता राजनीतिक निपुणता और प्रतिभा के बल पर रजिया ने राज्य को स्थिरता प्रदान की , सभी लोग उसके गुणों की प्रशंसा करते न अघाते थे |रजिया में एक श्रेष्ठ शासक के सभी गुण विद्यमान थे | उसमे केवल एक ही अवगुण था कि वह स्त्री थी , उस भयंकर मध्यकालीन राजनीति में एक स्त्री के लिए कोई स्थान न था , लेकिन रजिया किसी और ही धातु की बनी हुई थी , उसने बुर्का एक ओर उठा कर रख दिया , वह पुरुष वेश धारण कर के दरबार लगाती थी , एक योद्धा की तरह हथियारों से सुसज्जित होकर , घोड़े पर सवार होकर वह अपनी सेनाओं का निरीक्षण करती थी | रजिया का यह शाही रॉब और चमक दमक '' चालीसी '' अमीरों को जरा भी नही सुहाता था , पर रजिया को इन ईर्ष्यालु मर्दों की जरा भी प्रवाह नही थी , तुर्क अमीरों की द्वेषाग्नि पर घी की तरह एक घटना ने भी काम किया |
रजिया ने अबीसीनिया के एक हब्शी युवक जलालुद्दीन याकुत को शाही घुडसाल का नायक बना दिया , जब कभी रजिया दरबार में जाने , छावनी में निरीक्षण करने अथवा शिकार खेलने के लिए जाते समय घोड़े पर सवार होती तो यही अफ़्रीकी युवक याकुत उसे अपनी बलिष्ठ बाहों में उठाकर घोड़े की पीठ पर सवार करता था , इसी तरह वही उसे अपनी बाहों में उठाकर नीचे उतारता था |
अभिमानी तुर्क अमीर अपनी सुल्ताना को एक हब्शी की बाहों में उतरते -- चढ़ते देख इर्ष्या व क्रोध से भभक उठते , उनका वश चलता , तो वे याकुत को कच्चा ही चबा जाते पर रजिया के भय से विवश थे | उन्होंने रजिया को बदनाम करने के लिए याकुत के साथ उसका नाम जोड़ना शुरू कर दिया , लेकिन उस युग के इतिहासकारों को रजिया के इस काम में प्रेम की गंध दिखाई नही दी थी , यदि कोई ऐसी वैसी बात होती तो वे इसका उल्लेख अवश्य करते |
रजिया इन कृत्घन,
विश्वासघाती अमीरों के मन की कुढ़न को जानती थी , उसे इन को जलाने और
चिढाने में बहुत मजा आता था | अत: उस अफ़्रीकी युवक की बाहों का सहारा लेकर
इन तुर्क अमीरों के अभिमान पर निरंतर चोट करती रहती , वह एक ओर धीर गंभीर ,
कुशल और प्रवीण शासिका थी तो दूसरी ओर वह एक चुलबुली अल्हड युवती भी थी
जिसे इन घमंडी मर्दों के मिथ्या गर्व को खंडित करने में आनद आता था |
याकुत के रजिया सुलतान के विशेष कृपापात्र बन जाने का समाचार सुनकर सबसे ज्यादा धक्का पंजाब और मुल्तान के सूबेदार अयाज को लगा , अयाज भी रजिया के रूप - यौवन का पुजारी था | उसे आशा थी कि हिन्द की मलिका रजिया के प्यार को वह एक न एक दिन अवश्य पा लेगा पर बीच में यह हब्शी याकुत न जाने कहा से आ टपका | उसे अपनी कल्पनाओं का सुनहरा महल ढहता प्रतीत होने लगा , निराश हो कर अयाज ने पंजाब में विद्रोह खड़ा कर दिया |
यदि रजिया चाहती तो अयाज को उसी समय ठिकाने लगा सकती थी जब उसने राजगद्दी संभालते समय दूसरे कई विद्रोही अमीरों को ठिकाने लगाया था , लेकिन इस के साथ उसने दया का व्यवहार किया था जिसका बदला वह विद्रोह से दे रहा था |
रजिया को इस बात का पता भी न था कि अयाज ने अपने मन में उसके प्रति मुहब्बत का रोग पाल रखा है , इस विद्रोही सूबेदार को दबाने के लिए रजिया दिल्ली से सेना लेकर पंजाब की ओर बढ़ी |
उस तेजस्वी साम्राज्ञी रजिया के पास आते ही अयाज का सारा साहस , बल , पराक्रम और विद्रोह पानी की तरह बह गया , उसने बिना युद्ध किये ही रजिया के आगे आत्मसमर्पण कर दिया |
रजिया ने दयावश इस कृत्घन अमीर के प्राण तो नही लिए पर उससे पंजाब और मुल्तान की सुबेदारी छीन ली और उसे सिंध पार खदेड़ दिया , यह दिसम्बर 1239 ई की घटना है |
विद्रोहियों को ठिकाने लगा कर रजिया 15 मार्च 1240 ई को दिल्ली वापस लौटी लेकिन ख़ास दिल्ली में भी '' चालीसी '' गुट के तुर्क अमीरों ने उस के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया ,| शाही महल के प्रधान अधिकारी इख्तेयारुद्दीन ऐतिगीन को याकुत के बढ़ते हुए प्रभाव और अधिकार से बहुत इर्ष्या हो गयी थी , उसने अल्तुनिया नामक सशक्त सरदार के साथ मिलकर याकुत को क़त्ल करने का षड्यंत्र रचा |
उस समय सुलतान रजिया की सेना भटिंडा के ओर गयी थी अत: विद्रोहियों ने इस मौके का पूरा -- पूरा लाभ लाभ उठाया और 3 अप्रैल 1240 को अचानक शाही महल पर हमला कर दिया , याकुत ने चुने हुए सवारों के साथ इन विश्वासघातियो का सामना किया , लेकिन उसकी एक न चली , विद्रोहियों ने उसे कत्ल कर दिया और महल के भीतर जा कर रजिया को पकड़कर अल्तुनिया को सौप दिया |
अल्तुनिया सरहिंद का सूबेदार था , उसने रजिया को अपने किले के भीतर कैदखाने में डाल दिया , विद्रोहियों ने रजिया के सौतेले भाई बहराम को राजगद्दी पर बैठकर सुलतान घोषित किया | बहराम नाबालिग था , | इसलिए ऐतिगीन उसका संरक्षक बन कर राज प्रबंध देखने लगा , लेकिन शहजादा बहराम जल्दी ही अपने सरक्षक की मनमानी से तंग आ गया और कुछ दिन बाद 30 जुलाई को दो तुर्कों द्वारा ऐतिगीन को मरवा डाला उसका मन्त्री घायल होकर भाग निकला , शहजादे ने बदरूद्दीन सुकर को अपना सरंक्षक नियुक्त किया |
इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए अपने विश्वासपात्र चालीस व्यक्तियों को '' अमीर '' बनाया था | इन अमीरों के ठाठ ही निराले थे | इनको बड़ी - से बड़ी जागीरे मिली हुई थी कुछ प्रान्तों के सूबेदार भी थे , कुछ के हाथो में बड़ी -- बड़ी सेनाये थी | इनका वैभव सुलतान से किसी भी तरह कम न था , उस पर भी ये लोग लुट खसोट से बाज न आते थे |
इन अमीरों में परस्पर इर्ष्या द्वेष भी बहुत था , ये सभी स्वार्थी , घमंडी , निर्दयी विश्वासघाती और सत्ता लोलुप थे | इल्तुतमिश के साम्राज्य और परिवार को इन दुष्ट '' चालिसियो '' ने नष्ट कर दिया , उस कि संतान का खून बहाया और रजिया जैसी बुद्धिमती सुल्ताना को दर - दर की ठोकरे खाने को विवश कर दिया , धन और सत्ता के लोभ में पागल होकर विचरने वाले इन भयानक मगरमच्छो ने समाज और सल्तनत के शांत सरोवर में हलचल मचा दी |
रजिया अत्यंत साहसी और धैर्यवती थी , सरहिंद के सूबेदार की कैद में वह बड़े धैर्य से विपत्ति के दिन काट रही थी | सूबेदार अल्तुनिया कभी -- कभी कैदखाने में रजिया के खैर खबर लेने चला आता था | रजिया के मुख पर अब भी राजसी तेज विद्यमान था | इस विपत्ति में भी शाही रॉब उसके रोम रोम से टपकता था , उसका उमड़ता यौवन किसी भी पुरुष को अपना गुलाम बनाने में समर्थ था |
अल्तुनिया दिल्ली के घटनाओं से सतुष्ट नही था '' चालीसी '' तुर्क अमीरों ने उसे अपना अगुआ बना कर बेचारी रजिया को सिंहासन से हटा दिया था , | याकुत को मरवा दिया था लेकिन सभी ऊँचे -- ऊँचे पद और बड़ी बड़ी जागीरो की बंदर बाट में उसे अलग कर दिया था , इससे उसे बड़ा दुःख हुआ और उसे रजिया से सहानुभूति भी हो गयी थी | उसने कैदखाने में रजिया की सुविधा बढ़ा दी |
चतुर रजिया ने इन बढती हुई सुविधाओं और सूबेदार के मुख पर बदलते भावो को देखकर ताड़ लिया कि अल्तुनिया उससे मिलने के लिए कैदखाने में आया तो रजिया ने मुस्कुरा कर पूछ ही लिया , '' सूबेदार साहब , कुछ दिनों से बहुत परेशान नजर आने लगे है , लगता ही , दिल्ली की सारी जिम्मेदारी सुलतान और उसके वजीरे आजम ने आप के नाजुक कंधो पर डाल रखी है ' |
अल्तुनिया ने इस व्यंग का कोई उत्तर नही दिया , वह सुनी आँखों से इस परम सुन्दरी , साहसी वीरागना को अपलक देखता रहा जिसने चार वर्ष तक बड़ी होशियारी से हिन्दुस्तान की इतनी बड़ी सल्तनत को संभाले रखा था | लेकिन उस जैसे कृतघ्न और विश्वासघाती लोगो के कारण ही वह आज कैदखाने में पड़ी कष्ट पा रही है , उसने ठंठी सांस भर कर कहा , '' बेगम साहिबा , क्या दिल्ली भी सचमुच कोई भुलाने लायक शहर है ' ?
रजिया फुंकार उठी , ' क्या कहा बेगम साहिबा ? किसी की बदकिस्मती का इस तरह मजाक नही उड़ाना चाहिए , सूबेदार साहब , बेगमे शाही महलो में ही रहती है , कैदखाने में नही सडती , मुझे रजिया ही कहो , ''
अल्तुनिया और अधिक न सह सका , इस फटकार से उसकी आँखों में आँसू आ गये , वह उस तेजस्वनी मलिका के आगे घुटनों के बल झुक गया और भरे हुए कंठ से बोला , '' खुदा ही जानता है , बेगम साहिबा , कि मुझे अपने किये पर कितना पछतावा है , मैं बहुत बड़े धोखे का शिकार हुआ हूँ , अल्लाह की कसम , मैं जब तक तुम्हे वापस दिल्ली के तख्त पर बैठा न देख लूंगा , चैन से न बैठूंगा , ''
अल्तुनिया की आवाज में दृढ़ता थी , उसके बहते हुए आँसू इस सच्चाई की गवाही दे रहे थे |
रजिया का नारी हृदय विचलित हो उठा , उसने भरे हुए दिल से कहा , '' सारी दुनिया जानती है सूबेदार साहब , कि अब्बा हुजुर ने मरते समय सब के सामने मुझे सल्तनते हिन्द वारिस बनाया था , लेकिन इन विश्वासघाती लोगो ने मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच कर मुझे तख्त से कैदखाने की कोठरी में पहुंचा दिया | यद्दपि मुझ से जहा तक हो सका पूरी होशियारी से मैंने राज्य की व्यवस्था की थी | मुझे तिनके का भी सहारा मिल जाए तो मैं इन विश्वासघातियो को उनकी करनी का मजा चखा दूँ , इल्तुतमिश की बेटी रजिया के जीते जी कोई दूसरा दिल्ली के तख्त पर नही बैठ सकता , '' |
रजिया ने आगे बढ़कर अल्तुनिया के आँसू पोछे , सूबेदार इस सौभाग्य पर पुलकित हो उठा , उसने कमर से अपनी तलवार खोल कर रजिया के कदमो में रख दी और भावावेश में बोला '' मैं मलिका -ए -हिन्द का अदना सा गुलाम हूँ , जो भी हुकम मिलेगा जान की बाजी लगा कर पूरा करूंगा '' |
रजिया ने तलवार उठाकर उसकी कमर में बाँध दी और कापती आवाज में कहा '' सूबेदार साहब , आप मेरे गुलाम नही मालिक है , अल्लाह की यही मर्जी मालुम होती है , इस तलवार को अपने कमर में संभालिये कयोकि अभी दुश्मनों से बदला लेना बाकी है , यह नाचीज रजिया अज से आपकी है , सिर्फ आपकी .... '' कहते -- कहते उसने अपना सिर अल्तुनिया के विशाल वक्ष पर टिका दिया |
सूबेदार अल्तुनिया ने आज सब कुछ पा लिया |
अगले दिन रजिया के साथ उसका निकाह हो गया , उसने कुरान पर हाथ रख सौगंध खाई कि वह अपनी दुल्हन रजिया को वापस दिल्ली के तख्त पर बैठायगा |
सरहिंद में युद्ध की तैयारिया शुरू हो गयी , सूबे के कोने -- कोने से आ कर युवक फ़ौज में भर्ती होने लगे , कुछ ही महीनों में एक अच्छी खासी फ़ौज उसके अधीन तैयार हो गयी |
रजिया अपने राजगद्दी वापस लेने के लिए अपने पति व फ़ौज के साथ दिल्ली की ओर बढ़ी , कैथल के निकट विद्रोही अमीरों ने अपनी सेनाओं के साथ रजिया का सामना किया 13 अक्तूबर को दोनों सेनाओं में घोर युद्ध हुआ जिसमे रजिया की पराजय हुई रजिया अपने बचे खुचे सैनिको एव पति के साथ युद्ध भूमि से हट गयी | उनकी दशा बहुत सोचनीय थी | मन में निराशा व्याप्त थी |
उस युग के समाज में चल कपट , झूठ फरेब षड्यंत्र , रिश्वत , धोखा कूट कूट कर भरा हुआ था | यदि रजिया शुरू में इस सच्चाई को समझ लेती तो वह आस्तीन के इन सापो का फन पहले ही कुचल देती और हरे भरे साम्राज्य को इन के विषैले दांतों से बर्बाद न होने देती | पिछले दिन की पराजय से वह टूट चुकी थी पर अब भी उसे बहुत आशा अपनी हिन्दू सेना पर थी उसकी सहायता के लिए तेजी से बढती चली आ रही थी | दिल्ली के मुसलमानों ने अब हिन्दुओ को भी अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया था | यद्दपि उन्हें ऊँचे पद नही दिए जाते थे , रजिया ने भी एक ऐसी ही सेना संगठित की थी | लेकिन अफ़सोस उसके धूर्त अमीरों ने इस सेना को सुल्ताना से मिलने ही नही दिया , उसे बीच में ही गुमराह कर दिया |
हिन्दुओ की एक बड़ी सेना रजिया की मदद के लिए 14 अक्तूबर को प्रात: काल ही युद्ध भूमि में पहुँच गयी थी , इस नई हिन्दू सेना के आ जाने से विद्रोही अमीर शहजादा बहराम -- सभी बुरी तरह घबरा उठे , उन्होंने एक कुटिल चाल चली और इस सेना के नायक के पास जाकर कहा , '' अब लड़ाई व्यर्थ है कयोकि एक दिन पहले ही रजिया और उसके पति की हार हो चुकी है ; वे दोनों लड़ते -- लड़ते मारे गये है , इसलिए यही अच्छा है कि आप हमारी ओर आ जाओ ''
अमीरों ने उनके सामने सोने की मोहरों से भरी बीस थाल रख दिए , सोने की चमक ने अपना जादू दिखाया , कहा तो वे रजिया की मदद करने आये थे कहा अमीरों के उकसाने पर उन्होंने रजिया की असुरक्षित छावनी पर हमला कर दिया |
हिन्दू सेना यह सोच कर कि रजिया तो मर चुकी है , अत: अपनी वफादारी समाप्त जान कर , उस छावनी पर टूट पड़ी रजिया अपने पति सहित सोते हुए मारी गयी उसकी छावनी लुट गयी | अभागिन रजिया को कदम -- कदम पर विश्वासघाती मिले , यदि उसे दो चार भी विश्वस्त सरदार मिल गये होते तो वह सल्तनत की जड़े और गहरी जमा देती , फिर भी चार साल के छोटे समय में उसने इतनी बाधाओं के होते हुए भी इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया |
जिन चालीसी अमीरों ने उसे पग -- पग पर धोखा दिया , राह में काटे बिछाए , वे किसी के भी सगे नही निकले | उन्होंने शहजादा बहराम का कत्ल किया , भोले भाले सुलतान नासिरुद्दीन को खूब परेशान किया | उसके योग्य वजीर बलबन को पदच्युत करा के निकलवाया , लेकिन अब उनके पापो का घडा भर चुका था | जब सत्ता बलबन के हाथ आई तो उसने चुन चुन कर इन धोखेबाज अमीरों को मारकर सल्तनत को सुदृढ़ता और स्थिरता प्रदान की | दिल्ली में तुर्कमान दरवाजे के अन्दर रजिया बेगम की कब्रगाह आज भी विद्यमान है उसके भाई बहराम ने इस अभागिन शहजादी की लाश कैथल से दिल्ली मंगवा ली थी यह बंदिनी राजकुमारी इस दरगाह में अपने कब्र के नीचे शान्ति से चिरनिद्रा में सो रही है |
-सुनील दत्ता
याकुत के रजिया सुलतान के विशेष कृपापात्र बन जाने का समाचार सुनकर सबसे ज्यादा धक्का पंजाब और मुल्तान के सूबेदार अयाज को लगा , अयाज भी रजिया के रूप - यौवन का पुजारी था | उसे आशा थी कि हिन्द की मलिका रजिया के प्यार को वह एक न एक दिन अवश्य पा लेगा पर बीच में यह हब्शी याकुत न जाने कहा से आ टपका | उसे अपनी कल्पनाओं का सुनहरा महल ढहता प्रतीत होने लगा , निराश हो कर अयाज ने पंजाब में विद्रोह खड़ा कर दिया |
यदि रजिया चाहती तो अयाज को उसी समय ठिकाने लगा सकती थी जब उसने राजगद्दी संभालते समय दूसरे कई विद्रोही अमीरों को ठिकाने लगाया था , लेकिन इस के साथ उसने दया का व्यवहार किया था जिसका बदला वह विद्रोह से दे रहा था |
रजिया को इस बात का पता भी न था कि अयाज ने अपने मन में उसके प्रति मुहब्बत का रोग पाल रखा है , इस विद्रोही सूबेदार को दबाने के लिए रजिया दिल्ली से सेना लेकर पंजाब की ओर बढ़ी |
उस तेजस्वी साम्राज्ञी रजिया के पास आते ही अयाज का सारा साहस , बल , पराक्रम और विद्रोह पानी की तरह बह गया , उसने बिना युद्ध किये ही रजिया के आगे आत्मसमर्पण कर दिया |
रजिया ने दयावश इस कृत्घन अमीर के प्राण तो नही लिए पर उससे पंजाब और मुल्तान की सुबेदारी छीन ली और उसे सिंध पार खदेड़ दिया , यह दिसम्बर 1239 ई की घटना है |
विद्रोहियों को ठिकाने लगा कर रजिया 15 मार्च 1240 ई को दिल्ली वापस लौटी लेकिन ख़ास दिल्ली में भी '' चालीसी '' गुट के तुर्क अमीरों ने उस के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया ,| शाही महल के प्रधान अधिकारी इख्तेयारुद्दीन ऐतिगीन को याकुत के बढ़ते हुए प्रभाव और अधिकार से बहुत इर्ष्या हो गयी थी , उसने अल्तुनिया नामक सशक्त सरदार के साथ मिलकर याकुत को क़त्ल करने का षड्यंत्र रचा |
उस समय सुलतान रजिया की सेना भटिंडा के ओर गयी थी अत: विद्रोहियों ने इस मौके का पूरा -- पूरा लाभ लाभ उठाया और 3 अप्रैल 1240 को अचानक शाही महल पर हमला कर दिया , याकुत ने चुने हुए सवारों के साथ इन विश्वासघातियो का सामना किया , लेकिन उसकी एक न चली , विद्रोहियों ने उसे कत्ल कर दिया और महल के भीतर जा कर रजिया को पकड़कर अल्तुनिया को सौप दिया |
अल्तुनिया सरहिंद का सूबेदार था , उसने रजिया को अपने किले के भीतर कैदखाने में डाल दिया , विद्रोहियों ने रजिया के सौतेले भाई बहराम को राजगद्दी पर बैठकर सुलतान घोषित किया | बहराम नाबालिग था , | इसलिए ऐतिगीन उसका संरक्षक बन कर राज प्रबंध देखने लगा , लेकिन शहजादा बहराम जल्दी ही अपने सरक्षक की मनमानी से तंग आ गया और कुछ दिन बाद 30 जुलाई को दो तुर्कों द्वारा ऐतिगीन को मरवा डाला उसका मन्त्री घायल होकर भाग निकला , शहजादे ने बदरूद्दीन सुकर को अपना सरंक्षक नियुक्त किया |
इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए अपने विश्वासपात्र चालीस व्यक्तियों को '' अमीर '' बनाया था | इन अमीरों के ठाठ ही निराले थे | इनको बड़ी - से बड़ी जागीरे मिली हुई थी कुछ प्रान्तों के सूबेदार भी थे , कुछ के हाथो में बड़ी -- बड़ी सेनाये थी | इनका वैभव सुलतान से किसी भी तरह कम न था , उस पर भी ये लोग लुट खसोट से बाज न आते थे |
इन अमीरों में परस्पर इर्ष्या द्वेष भी बहुत था , ये सभी स्वार्थी , घमंडी , निर्दयी विश्वासघाती और सत्ता लोलुप थे | इल्तुतमिश के साम्राज्य और परिवार को इन दुष्ट '' चालिसियो '' ने नष्ट कर दिया , उस कि संतान का खून बहाया और रजिया जैसी बुद्धिमती सुल्ताना को दर - दर की ठोकरे खाने को विवश कर दिया , धन और सत्ता के लोभ में पागल होकर विचरने वाले इन भयानक मगरमच्छो ने समाज और सल्तनत के शांत सरोवर में हलचल मचा दी |
रजिया अत्यंत साहसी और धैर्यवती थी , सरहिंद के सूबेदार की कैद में वह बड़े धैर्य से विपत्ति के दिन काट रही थी | सूबेदार अल्तुनिया कभी -- कभी कैदखाने में रजिया के खैर खबर लेने चला आता था | रजिया के मुख पर अब भी राजसी तेज विद्यमान था | इस विपत्ति में भी शाही रॉब उसके रोम रोम से टपकता था , उसका उमड़ता यौवन किसी भी पुरुष को अपना गुलाम बनाने में समर्थ था |
अल्तुनिया दिल्ली के घटनाओं से सतुष्ट नही था '' चालीसी '' तुर्क अमीरों ने उसे अपना अगुआ बना कर बेचारी रजिया को सिंहासन से हटा दिया था , | याकुत को मरवा दिया था लेकिन सभी ऊँचे -- ऊँचे पद और बड़ी बड़ी जागीरो की बंदर बाट में उसे अलग कर दिया था , इससे उसे बड़ा दुःख हुआ और उसे रजिया से सहानुभूति भी हो गयी थी | उसने कैदखाने में रजिया की सुविधा बढ़ा दी |
चतुर रजिया ने इन बढती हुई सुविधाओं और सूबेदार के मुख पर बदलते भावो को देखकर ताड़ लिया कि अल्तुनिया उससे मिलने के लिए कैदखाने में आया तो रजिया ने मुस्कुरा कर पूछ ही लिया , '' सूबेदार साहब , कुछ दिनों से बहुत परेशान नजर आने लगे है , लगता ही , दिल्ली की सारी जिम्मेदारी सुलतान और उसके वजीरे आजम ने आप के नाजुक कंधो पर डाल रखी है ' |
अल्तुनिया ने इस व्यंग का कोई उत्तर नही दिया , वह सुनी आँखों से इस परम सुन्दरी , साहसी वीरागना को अपलक देखता रहा जिसने चार वर्ष तक बड़ी होशियारी से हिन्दुस्तान की इतनी बड़ी सल्तनत को संभाले रखा था | लेकिन उस जैसे कृतघ्न और विश्वासघाती लोगो के कारण ही वह आज कैदखाने में पड़ी कष्ट पा रही है , उसने ठंठी सांस भर कर कहा , '' बेगम साहिबा , क्या दिल्ली भी सचमुच कोई भुलाने लायक शहर है ' ?
रजिया फुंकार उठी , ' क्या कहा बेगम साहिबा ? किसी की बदकिस्मती का इस तरह मजाक नही उड़ाना चाहिए , सूबेदार साहब , बेगमे शाही महलो में ही रहती है , कैदखाने में नही सडती , मुझे रजिया ही कहो , ''
अल्तुनिया और अधिक न सह सका , इस फटकार से उसकी आँखों में आँसू आ गये , वह उस तेजस्वनी मलिका के आगे घुटनों के बल झुक गया और भरे हुए कंठ से बोला , '' खुदा ही जानता है , बेगम साहिबा , कि मुझे अपने किये पर कितना पछतावा है , मैं बहुत बड़े धोखे का शिकार हुआ हूँ , अल्लाह की कसम , मैं जब तक तुम्हे वापस दिल्ली के तख्त पर बैठा न देख लूंगा , चैन से न बैठूंगा , ''
अल्तुनिया की आवाज में दृढ़ता थी , उसके बहते हुए आँसू इस सच्चाई की गवाही दे रहे थे |
रजिया का नारी हृदय विचलित हो उठा , उसने भरे हुए दिल से कहा , '' सारी दुनिया जानती है सूबेदार साहब , कि अब्बा हुजुर ने मरते समय सब के सामने मुझे सल्तनते हिन्द वारिस बनाया था , लेकिन इन विश्वासघाती लोगो ने मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच कर मुझे तख्त से कैदखाने की कोठरी में पहुंचा दिया | यद्दपि मुझ से जहा तक हो सका पूरी होशियारी से मैंने राज्य की व्यवस्था की थी | मुझे तिनके का भी सहारा मिल जाए तो मैं इन विश्वासघातियो को उनकी करनी का मजा चखा दूँ , इल्तुतमिश की बेटी रजिया के जीते जी कोई दूसरा दिल्ली के तख्त पर नही बैठ सकता , '' |
रजिया ने आगे बढ़कर अल्तुनिया के आँसू पोछे , सूबेदार इस सौभाग्य पर पुलकित हो उठा , उसने कमर से अपनी तलवार खोल कर रजिया के कदमो में रख दी और भावावेश में बोला '' मैं मलिका -ए -हिन्द का अदना सा गुलाम हूँ , जो भी हुकम मिलेगा जान की बाजी लगा कर पूरा करूंगा '' |
रजिया ने तलवार उठाकर उसकी कमर में बाँध दी और कापती आवाज में कहा '' सूबेदार साहब , आप मेरे गुलाम नही मालिक है , अल्लाह की यही मर्जी मालुम होती है , इस तलवार को अपने कमर में संभालिये कयोकि अभी दुश्मनों से बदला लेना बाकी है , यह नाचीज रजिया अज से आपकी है , सिर्फ आपकी .... '' कहते -- कहते उसने अपना सिर अल्तुनिया के विशाल वक्ष पर टिका दिया |
सूबेदार अल्तुनिया ने आज सब कुछ पा लिया |
अगले दिन रजिया के साथ उसका निकाह हो गया , उसने कुरान पर हाथ रख सौगंध खाई कि वह अपनी दुल्हन रजिया को वापस दिल्ली के तख्त पर बैठायगा |
सरहिंद में युद्ध की तैयारिया शुरू हो गयी , सूबे के कोने -- कोने से आ कर युवक फ़ौज में भर्ती होने लगे , कुछ ही महीनों में एक अच्छी खासी फ़ौज उसके अधीन तैयार हो गयी |
रजिया अपने राजगद्दी वापस लेने के लिए अपने पति व फ़ौज के साथ दिल्ली की ओर बढ़ी , कैथल के निकट विद्रोही अमीरों ने अपनी सेनाओं के साथ रजिया का सामना किया 13 अक्तूबर को दोनों सेनाओं में घोर युद्ध हुआ जिसमे रजिया की पराजय हुई रजिया अपने बचे खुचे सैनिको एव पति के साथ युद्ध भूमि से हट गयी | उनकी दशा बहुत सोचनीय थी | मन में निराशा व्याप्त थी |
उस युग के समाज में चल कपट , झूठ फरेब षड्यंत्र , रिश्वत , धोखा कूट कूट कर भरा हुआ था | यदि रजिया शुरू में इस सच्चाई को समझ लेती तो वह आस्तीन के इन सापो का फन पहले ही कुचल देती और हरे भरे साम्राज्य को इन के विषैले दांतों से बर्बाद न होने देती | पिछले दिन की पराजय से वह टूट चुकी थी पर अब भी उसे बहुत आशा अपनी हिन्दू सेना पर थी उसकी सहायता के लिए तेजी से बढती चली आ रही थी | दिल्ली के मुसलमानों ने अब हिन्दुओ को भी अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया था | यद्दपि उन्हें ऊँचे पद नही दिए जाते थे , रजिया ने भी एक ऐसी ही सेना संगठित की थी | लेकिन अफ़सोस उसके धूर्त अमीरों ने इस सेना को सुल्ताना से मिलने ही नही दिया , उसे बीच में ही गुमराह कर दिया |
हिन्दुओ की एक बड़ी सेना रजिया की मदद के लिए 14 अक्तूबर को प्रात: काल ही युद्ध भूमि में पहुँच गयी थी , इस नई हिन्दू सेना के आ जाने से विद्रोही अमीर शहजादा बहराम -- सभी बुरी तरह घबरा उठे , उन्होंने एक कुटिल चाल चली और इस सेना के नायक के पास जाकर कहा , '' अब लड़ाई व्यर्थ है कयोकि एक दिन पहले ही रजिया और उसके पति की हार हो चुकी है ; वे दोनों लड़ते -- लड़ते मारे गये है , इसलिए यही अच्छा है कि आप हमारी ओर आ जाओ ''
अमीरों ने उनके सामने सोने की मोहरों से भरी बीस थाल रख दिए , सोने की चमक ने अपना जादू दिखाया , कहा तो वे रजिया की मदद करने आये थे कहा अमीरों के उकसाने पर उन्होंने रजिया की असुरक्षित छावनी पर हमला कर दिया |
हिन्दू सेना यह सोच कर कि रजिया तो मर चुकी है , अत: अपनी वफादारी समाप्त जान कर , उस छावनी पर टूट पड़ी रजिया अपने पति सहित सोते हुए मारी गयी उसकी छावनी लुट गयी | अभागिन रजिया को कदम -- कदम पर विश्वासघाती मिले , यदि उसे दो चार भी विश्वस्त सरदार मिल गये होते तो वह सल्तनत की जड़े और गहरी जमा देती , फिर भी चार साल के छोटे समय में उसने इतनी बाधाओं के होते हुए भी इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया |
जिन चालीसी अमीरों ने उसे पग -- पग पर धोखा दिया , राह में काटे बिछाए , वे किसी के भी सगे नही निकले | उन्होंने शहजादा बहराम का कत्ल किया , भोले भाले सुलतान नासिरुद्दीन को खूब परेशान किया | उसके योग्य वजीर बलबन को पदच्युत करा के निकलवाया , लेकिन अब उनके पापो का घडा भर चुका था | जब सत्ता बलबन के हाथ आई तो उसने चुन चुन कर इन धोखेबाज अमीरों को मारकर सल्तनत को सुदृढ़ता और स्थिरता प्रदान की | दिल्ली में तुर्कमान दरवाजे के अन्दर रजिया बेगम की कब्रगाह आज भी विद्यमान है उसके भाई बहराम ने इस अभागिन शहजादी की लाश कैथल से दिल्ली मंगवा ली थी यह बंदिनी राजकुमारी इस दरगाह में अपने कब्र के नीचे शान्ति से चिरनिद्रा में सो रही है |
-सुनील दत्ता
पत्रकार आभार -स . विश्वनाथ
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