शनिवार, 15 जून 2013

बलबन शासन का अंत


रजिया बेगम के बाद दिल्ली की राजगद्दी पर बलबन का आधिपत्य हुआ |



पिता और पुत्र

सुलतान बलबन ने भारी संघर्ष और रक्तपात के बाद सत्ता संभाली थी , अपने राज्य को स्थिरता प्रदान करने के लिए उस ने जहा अनेक सुधार किये वह अपने दरबार की ओर भी ध्यान दिया |
बलबन जानता था कि दरबार का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मन पर अवश्य पड़ता है , इसीलिए उसने सबसे पहले अपने दरबार की शानशौकत , साज सज्जा और वैभव में वृद्धि की और इसके बाद दरबार के कई तौर तरीके निश्चित किये जिन का पालन सभी के लिए अनिवार्य था |
बलबन अनुशासन का इतना पक्का था कि कोई भी अमीर उसके दरबार में हँसने , जोर से बोलने या बैठने की हिम्मत नही कर सकता था , देखने वालो पर उसके आलीशान दरबार का रौब पड़े बिना नही रहता था | उस समय के यात्रियों और इतिहासकारों ने बलवान के दरबार की बहुत प्रशंसा की है |
सुलतान गियासुद्दीन बलबन ने अपने अस्सी वर्ष के लम्बे जीवन में न जाने कितने संघर्ष और उतार -- चढाव देखे थे , वह एक साधारण गुलाम से अमीर , अमीर से मलिक , मलिक से खान और खान से सुलतान बना था | उसका सारा जीवन संघर्षो से जूझते हुए बीता था |
इन्ही संघर्षो ने उसे लौह पुरुष बना दिया था , उसके सुदृढ़ शासन में आम जनता बहुत सुखी और सम्पन्न थी , अब सुलतान बलबन अस्सी वर्ष से उपर का हो गया था और प्राय: अस्वस्थ रहने लगा था , इसी बीच उस पर ऐसा वज्रपात हुआ जिस से बलबन जैसा लौह पुरुष भी टूट गया | |
तेरहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में चंगेज खान के रूप में भयानक खूनी मंगोल योद्धा मध्य एशिया से निकल कर चारो ओर मारकाट मचाने लगा | इस ने कुछ ही समय में चीन , रूस , इरान , तुर्की तथा पश्चिम एशिया के देशो को रौद डाला | चंगेज खान भ्रष्ट बौद्ध था | उसने तथा उसके पुत्र हलाकू ने एशिया और यूरोप में लाशो के अम्बार लगा दिए थे , सौभाग्य से यह भयंकर दैत्य भारत में घुस कर पश्चिम की ओर मुड गया , लेकिन उसका एक सेनापति समर खान भारतीय सीमा क्षेत्र में भी आ धमका , जिससे इस देश में बहुत आतंक फ़ैल गया |
सन 1285 ई . में चंगेज खान की मंगोल सेना ने हिन्दुस्तान पर हमला कर दिया |

प्रसिद्ध इतिहासकार बरनी के शब्दों में '' हमलावर समर खान चंगेज खान के कुत्तो में सबसे बहादुर कुत्ता था " |
सुलतान बलबन के बड़े पुत्र युवराज खानेमुल्तान ने इन खुनी हमलावरों का मुकाबला किया | वह बड़ा ही योग्य , नीति कुशल और शूरवीर था | सुलतान ने इसे ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था , मुलतान , लाहौर और दीपालुपुर के सूबे उसके अधीन थे | शहजादा खाने मुलतान ने बड़ी बहादुरी से हमलावर मंगोलों का सामना किया और लड़ते -- लड़ते युद्ध भूमि में ही शहीद हो गया , इस युद्ध में उसके बहुत से अमीर भी मारे गये | बहुत से लोग कैदी बना लिए गये , प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो इसी लड़ाई में कैद किया गया था |
अस्सी वर्ष के वृद्ध सुलतान बलबन के लिए यह आघात असह्य सिद्ध हुआ | बीमार तो वह पहले से चला आ रहा था , युवराज की मृत्यु से तो वह बिलकुल ही टूट गया , यो राजकाज चलाने के लिए वह अब भी दरबार में आता था और दुःख को सीने में दबा कर सारे काम निपटाता था | पर रात को यह बुढा सुलतान बच्चो की तरह फूट फूट कर रोता , पागलो की तरह अपने सिर और दाढ़ी के बालो को नोचता और कपडे फाड़ डालता | उसकी दशा दिन -- प्रतिदिन बिगडती ही जा रही थी | उसने शहीद शहजादे के नाबालिग पुत्र कैखुसरु को अपने पिता के सुबो की जागीर दे दी | उसे अपना भविष्य अंधकारमय ही दिखाई पड़ता था |
सुलतान बलवान का दूसरा पुत्र बुगराखान लखनौती ( बंगाल ) की सुबेदारी पर नियुक्त था , सुलतान ने उसे दिल्ली बुला लिया और बड़े दर्द के साथ कहा '' बेटा मेरी मौत तो उसी दिन हो गयी थी जिस दिन तुम्हारा बड़ा भाई शहजादा खाने मुलतान चंगेज खान के कुत्तो द्वारा शहीद हो गया | अब तो मैं किसी तरह अपने बूढ़े शरीर को ढोता हुआ दिन पूरे कर रहा हूँ , मेरे बेटे , राज्य करना बच्चो का खेल नही है | मैं बहुत बुढा और बीमार आदमी हूँ , दो चार दिन का मेहमान हूँ , मेरे दोनों पुत्र कैखुसरु और कैकुबाद नाबालिग होने से राज्य संभालने योग्य नही है , तुम हर तरह से सुयोग्य हो , जवान हो इसीलिए अब तुम लखनौती का मोह छोड़ कर मेरे पास दिल्ली में ही रहो और साम्राज्य की बागडोर संभालो जिससे मैं शान्ति पूर्वक मर सकू '' |
बुगरा खान , भीरु , आलसी और मनमौजी प्रकृति का व्यक्ति था , राजनीति के झंझटो में पढ़ना , समस्याओं का दृढ़ता से सामना करना , उसके वश की बात नही थी | वह लखनौती के छोटे से सूबे को पाकर बहुत संतुष्ट और प्रसन्न था | जब एक सूबे की जागीरदारी से ही खूब आराम , भोगविलास , सुख और चैन प्राप्त हो सकता है तो फिर दिल्ली की राजगद्दी पर बैठकर काटो का ताज क्यों पहने ? अपने आनद से भरपूर जीवन में चिंता का विष क्यों घोले ?
वह जातना था कि दिल्ली की राजगद्दी पर बैठकर सुख चैन से जीवन बिताना असम्भव है | अत: उसने उपरी मन से अपने पिता से ' हाँ ' , कह दिया और तीन महीने तक दिल्ली में रहकर साम्राज्य का शासन प्रबंध व राजकाज देखता रहा | दिल्ली में रहकर इस विशाल साम्राज्य के संचालन से वह थक जाता और शीघ्र उकता जाता था , उसका मन जैसे तैसे इस जंजाल से निकल भागने को करता , लेकिन सुलतान की बीमारी से वह मजबूर था |

अपने पुत्र बुगराखान को दरबार में राजकाज करते देख कर बलबन को बड़ा संतोष हुआ , उस के दिल और दिमाग से चिंता का बोझ हट गया और धीरे -- धीरे उसके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा |
बुगराखान का मन तो दिल्ली से निकल भागने के लिए छटपटा रहा था , अब बूढ़े सुलतान को स्वस्थ्य होते देख कर वह और अधिक न रुका तथा लखनौती के लिए रवाना हो गया , उसने अपने वृद्ध और रोगी पिता से आज्ञा लेने की आवश्यकता भी न समझी |
सुलतान और उस के नेतृत्व को यो मझधार में छोड़ कर बुगराखान के भागने से बलबन को बहुत धक्का लगा , उसकी हालत फिर बिगड़ गयी | उसके साथ शहीद शहजादे का पुत्र कैखुसरु तथा बुगराखान का पुत्र कौकुबाद था |
वृद्ध और मरणासन्न सुलतान बलबन अपने इन दोनों पुत्रो का मुंह देख देख कर अपने दुखी मन को बहलाया करता था | पर उसके विशाल हिन्द साम्राज्य का भार ये कोमल सुकुमार कैसे उठा सकते थे ? बाहर से साम्राज्य को चंगेज खान के खूनी भेडियो जैसे मंगोलों का बड़ा भय था जिन्होंने एशिया के देशो को रौदकर श्मशान बना दिया था | साम्राज्य के भीतर सत्ता के भूखे , लालची और कृतघ्न अमीरों की भी कमी न थी , '' कही ये कृतघ्न अमीर उसके नाबालिग बच्चो को ही कत्ल न कर डाले ? सोचते -- छोटे बलबन का मन हाहाकार कर उठता |
अपनी मृत्यु को बहुत निकट जानकार बलबन ने अपने अत्यंत विश्वास पात्र साथी महल में बुलवाए , इन में दिल्ली का कोतवाल वजीर हुसैन बसरी तथा दूसरे कई अमीर थे |
मरणासन्न सुलतान ने कापती आवाज में उनसे कहा , '' आप सब लोग मेरे अत्यंत विश्वास पात्र है , आप शासन व्यवस्था और प्रशासन के काम काजो को चलाने का दंग जानते है , मेरी मृत्यु बहुत निकट आ गयी है , मेरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद शहजादे खाने मुलतान के पुत्र कैखुसरु को राजगद्दी पर बैठाए | अभी वह बालक है , लेकिन मैं क्या करू ? मेरा पुत्र बुगराखान को राजगद्दी से जी चुराकर अपनी मर्जी से निकल भागा है | अब मुझे आप लोगो का ही भरोसा है , आप लोग मेरे पुत्र की रक्षा करे और उसे अपना सुलतान माने '' |
सभी उपस्थित अमीरों ने सुलतान को अपनी वफादारी और स्वामिभक्ति का पूरा पूरा विश्वास दिलाया | इसके तीन दिन बाद सुलतान बलबन की मृत्यु हो गयी | कुशके लाल ( लाल महल ) से रात के समय उसका शव निकाला गया और उसे बाहर ले जाकर दफना दिया गया | सुलतान की अंतिम इच्छा के विरुद्ध खाने मुलतान के पुत्र कैखुसरु को राजगद्दी से वंचित करके उसे मुलतान भेज दिया , कयोकि ये लोग किसी विशेष कारण से शहीद शहजादे खाने मुलतान से नाराज थे , इन विश्वासघाती अमीरों ने बुगराखान के पुत्र कैकुबाद को सुलतान मुइजुद्दीन की पदवी से विभूषित करके दिल्ली के गद्दी पर बैठा दिया | कैकुबाद को सन 1286 में राजगद्दी मिली , सुलतान बनते समय उसकी अवस्था 18 वर्ष थी |
नवयुवक सुलतान कैकुबाद में कई गुण थे , वह बड़ा सुन्दर शांत स्वभाव वाला और दयालु प्रकृति का नवयुवक था , लेकिन उसके सारे गुणों को एक दुर्गुण ने दबा कर नष्ट कर दिया , वह दुर्गुण था भोगविलास में आसक्ति , बचपन से लेकर अब तक वह अपने प्रतापी दादा बलबन के कठोर अनुशासन में रहा था |
सुलतान बलबन के डर से उस के अध्यापक कैकुबाद पर कड़ी दृष्टि रखते थे | रात -- दिन लगातार उसकी गतिविधियों पर अध्यापको की सतर्क दृष्टि रहती थी , अध्यापको ने उसे विनम्र भाषण , पुरुषोचित व्यायाम था दूसरी विद्याये सिखाई थी , शहजादे पर सुरा और सुंदरी की परछाई तक नहो पड़ने दी जाती थी |
जब नवयुवक कैकुबाद ऐसे कठोर अनुशासन से निकल कर एकाएक समर्थ स्वतंत्र व शक्तिशाली सुलतान बन गया तो उस की अतृप्त वासनाए सयम का बाँध तोड़कर फूट पड़ी , उसने अब तक सीखे हुए सारे गुण , व्यायाम , कला , विद्या , हुनर , सयम सभी को एक ओर उठाकर रख दिया और रात दिन शराब पी कर सुन्दरियों की संगती में लीं रहने लगा |
अब उसे युवतियों के गोर चाँद से मुख ही प्यारे लगते और दाढ़ी मुछो वाले पुरुषो की सूरत तक से नफरत होती | वह महीनों ऐशगाह से बाहर न निकलता , शेष खान अमीर मलिक तथा दुसरे राज्य अधिकारियों ने भी सुल्तान की नकल की और रागरंग में डूब गये , बलबन का सुदृढ़ और सुसंगठित शासनतंत्र ढीला होकर चरमराने लगा |

इस मनमौजी सुलतान का मन दिल्ली से ऊब गया , यहाँ भीड़ -- भाड़ , छोटे -- बड़े मकानों और टेडी - मेढ़ी गलियों के भूलभुलैया को देखकर उस का मन कुढ़ जाता | उस की समझ में यह बात बैठती ही नही थी कि जितने लोग है , ये भी क्यों नही कच्चे मकानों की जगह महलो में रहना शुरू कर देते | ये दिल्ली वासी सुलतान और उसके अमीरों की तरह क्यों नही अच्छा पहनते और खाते ? सुलतान का दिल करता कि इन '' असभ्य '' लोगो के झोपड़ो में आग लगा दे , उसे इन '' जाहिलो और जंगली '' लोगो के बीच रहना भी मंजूर न था |
इसीलिए उसने दिल्ली छोड़कर अन्यत्र अपनी राजधानी बसाने का निश्चय किया इसके लिए पास ही किलोखड़ी में यमुना किनारे सुन्दर रमणीक स्थान चुना गया | जहा बादशाह के लिए आलीशान महल , ऐशगाह और बाग़ -- बगीचे हो | जहा उसके अमीरों के लिए भी आसमान को छूने वाली हवेलियों की कतारे हो , महलो और हवेलियों के सिवा और कुछ भी न हो |
सुलतान यह भूल गया कि उस के साम्राज्य में 95% व्यक्ति ऐसे ही है जो उसकी नई दिल्ली ( किलोखड़ी ) में रहने योग्य नही है | उसकी नई राजधानी को महल , हवेली , बाग़ - बगीचों से सजाने वाले यही वे '' जाहिल '' थे | जिन्हें इस सुन्दर नगरी में रहने की आज्ञा न थी | यदि वे न होते तो कौन अपना खून पसीना बहाकर इस आलीशान नगरी को बनाता ? यदि वे न होते तो कौन अपना पसीना बहाकर उसके लिए साम्राज्य स्थापित करता ? लेकिन उस घोर सामन्तवादी युग में ऐसी बाते सोचने की बुद्धि ही किस में थी ?
नवयुवक सुलतान ने दिल्ली के लाल महल को छोड़कर किलोखड़ी शहर के बीच यमुना तट पर ( जो अब दिल्ली का एक छोटा सा गाँव है ) अपने लिए सुन्दर -- सुन्दर रंगमहल और ऐशगाह बनवाये जिन में विषय , भोग , ऐश आराम और सुख के हजारो साधन मौजूद थे | यही यमुना किनारे उसने एक सुन्दर बाग़ लगवाया | सुलतान की देखादेखी उसके दूसरे अमीरों ने भी यहाँ अपने अपने महल बनवाये , धीरे -- धीरे दिल्ली की रौनक खीच कर किलोखड़ी में पहुच गयी | यहाँ आकर सचमुच सुलतान के साम्राज्य की कील उखड़ गयी | जिससे सारी की सारी दिल्ली सल्तनत डगमगा उठी और इससे पैदा होने वाले तूफ़ान में स्वंय सुलतान कैकुबाद सूखे पत्ते की तरह उड़ गया , कौन था उसके तख्त की कीले उखाड़ने वाला ?

वह व्यक्ति था --- मलिक निजामुद्दीन ? यह दिल्ली के कोतवाल मलिक कुल उमरा का भतीजा था , सुलतान ने इस धूर्त व्यक्ति के स्वभाव को परखे बिना ही उसे राज्य का सर्वेसर्वा बना दिया | पहले इसे दादबक ( महान्यायवादी ) और बाद में नायब ए मुल्क ( साम्राज्य का उपप्रधान ) बना दिया , साम्राज्य उसी के हाथो में थी |
सुलतान को तो सुरा और सुंदरी के उपभोग से ही समय नही मिलता था , विषय भोगो के अत्यंत सेवन से उसका योवन पुष्प खिलने से पहले ही कुम्हला गया | दिन पर दिन उसका स्वास्थ्य गिरने लगा | शरीर दुर्बल होकर पिला पद गया | लेकिन इसकी विषय लिप्सा में किसी प्रकार की कमी नही होने पाई |
मलिक निजामुद्दीन उन व्यक्तियों में से था , जिनके विषय में कहा जा सकता है कि वे जिस थाली में खाते है , उसी में छेद करते है | राज्य की बागडोर अपने हाथो में आते ही उसने अपने विरोधियो को रास्ते से हटाना शरू कर दिया , उसने सोचा , '' बूढ़े सुलतान बलबन ने 60 वर्षो तक दिल्ली साम्राज्य की देखभाल करके इसकी जड़े बहुत गहरी जमा दी थी | लोग उसके फौलादी शासन में विद्रोह न कर सके | उसके मरने से साम्राज्य में शक्ति शुन्यता आ गयी है | युवराज खाने सुलतान मर चुका है | बुगराखान लखनौती को लेकर ही मगन है | सुलतान कैकुबाद विश्यास्क्त्त होकर दीन दुनिया से बेखबर है | ऐसी दशा में मैं यदि शहजादे खानेमुलतान
के पुत्र कैखुसरु को मार डालू तो यह राज्य मेरी गोदी में पके हुए आम की तरह आ टपकेगा |

मन में इस प्रकार की दुर्भावना जमा कर इस विश्वासघाती कृतघ्न मलिक ने समय पाकर अनाडी सुलतान कैकुबाद से कहा , '' आपके दादा बलबन ने मरते वक्त कैखुसरु को सुलतान नियुक्त किया था लेकिन हमने चतुराई से आप को ही सुलतान बनाना उचित समझा | कैखुसरु आपके हिन्द साम्राज्य का हिस्सेदार है , वह कितने ही मलिक और अमीरों से मिलकर आपको मारने का षड्यंत्र रच रहा है जिससे आपका पूरा साम्राज्य ही उसका हो सके | विषयों में अंधे बने सुलतान ने सच्चाई जाने बिना ही कैखुसरु की हत्या करने के फरमान पर अपने हस्ताक्षर कर दिए | इसके बाद मलिक निजामुद्दीन ने कैखुसरु को दिल्ली आने का फरमान भेजा जब अभागा शहजादा मुलतानस से रोहतक पहुंचा तो मलिक के भेजे हुए हत्यारों ने उसे कत्ल कर दिया |
इस हत्या से दिल्ली ही नही सारे साम्राज्य में हलचल मच गयी | मलिक निजामुद्दीन का हौसला और बढ़ा , वह किसी बात पर सुलतान के एक वजीर ख्वाजा खतीर से नाराज हो गया | इस पर उसने वजीर को गधे पर चढा कर सारी दिल्ली और किलोखड़ी के बाजारों में घुमाया |
वजीर के इस घोर अपमान से राजधानी में आतंक छा गया | अब उसकी दृष्टि नये मुसलमानों पर पड़ी , वस्तुत: ये मंगोल थे जो बलबन के समय इस्लाम धर्म स्वीकार कर यही राजधानी में बस गये थे | इन नये मुसलमानों में बहुत एकता थी | और इनका एक बहुत शक्तिशाली गुट था | मलिक ने इन्हें अपनी योजना की पूर्ति में बाधक जानकार उखाड़ फेकने का निश्चय किया |
एक दिन नशे में मदहोश सुलतान से इनकी चुगली करते हुए कहा कि ये सुलतान के खिलाफ साजिश कर रहे है , इसी नशे की हालत में उसने इनकी हत्या करने के फरमान पर दस्तखत करा लिया और अचानक ही एक बहुत बड़ी सेना के सहायता से इन नये मुसलमानों की बस्ती को घेर लिया और सब को स्त्री बच्चो समेत कैद कर लिया | इन सभी कैदियों को पकड़कर निर्दयी मलिक यमुना किनारे ले गया और वह इन सब को क़त्ल कर डाला , यहाँ तक कि स्त्रियों और बच्चो को भी मार डाला हजारो मुसलमानों और उनके स्त्री बच्चो की इस सामूहिक हत्या से सारी दिल्ली में आतंक फ़ैल गया |
इस जघन्य हत्याकांड के बाद मलिक ने इन अभागो की सुनी बस्ती को लुट लिया और उसमे आग लगा दी | इसके नबाद उसने मुलतानके अमीर शेख और बरन के जागीरदार मलिक तुजकी
को मरवा डाला | ये दोनों ही बलबन के बड़े प्रसिद्ध और शक्तिशाली मलिक थे |

सुलतान कैकुबाद राजनीति और प्रशासन की कला में बिलकुल कोरा था , विषय लिप्सा ने उस के शरीर और मन बहुत दुर्बल बना दिया | मलिक निजुआमुद्दीन का उस के उपर बहुत प्रभाव था |यदि उसका कोई स्वामिभक्त अमीर मलिक निजामुद्दीन के अत्याचार और आतंक के विषय में सुलतान से कुछ कहता तो वह मूर्खतावश सारी बाते मलिक से कह देता कि अमुक आदमी तुम्हारे विषय में यह कह रहा था अथवा कभी -- कभी तो वह इन शुभचिंतक सेवको को सीधा यह कहकर मलिक के हवाले कर देता , '' ये लोग हमारे -- तुम्हारे बेच फूट डालना चाहते है ; '' |
मलिक निजामुद्दीन इन लोगो को तडपा - तडपा कर मार देता , नतीजा यह हुआ कि सुलतान से सच्ची बात कहने का किसी में साहस न रहा | मलिक का हौसला और बढ़ गया |
मलिक निजामुद्दीन का सुलतान के साम्राज्य व शासन प्रबंध में ही नही अपितु ख़ास रंगमहलो तक में भारी दबदबा था | मलिक की बेगम नवयुवक सुलतान की '' धर्ममाता '' बनी हुई थी ||
सुलतान के हरम का संचालन इसी कर्कशा और खूसट औरत के हाथ में था |
कामुक सुलतान इस कुटिल दम्पत्ति के हाथो की कठपुतली बन गया | मलिक के इस प्रभाव को देखकर बहुत से अमीर अपने प्राण बचाने अथवा अधिक लाभ पाने की आशा में उसके झंडे के नीचे आ गये | इस तरह उसकी शक्ति और भी बढ़ गयी | शक्ति बढ़ने के साथ उसका दिमाग भी सातवे आसमान पर रहने लगा |
एक दिन मलिक के चाचा एवं ससुर मलिक कुल उमरा फकरुद्दीन ने , जो दिल्ली के कोतवाल थे | उसे एकांत में समझाया , '' बेटा , मैंने और तेरे पिता ने अस्सी वर्ष तक दिल्ली की कोतवाली की है | हम लोग कभी राजनितिक हथकंडो में नही पड़े | इसीलिए अब तक सुरक्षित रहे | तुम भी इन राजनितिक कुचक्रो षडयंत्रो , हत्याओं , लूटमार और उखाड़ पछाड़ से दूर रहो , इसी में तुम्हारा कल्याण है | यदि तुमने राजगद्दी के लोभ से विषयान्ध दुर्बल सुल्तान को मार भी दिया तो उसके अमीर तो तुम्हारी जान के ग्राहक हो ही जायेंगे | मरने के बाद भी इस पाप का जबाब खुदा को देना होगा |
बूढ़े और अनुभवी कोतवाल की इस शिक्षा का मलिक पर कोई असर नही हुआ | वह उसी खोटी चल पर चलता रहा |
मलिक निजामुद्दीन के आतंक , अत्याचार , और सुलतान के विषय भोगो में लिपटे रहने की कहानिया सारे देश में फ़ैल चुकी थी | सुलतान कैकुबाद का पिता बुगराखान लखनौती का सूबेदार था | बलबन की मृत्यु के बाद उसने स्वंय को स्वतंत्र सुलतान घोषित कर के फतवा पढवाया था | जब से उसके कानो में दिल्ली की ये घटनाए पहुची तो वह अपने पुत्र की प्राण रक्षा के लिए चिंतित हो उठा | पिता और पुत्र के बीच संदेशो और भेटो का आदान प्रदान चलता रहता था | उसने बार बार अपने बेटे को शिक्षाए लिख कर भेजी कि वह विषय भोगो में न फंस कर अपने राज्य की देखभाल में मन लगाये , लेकिन सुल्तान पर इन उपदेशो का असर नही हुआ |
पत्रों से कोई प्रभाव न पड़ता देखकर बुगराखान ने अब स्वंय अपने पुत्र से मिलने का विचार किया और इस आशय का एक पत्र दिल्ली भेजा | जिसे पढ़कर सुलतान का सोया हुआ पितृ प्रेम
जाग उठा | और वह अपने पिता से मिलने को उत्सुक हो उठा | दिल्ली और लखनौती के बीच कई सन्देश और पत्रों का आदान प्रदान होने के बाद यह तय हुआ कि पिता और पुत्र अवध में सरयू नदी के तट पर मिलेंगे |
सुलतान ने प्रसन्न मन से अवध यात्रा की तैयारी करने का आदेश दिया | सुलतान के उत्साह और धूमधाम से यात्रा की तैयारी ने मलिक निजामुद्दीन के कण खड़े कर दिए | उसने सोचा , '' कही ऐसा न हो कि बुगराखान अपने पुत्र को उसके विरुद्ध भडका दे , '' उसने पहले तो सुलतान को जाने से रोकना चाहा पर जब सुलतान के हठ के आगे उसकी एक न चली तो उसे सेना साथ ले जाने की सलाह दी | कैकुबाद ने यह सलाह मान ली | दिल्ली का सुल्तान अपने पिता से मिलने के लिए जल्दी से जल्दी पड़ाव पर पड़ाव डालता हुआ सरयू नदी के किनारे जा पहुचा |

बुगराखान कोजब अपने पुत्र सुलतान के सेना सहित आगमन का पता चला तो वह समझ गया कि दुष्ट मलिक ने उसके बेटे को उलटी -- पट्टी पढाई है | फिर भी मिलने की तैयारिया की | उसने जंगी हाथी , सवार तथा फौजे सजा कर धूमधाम से सरयू के पूर्वी तट पर डेरा डाल दिया | पिता और पुत्र की छावनिया सरयू नदी के किनारे आमने -- सामने पड़ गयी | दो तीन दिन तक संदेशो का आदान -- प्रदान चलता रहा | अन्त में निश्चय हुआ कि बुगराखान नदी पार करके अपने पुत्र के दरबार में कदमबोसी के लिए आयेगा |
जब दिल्ली के अमीरों का यह सन्देश बुगराखान को मिला तो उसने कहा , '' भले ही कैकुबाद मेरा बेटा है , फिर भी वह दिल्ली का सुलतान है | मैं पिता होते हुए भी उसका छोटा सा सूबेदार हूँ | मैं दिल्ली सुलतान के कदम चूमने दरबार में अवश्य जाउंगा इसी में दिल्ली के सुलतान और सल्तनत की इज्जत है | मैं इस इज्जत को कायम रखूंगा | दूसरे दिन सुलतान कैकुबाद की छावनी में दरबार सजाया गया , पिता और पुत्र के ऐतिहासिक मिलन की इस घटना को अमर बनाने के लिए दरबार की शानशौकत और साज सजावट खूब तडक भड़क के साथ हुई | दिल्ली का नवयुवक सुलतान कैकुबाद अपने खान मलिक , अमीर और दूसरे अधिकारियों सहित शाही गौरव के साथ दरबार में राजगद्दी पर बैठा था | थोड़ी देर बाद उसका पिता बुगराखान अपने चुने हुए अमीरों के साथ सुलतान के आगे कदमो में अपना सिर झुकाने आया | उसने दरबार में घुसते ही ऊँचे मंच के उपर रत्नजटित राज सिहासन पर अपने भाग्यशाली पुत्र को बैठे देखा तो उस का हृदय आनंद से खिल गया | उसने पिता पुत्र के सम्बन्ध को भुलाकर दिल्ली सुलतान के सामने धरती पर तीन बार अपना माथा रगडा और फिर सिहासन की ओर बढ़ा | सुलतान कैकुबाद पत्थर के एक बुत की तरह अपलक नेत्रों से इस सारे कार्यक्रम को देख रहा था | उसका वृद्ध पिता उसके सामने धरती पर माथा रगड़ रहा था | वह अब और अधिक न सारे चिन्ह एक ओर हटा दिए और सिहासन से उठ खड़ा हुआ , वह एक क्षण के लिए झिझका और फिर '' अब्बाजान '' कहता हुआ दौड़ कर उसकी छाती से जा लगा |
पिता और पुत्र दोनों के इस मिलन को देखकर उस समय बड़े -- बड़े पत्थर दिल वाले सभी अमीर तुर्क रो पड़े | सारे दरबार में भावुकता का दौर बह चला | जिसे देखो वही आँसू भा रहा था |
कुछ समय बाद पिता और पुत्र ने धैर्य धारण किया | सुलतान कैकुबाद सादर अपने पिता को राज सिहासन तक ले गया और उसे अपने बराबर बैठाया | दोनों ओर से भेटो का आदान -- प्रदान हुआ | औपचारिक राजनितिक वार्तालाप हुआ और फिर एकांत में दोनों कुछ समय बाते करते रहे | वातावरण बड़ा ही सुखद आह्लादकारी था | राज्य को लेकर पिता और पुत्र में प्रेम तथा सौहार्द उत्पन्न होना -- यह सरयू तट की शाश्वत विशेषता है |
इसी प्रकार कई दिनों तक पिता और पुत्र की भेटे होती रही , एक दिन बुगराखान ने सुलतान को जमशेद के कहानी सुनाई '' मेरे लाडले बेटे ' इस प्रकार विषय भोगो में डूब कर तुम अपना स्वास्थ्य और साम्राज्य तो नष्ट कर ही लोगे , उन महान सम्राटो के उपदेशो का भी अनादर कर डोज ' |
भावना में बहकर वह रो पडा , ममता ने उसके हृदय पर अधिकार जमा लिया \ सुलतान ने पिता के चरणों में सिर रखकर कहा '' अब्बा हुजुर , इस बार आप माफ़ कर दे , दोबारा आपको कोई शिकायत सुनने को नही मिलेगी , मैं इन बुरे कामो से तौबा करता हूँ |
सुलतान ने कहा , '' बेटा तुम तब तक सफल नही हो सकते जब तक दुष्ट निजामुद्दीन का तुम पर प्रभाव है '' |
'' मैं मलिक को भी चतुराई से ठिकाने लगा दूंगा , '' सुलतान ने आश्वासन दिया |
बुगराखान ने आह भरकर कहा , '' बेटा बहुत सोच समझकर फूंक -- फूंक कर कदम रखना , तुम ने न जाने कितने आस्तीन के साँप पाल रखे है |
यह उन दोनों की अंतिम भेट थी | दोनों ने आँसू भरी आँखों से एक दूसरे को विदा किया | पिता से मिलने के बाद विषय लोलुप्त सुलतान कैकुबाद के जीवन में एकदम परिवर्तन आ गया | उसने शारब से पूरी तरह तौबा कर ली | सुन्दरियों के जमघट को दूर हटा दिया अब वह एक कर्मठ युवक की तरह राजकाज देखने लगा था | सुलतान के इस परिवर्तन से मलिक निजामुद्दीन का माथा ठनका , उसे अपने हाथ से साम्राज्य की बागडोर खिसकती दिखाई दी | उसने सुलतान के मन और सयम को विचलित करने के लिए षड्यंत्र रचा | वह किसी अद्दितीय अल्हड युवती की तलाश में व्यस्त हुआ जिसमे सहज आकर्षण हो | उसकी खोज सफल हुई और उसने एक बेश्या की अति सुन्दर , चतुर , वाचाल अल्हड बछेडी की तरह मदमस्त एक नवयुवती लड़की को ले लिया और पड़ाव के आगे बीच रास्ते में खेतो की मेड़ो पर एक ऐसी जगह बैठा दिया , जहा सुलतान की नजर उस पर पड़ कर ही रहे , साथ ही ऐसा हो कि वह उस स्थान पर सुलतान को अकस्मात मिलती सी जान पड़े |

अगले दिन सुलतान की सवारी उस रास्ते से निकली तो उसने खेत की मेड पर एक सुन्दर ग्राम्य गीत गाती हुई उस आकर्षक कन्या को देखा जिसके रोम -- रोम से सौन्दर्य और लावण्य का स्रोत फूट रहा था | सुलतान इस अल्हड युवती के मधुर आवाज , रूप माधुरी अदा , शोखी हाजिर जबाबी और कविता पर सौ जान से कुर्बान हो गया | वह सुंदरी कविता में ही बाते करती थी | उसकी वेश भूषा बड़ी भव्य और आकर्षक थी | उसके हाव - भाव किसी भी जितेन्द्रिय का धैर्य और सयम डिगाने के लिए पर्याप्त थे |
सुलतान का मन उस सुन्दरी बाला के रूप जाल और हाव - भाव पर बुरी तरह रीझ गया | वह एक बार गिरा तो बस गिरता ही चला गया | उस अल्हड , मस्तानी लड़की के एक कटाक्ष पर ही वह अपने पिटा की सारी शिक्षा भूल गया | शराब और सुंदरी से बचने की सारे प्रतिज्ञाए पानी में बह गयी | उसकी जिन्दगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चलने लगी | मलिक अपनी सफलता पर फुला न समाया | लेकिन अब उसके पापो का घडा भर चुका था | एक दिन अचानक सुलतान की मोह निद्रा टूटी | उसे अपने पिता के वाक्य याद आये , उसने बड़ी कुशलता से इस दुष्ट मलिक को विष देकर मरवा दिया | इस तरह उसने इस महत्वाकांक्षी निर्कुश व्यक्ति से अपनी प्राण रक्षा कर ली |
मलिक निजामुद्दीन में यदि राजद्रोह व अमीरों के प्रति द्वेषभाव न होता तो वह सोने का आदमी था , वह कुशल प्रशासक , परिश्रमी , धुन का पक्का था | उसके मरते ही सारा प्रशासनिक ढाचा चरमरा कर गिर पडा | अति विषय सेवन से दुर्बल होकर सुलतान को अर्धांग ने धृ पकड़ा | अब वह खात पर पडा पडा कराहने के अलावा और कुछ नही कर सकता था | दिन प्रतिदिन उसकी दशा बिगडती जा रही थी | इधर राज्य में बड़ी अराजकता फैलने लगी | इस भयंकर स्थिति को देखते हुए बलबनी अमीरों ने कैकुबाद के नन्हे से पुत्र को शम्सुद्दीन का खिताब देकर दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया | देश में अशांति और अराजकता के बादल गहरे होते जा रहे थे |
इस अराजकता का लाभ जलालुद्दीन खिलजी ने उठाया | वह समाना का नायब और बरन का जागीरदार था | उसने अपने सरदारों को एकत्रित करके विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया | जलालुद्दीन खिलजी के साहसी पुत्रो ने पांच सौ सवार लेकर एक दिन अचानक महल पर हल्ला बोल दिया और नन्हे सुलतान को उठा ले गये | इसी बीच खिलजियो ने एक मलिक को सुन्ल्तान कैकुबाद की हत्या करने भेजा सुलतान ने पहले कभी इस मलिक के पिता को मरवा डाला था | यह मलिक एक शक्तिशाली सैनिक दस्ते के साथ महल में घुस गया |
सुलतान अर्धांग रोग से अपंग और लाचार होकर पलंग पर पडा था वह फटी फटी आँखों से इन हत्यारों को देखता रहा | मलिक ने सुलतान को तीन -- चार ठोकरे मारी , फिर उसे उठाकर यमुना में फेंक दिया | ठोकरों और बीमारी से अधमरे सुलतान की दुर्बल काया को यमुना की लहरों ने अपनी बाहों में समेत लिया |
सुलतान कैकुबाद के इस करूं अंत के साथ दिल्ली पर तुर्कों का शासन समाप्त हो गया और खिलजियो की पताका फहराने लगी |

-सुनील दत्ता
 स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक 
आभार -- स . विश्वनाथ

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Bhut achchha likha likhte rahiye.

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