मंगलवार, 17 सितंबर 2013

ऑपरेशन दंगा. मुजफ्फरनगर दंगों पर आज तक का सबसे बड़ा खुलासा.-आज तक

ऑपरेशन दंगा. मुजफ्फरनगर दंगों पर आज तक का सबसे बड़ा खुलासा. सबसे बड़ा स्टिंग ऑपरेशन. सुलगते मुजफ्फरनगर का सबसे बड़ा और सबसे गहरा राज. आज तक पर दंगों की हर परत की पोल मुलायम सिंह और अखिलेश के अफसरों ने खोली.
सियासत के स्याह होते रंगों में एक जलता हुआ शहर, जिसकी आंच 15 दिन बाद लखनऊ पहुंची तो अखिलेश मुजफ्फरनगर पहुंचे और 17 दिन बाद आंच दिल्ली दरबार पहुंची तो प्रधानमंत्री इस शहर पहुंचे. शहर की फिजा बता रही है कि दंगे की आंच में अब राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं.
इस दंगे में अब तक चालीस से ज्यादा मौतें हुई और चालीस हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गये. पहली बार यहां लोग अपने ही गांव और अपने ही कस्बों में रिफ्यूजी हो गये. कई सवाल हैं जिनके जवाब आज तक ने खोजने की कोशिश की. क्या इन दंगों को सरकार रोक सकती थी? क्या बेगुनाहों को मरने से बचाया जा सकता था? क्या पुलिस के हाथ बंधे थे? क्या दंगाइयों पर गोली चालने से डर गई थी पुलिस?

जानसठ तहसील का खुलासा

मुजफ्फरनगर का कवाल गांव, जानसठ तहसील में आता है. यही वो गांव है जहां से 27 अगस्त को दंगे दो समुदाए के बीच नफरत की चिंगारी भड़की और फिर उसे नेता हवा देते चले गए. ये वही कवाल गांव है जहां पिछले 66 साल से हिंदू और मुसलमान भाई-चारे और मुहब्बत के साथ रहते चले आ रहे थे. लेकिन अब वहां की धरती नफरत के लहू से लाल हो गई है. आज तक ने जानसठ तहसील के सर्किट हाउस में स्टिंग ऑपरेशन किया, फिर जो खुलासा हुआ, जानकर आप भी दंग रह जाएंगे.
मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के कवाल गांव में 27 अगस्त को एक लड़की से छेड़छाड़ को लेकर दोनों समुदाय ऐसे भिड़े कि घंटेभर में मोहल्ले में तीन लाशें गिर गईं और अमन चैन तार-तार हो गया.
इलाके के एसडीएम आर.सी त्रिपाठी और सर्किल अफसर जे.आर जोशी दोनों कर्फ्यू में डूबे शहर का गश्त करके लौटे थे. 27 अगस्त को जे.आर जोशी ने दंगा करने वाले 8 लोगों को मौके से हिरासत में लिया था और थाने लाए थे. जोशी का कहना है ये दंगाई दोहरी हत्याओं के मुख्य संदिग्ध थे, लेकिन उस रात ऊपर से दबाव आया और दंगाइयों को थाने से छोड़ना पड़ा.
आज तक- एसडीएम साहब क्या (दंगाइयों के घरों की) तलाशी हुई थी, या तलाशी अवॉइड की गई?
सीओ- नहीं... नहीं.. बिल्कुल पूरी तलाशी हुई...
एसडीएम- तलाशी हुई, पकड़े गए.... अभियुक्त पकड़े गए...
सीओ- ऑफ द रिकॉर्ड पूरी बात हम बताएं, उस दिन जैसे ही घटना (हत्याएं) हुईं उसके बाद तलाशी हुई, उस दिन हमने 12 आदमी] जितने वहां आस-पास के जो भी थे, एक-एक आदमी को पकड़ा.... कोई अवैध असलाह नहीं मिला ये अलग बात है....
आज तक- एक्टचुअल मुलज़िम (पकड़े थे आपने)...
सीओ- बिल्कुल उन्हीं में थे.... और उसके बावजूद उनको ना ले जाकर उनकी एफआईआर इस ढंग से करा दी.... जिसकी वजह से सब (छूट गए).... इसके बाद SSP, DM का ट्रांसफर हो गया.... उन्होंने अपनी मौजूदगी में सर्च कराया था.
इन दोनों अधिकारियों का कहना था, मुलज़िम पकड़े जाने के राजनीतिक दबाव में फर्जी एफआईआर कराई गई और असली मुलज़िम छोड़ दिए गए.
आज तक- अच्छा...पकड़ लिया था (असली मुलज़िमों को)
सीओ- पकड़ लिया था... एफआईआर में नाम देखा तो मात्र एक आदमी का नाम देखा. हमारे सामने मजबूरी थी...
एसडीएम- Tainted एफआईआर हुई थी....
आज तक- फिर छोड़ दिया....
सीओ- उन्होंने कह दिया ठीक है कि (इनके नाम) नहीं है एफआईआर में, उनको बैठाने की डिटेन करने की जरूरत क्या है.
आज तक- तो जो 7-8 आदमी पकड़े गए थे....यानी लाए गए थे थाने वहां से....
सीओ- नहीं...थाने लाए थे...बातचीत की उसने....उसमें उन्होंने कहा कि हम वहां नहीं थे...हम फलानी जगह थे....लेकिन थे सब वहीं (घटना स्थल पर)
आज तक- बाद में सबको छोड़ दिया
3-3 लाशें गांव में बिछा दी गईं और मौके से संदिग्ध पकड़े गए, लेकिन दबाव में छोड़ दिया गया, सच तो ये है कि कुछ घरों की तलाशी लेने पर एसएसपी मंजीत सैनी और डीएम सुरेंद्र सिंह का तबादला कर दिया. बाद में नए डीएम ने आकर जांच की दिशा, कहीं और मोड़ दी.
आज तक- ये घटना (हत्याओं की) कब हुई थी, संदिग्धों को कितने बजे गिरफ्तार किया गया
सीओ- घटना 2 बजे की थी...
आज तक- नहीं...गिरफ्तारी कितने बजे की थी
सीओ- चार...साढ़े चार बजे के आसपास...जैसे ही Deadbody वहां से उठाई गईं थीं.
आज तक- और उन संदिग्धों को छोड़ा कैसे गया....
सीओ- लेट नाइट छोड़ दिया गया था. (ऊपर से) आदेश आ गए थे....
आज तक- डीएम के ट्रांसफर के बाद...
कवाल में कानून का मज़ाक उड़ाया गया. तलाशी लेने पर डीएम का ट्रांसफर किया गया, फर्जी एफआईआर लिखी गई, पकड़े गए आरोपी छोड़े गए, और बाद मे दंगा भड़क गया. अब आगे की दास्तान-
आज तक- जितने Accused को आपने पकड़ा था, क्या वो वास्तव में (सदिंग्ध) थे
सीओ- देखो... ऐसा है कि... कैसे कह दें... देखने वाले जब eyewitness कह रहे हैं कि मौके पर थे....
एसडीएम- they were prime suspects (वो मुख्य संदिग्ध थे)
आज तक- prime suspects....वही major mistake हुई और वो मैजेस दूसरी community में चला गया.
एसडीएम- ये तो मतलब दुर्भाग्य है पूरे देश का, इस सिस्टम का, जैसे की कोई घटना होती है, ये ***** नेता तुरंत आकर बैठ जाते हैं.....
इन अधिकारियों का मानना था कि दोहरी हत्याओं के मामले में कुछ घरों की तलाशी ली गई जिसपर कुछ रसूखदार नेता डीएम और एसएसपी से नाराज़ हो गए और दोनों का तबादला कर दिया गया. इस कार्रवाई से, इलाके में सांप्रदायिक तनाव भड़का. अगर डीएम और एसएसपी का उस रात तबादला ना होता तो अपराध की घटना सांप्रदायिक दंगे में ना तब्दील होती. लेकिन इससे बड़ा खुलासा किया फुगाना थाने के सैकेंड अफसर ने, जिनके सामने अल्पसंख्यकों के गांव के गांव राख कर दिए गए.
7 सितंबर की शाम महापंचायत में शामिल कुछ किसानों पर हमले के बाद अगली सुबह शाहपुर और बुढ़ाना तहसीलों में दंगे ने एक नया रंग लिया था. 7 सितंबर की प्रतिक्रिया में यहां गांव-गांव में हिंसा का ऐसा नंगा नाच हुआ जो इन कस्बों में 1947 के दंगों में भी देखने को नहीं मिला. 8 सिंतबर की हिंसा का सबसे ज़्यादा कहर फुगाना इलाके में मचा. आज तक- आपके यहां कितनी casuality हैं.
आर एस भगौर, सैकेंड अफसर- 16 हैं करीब...नहीं आपके क्षेत्र में कितनी casuality हैं....हमारे क्षेत्र में 16 हैं.....
आज तक- तो क्या....पुलिस फोर्स एकदम नहीं पहुंच पायी मौके पर.....
आर एस भगौर, सैकेंड अफसर- पुलिस मौके पर पहुंच गई थी, लेकिन पुलिस थोड़ी सी थी
आज तक- कम थी पुलिस....
आर एस भगौर, सैकेंड अफसर- हां....
आज तक- जब दंगा शुरु हुआ (उस वक्त वहां पर आपके कितने लोग थे)
आर एस भगौर, सैकेंड अफसर- उस समय जनपथ की क्या स्थिति थी, हम नहीं जानते, जब हमारे थाना क्षेत्र में काम शुरू हुआ तो दूसरे थाना क्षेत्र में भी काम शुरू हो गया. अब हमें ये नहीं पता कि दूसरे थाना क्षेत्र में या जनपद में क्या हो रहा है. जब अधिकारियों को इस बात का पता चला, तो अधिकारियों अपनी योजना, अपनी व्यवस्था करने में लगे. हमारा उनसे संपर्कि नहीं हो पाया. अब संपर्क करने के लिए कारण है, कि एक हाथ से गोली चला रहे हैं और दूसरे हाथ से मोबाइल (फोन) कर रहे है, तो मुसीबत की स्थिति है...
आज तक- बिल्कुल...
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- देखो practical है सब practical है.....
आज तक- कितनी देर तक (आपका अधिकारियों) से संपर्क नहीं हुआ होगा....
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- अरे भई...हम घंटे भर पर जूझते रहे....फंसे रहे....हमारी जान लगी रही. मोबाइल निकालते...ok करते और फिर जेब में रखते...ऐसी स्थिति थी हमारी.
आज तक- जब आप लोग (मौके पर) लगे हुए थे, तो असलाह की कमी थी
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- देखो असलाह...तो मैं बता रहा हूं, असलाह तो कुछ है नहीं...... असलाह जो हमारे पास है, असलाह जो हमारे हैं ही नहीं....और जो हैं वो चलता ही नहीं...... भाई जो चल गया तो बढ़िया हमारी जान ऊपर वाले की कृपा है. तो चल भाई वो भी मन हो...नहीं चला तो नहीं....मैं आपको वो facts बता रहा हूं जो कोई नहीं बताएगा. आज तक- मेन रोल मेरे ख्याल से आज़म xxxxx का है, कि उन्होंने pressurise किया.
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- बिल्कुल ठीक है...बिल्किल ठीक है.....
आज तक- आप कुछ नहीं करेंगे...जो हो रहा है होने दो....
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- हां...यहीं हुआ...
आज तक- political है ये....रोटियां सेंक रहे हैं...
आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- सब रोटियां सेंक रहे हैं....
ज़ाहिर तौर पर सैकेंड अफसर जानते हैं कि दंगो में किसका क्या किरदार रहा है, लेकिन इस अफसर से भी बड़ा खुलासा पुलिस और प्रशासन के कुछ और अधिकारियों ने किया. जिस पर आप दंग रह जाएंगे.

आर एस भगौर
, सैकेंड अफसर- सब रोटियां सेंक रहे हैं....
मुजफ्फरनगर का मीरापुर थाना क्षेत्र, सच्चाई आपको डरा देगी, सहमा देगी, इस थाने के हल्के में दंगाइयों ने मौत का जो खेल खेला, वो वाकई ख़ौफनाक भी है और दर्दनाक भी.
27 अगस्त से शुरू हुए दंगे 8 सितंबर तक मुजफ्फरनगर को दहलाते रहे, लेकिन प्रशासन से लेकर सरकार तक, दंगाइयों पर काबू पाने में नाकाम रही. जाहिर तौर पर दंगों की आड़ में नेता अपना अपना फायदा देख रहे थे. मीरापुर थाने के एसएचओ अनिरुद्ध कुमार गौतम के हल्के में भी दंगाइयों ने सड़कों पर मासूमों के मौत के घाट उतारा. और हैरतअंगेज़ बात ये है कि दंगाइयों पर कार्रवाई करने से पुलिस कतराती रही. गौतम मानते हैं कि डीएम एसपी को एक साथ हटाने की वजह से जिला प्रशासन नेतृत्वविहीन हो गया था. गौतम का कहना है कि समाजवादी पार्टी के कुछ नेता डीएम एसपी को कई दिनों से एसपी को हटाने का दबाव बना रहे थे, और उन्हें आखिरकार मौका मिल गया.
अनिरुद्ध कुमार गौतम, एसएचओ- पहले वाले डीएम और एसएसपी हमारे थे, दोनों मिलकर (घटना) को मैनेज कर सकते थे...आपने (सरकार) रात में चंद घंटों के अंदर...घटना के चंद घंटों के अंदर....उन्हें हटाया.
आज तक- उसकी इंस्पेक्टर साहब क्या वजह थी, उनकी क्या dealing सही नहीं थी...डीएम की.....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- डीएम की dealing बहुत बढ़िया था, दो साल कैसे निकाल जाते यहां. डेढ़ साल...दो साल...कैसे निकल गया यहां....अगर dealing बढ़िया ना होती. भाई इसी शासन नेउसे पोस्ट किया था डीएम. अगर इसकी dealing से लोग संतुष्ट ना होते तो डेढ़ पौने दो साल कैसे कट जाते.
आज तक- उस रात क्या वजह रही.....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- सब political stunt...
आज तक- मतलब उनको हटाना ग़लत फैसला था....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- भाई ये लोग उनको (DM/SSP) हटाने के लिए एक महीने से प्रयासरत थे....जब कांवड़ चल रही थी तबसे...political लोग समाजवादी पार्टी के, दोनों अधिकारियों को हटवाने के लिए लगे हुए थे....
आज तक- क्यों....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- भाई उनको लग रहा होगा....कि हमारे काम नहीं कर रहे है....right or wrong. यही कारण है और क्या है......
दरअसल 27 अगस्त को कवाल गांव की घटना छेड़छाड़ से शुरू हुई और दो गुटों के बीच झगड़े में तब्दील हो गई. ये सच है कि इस घटना में हत्या हुई, लेकिन ये भी सच है कि हत्या होने के बावजूद घटना ने कोई सांप्रदायिक रंग नहीं लिया. दिक्कत तब शुरु हुई जब डीएम और एसएसपी ने घर घर तलाशी लेनी शुरू की.
आज तक- सुनने में ये आया है कि डीएम साहब ने जो जो दंगाई थे....बवाली जो बवाल मचा रहे थे पकड़ लिए थे...गांव घेर लिया था पूरा..
समरपाल सिंह
, इंस्पेक्टर, भोपा- पूरा गांव घेरके...पुलिस सर्च कराई थी एसएसपी और डीएम ने....पकड़ लिए थे रात में.....
आज तक- ये तो अच्छा काम था.....
समरपाल सिंह
, इंस्पेक्टर, भोपा- और उसमें क्या कर सकते हैं ये हमारे से ऊपर की बात है.....
आज तक- वोट बैंक की राजनीति है, बहुत बुरी है...
समरपाल सिंह
, इंस्पेक्टर, भोपा- हां...
आज तक- दो दिन...चार दिन रुक करके हटाते तो शांत हो जाता मामला...
समरपाल सिंह
, इंस्पेक्टर, भोपा- हां...ये नौबत नहीं आती....
लेकिन दंगों की आड़ में ट्रांसफर, पोस्टिंग और सस्पेंशन का ही खेल नहीं हो रहा है, असली खेल तो वोट का था, और इसपर भी खुलासा किया उन लोगों ने जो मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे.
अनिरुद्ध कुमार गौतम, एसएचओ- पहले वाले डीएम और एसएसपी हमारे थे, दोनों मिलकर (घटना) को मैनेज कर सकते थे...आपने (सरकार) रात में चंद घंटों के अंदर...घटना के चंद घंटों के अंदर....उन्हें हटाया.
आज तक- उसकी इंस्पेक्टर साहब क्या वजह थी, उनकी क्या dealing सही नहीं थी...डीएम की.....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- डीएम की dealing बहुत बढ़िया था, दो साल कैसे निकाल जाते यहां. डेढ़ साल...दो साल...कैसे निकल गया यहां....अगर dealing बढ़िया ना होती. भाई इसी शासन नेउसे पोस्ट किया था डीएम. अगर इसकी dealing से लोग संतुष्ट ना होते तो डेढ़ पौने दो साल कैसे कट जाते.
आज तक- उस रात क्या वजह रही.....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- सब political stunt...
आज तक- मतलब उनको हटाना ग़लत फैसला था....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- भाई ये लोग उनको (DM/SSP) हटाने के लिए एक महीने से प्रयासरत थे....जब कांवड़ चल रही थी तबसे...political लोग समाजवादी पार्टी के, दोनों अधिकारियों को हटवाने के लिए लगे हुए थे....
आज तक- क्यों....
अनिरुद्ध कुमार गौतम
, एसएचओ- भाई उनको लग रहा होगा....कि हमारे काम नहीं कर रहे है....right or wrong. यही कारण है और क्या है......
आज तक- सुनने में ये आया है कि डीएम साहब ने जो जो दंगाई थे....बवाली जो बवाल मचा रहे थे पकड़ लिए थे...गांव घेर लिया था पूरा.....
आज तक का खुफिया कैमरा जहां-जहां पहुंचा, अखिलेश के अफसरों ने हमें भी चौंका दिया. और वही सच्चाई अब हम देश के सामने रख रहे हैं. बात मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना कोतवाली की. यहां के इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह ने दंगों का सच बताया तो एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना ने भी दंगों पर सियासी खोल को उघाड़ डाला.
ये हैं मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना कोतवाली के इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह. दंगे के सभी दिनों में ये इलाके में रात और दिन गश्त करते रहे. ज़ाहिर तौर पर इनपर भी हर तरह का राजनीतिक दबाव रहा.
किसको पकड़ना है, और किसको छोड़ना है, शायद ये फैसला यूपी में कोतवाल नहीं करते. इंस्पेक्टर ऋषिपाल का मानना है कि पहली बार शहर की जगह दंगे देहात में ज़्यादा फैले. अगर पर्याप्त संख्या में पुलिस फोर्स देहात के थानों में मुहैया कराई गई होती, जो कमज़ोर तबके के इतने लोग मारे ना गए होते. देर से पुलिस बल भेजे जाने के कारण गांव में हिंसा बिना रोक टोक चलती रही.
आज तक- (8 सितंबर को दंगा) सुबह 7 बजे से शुरु हो गया था
षिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- सुबह 7 बजे से कई गांव में...
आज तक- अच्छा...
ऋषिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- वही तो मैंने बताया...
आज तक- फोर्स पहुंची नहीं थी...
ऋषिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- 3-4 जगह...एक गांव में पहुंचकर control करा...
आज तक- अच्छा...सुबह सुबह फोर्स होगी नहीं थाने में....
ऋषिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- नहीं..थाने में...
आज तक- देर तक गश्त में थे...
ऋषिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- नहीं थाने में मेरे पास 20 सिपाही है, 3-4 दारोगा हैं, तो मैं कोशिश करूंगा कि पहले एक गांव में हिंसा हो गई तो मैं 4 सिपाही से हिंसा नहीं रुकवाउंगा.
मैं सोचता हूं कि पूरी फोर्स को लेकर हिंसा रोक दूं...लेकिन जबतक यहां हिंसा रोकता, तबतक दूसरी जगह हिंसा शुरु हो गई. दूसरी जगह पहुंते...तीसरी जगह हो गई.
आज तक- फोर्स कम थी...
ऋषिपाल
, इंस्पेक्टर, बुढ़ाना- फोर्स इतनी नहीं थी कि हर गांव में लगा दी जाती...
मुजफ्फरनगर की पुलिस अधीक्षक यानी एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना के हाथों में दंगाग्रस्त कई थानों की कमान थी. कल्पना सक्सेना का मानना है कि दंगों पर कहीं ना कहीं सियासी रंग चढ़ा है.
कल्पना सक्सेना, एसपी क्राइम- देखिए कई तरीके की बातें हुईं, बहुत सी बाते हैं....इस समय हम लोग बहुत प्रेशर में हैं....वर्क बहुत सारा है करने को...फुर्सत से बात करेंगे किसी दिन....
आज तक- लेकिन मैडम उसका जवाब दीजिए हमें आप. मतलब मर्डर को ऐसा सांप्रदायिक रंग क्यों दे दिया गया.
कल्पना सक्सेना
, एसपी क्राइम- देखिए मैं क्या कहूं....बहुत गहराई से बताऊं...इसमें बहुत कुछ political है, और यहां ऐसा चल रहा है कि मुस्लिम को कुछ लग रहा है. हिंदुओं को लग रहा है कि मुस्लिम appeasement (तुष्टीकरण) बहुत हो रहा है.....
आज तक के ऑपरेशन दंगा में वो सच सामने आया, जिससे मुजफ्फरनगर सुलग उठा था. हिंसा भले ही सुनियोजित ना हो, लेकिन हिंसा भड़काने में साज़िश और सियासत का घालमेल ज़रूर था.
 साभार -आज तक

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