मौलाना आज़ाद का ज़ामा मस्जिद से सम्बोधन " शाहजहाँ की तारीखी मस्जिद में इजतेमा का नजारा मेरे लिए गैर मारूफ़ नहीं है। यहाँ पर मैंने गुजिश्ता कई मवाक़े पर आप से खिताब किया है, तब से लेकर आज तक हमने बहुत से नशेब व फ़राज़ देखे हैं। उस वक्त थकावट के बावजूद आप के चेहरों से सुकून, झलकता था और आप के दिलों में शक व शुबहात के बजाये एतमाद होता था। आज मै आप के चेहरों पर परेशानी और दिलों में मायूसी देख रहा हूँ, जिसकी वजह से मुझे कुछ गुजिश्ता बरसों के वाकियात याद आ रहे हैं, क्या आप को वह याद है ? जब मैंने आप को खुश आमदीद कहा। आप ने मेरी जुबान तराश दी तो मैंने अपना कलम उठाया , आप ने मेरे हाथ काट दिए तो मैंने आगे बढ़ना चाहा, मेरी पुश्त को जख्मी कर दिया और मेरी टाँगे तोड़ दी। तो मै ने दौड़ने की कोशिश की।
गुजिश्ता सात बरसों के दौरान जब सियासी खेल अपने नुक्ते उरूज पर थे, तो मैंने हर खतरे का इशारा दे कर आप को बेदार करने की कोशिश की थी। आप ने सिर्फ मेरी बात को नजर अंदाज किया, बल्कि फरामोश करने की गुजिश्ता खायतों और तकज़ीब की रविश को दोबारा दोबारा ज़िंदा कर दिया। इसी के नतीजे में आज यह खतरा आप के चारों तरफ मंडरा रहा है, जिस के आगाज ने पहले ही आप को सही रास्ते से भटका दिया था। आज मैं एक मजइल व तनहा आह व जारी करने वाले के अलावा कुछ नहीं हूँ। मैं अपने ही मादरे वतन में एक यतीम की मानिंद हूँ। इस का हरगिज यह मतलब नहीं है कि मैं अपने इस बुनियादी ख्याल में उलझा हुआ हूँ , जो मैंने अपने लिए सोचा था और न ही यह महसूस करता हूँ कि मेरे आशियाने के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है। इसका मतलब यह है कि आप के ढीट हाथों से मेरा फ़रसूदा चोगा तार तार हो गया है। मेरे जज़बात मजरूह हुए हैं और मेरा दिल मुजतरिब है। एक लम्हे के लिए गौर कीजिये। आप ने क्या रास्ता अख्तियार किया है। आप कहाँ पहुँच गए हैं और आप अब कहाँ खड़े हुए हैं ? क्या आप की सूझ बूझ ख्वाबीदा नहीं हो गयी है ? क्या आप मसलसल खौफ के माहौल में नहीं रह रहे हैं ? यह खौफ आप की अपनी खुद की पैदावार है, यह आप के अपने कार्यों का फल है।
राष्ट्रीय सहारा उर्दू से साभार
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