प्रशासन की भूमिका
पिछले वर्ष हुए साम्प्रदायिक दंगों कोसीकलाँ, प्रतापग़, बरेली, गाज़ियाबाद और फ़ैज़ाबाद आदि की कड़ुवाहट अभी ख़त्म भी नहीं हो पाई थी कि इन दंगों की कड़ी में हाल ही में मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और मुस्लिमों के बीच साम्प्रदायिक दंगा भड़क उठा। इस दंगे को आज़ाद हिन्दुस्तान में गुजरात के बाद सबसे बड़ा दंगा कहा जा रहा है। इस क्षेत्र में इमेरजेंसी के समय दंगा भड़का था लेकिन उसकी सूरत ऐसी नहीं थी जिसको देखकर मुर्दा दिल भी पसीज जाए। इस साम्प्रदायिक दंगे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मुसलमानों का न कोई मार्गदशर्क है और न ही कोई उनकी सुनने वाला है। राजनैतिक गलियों में मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा जाता है और कुछ नहीं। इस दंगे को आर.एस.एस. की साज़िश बताया जा रहा है, और कुछ लोग इसे सरकार की नाकामी का नाम दे रहे हैं। दंगे में मरने वालों में सबसे अधिक संख्या में मुसलमान हैं विशोष रूप से बुर्जुगों और मुस्लिम लड़कियों को निशाना बनाया गया। जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है वहाँ खास तौर से मुसलमानों पर हमले हुए। उ0प्र0 सरकार ने मौक़े पर लापरवाही बरती है। यह सब सरकार और प्रशासन की सुस्ती का नतीजा है। प्रशासन ने समय पर कार्यवाही न करके एक बार फिर निष्क्रियता का परिचय दिया है। पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता के चलते साम्प्रदायिक तत्व अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होते जा रहे हैं।
दंगे के दौरान प्रशासन का रवैया
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को लेकर उ0प्र0 सरकार संदेह के घेरे में है। जब सरकार को इन हालात के बारे में मालूम था तो उन्होंने समय रहते कार्यवाही क्यों नहीं की। यह पहली बार हुआ कि एक के बाद एक मुस्लिम संगठन अखिलेश सरकार हटाने की माँग करने लगे। साम्प्रदायिकता के खेल के दूसरे सिरे पर भा.ज.पा. है जिसे उ0प्र0 जैसे बड़े राज्य में हमेशा किसी ऐसे अवसर की तलाश रहती है। पिछले अवसरों के मुक़ाबले में इस बार फ़र्क सिफ़र इतना है कि यह माहौल बनाकर मुलायम सिंह और इनकी पार्टी की सरकार ने भाजपा को यह अवसर सौग़ात में दे दिया। चौरासी कोसी परिक्रमा की नाकाम कोशिश के बहाने जो भा.ज.पा. नहीं कर पाई वो रास्ता समाजवादी पार्टी ने उसके लिए आसान कर दिया। यही नहीं मुज़फ्फरनगर के इस दंगे ने चौधरी चरण सिंह के समय से बनी मुस्लिम और जाटों की बरसों पुरानी एकता को भी तोड़ दिया। दंगे पहली बार शहर से निकलकर गाँव तक पहुँच गए। दंगों पर अफ़सोस करने वाले भाजपा नेताओं की दबी हुई ख़ुशी उनके चेहरों से देखते ही झलकती है।
भाजपा के सभी नेता अपनी सफ़ाई पेश करने में लगे हैं, और महापंचायत का ठीकरा एक दूसरे के सर पर फोड़ रहे हैं। यह महापंचायत ही मुज़फ़्फ़रनगर के दंगे की जड़ बनी। भाजपा नेताओं ने पंचायत में जाटों को मुसलमानो के ख़िलाफ़ भड़काया। अब यह सभी नेता ख़ुद को बेगुनाह बता रहे हैं और इस महापंचायत को ’’बेटी बचाओ पंचायत’’ का नाम दे रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि ’बेटी बचाओ पंचायत’ में हथियारों की क्या ज़रुरत थी। जो लोग हाथों में लाठी, डंडे और नंगी तलवारें लेकर आए, प्रशासन ने उनको क्यों नहीं रोका और पंचायत में मुसलमानों के खिलाफ़ ज़हर क्यों उगला गया। इन सभी बातों से यह साबित होता है कि यह महापंचायत एक सोची समझी साज़िशके तहत बुलाई गई थी। दंगा भड़काने के इल्ज़ाम में भाजपा के कई बड़े नेता, हुकम सिंह, सुरेश राना, भारतेंदु संगीत सोम, साध्वी प्राची और इनके अलावा चौ0 टिकैत के दोनों बेटे नरेश टिकैत, राकेश टिकैत और हरिन्दर मलिक और ’बहुजन समाज पार्टी’ के नूर सलीम राना और कादिर राना पर भी मुक़द्मा दर्ज किया गया था। इनमें भाजपा के सुरेश राणा और संगीत सिंह सोम को गिरफ़्तार कर लिया गया। संगीत सिंह सोम और भाजपा विधायक सुरेश राणा पर 31 अगस्त और 7 सितम्बर की नंगला मंदौड़ की महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने और हिंसा भड़काने के आरोप में रासुका लगाई गई।
1. पिछले 89 महीनों से ज़िले में साम्प्रदायिक प्रक्रिया के संकेत दिखाई दे रहे थे। लेकिन प्रशासन और राज्य खुफ़िया विभाग ख़तरे का आंकलन करने में विफ़ल रहा या नफ़रत फैलाने में संघ के साथ मिल गया।
2. जब एस0एच0ओ0 फुगाना, एस0एच0ओ0 भौंराकला और एस0एस0पी0 ने कोई जवाब नहीं दिया, तो सहारनपुर रेंज के आयुक्त सेना के साथ गाँव के लिए रवाना हुए। उन्होंने 2000 से अधिक लोगों की जान बचाई।
3. अधिकांश एफ0आई0आर0 नाम से पंजीकृत हो रही हैं, लेकिन आरोपी अभी भी मुक्त घूम रहे हैं।
4. गाँव लिसाड़ के अजीत प्रधान साम्प्रदायिक हिंसा के समय पुलिस के साथ था। वह लगभग 20 एफ0आई0आर0 में नामित किया गया है।
5. इन पुलिस थानों में तैनात अधिकांश पुलिस कर्मियों में जो जाट समुदाय से थे, वे दंगाइयों के साथ मिल गए थे।
6. पुलिस कर्मियों में से अधिकांश अपने व्यवहार में अत्यधिक पक्षपातपूर्ण थे।
7. कई दंगा पीड़ितों ने हमें बताया, पुलिस कर्मियों ने उनसे कहा कि, ’’वे उन्हें नहीं बचा सकते क्योंकि वे मुसलमान हैं।’’
8. स्थानीय पुलिस थानों में तैनात लोग मुसलमानों के खिलाफ़ पक्षपातपूर्ण हैं। जिसके परिणाम स्वरूप थानों में मामले दर्ज नहीं किए जा रहे।
9. घटना के दिन , सुबह से ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थाने में फोन कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने कोई भी प्रतिक्रिया करने से इन्कार कर दिया।
10. पर्याप्त पुलिस व्यवस्था भी परिस्थितियों को सँभाल नहीं सकी, जो कि पिछले 8 से 9 महीनों के लिए विकसित की गई थी।
नारे
1.’’तुमने दो को मारा है, हम सौ
कटवे मारेंगे।’’
2.’’सोनीसोनी लड़कियों के सिन्दूर
भर देंगे, बाकियों को काट देंगे।’’
3.’’ मोदी लाओ, देश बचाओ।’’
4.’’मोदी को लाना है, गोधरा बनाना
है।’’
5.’’देश, बहू और गाय को बचाना
है, तो नरेन्द्र मोदी को लाना है।’’
6’’मुसलमानों का एक स्थान
कब्रिस्तान या पाकिस्तान।’’
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
पिछले वर्ष हुए साम्प्रदायिक दंगों कोसीकलाँ, प्रतापग़, बरेली, गाज़ियाबाद और फ़ैज़ाबाद आदि की कड़ुवाहट अभी ख़त्म भी नहीं हो पाई थी कि इन दंगों की कड़ी में हाल ही में मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और मुस्लिमों के बीच साम्प्रदायिक दंगा भड़क उठा। इस दंगे को आज़ाद हिन्दुस्तान में गुजरात के बाद सबसे बड़ा दंगा कहा जा रहा है। इस क्षेत्र में इमेरजेंसी के समय दंगा भड़का था लेकिन उसकी सूरत ऐसी नहीं थी जिसको देखकर मुर्दा दिल भी पसीज जाए। इस साम्प्रदायिक दंगे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मुसलमानों का न कोई मार्गदशर्क है और न ही कोई उनकी सुनने वाला है। राजनैतिक गलियों में मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा जाता है और कुछ नहीं। इस दंगे को आर.एस.एस. की साज़िश बताया जा रहा है, और कुछ लोग इसे सरकार की नाकामी का नाम दे रहे हैं। दंगे में मरने वालों में सबसे अधिक संख्या में मुसलमान हैं विशोष रूप से बुर्जुगों और मुस्लिम लड़कियों को निशाना बनाया गया। जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है वहाँ खास तौर से मुसलमानों पर हमले हुए। उ0प्र0 सरकार ने मौक़े पर लापरवाही बरती है। यह सब सरकार और प्रशासन की सुस्ती का नतीजा है। प्रशासन ने समय पर कार्यवाही न करके एक बार फिर निष्क्रियता का परिचय दिया है। पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता के चलते साम्प्रदायिक तत्व अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होते जा रहे हैं।
दंगे के दौरान प्रशासन का रवैया
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को लेकर उ0प्र0 सरकार संदेह के घेरे में है। जब सरकार को इन हालात के बारे में मालूम था तो उन्होंने समय रहते कार्यवाही क्यों नहीं की। यह पहली बार हुआ कि एक के बाद एक मुस्लिम संगठन अखिलेश सरकार हटाने की माँग करने लगे। साम्प्रदायिकता के खेल के दूसरे सिरे पर भा.ज.पा. है जिसे उ0प्र0 जैसे बड़े राज्य में हमेशा किसी ऐसे अवसर की तलाश रहती है। पिछले अवसरों के मुक़ाबले में इस बार फ़र्क सिफ़र इतना है कि यह माहौल बनाकर मुलायम सिंह और इनकी पार्टी की सरकार ने भाजपा को यह अवसर सौग़ात में दे दिया। चौरासी कोसी परिक्रमा की नाकाम कोशिश के बहाने जो भा.ज.पा. नहीं कर पाई वो रास्ता समाजवादी पार्टी ने उसके लिए आसान कर दिया। यही नहीं मुज़फ्फरनगर के इस दंगे ने चौधरी चरण सिंह के समय से बनी मुस्लिम और जाटों की बरसों पुरानी एकता को भी तोड़ दिया। दंगे पहली बार शहर से निकलकर गाँव तक पहुँच गए। दंगों पर अफ़सोस करने वाले भाजपा नेताओं की दबी हुई ख़ुशी उनके चेहरों से देखते ही झलकती है।
भाजपा के सभी नेता अपनी सफ़ाई पेश करने में लगे हैं, और महापंचायत का ठीकरा एक दूसरे के सर पर फोड़ रहे हैं। यह महापंचायत ही मुज़फ़्फ़रनगर के दंगे की जड़ बनी। भाजपा नेताओं ने पंचायत में जाटों को मुसलमानो के ख़िलाफ़ भड़काया। अब यह सभी नेता ख़ुद को बेगुनाह बता रहे हैं और इस महापंचायत को ’’बेटी बचाओ पंचायत’’ का नाम दे रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि ’बेटी बचाओ पंचायत’ में हथियारों की क्या ज़रुरत थी। जो लोग हाथों में लाठी, डंडे और नंगी तलवारें लेकर आए, प्रशासन ने उनको क्यों नहीं रोका और पंचायत में मुसलमानों के खिलाफ़ ज़हर क्यों उगला गया। इन सभी बातों से यह साबित होता है कि यह महापंचायत एक सोची समझी साज़िशके तहत बुलाई गई थी। दंगा भड़काने के इल्ज़ाम में भाजपा के कई बड़े नेता, हुकम सिंह, सुरेश राना, भारतेंदु संगीत सोम, साध्वी प्राची और इनके अलावा चौ0 टिकैत के दोनों बेटे नरेश टिकैत, राकेश टिकैत और हरिन्दर मलिक और ’बहुजन समाज पार्टी’ के नूर सलीम राना और कादिर राना पर भी मुक़द्मा दर्ज किया गया था। इनमें भाजपा के सुरेश राणा और संगीत सिंह सोम को गिरफ़्तार कर लिया गया। संगीत सिंह सोम और भाजपा विधायक सुरेश राणा पर 31 अगस्त और 7 सितम्बर की नंगला मंदौड़ की महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने और हिंसा भड़काने के आरोप में रासुका लगाई गई।
1. पिछले 89 महीनों से ज़िले में साम्प्रदायिक प्रक्रिया के संकेत दिखाई दे रहे थे। लेकिन प्रशासन और राज्य खुफ़िया विभाग ख़तरे का आंकलन करने में विफ़ल रहा या नफ़रत फैलाने में संघ के साथ मिल गया।
2. जब एस0एच0ओ0 फुगाना, एस0एच0ओ0 भौंराकला और एस0एस0पी0 ने कोई जवाब नहीं दिया, तो सहारनपुर रेंज के आयुक्त सेना के साथ गाँव के लिए रवाना हुए। उन्होंने 2000 से अधिक लोगों की जान बचाई।
3. अधिकांश एफ0आई0आर0 नाम से पंजीकृत हो रही हैं, लेकिन आरोपी अभी भी मुक्त घूम रहे हैं।
4. गाँव लिसाड़ के अजीत प्रधान साम्प्रदायिक हिंसा के समय पुलिस के साथ था। वह लगभग 20 एफ0आई0आर0 में नामित किया गया है।
5. इन पुलिस थानों में तैनात अधिकांश पुलिस कर्मियों में जो जाट समुदाय से थे, वे दंगाइयों के साथ मिल गए थे।
6. पुलिस कर्मियों में से अधिकांश अपने व्यवहार में अत्यधिक पक्षपातपूर्ण थे।
7. कई दंगा पीड़ितों ने हमें बताया, पुलिस कर्मियों ने उनसे कहा कि, ’’वे उन्हें नहीं बचा सकते क्योंकि वे मुसलमान हैं।’’
8. स्थानीय पुलिस थानों में तैनात लोग मुसलमानों के खिलाफ़ पक्षपातपूर्ण हैं। जिसके परिणाम स्वरूप थानों में मामले दर्ज नहीं किए जा रहे।
9. घटना के दिन , सुबह से ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थाने में फोन कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने कोई भी प्रतिक्रिया करने से इन्कार कर दिया।
10. पर्याप्त पुलिस व्यवस्था भी परिस्थितियों को सँभाल नहीं सकी, जो कि पिछले 8 से 9 महीनों के लिए विकसित की गई थी।
नारे
1.’’तुमने दो को मारा है, हम सौ
कटवे मारेंगे।’’
2.’’सोनीसोनी लड़कियों के सिन्दूर
भर देंगे, बाकियों को काट देंगे।’’
3.’’ मोदी लाओ, देश बचाओ।’’
4.’’मोदी को लाना है, गोधरा बनाना
है।’’
5.’’देश, बहू और गाय को बचाना
है, तो नरेन्द्र मोदी को लाना है।’’
6’’मुसलमानों का एक स्थान
कब्रिस्तान या पाकिस्तान।’’
-डा0 मोहम्मद आरिफ
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
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