रंगभेद विरोधी आंदोलन के प्रणेता और दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के निधन के बाद पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ जाना और उनके पार्थिव शरीर को करीब आठ दिनों तक लोगों के दर्शन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु रखा जाना कोई आकस्मिक घटना नहीं थी द्य नेल्सन मंडेला को उनके पुश्तैनी गाँव कुनू में सुपुर्दे ख़ाक करने के वक्त रंग भेद विरोधी आन्दोलन के महा नायक के परिजनों के साथ साथ दुनिया के हजारों विशिष्ट और अतिविशिष्ट लोगों व उनके चहेतों द्वारा मर्म स्पर्शी श्रद्धांजलि अर्पित किया जाना केवल एक व्यक्ति ही नहीं अपितु एक महान उद्देश्य के प्रतिबिम्ब के प्रति भी आदर दर्शाना था
बेशक ऐसे लोग दुनिया में कभी कभी ही पैदा होतें हैं . एक कैदी से देश के राष्ट्रपति बनने तक का मंडेला का जो असाधारण सफ़र रहा वह उनके व्यक्तित्व की यह पहचान है की वो एक साधारण नहीं बल्कि असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे , एक अलग रूप के मानव थे. अश्वेतों के साथ हो रहे ज़ुल्म ,प्रताड़ना और नस्ली भेद भाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने की सजा के तौर पर उन्हें उम्र कैद दिया गया था मगर उनकी इस भावना , लोकप्रियता और उनके आन्दोलन की सफलता को देखते हुए ज़ुल्म करने वाले दुनिया के विकसित और ताकतवर देशों ने यह महसूस किया और उन्हें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा की नहीं ये विरोध हम कालांतर में बरदाश्त नहीं कर सकेंगें , लोगों का गुस्सा और प्रतिशोध हम लोगों के ऊपर फूटता जाएगा और हमलोगों के कार्यों का प्रतिकार होता जाएगा और अंततः हुआ भी वही. मंडेला की लोकप्रियता और लोगों का उनके प्रति स्नेह को देखते हुए शोषकों को उनके आगे झुकना पड़ा और एक कैदी ! को देश की सर्वाेच्च सत्ता को सौंपना पड़ा .
मंडेला की मनःस्थिति और उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए जीत के बाद का उनका यह कथन “ बस हम लोग केवल एक दिन जश्न मनाएंगे , किसी के प्रति बदले की भावना नहीं रखेंगें और परसों से शांति पूर्ण ढंग से देश की विकास में लग जायेंगें ” काफी है । निःसंदेह नेल्सन मंडेला ,गाँधी ,आन सान सू की, एनोम चानू शर्मीला जैसे लोग समाजवादियों और उन तमाम लोग जो मानवता के प्रति संवेदनशील हैं और दमन और अन्याय के खिलाफ संघर्षरत हैं, के लिए प्रेरणा स्रोत हैं .
मंडेला ने अपने जीवन के बेहतरीन लम्हें मानवता की लड़ाई में समर्पित कर दिया ,उन्होंने अज्ञातवास का जीवन चुना और एक ऐसे समाज , एक ऐसी संस्कृति को निर्मित करने का प्रयत्न किया की मानव मानव है और उसके अंदर भेद भाव नहीं होना चाहिए. उन्होंने न केवल शोषकों से लड़ा बल्कि अपने घुर विरोधियों के प्रति भी एक छमा की भावना दर्शाया . उन्होंने उनका भी किसी न किसी रूप में भरोसा जीता की वे भी मंडेला की सोंच और भावना की कद्र करने पर मजबूर हुए और वे मंडेला के करोड़ों समर्थकों के आगे झुकने पर मजबूर हुए इसी का उदाहरण था की मंडेला २७ वर्षों तक कारावास में रहने के बावजूद देश के सर्वाेच्च पद पर आसीन हुए और दुनिया ने उनका लोहा माना .
जिन कारणों से मंडेला ने श्वेतों से लड़ा उसे देखते हुए मंडेला को अगर एक अश्वेत गाँधी की संज्ञा दी जाए तो शायद यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.मंडेला को प्रेरणा भी बापू से ही मिली थी. इसका जि़क्र उन्होंने टाइम पत्रिका को दिए गए साछात्कार में स्वयं किया था. मंडेला को भारत से गहरा जुड़ाव था. भारत के साथ नेल्सन मंडेला का गहरा रिश्ता होने की पृष्ठभूमि बहुत पहले ही तैयार हो चुकी थी जब महात्मा गाँधी ने दछिण अफ्रीका में २१ वर्ष बिताए थे. गाँधी के अश्वेतों के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई का प्रभाव कहीं न कहीं मंडेला के मन मस्तिष्क पर अवश्य पड़ा था तभी तो मंडेला ने अपने भारत यात्रा के दौरान कहा था की “भारत आना तो घर आना जैसा है. यह तो महान नेताओं की पवित्र भूमि है और यहाँ तक पहुंचना तीर्थयात्रा है ”. जेल से रिहा होने के बाद वो कई बार भारत आए थे. भारत सरकार सहित यहाँ के लोगों ने भी उन्हें हाथो हाथ लिया था और उन्हें भारत के लोगों ने भी पूरा नैतिक समर्थन दिया था. उन्हें भारत का सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” से भी नवाज़ा गया था. १९९९ में मंडेला को अहिंसा के वैश्विक आन्दोलन के लिए गांधी किंग एडवर्ड पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. मंडेला को पूरी दुनिया से करीब २५० से भी अधिक एवार्डों से नवाज़ा गया था. वैश्विक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें फ्रेडरिक डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से १९९३ में शान्ति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
सत्ता प्राप्ति के बाद जिस तरह से मंडेला ने दुनिया के दूसरे देशों के साथ दोस्ताना रवैय्या अपनाया और अपने लक्ष्य की प्राप्ति और रंगभेद की लड़ाई की खातिर एक सकारात्मक रास्ते को चुना,यही कारण था की दुनियां में उनका नाम आदरपूर्वक लिया जाने लगा और उनके अंतिम सांस तक लोगों के दिलों में उनका प्यार बना रहा. मंडेला, गांधी जैसे लोगों का आचरण, दूसरों की भलाई के लिए समर्पण, शत्रुओं के लिए भी छमा एवं प्रेम का भाव जैसी चीज़ें हैं जो लोगों को इन जैसे लोगों के प्रति प्रेरित करती हैं. त्याग,बलिदान, अहिंसा और प्रतिद्वंदियों के प्रति छमा का भाव इनकी ऐसी पूँजी होती हैं जो करोड़ों लोगों को इनका अनुयायी बनाती हैं और इनके जीवन से शिक्षा प्राप्त कर करोंड़ों लोगों की एक जमात तैयार हो जाती है जो इनके पदचिन्हों पर चलकर इनके जीवन के बाद भी रंगभेद,ज़ुल्म ओ सितम की खातिर शोषकों से लड़ने को तैयार रहती है.
यही इन जैसे लोगों के लिए वास्तविक जीत है, सबसे बड़ा पुरस्कार है. अनेक ऐसे लोग होते हैं जो हिंसा या अन्य कार्यों के कारण जेल जाते हैं मगर वे गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं,पर मंडेला का जीवन जेल जाने के बाद भी एक आदर्श बना रहा और उनकी मृत्यु के बाद भी उनका नाम जीवित रहेगा. दुनियां में जिस वर्ग, नस्ल, स्थान में भी यदि वर्गभेद,शोषण, प्रताड़ना हो वहाँ मानव के प्रति संवेदनशील लोगों को मंडेला जैसे लोगों को आदर्श मानकर इन सब कुरीतियों का विरोध करना चाहिए, और ऊँच नीच , ज़ुल्म ओ सितम, रंगभेद की बेडि़यों को काटने में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए, और उसके लिए शांतिपूर्ण ढंग से लड़ाई लड़ते रहना चाहिए. यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
-के०ई०सैम
मो. 09304015014
बेशक ऐसे लोग दुनिया में कभी कभी ही पैदा होतें हैं . एक कैदी से देश के राष्ट्रपति बनने तक का मंडेला का जो असाधारण सफ़र रहा वह उनके व्यक्तित्व की यह पहचान है की वो एक साधारण नहीं बल्कि असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे , एक अलग रूप के मानव थे. अश्वेतों के साथ हो रहे ज़ुल्म ,प्रताड़ना और नस्ली भेद भाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने की सजा के तौर पर उन्हें उम्र कैद दिया गया था मगर उनकी इस भावना , लोकप्रियता और उनके आन्दोलन की सफलता को देखते हुए ज़ुल्म करने वाले दुनिया के विकसित और ताकतवर देशों ने यह महसूस किया और उन्हें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा की नहीं ये विरोध हम कालांतर में बरदाश्त नहीं कर सकेंगें , लोगों का गुस्सा और प्रतिशोध हम लोगों के ऊपर फूटता जाएगा और हमलोगों के कार्यों का प्रतिकार होता जाएगा और अंततः हुआ भी वही. मंडेला की लोकप्रियता और लोगों का उनके प्रति स्नेह को देखते हुए शोषकों को उनके आगे झुकना पड़ा और एक कैदी ! को देश की सर्वाेच्च सत्ता को सौंपना पड़ा .
मंडेला की मनःस्थिति और उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए जीत के बाद का उनका यह कथन “ बस हम लोग केवल एक दिन जश्न मनाएंगे , किसी के प्रति बदले की भावना नहीं रखेंगें और परसों से शांति पूर्ण ढंग से देश की विकास में लग जायेंगें ” काफी है । निःसंदेह नेल्सन मंडेला ,गाँधी ,आन सान सू की, एनोम चानू शर्मीला जैसे लोग समाजवादियों और उन तमाम लोग जो मानवता के प्रति संवेदनशील हैं और दमन और अन्याय के खिलाफ संघर्षरत हैं, के लिए प्रेरणा स्रोत हैं .
मंडेला ने अपने जीवन के बेहतरीन लम्हें मानवता की लड़ाई में समर्पित कर दिया ,उन्होंने अज्ञातवास का जीवन चुना और एक ऐसे समाज , एक ऐसी संस्कृति को निर्मित करने का प्रयत्न किया की मानव मानव है और उसके अंदर भेद भाव नहीं होना चाहिए. उन्होंने न केवल शोषकों से लड़ा बल्कि अपने घुर विरोधियों के प्रति भी एक छमा की भावना दर्शाया . उन्होंने उनका भी किसी न किसी रूप में भरोसा जीता की वे भी मंडेला की सोंच और भावना की कद्र करने पर मजबूर हुए और वे मंडेला के करोड़ों समर्थकों के आगे झुकने पर मजबूर हुए इसी का उदाहरण था की मंडेला २७ वर्षों तक कारावास में रहने के बावजूद देश के सर्वाेच्च पद पर आसीन हुए और दुनिया ने उनका लोहा माना .
जिन कारणों से मंडेला ने श्वेतों से लड़ा उसे देखते हुए मंडेला को अगर एक अश्वेत गाँधी की संज्ञा दी जाए तो शायद यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.मंडेला को प्रेरणा भी बापू से ही मिली थी. इसका जि़क्र उन्होंने टाइम पत्रिका को दिए गए साछात्कार में स्वयं किया था. मंडेला को भारत से गहरा जुड़ाव था. भारत के साथ नेल्सन मंडेला का गहरा रिश्ता होने की पृष्ठभूमि बहुत पहले ही तैयार हो चुकी थी जब महात्मा गाँधी ने दछिण अफ्रीका में २१ वर्ष बिताए थे. गाँधी के अश्वेतों के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई का प्रभाव कहीं न कहीं मंडेला के मन मस्तिष्क पर अवश्य पड़ा था तभी तो मंडेला ने अपने भारत यात्रा के दौरान कहा था की “भारत आना तो घर आना जैसा है. यह तो महान नेताओं की पवित्र भूमि है और यहाँ तक पहुंचना तीर्थयात्रा है ”. जेल से रिहा होने के बाद वो कई बार भारत आए थे. भारत सरकार सहित यहाँ के लोगों ने भी उन्हें हाथो हाथ लिया था और उन्हें भारत के लोगों ने भी पूरा नैतिक समर्थन दिया था. उन्हें भारत का सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” से भी नवाज़ा गया था. १९९९ में मंडेला को अहिंसा के वैश्विक आन्दोलन के लिए गांधी किंग एडवर्ड पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. मंडेला को पूरी दुनिया से करीब २५० से भी अधिक एवार्डों से नवाज़ा गया था. वैश्विक स्तर पर उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें फ्रेडरिक डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से १९९३ में शान्ति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
सत्ता प्राप्ति के बाद जिस तरह से मंडेला ने दुनिया के दूसरे देशों के साथ दोस्ताना रवैय्या अपनाया और अपने लक्ष्य की प्राप्ति और रंगभेद की लड़ाई की खातिर एक सकारात्मक रास्ते को चुना,यही कारण था की दुनियां में उनका नाम आदरपूर्वक लिया जाने लगा और उनके अंतिम सांस तक लोगों के दिलों में उनका प्यार बना रहा. मंडेला, गांधी जैसे लोगों का आचरण, दूसरों की भलाई के लिए समर्पण, शत्रुओं के लिए भी छमा एवं प्रेम का भाव जैसी चीज़ें हैं जो लोगों को इन जैसे लोगों के प्रति प्रेरित करती हैं. त्याग,बलिदान, अहिंसा और प्रतिद्वंदियों के प्रति छमा का भाव इनकी ऐसी पूँजी होती हैं जो करोड़ों लोगों को इनका अनुयायी बनाती हैं और इनके जीवन से शिक्षा प्राप्त कर करोंड़ों लोगों की एक जमात तैयार हो जाती है जो इनके पदचिन्हों पर चलकर इनके जीवन के बाद भी रंगभेद,ज़ुल्म ओ सितम की खातिर शोषकों से लड़ने को तैयार रहती है.
यही इन जैसे लोगों के लिए वास्तविक जीत है, सबसे बड़ा पुरस्कार है. अनेक ऐसे लोग होते हैं जो हिंसा या अन्य कार्यों के कारण जेल जाते हैं मगर वे गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं,पर मंडेला का जीवन जेल जाने के बाद भी एक आदर्श बना रहा और उनकी मृत्यु के बाद भी उनका नाम जीवित रहेगा. दुनियां में जिस वर्ग, नस्ल, स्थान में भी यदि वर्गभेद,शोषण, प्रताड़ना हो वहाँ मानव के प्रति संवेदनशील लोगों को मंडेला जैसे लोगों को आदर्श मानकर इन सब कुरीतियों का विरोध करना चाहिए, और ऊँच नीच , ज़ुल्म ओ सितम, रंगभेद की बेडि़यों को काटने में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए, और उसके लिए शांतिपूर्ण ढंग से लड़ाई लड़ते रहना चाहिए. यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
-के०ई०सैम
मो. 09304015014
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