दंगे जलते हुए घर और वाहन
इस भयानक दंगें में हजा़रों लोग अपने आप को असुरक्षित समझते हुए अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हुए और उन्होंने आसपास के गाँवों में शरण ली। चिन्ताजनक बात यह है कि दंगें को नियन्ति्रत करने में पुलिस और प्रशासन ने ज़बरदस्त लापरवाही का सुबूत दिया। अगर शासन और प्रशासन पहले से ही कोशिश करता कि दंगा न हो तो फिर ये दंगा न फूटता। स्थिति तो 12 दिन पूर्व ही तनाव पूर्ण थी और दफा 144 भी लागू थी। फिर भी शरारती तत्वों को महापंचायत करने से नहीं रोका गया जिसमें बड़ॣ संख्या में भा.ज.पा. के स्थानीय नेताओं समेत बहुसंख्यक समुदाय के लगभग 50 हज़ार लोगों ने ब़चढ़ कर हिस्सा लिया और दंगे के लिए वातावरण तैयार किया। महापंचायत में मुसलमानों को मारने की क़समें खाई गईं। उनके खिलाफ़ नारे लगाए गए, ’’मुसलमानों का एक ही थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान ’’। महापंचायत में बहुसंख्यक समुदाय के लोग नंगी तलवारें और अन्य हथियार लेकर शामिल हुए और फ़िर दंगा भड़काना शुरू कर दिया। इसके बाद भी प्रशासन ने दंगे को नियन्ति्रत करने में इस क़दर सुस्ती बरती कि दंगाई हमेशा की तरह पुलिस की मौजूदगी में आगज़नी, लूटपाट और क़त्लओ-गा़रत करते रहे और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मरते रहे। पुलिस ने, जिसका काम ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकना है, उसने जु़ल्म को ब़ावा देने के लिए दंगाइयों के लिए जैसे इंधन ही उपलब्ध करा दिया हो।
सितम्बर में नंगला मंदौेड़ की महापंचायत
इन गाँवों, कस्बों में हैं शरणार्थी:
जौला, शफ़ीपुर पट्टी, लोई, जोगी खेड़ा, मंडवाला, बसींकला, शिकारपुर, शाहपुर, हबीबपुर, रसूलपुर दभेड़ी, हुसैनपुर कलां, बु़ाना, जसोई, साँझक, खतौली, तावली, बघरा, सौंटा रसूलपुर, शामली, ग़ी पुख़्ता, कैराना, मलकपुर, नूरखेड़ा, ग़ी दौलत, काँधला, काँधला देहात गँगेरु, आल्दी, थानाभवन, जलालाबाद, लोनी, खतौली आदि।
काँधला समेत ग़ी दौलत और कैराना में 18 हज़ार, गँगेरु आल्दी में करीब 7 हज़ार, शामली में 14 हज़ार से ज़्यादा, थाना भवन में 116 परिवार, जलालाबाद में 200 और लोनी के मदरसे में 2833 लोग पनाह लिए हुए हैं। इनमें गाँव लिसा़, लाँक, बहावड़ी, हसनपुर, खरड़, फ़ुगाना, सिंभालका, कुटबा कुटबी, मोहम्मदपुर रायसिंह, और बाग़पत के गाँव लूंब, तुगाना, हेवा, किरहल, बू़पुर, रमाला आदि गाँव के क़रीब ाई हज़ार लोग पनाह लिए हुए हैं। शरणार्थी शिविरों में यह लोग सरकारी राहत सामग्री का इन्तज़ार कर रहे हैं। यहाँ ग्रामीण आसपास के शहरों और कस्बों से राशन, कपड़े, कम्बल और ज़रूरत का लगभग सभी सामान जुटाकर इन सभी लोगों के लिए भोजनपानी और सुरक्षित रहने का इन्तज़ाम कर रहे हैं। रात में महिलाएँ सोती हैं तो पुरुष पहरा देते हैं। लोग अपने गाँव वापस आने से डरते हैं। लेकिन न तो उ0प्र0 सरकार और न ही केन्द्र सरकार से अब तक कोई मदद उन तक पहुँच पाई है।
पलायन करते हुए लोग व दंगे में घायल और भूख से बिलखते मासूम
प्रत्यक्षदिशर्यों के अनुसार :
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारो लोगों को शरणार्थी बना दिया है। राहत कैम्पों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों मे बदल गई। लगभग 7080 हज़ार लोग साम्प्रदायिक हिंसा में बेघर हो गए और अब शरणार्थी शिविरों में अपना जीवन गुजार रहे हैं। हमारी पाँच सदस्यीय टीम ने शरणार्थी कैम्पों का दौरा कर कैम्पों में रह रहे पुरुषों और महिलाओं से बात की।
थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान ’’। महापंचायत में बहुसंख्यक समुदाय के लोग नंगी तलवारें और अन्य हथियार लेकर शामिल हुए और फ़िर दंगा भड़काना शुरू कर दिया। इसके बाद भी प्रशासन ने दंगे को नियन्ति्रत करने में इस क़दर सुस्ती बरती कि दंगाई हमेशा की तरह पुलिस की मौजूदगी में आगज़नी, लूटपाट और क़त्लओ-गा़रत करते रहे और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मरते रहे। पुलिस ने, जिसका काम ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकना है, उसने जु़ल्म को ब़ावा देने के लिए दंगाइयों के लिए जैसे इंधन ही उपलब्ध करा दिया हो।
सितम्बर में नंगला मंदौड़ की महापंचायत
इन गाँवों, कस्बों में हैं शरणार्थी:
जौला, शफ़ीपुर पट्टी, लोई, जोगी खेड़ा, मंडवाला, बसींकला, शिकारपुर, शाहपुर, हबीबपुर, रसूलपुर दभेड़ी, हुसैनपुर कलां, बु़ाना, जसोई, साँझक, खतौली, तावली, बघरा, सौंटा रसूलपुर, शामली, ग़ी पुख़्ता, कैराना, मलकपुर, नूरखेड़ा, ग़ी दौलत, काँधला, काँधला देहात गँगेरु, आल्दी, थानाभवन, जलालाबाद, लोनी, खतौली आदि।
काँधला समेत ग़ी दौलत और कैराना में 18 हज़ार, गँगेरु आल्दी में करीब 7 हज़ार, शामली में 14 हज़ार से ज़्यादा, थाना भवन में 116 परिवार, जलालाबाद में 200 और लोनी के मदरसे में 2833 लोग पनाह लिए हुए हैं। इनमें गाँव लिसा़, लाँक, बहावड़ी, हसनपुर, खरड़, फ़ुगाना, सिंभालका, कुटबा कुटबी, मोहम्मदपुर रायसिंह, और बाग़पत के गाँव लूंब, तुगाना, हेवा, किरहल, बू़पुर, रमाला आदि गाँव के क़रीब ाई हज़ार लोग पनाह लिए हुए हैं। शरणार्थी शिविरों में यह लोग सरकारी राहत सामग्री का इन्तज़ार कर रहे हैं। यहाँ ग्रामीण आसपास के शहरों और कस्बों से राशन, कपड़े, कम्बल और ज़रूरत का लगभग सभी सामान जुटाकर इन सभी लोगों के लिए भोजनपानी और सुरक्षित रहने का इन्तज़ाम कर रहे हैं। रात में महिलाएँ सोती हैं तो पुरुष पहरा देते हैं। लोग अपने गाँव वापस आने से डरते हैं। लेकिन न तो उ0प्र0 सरकार और न ही केन्द्र सरकार से अब तक कोई मदद उन तक पहुँच पाई है।
पलायन करते हुए लोग व दंगे में घायल और भूख से बिलखते मासूम
प्रत्यक्षदिशर्यों के अनुसार :
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारो लोगों को शरणार्थी बना दिया है। राहत कैम्पों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों मे बदल गई। लगभग 7080 हज़ार लोग साम्प्रदायिक हिंसा में बेघर हो गए और अब शरणार्थी शिविरों में अपना जीवन गुजार रहे हैं।
-डा0 मोहम्मद आरिफ
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
इस भयानक दंगें में हजा़रों लोग अपने आप को असुरक्षित समझते हुए अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हुए और उन्होंने आसपास के गाँवों में शरण ली। चिन्ताजनक बात यह है कि दंगें को नियन्ति्रत करने में पुलिस और प्रशासन ने ज़बरदस्त लापरवाही का सुबूत दिया। अगर शासन और प्रशासन पहले से ही कोशिश करता कि दंगा न हो तो फिर ये दंगा न फूटता। स्थिति तो 12 दिन पूर्व ही तनाव पूर्ण थी और दफा 144 भी लागू थी। फिर भी शरारती तत्वों को महापंचायत करने से नहीं रोका गया जिसमें बड़ॣ संख्या में भा.ज.पा. के स्थानीय नेताओं समेत बहुसंख्यक समुदाय के लगभग 50 हज़ार लोगों ने ब़चढ़ कर हिस्सा लिया और दंगे के लिए वातावरण तैयार किया। महापंचायत में मुसलमानों को मारने की क़समें खाई गईं। उनके खिलाफ़ नारे लगाए गए, ’’मुसलमानों का एक ही थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान ’’। महापंचायत में बहुसंख्यक समुदाय के लोग नंगी तलवारें और अन्य हथियार लेकर शामिल हुए और फ़िर दंगा भड़काना शुरू कर दिया। इसके बाद भी प्रशासन ने दंगे को नियन्ति्रत करने में इस क़दर सुस्ती बरती कि दंगाई हमेशा की तरह पुलिस की मौजूदगी में आगज़नी, लूटपाट और क़त्लओ-गा़रत करते रहे और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मरते रहे। पुलिस ने, जिसका काम ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकना है, उसने जु़ल्म को ब़ावा देने के लिए दंगाइयों के लिए जैसे इंधन ही उपलब्ध करा दिया हो।
सितम्बर में नंगला मंदौेड़ की महापंचायत
इन गाँवों, कस्बों में हैं शरणार्थी:
जौला, शफ़ीपुर पट्टी, लोई, जोगी खेड़ा, मंडवाला, बसींकला, शिकारपुर, शाहपुर, हबीबपुर, रसूलपुर दभेड़ी, हुसैनपुर कलां, बु़ाना, जसोई, साँझक, खतौली, तावली, बघरा, सौंटा रसूलपुर, शामली, ग़ी पुख़्ता, कैराना, मलकपुर, नूरखेड़ा, ग़ी दौलत, काँधला, काँधला देहात गँगेरु, आल्दी, थानाभवन, जलालाबाद, लोनी, खतौली आदि।
काँधला समेत ग़ी दौलत और कैराना में 18 हज़ार, गँगेरु आल्दी में करीब 7 हज़ार, शामली में 14 हज़ार से ज़्यादा, थाना भवन में 116 परिवार, जलालाबाद में 200 और लोनी के मदरसे में 2833 लोग पनाह लिए हुए हैं। इनमें गाँव लिसा़, लाँक, बहावड़ी, हसनपुर, खरड़, फ़ुगाना, सिंभालका, कुटबा कुटबी, मोहम्मदपुर रायसिंह, और बाग़पत के गाँव लूंब, तुगाना, हेवा, किरहल, बू़पुर, रमाला आदि गाँव के क़रीब ाई हज़ार लोग पनाह लिए हुए हैं। शरणार्थी शिविरों में यह लोग सरकारी राहत सामग्री का इन्तज़ार कर रहे हैं। यहाँ ग्रामीण आसपास के शहरों और कस्बों से राशन, कपड़े, कम्बल और ज़रूरत का लगभग सभी सामान जुटाकर इन सभी लोगों के लिए भोजनपानी और सुरक्षित रहने का इन्तज़ाम कर रहे हैं। रात में महिलाएँ सोती हैं तो पुरुष पहरा देते हैं। लोग अपने गाँव वापस आने से डरते हैं। लेकिन न तो उ0प्र0 सरकार और न ही केन्द्र सरकार से अब तक कोई मदद उन तक पहुँच पाई है।
पलायन करते हुए लोग व दंगे में घायल और भूख से बिलखते मासूम
प्रत्यक्षदिशर्यों के अनुसार :
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारो लोगों को शरणार्थी बना दिया है। राहत कैम्पों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों मे बदल गई। लगभग 7080 हज़ार लोग साम्प्रदायिक हिंसा में बेघर हो गए और अब शरणार्थी शिविरों में अपना जीवन गुजार रहे हैं। हमारी पाँच सदस्यीय टीम ने शरणार्थी कैम्पों का दौरा कर कैम्पों में रह रहे पुरुषों और महिलाओं से बात की।
थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान ’’। महापंचायत में बहुसंख्यक समुदाय के लोग नंगी तलवारें और अन्य हथियार लेकर शामिल हुए और फ़िर दंगा भड़काना शुरू कर दिया। इसके बाद भी प्रशासन ने दंगे को नियन्ति्रत करने में इस क़दर सुस्ती बरती कि दंगाई हमेशा की तरह पुलिस की मौजूदगी में आगज़नी, लूटपाट और क़त्लओ-गा़रत करते रहे और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मरते रहे। पुलिस ने, जिसका काम ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकना है, उसने जु़ल्म को ब़ावा देने के लिए दंगाइयों के लिए जैसे इंधन ही उपलब्ध करा दिया हो।
सितम्बर में नंगला मंदौड़ की महापंचायत
इन गाँवों, कस्बों में हैं शरणार्थी:
जौला, शफ़ीपुर पट्टी, लोई, जोगी खेड़ा, मंडवाला, बसींकला, शिकारपुर, शाहपुर, हबीबपुर, रसूलपुर दभेड़ी, हुसैनपुर कलां, बु़ाना, जसोई, साँझक, खतौली, तावली, बघरा, सौंटा रसूलपुर, शामली, ग़ी पुख़्ता, कैराना, मलकपुर, नूरखेड़ा, ग़ी दौलत, काँधला, काँधला देहात गँगेरु, आल्दी, थानाभवन, जलालाबाद, लोनी, खतौली आदि।
काँधला समेत ग़ी दौलत और कैराना में 18 हज़ार, गँगेरु आल्दी में करीब 7 हज़ार, शामली में 14 हज़ार से ज़्यादा, थाना भवन में 116 परिवार, जलालाबाद में 200 और लोनी के मदरसे में 2833 लोग पनाह लिए हुए हैं। इनमें गाँव लिसा़, लाँक, बहावड़ी, हसनपुर, खरड़, फ़ुगाना, सिंभालका, कुटबा कुटबी, मोहम्मदपुर रायसिंह, और बाग़पत के गाँव लूंब, तुगाना, हेवा, किरहल, बू़पुर, रमाला आदि गाँव के क़रीब ाई हज़ार लोग पनाह लिए हुए हैं। शरणार्थी शिविरों में यह लोग सरकारी राहत सामग्री का इन्तज़ार कर रहे हैं। यहाँ ग्रामीण आसपास के शहरों और कस्बों से राशन, कपड़े, कम्बल और ज़रूरत का लगभग सभी सामान जुटाकर इन सभी लोगों के लिए भोजनपानी और सुरक्षित रहने का इन्तज़ाम कर रहे हैं। रात में महिलाएँ सोती हैं तो पुरुष पहरा देते हैं। लोग अपने गाँव वापस आने से डरते हैं। लेकिन न तो उ0प्र0 सरकार और न ही केन्द्र सरकार से अब तक कोई मदद उन तक पहुँच पाई है।
पलायन करते हुए लोग व दंगे में घायल और भूख से बिलखते मासूम
प्रत्यक्षदिशर्यों के अनुसार :
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने हज़ारो लोगों को शरणार्थी बना दिया है। राहत कैम्पों में पड़े लोगों की दुनिया चंद घंटों मे बदल गई। लगभग 7080 हज़ार लोग साम्प्रदायिक हिंसा में बेघर हो गए और अब शरणार्थी शिविरों में अपना जीवन गुजार रहे हैं।
-डा0 मोहम्मद आरिफ
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
2 टिप्पणियां:
वाह! आपको इस दंगे के एकतरफा रूप को दर्शाने के लिए बहुत-बहुत बधाई,वाकई में बेचारे मुसलमानों ने एक भी हिन्दू नहीं मारा , और एक प्राइवेट हॉस्पिटल से जो हथियारों का जखीरा मिला वो भी जरुर पुलिस ने लोगों को गुमराह करने के लिए कहा होगा,
घटना का चित्रण आपने बेहतरीन ढंग से किया है, पर मंशा एकता और कौमी एकजेहती को बनाये रखने के बजाय कहीं न कहीं पर दंगें को और भड़काने की कोशिश जैसी लगती है। यहां इस बात का जिक्र किया जाना समीचीन होगा कि आखिर महापंचायत बुलाये जाने की जरूरत क्यों पड़ी ।हम सब तो समझदार लोग हैं अपनी लेखनी के माध्यम से इस भड़क रही आग को बुझाने की कोशिश होनी चाहिये।
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