मदरसा गुलज़ारए-मोहम्मदी कैम्प, शाहपुर
इस कैम्प में लगभग 4050 शरणार्थी रह रहे हैं। सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही। सब इन्तिज़ाम स्थानीय लोग ही कर रहे हैं। डॉ0 भी कभीकभी आते हैं। सरकार की ओर से सुरक्षा का भी कोई
प्रबन्ध नहीं है। प्रबन्धन कमेटी :मौलाना मोहम्मद इकबाल, मोहम्मद रफ़त, और मोहम्मद तौहीद आदि।
गाँव काकड़ा निवासी नाथों ने बताया कि 7 सितम्बर की शाम माचू जाट के साथ 8 और लोग हथियार लिए हुए हमारे घर में आए, और हमारे घर में तोड़फोड़ करने लगे और कहने लगे इनकी लड़कियों उठा कर ले जाओ। हम प्रधान के पास मदद के लिए गए, लेकिन प्रधान ने हमारी सहायता करने से इन्कार कर दिया। दंगाइयों ने सब सामान लूटकर घर को आग लगा दी। हमारा पूरा गाँव मुसलमानों से खाली हो गया है।
काकड़ा निवासी एक और महिला गुलशाना पे्रगनेन्ट थी और जब उनके घर पर हमला हुआ तो वह अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से भागी। भागते हुए वह गिर गई और उसको बहुत चोट आई। इसके बाद उसने शाहपुर कैम्प में एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन बच्ची पैदा होते ही मर गई।
गाँव धौलरा निवासी लाली की 16 वर्षीय बेटी 7 सितम्बर की महापंचायत के बाद भगदड़ में न जाने कहाँ गा़यब हो गई इसका अब तक कुछ पता नहीं चल सका। दंगाइयों ने घर का सब सामान लूटकर घर को आग लगा दी। लाली के चार बेटियाँ और एक बेटा है। एफ.आई.आर. दर्ज हो चुकी है। लाली अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठी है।
गाँव काकड़ा निवासी अफ़साना ने बताया कि 7 सितम्बर की शाम उनके घरों पर अचानक हमला हुआ। सामान लूटकर उनके घरों को जला दिया गया। सेना के लोगों ने हमें वहाँ से निकाला। अब हम यहाँ कैम्प में रह रहे हैं, लेकिन ऐसे हम कब तक रहेगें? बच्चे बीमार हैं, हम परेशान हैं। बच्चों की पॄाई छूट गई। न छत है, न घर है, कहाँ जाएँ ? सरकार को चाहिए हमें घर दे।
इस्लामाबाद कैम्प, (शाहपुर)
इस कैम्प में लगभग 1300 शरणार्थी रह रहे हैं। सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही। सब इन्तिज़ाम स्थानीय लोग ही कर रहे हैं। डॉक्टर भी कभीकभी आते हैं। सरकार की ओर से सुरक्षा का भी कोई प्रबन्ध नहीं है। प्रबन्धन कमेटी : हाजी बाबू साहेब, डॉ0 नौशाद, हाजी इक़बाल और मौलाना अब्दुस्समद आदि।
गाँव कुटबा कुटबी निवासी वरीशा ने बताया कि 8 सितम्बर की सुबह गाँव के पूर्व प्रधान लोकेन्द्र और प्रमोद ब्राह्मण ने उनके घरों पर जा कर कहा कि यहाँ से चले जाओ वर्ना जाट समुदाय के लोग तुम्हे मार डालेंगे। उनके जाने के बाद गाँव के प्रधान नीरज और ऋषिपाल भीड़ के साथ आए और हमारे घरों पर हमला बोल दिया। सबके हाथों में हथियार थे। हम जान बचाकर गाँव से भाग निकले। बाद में कैम्प में शरण ली। यहाँ आने के बाद प्रमोद ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि उनके घरों को जला दिया गया।
गाँव कुटबा कुटबी की ही 18 वर्षीय वसीमा जिसकी शादी दंगे से 15 दिन पूर्व ही हुई थी, ने हमें बताया कि 8 सितम्बर की सुबह लगभग 8:00 बजे गाँव के प्रधान देवेन्द्र, उसका भाई बबलू और चाचा बाबू ने अन्य जाट समुदाय के लोगों के साथ उनके घर पर हमला बोल दिया। उनके हाथों में नंगी तलवारें, गड़ासे, लाठियाँ और डीज़ल था। सबसे पहले दंगाइयों ने उसके ससुर शमशाद का तबल (घास काटने का हथियार) से गला काट दिया। फिर ससुर के भाई क़यूम, फ़ैयाज़, अब्दुल वहीद, ताऊ का लड़का तुराबुद्दीन, चाची ख़ातून, वसीमा के पति इरशाद समेत जेठ के दो बच्चों को भी काटकर मार दिया। हमारे घर को आग लगा दी। अपनी जान बचाने के लिए हम ऊपर की ओर भागे तो उन्होंने एक मोटा डंडा उसकी जेठानी के सिर पर दे मारा और गडासे से उस पर वार किया। उसे गम्भीर चोटें आई जिससे उसकी स्थिति गम्भीर बनी हुई है। इसके बाद हमने उन पर पथराव किया। हम पथराव करते रहे और वे फ़ायरिंग करते रहे। लगातार 3 घंटे तक हमने उनका मुकाबला किया। इसके बाद सेना ने हमें वहाँ से निकाला।
इसी गाँव की एक और अन्य महिला साबिरा ने बताया कि 8 सितम्बर की सुबह गाँव पर हमला हुआ। गाँव की मस्जिद तोड़ दी गई। गाँव में चुनचुन कर मुसलमानों के घरों को निशाना बनाया गया। गाँव कुटबा में मुसलमानों के लगभग 150 घर हैं और कुटबी में 30 घर हैं। लेकिन दंगे में मुसलमानों के सभी घरों को जला दिया गया और सामान लूट लिया गया। जो लोग दंगाइयों के हाथ आ गए उनको काट दिया गया और जो लोग हाथ नहीं आए उनके घरों को जला दिया गया। जब गाँव में पुलिस आने लगी तो
प्रधान ने उनको यह कह कर रोक दिया कि ’गाँव में शादी हो रही है’ और एस0 ओ0 को अपने घर ले गया। मुसलमानों पर हमला जारी रहा। एस0ओ0 ने प्रधान के घर पर बैठ कर दंगाइयों को कहा कि ’तुम्हें जो करना है करते रहो’। प्रधान देवेन्द्र ने दंगाइयों को हथियार दिए और बबलू डीलर ने मुसलमानों के घर जलाने के लिए दंगाइयों को तेल दिया।
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
इस कैम्प में लगभग 4050 शरणार्थी रह रहे हैं। सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही। सब इन्तिज़ाम स्थानीय लोग ही कर रहे हैं। डॉ0 भी कभीकभी आते हैं। सरकार की ओर से सुरक्षा का भी कोई
प्रबन्ध नहीं है। प्रबन्धन कमेटी :मौलाना मोहम्मद इकबाल, मोहम्मद रफ़त, और मोहम्मद तौहीद आदि।
गाँव काकड़ा निवासी नाथों ने बताया कि 7 सितम्बर की शाम माचू जाट के साथ 8 और लोग हथियार लिए हुए हमारे घर में आए, और हमारे घर में तोड़फोड़ करने लगे और कहने लगे इनकी लड़कियों उठा कर ले जाओ। हम प्रधान के पास मदद के लिए गए, लेकिन प्रधान ने हमारी सहायता करने से इन्कार कर दिया। दंगाइयों ने सब सामान लूटकर घर को आग लगा दी। हमारा पूरा गाँव मुसलमानों से खाली हो गया है।
काकड़ा निवासी एक और महिला गुलशाना पे्रगनेन्ट थी और जब उनके घर पर हमला हुआ तो वह अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से भागी। भागते हुए वह गिर गई और उसको बहुत चोट आई। इसके बाद उसने शाहपुर कैम्प में एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन बच्ची पैदा होते ही मर गई।
गाँव धौलरा निवासी लाली की 16 वर्षीय बेटी 7 सितम्बर की महापंचायत के बाद भगदड़ में न जाने कहाँ गा़यब हो गई इसका अब तक कुछ पता नहीं चल सका। दंगाइयों ने घर का सब सामान लूटकर घर को आग लगा दी। लाली के चार बेटियाँ और एक बेटा है। एफ.आई.आर. दर्ज हो चुकी है। लाली अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठी है।
गाँव काकड़ा निवासी अफ़साना ने बताया कि 7 सितम्बर की शाम उनके घरों पर अचानक हमला हुआ। सामान लूटकर उनके घरों को जला दिया गया। सेना के लोगों ने हमें वहाँ से निकाला। अब हम यहाँ कैम्प में रह रहे हैं, लेकिन ऐसे हम कब तक रहेगें? बच्चे बीमार हैं, हम परेशान हैं। बच्चों की पॄाई छूट गई। न छत है, न घर है, कहाँ जाएँ ? सरकार को चाहिए हमें घर दे।
इस्लामाबाद कैम्प, (शाहपुर)
इस कैम्प में लगभग 1300 शरणार्थी रह रहे हैं। सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही। सब इन्तिज़ाम स्थानीय लोग ही कर रहे हैं। डॉक्टर भी कभीकभी आते हैं। सरकार की ओर से सुरक्षा का भी कोई प्रबन्ध नहीं है। प्रबन्धन कमेटी : हाजी बाबू साहेब, डॉ0 नौशाद, हाजी इक़बाल और मौलाना अब्दुस्समद आदि।
गाँव कुटबा कुटबी निवासी वरीशा ने बताया कि 8 सितम्बर की सुबह गाँव के पूर्व प्रधान लोकेन्द्र और प्रमोद ब्राह्मण ने उनके घरों पर जा कर कहा कि यहाँ से चले जाओ वर्ना जाट समुदाय के लोग तुम्हे मार डालेंगे। उनके जाने के बाद गाँव के प्रधान नीरज और ऋषिपाल भीड़ के साथ आए और हमारे घरों पर हमला बोल दिया। सबके हाथों में हथियार थे। हम जान बचाकर गाँव से भाग निकले। बाद में कैम्प में शरण ली। यहाँ आने के बाद प्रमोद ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि उनके घरों को जला दिया गया।
गाँव कुटबा कुटबी की ही 18 वर्षीय वसीमा जिसकी शादी दंगे से 15 दिन पूर्व ही हुई थी, ने हमें बताया कि 8 सितम्बर की सुबह लगभग 8:00 बजे गाँव के प्रधान देवेन्द्र, उसका भाई बबलू और चाचा बाबू ने अन्य जाट समुदाय के लोगों के साथ उनके घर पर हमला बोल दिया। उनके हाथों में नंगी तलवारें, गड़ासे, लाठियाँ और डीज़ल था। सबसे पहले दंगाइयों ने उसके ससुर शमशाद का तबल (घास काटने का हथियार) से गला काट दिया। फिर ससुर के भाई क़यूम, फ़ैयाज़, अब्दुल वहीद, ताऊ का लड़का तुराबुद्दीन, चाची ख़ातून, वसीमा के पति इरशाद समेत जेठ के दो बच्चों को भी काटकर मार दिया। हमारे घर को आग लगा दी। अपनी जान बचाने के लिए हम ऊपर की ओर भागे तो उन्होंने एक मोटा डंडा उसकी जेठानी के सिर पर दे मारा और गडासे से उस पर वार किया। उसे गम्भीर चोटें आई जिससे उसकी स्थिति गम्भीर बनी हुई है। इसके बाद हमने उन पर पथराव किया। हम पथराव करते रहे और वे फ़ायरिंग करते रहे। लगातार 3 घंटे तक हमने उनका मुकाबला किया। इसके बाद सेना ने हमें वहाँ से निकाला।
इसी गाँव की एक और अन्य महिला साबिरा ने बताया कि 8 सितम्बर की सुबह गाँव पर हमला हुआ। गाँव की मस्जिद तोड़ दी गई। गाँव में चुनचुन कर मुसलमानों के घरों को निशाना बनाया गया। गाँव कुटबा में मुसलमानों के लगभग 150 घर हैं और कुटबी में 30 घर हैं। लेकिन दंगे में मुसलमानों के सभी घरों को जला दिया गया और सामान लूट लिया गया। जो लोग दंगाइयों के हाथ आ गए उनको काट दिया गया और जो लोग हाथ नहीं आए उनके घरों को जला दिया गया। जब गाँव में पुलिस आने लगी तो
प्रधान ने उनको यह कह कर रोक दिया कि ’गाँव में शादी हो रही है’ और एस0 ओ0 को अपने घर ले गया। मुसलमानों पर हमला जारी रहा। एस0ओ0 ने प्रधान के घर पर बैठ कर दंगाइयों को कहा कि ’तुम्हें जो करना है करते रहो’। प्रधान देवेन्द्र ने दंगाइयों को हथियार दिए और बबलू डीलर ने मुसलमानों के घर जलाने के लिए दंगाइयों को तेल दिया।
-डा0 मोहम्मद आरिफ
क्रमश:
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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