मध्य प्रदेश
प्रगतिशील लेखक संघ की इन्दौर इकाई की तरफ से रविवार 2 फरवरी को प्रीतमलाल
दुआ सभागृह में समकालीन हिन्दी कहानी लेखन पर व्याख्यान आयोजित किया गया
जिसमें हिन्दी कहानी के सुपरिचित हस्ताक्षर श्री रमाकांत श्रीवास्तव जी ने
शिरकत की. इसी अवसर पर तेलुगु से हिन्दी में अनुवादित कहानियों की पुस्तक
“ताजमहल और अन्य कहानियां” का भी विमोचन किया गया.जिसमें किताब के लेखक
श्री वल्लुरु शिवप्रसाद एवं अनुवादक श्री के. व्ही. नरसिंह राव भी उपस्थित
थे. तथा आन्ध्रप्रदेश से प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष एव अखिल भारतीय
प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव श्री लक्ष्मीनारायण रेड्डी भी शामिल हुए.
अनुवादक श्री नरसिंह राव जी ने किताब के हवाले से बताया कि श्री शिवप्रसाद
जी पिछले 30 वर्षों से निरंतर लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं और अब तक
अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हो चुके हैं. आप नाटक
लेखन में भी समान रूप से ख्यातिप्राप्त हैं. सुश्री सारिका निलोसे जी ने
कहानी संग्रह में से “विदाई” कहानी का पाठ किया.
श्री
रमाकांत
श्रीवास्तवजी ने समकालीन हिन्दी कहानी के चरित्र पर प्रकाश डाला और
हिन्दी कहानी लेखन में कथ्य और शिल्प को समझाते हुए कहा कि आज के परिद्रश्य
में
कथा के शिल्प के साथ ही कथ्य पर भी ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है. श्री
श्रीवास्तव ने अपने व्याख्यान में कहा कि हिन्दी कहानी की आज की स्थिति पर
यदि
गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाये तो एक बात उभर कर सामने आती है और वो ये
कि आज के
लेखक में पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ एक द्रढ निश्चित किस्म का विरोध तो
दिखलाई
पडता है, लेकिन साथ ही उस विरोध का शिल्प उसी पूंजीवादी तबके द्वारा विकसित
दायरे
के भीतर ही संघर्श करता हुआ दिखता है. आज नियमित ढांचे को तोडकर ना कि
सिर्फ शिल्प
पर चर्चा और विमर्श जरूरी है, साथ ही कथ्य पर भी उतना ही ध्यान देना आवश्यक
है. लेखक का असली परिचय वही है जो वह लिखता है. उन्होंने कहा कि समकालीन
समय 50-60
वर्ष से भी अधिक है. साथ ही उन्होंने कहा कि हर भाषा का कथाकार अपने परिवेश
से कुछ
लेकर ही लिख रहा है. शिल्प के साथ ही कथ्य पर पुनः ज़ोर देते हुए रमाकांत जी
कहते
हैं कि कट्टरता और जातिवाद का विरोध करती कहानियाँ आपकी राजनीति स्पष्ट
करती हैं.
मराठी लेखकों ने कलम के बल पर आंदोलन खडा किया था जो बाद में हिन्दी
प्रदेशों
में भी हुआ. बाज़ारवाद जो कि भूमण्डलीकरण की संतान है ने इस दुनिया को एक
ध्रुवीय
बना दिया है. साहित्य का अपना प्रजातंत्र होता है. साहित्य असहमति का परिसर
है. शिवप्रसादजी की कहानियों के बारे में रमाकांतजी ने कहा कि आपकी कहानियाँ अंतर्धारा और
करुणा से भरी हैं. साथ ही इनमें असहमति का स्वर है. लेकिन इस असहमति में आक्रोश कम
और मार्मिकता अधिक है. शिवप्रसादजी का ह्रदय प्रेमयुक्त और संवेदनशील है और यही
बात इनकी कहानियों में दिखलाई पडती है. इनकी कहानियाँ हमें गुरिल्ला लडाई की ओर
संकेत करती हैं और इनमें गाँव, प्रक्रति, मानवीय पहलू और मनुश्य उपस्थित है. इस
कहानी संग्रह का लोकार्पण हमारे शहर और प्रदेश में होना गर्व की बात है.
कार्यक्रम
में विशेष रूप से उपस्थित मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव श्री
विनीत तिवारी ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मराठी, तमिल, तेलुगु,
मलयालम, सिंधी, उर्दू सभी भाषाओँ में प्रतिशील लेखक संघ के लोग अपने-अपने
क्षेत्र से जुडी समस्याओं, जनसंघर्षों के बारे में लिख रहे हैं, हर भाषा
में. हर क्षेत्र में प्रगतिशील साहित्य लिखा जा रहा है लेकिन वो केवल अपने
ही क्षेत्र तक ही सीमित है जबकि इसका आदान-प्रदान होना बहुत जरुरी है. और
हम बहुत समय से इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं, कोशिश करते रहे हैं कि
प्रगतिशील लेखक संघ के उत्तर-पूर्व से लेकर सुदूर तक के रचनाकारों और उनकी
रचनाओं का, साहित्य का आपस में आदान-प्रदान और मेल-मिलाप होते रहना बहुत
जरुरी है. और आज हमारा ये प्रयास इस कार्यक्रम के रूप में आपके सामने है.
उम्मीद है कि आज हमारा ये प्रयास एक पुल कि तरह काम करेगा और रचनाकारों
चेतना को, रचना को अगले स्तर तक ले जायेगा.
उन्होंने tamilnadu
में प्रगतिशील रचनाकारों के मध्य होने वाले एक कार्यक्रम के बारे में
जानकारी देते हुए बताया कि उस क्षेत्र के सारे प्रगतिशील विचारधारा के लोग
हर साल तीन दिन तक पूरे प्रदेश से प्रोफ़ेसर, विद्यार्थी और प्रगतिशील लेखक
संघ से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार समंदर किनारे इकट्ठे होते हैं और किसी न किसी
मुद्दे पर चाहे वो राजनीति का हो, महिलाओ, दलितों, आदिवासियों का या
लेस्बियन या गे का हो, गाँव से लेकर शहर तक के लोग इकट्ठे होते हैं, इनके
मसलों पर चर्चा करते हैं, और इतना ही नहीं वो अपना खाना भी स्वयं ही पकाते
हैं, हर काम के लिए ये आपस में ही छोटी-छोटी कमेटियां बनाते हैं. हमें भी
अपने यहाँ इस प्रकार के मुद्दों पर कार्यक्रम करने कि जरुरत है.
श्री
तिवारीजी ने वाल्लुरु शिवप्रसाद के कहानी संग्रह "ताजमहल और अन्य
कहानियों" पर चर्चा करते हुए कहा कि ये कहानियां पुरे तेलुगु साहित्य का,
कहानी का प्रतिनिधि चेहरा है . इनकी कहानियां एक वर्ग विशेष कि स्थिति को
बयान करती हैं जिसमें पात्र अपनी मेहनत से आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं,
और सच्चाई को बयां करते हैं छुपाते नहीं हैं. इनकी कहानियां समाज कि और उस
समाज में रहने वाले लोगों कि सच्चाई को बयान करती हैं.
कार्यक्रम
की समाप्ति करते हुए अध्यक्ष श्री एस. के. दुबे ने सभी सम्मान्य अतिथिगण और
उपस्थित साथियों का आभार व्यक्त किया.
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