कुछ अरसा पहले नरेंद्र मोदी से पूछा गया था कि स्वामी विवेकानंद की तरह क्या भगवान बुद्ध का भी प्रभाव आप पर पड़ा। यह वह दौर था जब मोदी के ट्विटर पर स्वामी जी का एक उद्धरण प्रतिदिन आया करता था। मोदी का उत्तर था, ‘‘मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि जिस गाँव में मेरा जन्म हुआ था, उस पर बौद्ध प्रभाव था। ह्वेन सांग ने मेरे गाँव का भ्रमण किया था। उन्होंने लिखा था कि मेरे गाँव में दस हजार बौद्ध भिक्षुओं के आवास की व्यवस्था थी। मेरा सपना है कि गुजरात में बुद्ध का एक विशाल मंदिर बनवाऊँ।’’
23 जनवरी को मोदी ने गोरखपुर में भाजपा की सभा को संबोधित किया। मतलब की अर्थात राजनैतिक लाभ की शायद ही ऐसी कोई बात हो जो मोदी ने न की हो। कांग्रेस और सपा पर एक से एक जहरीले तीर छोड़े। बसपा पर घुमा-फिरा कर चोट की। उन्हें डर रहा होगा कि सीधी चोट से बसपा के अधिकतर मतदाता कहीं नाराज न हो जाएँ। इसलिए दलित वर्ग से अपनी पार्टी की दोस्ती का बखान किया। होम वर्क इस तरह करके आए थे कि गोरखपुर के बंद कारखानों का उल्लेख करना भी नहीं भूले। लेकिन बुद्ध को वह भूल गए। बुद्ध का गोरखपुर से घनिष्ठ संबंध रहा है। गोरखपुर से सिर्फ 52 किलोमीटर दूर कुशीनगर है। यहाँ बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था। दुनिया भर से लाखों बौद्ध और अन्य लोग यहाँ आते हैं। बुद्ध की स्मृति में यहाँ स्मारक बना हुआ है।
गोरखपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर नेपाल में लुंबिनी है, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। पाँचवे-आठवें दर्जे तक बच्चे पढ़ चुके होते हैं किउनकी माता का नाम रानी मायादेवी और पिता का नाम का राजा शुद्धोधन था। लुंबिनी इधर कुछ वर्षों से बड़ी चर्चा में है, क्योंकि कई देशों के आर्थिक सहयोग से वहाँ पर्यटन स्थल का विकास किया जा रहा है। इसमें चीन की सक्रियता पर विवाद भी उठ चुका है। आशा थी कि मोदी गोरखपुर की सभा में भगवान बुद्ध का पवित्र स्मरण करेंगे और कुशीनगर के विकास के लिए कुछ योगदान की भी घोषणा कर डालेंगे। मोदी की जुबान पर बुद्ध का नाम ही नहीं आया।
कहा जा सकता है कि संघ परिवार के जीवनदायिनी विषय, राममंदिर पर जब मोदी कुछ नहीं बोले तो बुद्ध की याद क्यों दिलाई जा रही है। मोदी नहीं बोले तो क्या हुआ, अरुण जेटली और अन्य कई नेताओं पर राम मंदिर का मुद्दा छोड़ दिया गया है। वह तो सरेआम कह रहे हैं कि राममंदिर का मुद्दा न तो छोड़ा है और न छोड़ेंगे। एक और फर्क है। अयोध्या में मंदिर का निर्माण एक विवादास्पद विषय है। बुद्ध और कुशीनगर पर तो कोई विवाद ही नहीं है। मोदी अपने गुजरात में बुद्ध का विशाल मंदिर जब बनवाएँगे तब, बनवाएँ भी या नहीं, कुशीनगर के लिए तो कुछ घोषणा कर ही सकते थे।
मोदी अपने इतिहास ज्ञान की कई बार खिल्ली उड़वा चुके हैं, जैसे तक्षशिला बिहार में है। लेकिन जब उन्हें यह मालुम है कि चीनी विद्वान और यात्री हवेन सांग सातवीं शताब्दी में भारत आया था और बुद्ध का मंदिर भी बनवाने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं तो कुशीनगर और लुंबिनी के बारे में भी जरूर मालूम होगा। उन्होंने भगवान बुद्ध और उनके जीवन से जुड़े इन पवित्र स्थलों का स्मरण शायद इसीलिए नहीं किया कि इससे वोटों का फायदा नहीं होने वाला। सेक्युलरिज्म का विरोध कर धर्म और राजनीति के घालमेल में यही होता है कि धर्मों और अवतारों की याद फायदे के लिए मौके-मौके पर ही की जाती है।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
23 जनवरी को मोदी ने गोरखपुर में भाजपा की सभा को संबोधित किया। मतलब की अर्थात राजनैतिक लाभ की शायद ही ऐसी कोई बात हो जो मोदी ने न की हो। कांग्रेस और सपा पर एक से एक जहरीले तीर छोड़े। बसपा पर घुमा-फिरा कर चोट की। उन्हें डर रहा होगा कि सीधी चोट से बसपा के अधिकतर मतदाता कहीं नाराज न हो जाएँ। इसलिए दलित वर्ग से अपनी पार्टी की दोस्ती का बखान किया। होम वर्क इस तरह करके आए थे कि गोरखपुर के बंद कारखानों का उल्लेख करना भी नहीं भूले। लेकिन बुद्ध को वह भूल गए। बुद्ध का गोरखपुर से घनिष्ठ संबंध रहा है। गोरखपुर से सिर्फ 52 किलोमीटर दूर कुशीनगर है। यहाँ बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था। दुनिया भर से लाखों बौद्ध और अन्य लोग यहाँ आते हैं। बुद्ध की स्मृति में यहाँ स्मारक बना हुआ है।
गोरखपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर नेपाल में लुंबिनी है, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। पाँचवे-आठवें दर्जे तक बच्चे पढ़ चुके होते हैं किउनकी माता का नाम रानी मायादेवी और पिता का नाम का राजा शुद्धोधन था। लुंबिनी इधर कुछ वर्षों से बड़ी चर्चा में है, क्योंकि कई देशों के आर्थिक सहयोग से वहाँ पर्यटन स्थल का विकास किया जा रहा है। इसमें चीन की सक्रियता पर विवाद भी उठ चुका है। आशा थी कि मोदी गोरखपुर की सभा में भगवान बुद्ध का पवित्र स्मरण करेंगे और कुशीनगर के विकास के लिए कुछ योगदान की भी घोषणा कर डालेंगे। मोदी की जुबान पर बुद्ध का नाम ही नहीं आया।
कहा जा सकता है कि संघ परिवार के जीवनदायिनी विषय, राममंदिर पर जब मोदी कुछ नहीं बोले तो बुद्ध की याद क्यों दिलाई जा रही है। मोदी नहीं बोले तो क्या हुआ, अरुण जेटली और अन्य कई नेताओं पर राम मंदिर का मुद्दा छोड़ दिया गया है। वह तो सरेआम कह रहे हैं कि राममंदिर का मुद्दा न तो छोड़ा है और न छोड़ेंगे। एक और फर्क है। अयोध्या में मंदिर का निर्माण एक विवादास्पद विषय है। बुद्ध और कुशीनगर पर तो कोई विवाद ही नहीं है। मोदी अपने गुजरात में बुद्ध का विशाल मंदिर जब बनवाएँगे तब, बनवाएँ भी या नहीं, कुशीनगर के लिए तो कुछ घोषणा कर ही सकते थे।
मोदी अपने इतिहास ज्ञान की कई बार खिल्ली उड़वा चुके हैं, जैसे तक्षशिला बिहार में है। लेकिन जब उन्हें यह मालुम है कि चीनी विद्वान और यात्री हवेन सांग सातवीं शताब्दी में भारत आया था और बुद्ध का मंदिर भी बनवाने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं तो कुशीनगर और लुंबिनी के बारे में भी जरूर मालूम होगा। उन्होंने भगवान बुद्ध और उनके जीवन से जुड़े इन पवित्र स्थलों का स्मरण शायद इसीलिए नहीं किया कि इससे वोटों का फायदा नहीं होने वाला। सेक्युलरिज्म का विरोध कर धर्म और राजनीति के घालमेल में यही होता है कि धर्मों और अवतारों की याद फायदे के लिए मौके-मौके पर ही की जाती है।
-प्रदीप कुमार
लोकसंघर्ष पत्रिका चुनाव विशेषांक से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें