गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

चुनावी पैतरेबाजी की कलाकारी

नये लोक सभा चुनाव ने विचारधारा के अनुशासन को नई उचाइयाँ प्रदान किया है और यह साबित कियाहै कि पैतरेबाजी की विचारधारा वर्तमान समय में ज्यादा प्रासंगिक है साथ हीं साथ यह बात भी सिद्ध हुई हैकि विचारधारा किसी पार्टी कि बपौती नहीं है विचारधारा ऐसी नदी है जो किसी भी रास्ते से गुजरने कि काबिलियत रखती है साथ हीं साथ कुछ सहायक विचारधारा के  रूप में अवसर और भागी - भागी भागीदारी की धार पैतरेबाजी कि धारा के बहाव मे सहायक नदी कि भूमिका बनाए  हुये हैं और यहीं अवसर को जिसके लिए तमाम विवाद ग्रस्त इतिहास टीले का आकार ले चुके  हैं जिन पर कुछ पक्षी कभी कभार कलरव करते  हुये मालूम पड़ते हैं हिंदुस्तान के संदर्भ में तो और हीं ज्यादा आनंद दायक प्रतीत होने लगे हैं अब इसी लोक सभा चुनाव कि बात करें तो बस कमाल हीं कमाल है बहुत हीं बवाल है लेकिन फिर भी सब खुश खुश नजर आ रहें हैं क्यूकि  अब कोई अकेला नही है सब में सब समाये जा रहे हैं पहले भी हमारे  यहाँ संयुक्त परिवार हीं था जो भी हा े हर भागीदारी एक तरफ और सत्ता  की  भागीदारी एक तरफ, क्या मजाल कोई टक्कर दे  सके और वर्तमान समय बस भागीदारी और अवसर को भुनाने का हीं तो है ऐसे में क्या भाजपा क्या कांग्रेस क्या सपा और क्या बसपा क्या आप क्या हम काहे को जद और राजद या कोई और किसी कि भी बंगले में पार्टी मना लेंगे केक कटना चाहिए बस ?
अब कुछ लोग नाराज फालतू में हो  रहे हैं और नेताओं को बरसाती मेंढक बता रहे हैं इन कम अक्लों को नही मालूम है कि बरसाती मेंढकों में सौंदर्य और भौगोलिक वातवरण कि अपनी सीमा है ,लेकिन हमारे नेताओं में ऎसा बिल्कुल  नहीं है ये तो और ज्यादा ही उदार और ब्यापक हुये हैं यहीं तो इनकी पहचान है और इस चुनाव में इनहोने अपनी विसतरवादी छ्वी से पूरी दुनियाँ को चकित किया है कुछ  तो सीधा चुनाव लड़ने से हीं इंकार कर देश का तो भला किया हीं बल्कि अपनी त्याग कि भावना का भी मिशाल पेश किया है कई बुजुर्ग नेताओं ने  तो फिर से बालक जैसा रूठना शुरू कर दिया है लेकिन होता तो वहीं है जो अभिभावक चाहते हैं इसलिए बच्चा कितना भी होशियार क्यूँ ना हो ठगा हीं जाएगा कभी धर्म के  नाम पर कभी धन के नाम पर कभी डर के नाम पर तो कभी प्यार के नाम पर और ज्यादा जिद किया तो फिर लगती है खुद हीं रोकर चुप हो जाएगा या फिर सो भी जाता है इस बार के चुनावी समर मेँ कुछ नैसर्गिक नेता भी उपजे हैं जो परिवारवाद की खिलाफत कर रहे हैं और अपने पापा का टिकट कटवा दिये हैं और खुद जनता की सेवा मे उतर आए हैं कुछ  बड़े बड़े दावेदार वंशवाद की खिलाफत करते करते  हीरो जैसा सेलिब्रेटाइज्ड हो गए हैं और हूड़ हूड़ दबंग दबंग गाते गाते हुड्ड ्बाजों की फौज खड़ी कर लिए हैं उनकी दबंगई  से कई हरफौनमौला खिलाड़ी उनके खिलाफ बोलने  से डर रहे हैं ताकि लिस्ट से नाम न कट जाए, कुछ  लोग बेटों की नही भतीजों की फौज के साथ मैदान मे आ भिड़े हैं इसमे वंशवाद नहीं अंशवाद की मिठास है ये भले ही किसी राजनैतिक पिता के संतान हैं पर
ये भी बंशवाद की खिलाफत का झण्डा बुलंद कर रहे हैं कुछ पुराने  रणनीतिकार अब कहानी की नई विधा के  साथ अपने  जलवे दिखाना शुरू कर दिये हैं धमकी कहानी  को चटनी और मसाले के  साथ पेश कर दिये हैं

बहुत सारे  कर्म के  मारे   जनसेवक जिन्हे सरकारी नौकरी के  दौरान जनता की सेवा न कर पाने का मलाल है छतिपूर्ति  हेतु चुनावी मैदान मे उतर चुके  हैं ताकि इस पवित्र पावन समय मेँ कुछ  योगदान दे  सकें इन्हें कभी कोई पद का लालच नही रहा है इसी लिए किसी एक पद पर बहुत टीके नहीं रहें हैं और पद बदलाव इन हेतु जीवन की मजबूरी और जरूरत भी बन गई है अब ये पाला बदल बदल कर अपना चोला बदलने पर लालायित हैं कुछ दारोगा टाइप एस पी भी सीधा छलांग लगा चुके  हैं अब चाहते  हैं कि  संसद मेँ ही सीधा सेवा देंगे ताकि अब कोई सुरक्षा मेँ खामी नहीं रहे द्य ईनका मानना है की सांसद मे होकर देश को ज्यादा सुरक्षा दे पाएंगे खैर उधर अगली खाली लाइन मे कुछ हीरो, हिरोइनी को पकड़ कर लाया जा रहा हैकुछ क्रिकटर जो अब फ्लाफ होने के  कगार पर हैं उनकी करार की ब्यवस्था अलग से की जा रही है इन सेलिब्रेटी को समाज सेवा की खानदानी आदत है जो इनके पेशे मेँ कूट कूट कर भरी हैहालांकि इतिहास गवाह है की ये बरसात की तरह आते हैं और फिर वापस अपनी राह पकड़ लेते हैं इस मामले मे ये इनकी ईमानदारी की अपनी अलग मिशाल है

अब तो कुछ पुरस्कारी पुरुष भी चुनाव को शुशोभित् करने हेतु पर्चा दाखिल कर रहे हैं पहले चमत्कारी बाबा भी आए थे अब पर्दे के पीछे हीं जीतने की गारंटी दे रहे हैं उधर खबर आ रही है की काका टाइप निर्देशक जिनका संसद से कोई लेना देना नहीं है सांसद के चाल चरित्र को परिभाषित और प्रस्तावित करने मेँ अपनी भूमिका को मजबूत करने हेतु  यात्राबाजी शुरू कर चुके  हैं अब घंटी जहाँ बजेगी   राजा की सवारी वहीं सजेगी और जनता फिर नाचेगी, मगर नाचाएगा कौन ??
 -योगेश पासवान
शोध छात्र संचार एवं मीडिया

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