मंगलवार, 20 मई 2014

राजनैतिक दलों के घोषणा पत्रों में अल्पसंख्यकों के लिए क्या है

चुनावों के पहले लगभग सभी मुख्य राजनैतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र जारी करते हैं। कुछ लोग इन घोषणापत्रों में कोई रूचि नहीं लेते और ना ही उन्हें कोई महत्व देते हैं। उनका यह मत है कि पार्टियां अक्सर सत्ता में आने के बाद उनके द्वारा किए गए वायदे भूल जाती हैं। बसपा ने उत्तरप्रदेश  विधानसभा के जिस चुनाव में सत्ता हासिल की थी, उसके पहले उसने कोई घोषणापत्र जारी नहीं किया था। वैसे भी, हमारे देश में साक्षरता की दर को देखते हुए यह कहना मुष्किल है कि कितने लोग पार्टियों के घोषणापत्रों को पढ़ और समझ पाते होंगे। अधिकांश लोग नेताओं द्वारा जनसभाओं में किए जाने वाले जुबानी वायदों को अधिक महत्व देते हैं। अधिकांश मतदाता, पार्टियों के घोषणापत्रों के  आधार पर नहीं बल्कि जाति, नस्ल, भाषा, धर्म आदि के आधार पर वोट देते हैं। कुछ लोग लोकप्रियता व छवि के आधार पर अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनते हैं।
इस सबके बावजूद, घोषणापत्र महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे राजनैतिक दलों की राजनैतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं का दस्तावेज होते हैं। इस लेख में हम कुछ प्रमुख राजनैतिक पार्टियों के घोषणापत्रों का इस दृष्टिकोण से अध्ययन करेंगे कि उनमें अल्पसंख्यकों के लिए क्या है और क्या नहीं है। हमने केवल उन्हीं घोषणापत्रों का अध्ययन किया है जो अंग्रेजी या हिन्दी भाषाओं में हैं।
चूंकि अल्पसंख्यकों की आबादी कम होती है अतः फैसले लेने वाली संस्थाओं, जिनमें कार्यपालिका व
विधायिका शामिल हैं, में  उनका प्रभाव व उपस्थिति कम होती है। चंद दशकों पहले तक, शनैः शनैः अल्पसंख्यकों को राष्ट्र की मुख्यधारा में मिला लेना, कुछ देशों की नीति थी। इसका अर्थ यह था कि जहां अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की पूरी गांरटी होगी वहीं उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे धीरे-धीरे बहुसंख्यकों की संस्कृति, परंपराओं, भाषा, धर्म आदि को अपना लें। अगर वे इस प्रक्रिया का विरोध करते थे तो उन पर अलगाववादी होने का आरोप लगाया जाता था और सुरक्षा पाने का उनका हक कमजोर हो जाता था।
संयुक्त राष्ट्रसंघ ने समय-समय पर यह कहा है कि अल्पसंख्यकों के मामले में दो नीतियां अपनाई जानी चाहिए। पहली यह कि उनके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव पर प्रतिबंध होना चाहिए। और दूसरी यह कि उन्हें उनकी विशिष्ट संस्कृति को सरंक्षित रखने व उसका विकास करने के पर्याप्त मौके व स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। जहां तक भारत का प्रष्न है, सच्चर समिति की रपट से यह साफ है कि अल्पसंख्यकों के साथ शिक्षा, नौकरियों, जीविकोपार्जन संबंधी योजनाओं, बैंक कर्जों, सरकारी ठेकों, आवास, स्वास्थ्य सेवाओं व कल्याणकारी योजनाओं आदि के मामले में भेदभाव किया जाता रहा है।
जहां तक सुरक्षा का सवाल है, सांप्रदायिक दंगों के दौरान, सिक्खों, ईसाईयों व मुसलमानों को निशाना बनाया जाता रहा है। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त निमेश आयोग का यह निष्कर्ष है कि कई निर्दोष मुसलमान युवकों को आतंकवाद-निरोधक कानूनों के अंतर्गत गिरफ्तार कर, वर्षों सलाखों के पीछे रखा गया। सन् 2006 में हुए मालेगांव बम धमाकों के सिलसिले में बड़ी संख्या में मुस्लिम युवकों को छःह से अधिक वर्ष जेलों में बिताने पड़े। बाद में स्वामी असीमानंद ने यह कुबूल किया कि इन धमाकों के पीछे उनका हाथ था। जिन लोगों को आतंकी होने के आरोप में फर्जी मुठभेड़ों में सुरक्षाबलों द्वारा मार गिराया जाता है, उनमें मुसलमानों की बहुसंख्या होती है। इशरत जहां, जावेद शेख, सोहराबुद्दीन, कौसर बी, सादिक जमाल आदि फर्जी मुठभेड़ों के शिकारों में शामिल हैं।
यह आवष्यक है कि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान की जाए, उनके साथ भेदभाव न हो और उन्हें उनकी संस्कृति व धर्म की संरक्षा का अधिकार हो। परंतु अधिकांष घोषणापत्रों में अल्पसंख्यकों के लिए ऐसी कल्याणकारी योजनाएं चलाने का वायदा किया गया है, जिनके अंतर्गत उन्हें पढ़ाई के लिए वजीफे, जीविकोपार्जन व उच्च शिक्षा के लिए कर्ज आदि उपलब्ध करवाए जाएंगे। इन योजनाओं के लिए जिस बजट की घोषणा की गई है, वह आवष्यकता से बहुत कम है। घोषणापत्रों में भारत की विविधवर्णी संस्कृति और विशेषकर अल्पसंख्यकों की विशिष्ट संस्कृति का संरक्षण करने का वायदा नहीं किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि राजनैतिक दल यह चाहते हैं कि अल्पसंख्यक अंततः, देश की तथाकथित ‘मुख्यधारा’ को आत्मसात कर लें।
भाजपा का घोषणापत्र
इस घोषणापत्र की मुख्य थीम है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या हिन्दुत्व। इसमें भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रभुत्वषाली वर्ग की दृष्टि से महिमामंडन  किया गया है। ऐसा बताया गया है कि भारतीय सभ्यता, हजारों वर्ष पुरानी है और प्राचीनकाल में इसकी अर्थव्यवस्था, व्यापार-व्यवसाय व संस्कृति अति विकसित थी। यह भी कहा गया है कि यूरोप व एशिया के किसी भी राष्ट्र की तुलना में, भारत, उद्योग व विनिर्माण के क्षेत्र में कहीं आगे था। घोषणापत्र की भूमिका में कहा गया है कि भारत ‘‘प्रचुरता, समृद्धि व सम्पन्नता की भूमि था, जहां लोग एक-दूसरे की फिक्र करते थे, संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा होता था और लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर शांतिपूर्ण जीवन बिताते थे।’’
घोषणापत्र में उन नेताओं की सूची दी गई है जो भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत थे परंतु इनमें एक भी गैर-हिन्दू का नाम नहीं है-यहां तक कि भगत सिंह और जवाहरलाल नेहरू का भी नहीं। घोषणापत्र, भारत को एक देष व एक राष्ट्र बताता है परंतु इसमें भारत की उस समृद्ध विविधता की चर्चा नहीं की गई है, जो उसकी ताकत थी और है। घोषणापत्र कहता है कि स्वतंत्र भारत का नेतृत्व (अर्थात नेहरू) भारत की आंतरिक जीवनषक्ति को नहीं पहचान पाया-वह जीवनषक्ति, जिसके कारण भारत अनेकों हमलों और लंबे विदेषी षासन (अर्थात सल्तनत, मुगल व ब्रिटिश) के बावजूद नष्ट नहीं हुआ और यह नेतृत्व भारत की आत्मा को पुनःप्रज्वलित नहीं कर सका। भाजपा का ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ पष्चिम की तकनीकी को तो अपनाएगा परंतु वह प्रशासन के ब्रिटिश सांगठनिक ढांचे (अर्थात प्रजातंत्र) को स्वीकार नहीं करेगा। घोषणापत्र के अनुसार, यह ढांचा भारतीय सभ्यता की आत्मा के अनुरूप नहीं है। क्या किसी को यह समझने के लिए अन्य किसी प्रमाण की आवष्यकता है कि भाजपा का ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’’, भारतीय संविधान के विरूद्ध है।
भाजपा के घोषणापत्र में अल्पसंख्यक घोषणापत्र अल्पसंख्यकों के बारे में बहुत कुछ कहता है कि परंतु उनकी आर्थिक बेहतरी के लिए कोई ठोस वायदा नहीं करता और ना ही वह किसी ऐसे सांगठनिक ढांचे की स्थापना की बात कहता है जिससे यह सुनिष्चिित किया जा सके कि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मिलेगी और वे समानता के अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे। अब तक भाजपा किसी भी ऐसे कदम का विरोध करती आई है, जिसका उद्देष्य अल्पसंख्यकों को उनकी विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार या मौका उपलब्ध करवाना हो। वह ऐसी मांग करने वालों को अलगाववादी बताती रही है। परंतु अपने घोषणापत्र में भाजपा यह वायदा करती है कि वह अल्पसंख्यकों की ‘‘समृद्ध विरासत और संस्कृति को संरक्षित करेगी’’ (क्या बाबरी मस्जिद और 3000 अन्य मस्जिदों पर अपना हक जता के?)। वह यह वायदा भी करती है कि ‘‘अल्पसंख्यकों के प्राचीन स्मारकों और इमारतों का रखरखाव व पुनरूद्धार किया जायेगा’’ (क्या ताजमहल को शिवमंदिर बताकर? अभाविप के सदस्यों ने कुछ समय पहले, ताजमहल में तोड़फोड़ की थी। प्रष्न यह भी है कि प्राचीन स्मारक कब से अल्पसंख्यक व बहुसंख्यकों होने लगे हैं?)। वह प्राचीन अभिलेखों के डिजीटाईजेशन का वायदा भी करती है (क्या अब प्राचीन अभिलेखों का भी अल्पसंख्यकों व बहुसंख्यकों के बीच वर्गीकरण होगा?) वह उर्दू के संरक्षण और उसे बढ़ावा देने की बात भी कहती है (हिंदुत्ववादियों ने बिहार में 1967 में उर्दू विरोधी आंदोलन चलाया था जिसके नतीजे में रांची में दंगे भड़क उठे थे। बैंगलोर में आकाशवाणी द्वारा उर्दू में समाचार बुलेटिन प्रसारित करने पर दंगा हुआ था)। यह विडंबनापूर्ण है कि जहां घोषणापत्र में समृद्ध संस्कृति के संरक्षण की बात कही गई है वहीं ‘सांस्कृतिक विरासत’ वाले खंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का वायदा भी किया गया है।
घोषणापत्र, मुस्लिम समुदाय के पिछड़ेपन पर मगरमच्छी आंसू बहाता है और कांग्रेस सरकार के उन्हीं कार्यक्रमों को लागू करने का वायदा करता है, जिनका भाजपा अब तक विरोध करती आई है। इनमें शामिल हैं मदरसों का आधुनिकीकरण और वक्फ संपत्तियों को अतिक्रमण से मुक्त करना।
कांग्रेस का घोषणापत्र
  कांग्रेस का घोषणापत्र उन्हीं पुराने कार्यक्रमों और योजनाओं को जारी रखने और लागू करने का वायदा करता है जो कांग्रेस के पिछले शासनकालों में या तो लागू की ही नहीं गईं या आधे-अधूरे ढंग से लागू की गईं। उसमें यह वायदा किया गया है कि पार्टी ‘‘राष्ट्र के अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए ठोस व दीर्घावधि के कल्याणकारी कार्यक्रम चलाएगी’’। इनमें शामिल हैं अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों के लिए छात्रवृत्तियां और उनकी उच्च शिक्षा के लिए मौलाना आजाद शिक्षा फाउन्डेशन के जरिए मदद उपलब्ध करवाना। इसमें यह वायदा भी किया गया है कि वक्फ संपत्तियों का उचित प्रबंधन किया जायेगा और उन पर कब्जा करने या उनसे अनुचित लाभ उठाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कानून बनाया जायेगा। कांग्रेस सरकार, ऋण वितरण के मामले में अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देगी और यह सुनिष्चित करेगी कि उनमें उद्यमिता को प्रोत्साहित  किया जाये। घोषणापत्र में एक बार फिर यह वायदा किया गया है कि ‘‘सांप्रदायिक व लक्षित हिंसा विधेयक 2013, जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, को प्राथमिकता के आधार पर पारित किया जायेगा।’’ घोषणापत्र इस संबंध में कुछ नहीं कहता कि यूपीए-1 व यूपीए-2 सरकारें इस विधेयक को कानून में क्यों नहीं बदल सकीं।
समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी, औद्योगिक पिछड़ेपन, गरीबी, निरक्षरता व बेरोजगारी की समस्याओं से निपटने का वायदा अपने घोषणापत्र में करती है और इन समस्याओं के लिए केन्द्र सरकार को दोषी बताती है। पार्टी के 2012 के उत्तरप्रदेश विधानसभा के घोषणापत्र व 2014 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में लगभग एक से वायदे किए गए हैं। समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में अल्पसंख्यक के स्थान पर मुसलमान शब्द का इस्तेमाल किया गया है। पार्टी यह स्वीकार करती है कि मुसलमान, दलितों से भी अधिक पिछड़े हुए हैं और उन्हें सुरक्षा व प्रगति के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए विशेष उपाय किए जाने की आवष्यकता है। पार्टी के घोषणापत्र में यह वायदा किया गया है कि सच्चर समिति व रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों  को लागू किया जाएगा। उसमें मांग की गई है कि संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को अतिपिछड़ा घोषित किया जाना चाहिए और मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में उसी तरह आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए जिस तरह अनुसूचित जातियों को प्रदान किया जाता है।
घोषणापत्र में यह वायदा भी किया गया है जिन निर्दोष मुसलमान युवकों को आतंकवाद निरोधक कानूनों के अंतर्गत जेलों में रखा गया है, उन्हें रिहा किया जायेगा और यह सुनिष्चित किया जायेगा कि उन्हें मुआवजा और न्याय मिले। उनके साथ हुए अन्याय के लिए दोषी अधिकारियों को भी सजा दी जाएगी।
घोषणापत्र में मुस्लिम-बहुल जिलों में उर्दू माध्यम के प्राथमिक, माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक स्कूलों की स्थापना का वायदा भी किया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उर्दू भाषा को मुसलमानों से जोड़ा जा रहा है। घोषणापत्र कहता है कि कब्रिस्तानों की चहारदीवारी के निर्माण के लिए विशेष बजट प्रावधान किए जायेंगे ताकि कब्रिस्तानों की भूमि पर बेजा कब्जे न हो सकें। दरगाहों की सुरक्षा व विकास के लिए विशेष पैकेज दिया जायेगा। दरगाहों के विकास की बात अल्पसंख्यकों से संबंधित खंड में क्यों की गई है, यह कहना मुष्किल है क्योंकि दरगाहों पर मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू जाते हैं। यह भी वायदा किया गया है कि सभी सरकारी आयोगों, बोर्डों व समितियों में अल्पसंख्यक समुदाय का कम से कम एक सदस्य नियुक्त किया जायेगा। वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण हटाये जायेंगे और एक कानून बनाकर वक्फ बोर्ड की स्थापना की जाएगी, जो कि सभी वक्फ संपत्तियों की देखरेख करेगा। वक्फ संपत्तियांे को भूमि अधिग्रहण अधिनियम से बाहर रखा जायेगा। जिन उद्योगों में बड़ी संख्या में मुसलमान कारीगर हैं जैसे हैण्डलूम, हैण्डीक्राफ्ट, चूडी़, ताला, कैचीं व गलीचों का निर्माण, जरी, जरदोसी, बीड़ी उद्योग आदि को सरकारी अनुदान मिलेगा और इन्हें प्रोत्साहन दिया जायेगा। बुनकरों को बिजली के बकाया बिलों का भुगतान करने पर ब्याज और दंड की राशि नहीं देनी होगी। मुस्लिम समुदाय की जो लड़कियां उच्चतर माध्यमिक परीक्षा पास करंेगी, उनके विवाह या उच्च शिक्षा के लिए 30,000 रूपए का अनुदान दिया जायेगा। ऐसी मुस्लिम शिक्षण संस्थाएं, जो इसके लिए पात्र हैं, को विष्वविद्यालय का दर्जा दिया जायेगा। यह वायदा भी किया गया है कि उत्तरप्रदेश को दंगामुक्त प्रदेश बनाया जायेगा।
मुस्लिम समुदाय की बेहतरी के दो तरीके हैं। पहला यह कि उन्हें सभी क्षेत्रों में उनका वाजिब हक मिले, ऐसा सुनिष्चित किया जाए और यह भी सुनिष्चित हो कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। दूसरा तरीका यह है कि केवल मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान किए जाएं। संविधान, मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान किए जाने की इजाजत नहीं देता क्योंकि उसमें धर्म के आधार पर आरक्षण देने की कोई व्यवस्था नहीं है। आरक्षण का आधार केवल पिछड़ापन हो सकता है। जाहिर है कि अगर इस तरह के कदम उठाए भी जाते हैं तो उन्हें लागू करने में संविधानिक व कानूनी अड़चनें आयेंगी। ऐसा करने से गैर-मुसलमानों में रोष उत्पन्न हो सकता है और बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो सकती हैं। समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में इसी दूसरी राह पर चलने की बात कही गई है जिसका नतीजा यह होगा कि अगर कोई विशेष प्रावधान किए भी गए तो उन्हें लागू करना संभव नहीं होगा।

 -इरफान इंजीनियर

2 टिप्‍पणियां:

Neetu Singhal ने कहा…

हमारे पालक/पूर्वज कदाचित निरक्षर रहे होंगे, किन्तु उन्हें धर्म ग्रन्थ हमसे अधिक समझ में आते थे.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-05-2014) को "रविकर का प्रणाम" (चर्चा मंच 1619) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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