आम आदमी पार्टी -आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र मात्र 7 पृष्ठों का है और यह कम शब्दों में ज्यादा बात कहता है। इसमें यह वायदा किया गया है कि सत्ता में आने के बाद, आम आदमी पार्टी, मोहल्ला सभाओं और ग्राम सभाओं के जरिये शासन चलाएगी। इन सभाओं को सरकार द्वारा एकमुश्त धनराशि उपलब्ध करवा दी जायेगी और फिर वे यह तय करेंगी कि इस धनराशि का कहां और क्या उपयोग हो। पार्टी ने न्याय प्रणाली में सुधार की बात भी कही है और मुकदमों में जल्दी निर्णय हो,इसके लिए ग्राम न्यायालयों व अन्य ऐसी ही संस्थाओं की नियुक्ति का वायदा किया है। पुलिस और चुनाव पद्धति में भी सुधार की बात कही गई है ताकि पुलिस का व्यवहार अधिक मानवीय हो सके और चुनाव पद्धति स्वतंत्र और निष्पक्ष तो हो हीए साथ ही वह जनमत का बेहतर प्रतिनिधित्व करे। परंतु इसमें भी अल्पसंख्यकों के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस- तृणमूल कांग्रेस का प्रभावक्षेत्र मुख्यतः पश्चिम बंगाल तक सीमित है। इस राज्य की 24 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक मतदाताओं का बड़ा हिस्सा वाम मोर्चे को वोट देता आया है और तृणमूल कांग्रेस, चुनाव जीतने की आशा तभी कर सकती थी जब वह नंदीग्राम में औद्योगिकरण के लिए बड़े पैमाने पर किए गए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चलाए गए अपने आंदोलन के जरिए अल्पसंख्यकों के कम से कम कुछ वोटों को अपनी ओर आकर्षित कर पाती। लिहाजा, पार्टी के घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जातियों,जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों आदि सहित समाज के सभी कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण का वायदा किया गया है ताकि वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें और 'गर्व और आत्मविश्वास के साथ अपना जीवन बिता सकें।' इसमें आव्हान किया गया है कि अल्पसंख्यकों के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। बंगाल की 94 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को अन्य पिछड़ा वर्गों ;ओबीसी में शामिल कर, उन्हें सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण प्रदान किया गया है। तृणमूल कांग्रेस घोषणा करती हैए 'धर्मनिरपेक्षता हमारी विचारधारा है और अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा देना हमारा मिशन।' वह आगे कहती है 'भाजपा को भारत में हुए अधिकांश दंगों के लिए दोषी ठहराया गया है। पार्टी की सोच व मिशन भारत की एकता को मजबूती देना और उसकी विविधता की पूर्ण रक्षा करना है।' अपने दृष्टिपत्र में पार्टी कहती है कि वह धर्मनिरपेक्ष भारत में विश्वास रखती है। पार्टी कहती है कि उसके शासन में मदरसों का सशक्तिकरण किया जायेगा और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें मुख्यधारा में लाया जायेगा। यद्यपि अल्पसंख्यकों के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण के वायदे किये गये हैं तथापि इसके लिए क्या नीतियां अपनाई जायेंगी और कौन.से कदम उठाए जायेंगे' यह स्पष्ट नहीं किया गया है।
बीजू जनता दल -बीजेडी का प्रभाव मुख्यतः ओडिसा में है। ओडिसा की अल्पसंख्यक आबादी बहुत कम है। वहां की आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत चार से भी कम और ईसाईयों का लगभग एक है। ओडिसा के कंधमाल और फूलबनी जिले में ईसाईयों के विरूद्ध दंगे हुए थे, जिनमें 70 लोग मारे गए थे और 50,000 से अधिक को घर से बेघर कर दिया गया था। ये दंगे सन् 2007.08 में हुए थे, जब बीजेडी.भाजपा गठबंधन सरकार सत्ता में थी। कई पीडि़त अब भी अपने गांवों में वापस नहीं लौट सके हैं और ना ही उन्हें न्याय मिला है। केवल वे पीडि़त अपने गांव वापिस जा सकें हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म को अपनाना स्वीकार कर लिया और भारी आर्थिक दण्ड चुकाया। उन्हें अपना मुण्डन भी कराना पड़ा। ओडिसा का धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून बहुत कड़ा है और इसका इस्तेमाल, ईसाई अल्पसंख्यकों को परेशान करने के लिए किया जाता रहा है। परंतु जब ईसाईयों को हिन्दू बनाने की मुहिम चलाई गईए तब इस कानून का इस्तेमाल नहीं किया गया। ओडिसा में सन् 1964 में राउरकेला और कटक में भयावह दंगे हुए थे परंतु आश्चर्यजनक रूप सेए घोषणापत्र में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए न्याय और उन्हें समान अवसर दिलवाने के लिए सकारात्मक प्रयास की कोई चर्चा नहीं की गई है। घोषणापत्र में दंगों और दंगा पीडि़तों के लिए न्याय के संबंध में एक शब्द भी नहीं हैं और ना ही ऐसे किसी कानून को बनाए जाने की बात कही गई है जिससे दंगे हो ही न,यदि हों तो उन पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके व दंगों के बाद,पीडि़तों के लिए राहत, पुनर्वास और मुआवजे की समुचित व्यवस्था हो।
बीजेडी का घोषणापत्र मुख्यतः भाषाई अल्पसंख्यकों पर केन्द्रित है अर्थात तेलुगु, बंगाली व उर्दू बोलने वाले रहवासियों पर। घोषणापत्र में यह वायदा किया गया है कि इन भाषाओं के शिक्षण को सुलभ बनाने के लिए नए स्कूल खोले जायेंगे व इन भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित की जायेंगी। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं के अधोसंरचनात्मक विकास में सरकार मदद करेगी और उन मेघावी विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग दिया जायेगा जो अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और गरीब हैं। वक्फ बोर्ड, हज कमेटी और प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम को अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अंतर्गत लाया जायेगा। घोषणापत्र में यह वायदा भी किया गया है कि अल्पसख्यंकों के कल्याण के लिए एक आयोग की नियुक्ति होगी।
एआईएडीएमकेरू यह एक द्रविड पार्टी है, जिसका नेतृत्व जयललिता के हाथों में है। वे ब्राह्मण हैं और एमजीआर की राजनैतिक उत्तराधिकारी हैं। एमजीआर एक अत्यधिक लोकप्रिय तमिल फिल्म कलाकार थे जो बाद में राजनीति में आ गए। सन् 1972 में उन्होंने डीएमके से अलग होकर एआईएडीएमके का गठन किया। डीएमके की तुलना में, एआईएडीएमके का हिंदी व हिन्दू विरोध कम पैना है। सन् 1997 के 21 नवंबर को तमिलनाडु के बुनकरों के शहर कोयम्बटूर में हुए सांप्रदायिक दंगों में 18 मुसलमान मारे गए थे। ये सभी शहर के कोट्टईमेण्डू इलाके में पुलिस गोलीचालन में मारे गए। दंगों के बाद, 14 फरवरी 1998 को 15 बम धमाके हुए जिनमें से पहला लालकृष्ण आडवाणी की चुनावसभा में हुआ। सन् 1998 के आमचुनाव में एआईएडीएमके ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। नतीजे में अल्पसंख्यक मतदाता उससे दूर हो गए,उसकी द्रविड विचारधारा कमजोर पड़ी और वह हिन्दुत्ववादियों के अधिक नजदीक आ गई। सन् 2001 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल करने के बाद, सन् 2002 में एआईएडीएमके सरकार ने धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून बनाया। यह कानून, उन सभी राजनैतिक दलों को नजरअंदाज कर बनाया गया जो इस तरह के कानून के खिलाफ थे। उन दिनों जयललिता, संघ परिवार को प्रसन्न करने में जुटी हुईं थीं। इस कानून के लागू होने के तीन दिन के भीतर चैन्नई के माडिपक्कम में एक चर्च में आग लगा दी गई। इस कानून का भारी विरोध हुआ। अल्पसंख्यकों के सभी प्रमुख संगठनों, दलित समूहों व भाजपा और एआईएडीएमके को छोड़कर, अन्य सभी राजनैतिक दलों द्वारा चैन्नई में 24 अक्टूबर 2002 को एक विशाल विरोध प्रदर्शन किया गया। सन् 2004 के आमचुनाव में एआईएडीएमके को एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद सरकार ने धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून वापस ले लिया।
इस बार एआईएडीएमके का गठबंधन मुसलमानों के कट्टरपंथी संगठनों से था। इनमें शामिल था तमिलनाडु तौहीद जमात। चुनाव प्रचार की शुरूआत में मोदी ने यह प्रयास किया कि जयललिता उनकी पार्टी के साथ गठबंधन कर लें। इससे जमात नाराज हो गई। इसके बाद से मोदी और जयललिता एक दूसरे पर हमले करते रहे। एआईएडीएमके का घोषणापत्र जयललिता के महिमामंडन से भरा हुआ है। इसमें पुराची तलैवी ;क्रांतिकारी नेता.जैसा कि जयललिता को एआईएडीएमके में संबोधित किया जाता है.की उपलब्धियों और गरीबों के प्रति उनकी उदारता की जबरदस्त चर्चा है। घोषणापत्र को पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो तमिलनाडु के लोगों से अधिक जरूरतमंद कोई है ही नहीं और ना ही पुराची तलैवी जैसा कोई उदार शासक है जो उन्हें प्रचुर मात्रा में अनाजए वजीफे, दवाईयां व अन्य सभी जरूरत की चीजें उपलब्ध करवाता है। घोषणापत्र में उद्योगों व अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए नई नीतियां बनाने की बात कही गई है। घोषणापत्र में धर्मनिरपेक्षता अपनाने का वायदा किया गया है, जिसके अनुसार हर भारतीय सबसे पहले भारतीय है और फिर हिन्दू या मुसलमान। घोषणापत्र में कहा गया है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों व विविधता का सम्मान व शान्ति और सौहार्द की स्थापना। घोषणापत्र,सामाजिक न्याय को सभी आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से कमजोर वर्गों को समान अवसर उपलब्ध करवाने के रूप में परिभाषित करता है। घोषणापत्र में तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण की रक्षा करने की बात कही गई है वह भी तब जबकि इस आरक्षण को कोई खतरा ही नहीं है। अल्पसंख्यकों के लिए कुछ सुविधाओं का वायदा किया गया है जैसे 500 ;केवल ईसाईयों को येरूशेलम की यात्रा के लिए अनुदान व उलेमा के लिए पेंशन। तमिलनाडु सरकार, वक्फ संपत्तियों के विकास और अल्पसंख्यकों को स्वयं का रोजगार शुरू करने के लिए ऋण देने हेतु तीन करोड़ रूपए का बजट आवंटित करती है। जाहिर है कि यह राशि ऊँट के मुंह में जीरे से भी कम है। घोषणापत्र में वायदा किया गया है कि अगर एआईएडीएमके सत्ता में आई तो राज्य सरकार की इन सभी नीतियों को पूरे देश में लागू किया जायेगा। इसमें गैर.हिन्दू दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने का वायदा किया गया है।
डीएमके-डीएमके के घोषणापत्र में पार्टी के इतिहास का वर्णन किया गया है और उसकी द्रविड जड़ों पर जोर दिया गया है। इसमें अधिक मजबूत व प्रभावी संघीय ढांचे को लागू करने की भी बात कही गई है,जिसमें राज्यों को पूर्ण स्वायत्ता प्राप्त होगी और भारत सरकार को संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं होगा। एआईएडीएमके की तुलना में डीएमके के घोषणापत्र में धर्मनिरपेक्षता पर अधिक जोर दिया गया है। उसके अनुसार, धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में अपने धर्म का आचरण करना तो शामिल है ही,अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार भी शामिल है। घोषणापत्र में संविधान में संशोधन कर, समान नागरिक संहिता लागू करने का विरोध किया गया है। डीएमके यह वायदा करती है कि वह किसी भी धर्म के लोगों को, दूसरे धर्म के मानने वालों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाने देगी। इसमें सामाजिक व आर्थिक असमानता को समाप्त करने व समाज के कमजोर वर्गों को आरक्षण प्रदान करने की बात भी कही गई है। डीएमके इस पक्ष में है कि निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू हो और क्रीमी लेयर को आरक्षण न देने के प्रावधान को समाप्त किया जाए। वह जाति.आधारित जनगणना के पक्ष में भी है। वह 'तीसरे लिंग' को मान्यता देने और उनकी भलाई के लिए कार्यक्रम चलाने पर भी जोर देता है।
डीएमके का घोषणापत्र, सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की रपटों को लागू करने के पक्ष में है। वह गैर.हिन्दू दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की बात भी करता है। घोषणापत्र में कहा गया है कि कुल योजनागत व्यय का 19 प्रतिशत प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत मुसलमानों के आर्थिक एवं शैक्षणिक विकास पर खर्च किया जाना चाहिए। घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि मुसलमानों के लिए विशेष घटक योजना बनाई जाए। डीएमके केन्द्र सरकार से यह अनुरोध करेगी कि टाडा और पोटा की तरह,यूएपीए को भी वापस ले लिया जाए क्योंकि इस कानून का इस्तेमाल एक वर्ग विशेष को परेशान करने के लिए किया जा रहा है।
-इरफान इंजीनियर
तृणमूल कांग्रेस- तृणमूल कांग्रेस का प्रभावक्षेत्र मुख्यतः पश्चिम बंगाल तक सीमित है। इस राज्य की 24 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक मतदाताओं का बड़ा हिस्सा वाम मोर्चे को वोट देता आया है और तृणमूल कांग्रेस, चुनाव जीतने की आशा तभी कर सकती थी जब वह नंदीग्राम में औद्योगिकरण के लिए बड़े पैमाने पर किए गए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चलाए गए अपने आंदोलन के जरिए अल्पसंख्यकों के कम से कम कुछ वोटों को अपनी ओर आकर्षित कर पाती। लिहाजा, पार्टी के घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जातियों,जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों आदि सहित समाज के सभी कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण का वायदा किया गया है ताकि वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें और 'गर्व और आत्मविश्वास के साथ अपना जीवन बिता सकें।' इसमें आव्हान किया गया है कि अल्पसंख्यकों के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। बंगाल की 94 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को अन्य पिछड़ा वर्गों ;ओबीसी में शामिल कर, उन्हें सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण प्रदान किया गया है। तृणमूल कांग्रेस घोषणा करती हैए 'धर्मनिरपेक्षता हमारी विचारधारा है और अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा देना हमारा मिशन।' वह आगे कहती है 'भाजपा को भारत में हुए अधिकांश दंगों के लिए दोषी ठहराया गया है। पार्टी की सोच व मिशन भारत की एकता को मजबूती देना और उसकी विविधता की पूर्ण रक्षा करना है।' अपने दृष्टिपत्र में पार्टी कहती है कि वह धर्मनिरपेक्ष भारत में विश्वास रखती है। पार्टी कहती है कि उसके शासन में मदरसों का सशक्तिकरण किया जायेगा और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें मुख्यधारा में लाया जायेगा। यद्यपि अल्पसंख्यकों के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण के वायदे किये गये हैं तथापि इसके लिए क्या नीतियां अपनाई जायेंगी और कौन.से कदम उठाए जायेंगे' यह स्पष्ट नहीं किया गया है।
बीजू जनता दल -बीजेडी का प्रभाव मुख्यतः ओडिसा में है। ओडिसा की अल्पसंख्यक आबादी बहुत कम है। वहां की आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत चार से भी कम और ईसाईयों का लगभग एक है। ओडिसा के कंधमाल और फूलबनी जिले में ईसाईयों के विरूद्ध दंगे हुए थे, जिनमें 70 लोग मारे गए थे और 50,000 से अधिक को घर से बेघर कर दिया गया था। ये दंगे सन् 2007.08 में हुए थे, जब बीजेडी.भाजपा गठबंधन सरकार सत्ता में थी। कई पीडि़त अब भी अपने गांवों में वापस नहीं लौट सके हैं और ना ही उन्हें न्याय मिला है। केवल वे पीडि़त अपने गांव वापिस जा सकें हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म को अपनाना स्वीकार कर लिया और भारी आर्थिक दण्ड चुकाया। उन्हें अपना मुण्डन भी कराना पड़ा। ओडिसा का धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून बहुत कड़ा है और इसका इस्तेमाल, ईसाई अल्पसंख्यकों को परेशान करने के लिए किया जाता रहा है। परंतु जब ईसाईयों को हिन्दू बनाने की मुहिम चलाई गईए तब इस कानून का इस्तेमाल नहीं किया गया। ओडिसा में सन् 1964 में राउरकेला और कटक में भयावह दंगे हुए थे परंतु आश्चर्यजनक रूप सेए घोषणापत्र में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए न्याय और उन्हें समान अवसर दिलवाने के लिए सकारात्मक प्रयास की कोई चर्चा नहीं की गई है। घोषणापत्र में दंगों और दंगा पीडि़तों के लिए न्याय के संबंध में एक शब्द भी नहीं हैं और ना ही ऐसे किसी कानून को बनाए जाने की बात कही गई है जिससे दंगे हो ही न,यदि हों तो उन पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके व दंगों के बाद,पीडि़तों के लिए राहत, पुनर्वास और मुआवजे की समुचित व्यवस्था हो।
बीजेडी का घोषणापत्र मुख्यतः भाषाई अल्पसंख्यकों पर केन्द्रित है अर्थात तेलुगु, बंगाली व उर्दू बोलने वाले रहवासियों पर। घोषणापत्र में यह वायदा किया गया है कि इन भाषाओं के शिक्षण को सुलभ बनाने के लिए नए स्कूल खोले जायेंगे व इन भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित की जायेंगी। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं के अधोसंरचनात्मक विकास में सरकार मदद करेगी और उन मेघावी विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग दिया जायेगा जो अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और गरीब हैं। वक्फ बोर्ड, हज कमेटी और प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम को अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अंतर्गत लाया जायेगा। घोषणापत्र में यह वायदा भी किया गया है कि अल्पसख्यंकों के कल्याण के लिए एक आयोग की नियुक्ति होगी।
एआईएडीएमकेरू यह एक द्रविड पार्टी है, जिसका नेतृत्व जयललिता के हाथों में है। वे ब्राह्मण हैं और एमजीआर की राजनैतिक उत्तराधिकारी हैं। एमजीआर एक अत्यधिक लोकप्रिय तमिल फिल्म कलाकार थे जो बाद में राजनीति में आ गए। सन् 1972 में उन्होंने डीएमके से अलग होकर एआईएडीएमके का गठन किया। डीएमके की तुलना में, एआईएडीएमके का हिंदी व हिन्दू विरोध कम पैना है। सन् 1997 के 21 नवंबर को तमिलनाडु के बुनकरों के शहर कोयम्बटूर में हुए सांप्रदायिक दंगों में 18 मुसलमान मारे गए थे। ये सभी शहर के कोट्टईमेण्डू इलाके में पुलिस गोलीचालन में मारे गए। दंगों के बाद, 14 फरवरी 1998 को 15 बम धमाके हुए जिनमें से पहला लालकृष्ण आडवाणी की चुनावसभा में हुआ। सन् 1998 के आमचुनाव में एआईएडीएमके ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। नतीजे में अल्पसंख्यक मतदाता उससे दूर हो गए,उसकी द्रविड विचारधारा कमजोर पड़ी और वह हिन्दुत्ववादियों के अधिक नजदीक आ गई। सन् 2001 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल करने के बाद, सन् 2002 में एआईएडीएमके सरकार ने धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून बनाया। यह कानून, उन सभी राजनैतिक दलों को नजरअंदाज कर बनाया गया जो इस तरह के कानून के खिलाफ थे। उन दिनों जयललिता, संघ परिवार को प्रसन्न करने में जुटी हुईं थीं। इस कानून के लागू होने के तीन दिन के भीतर चैन्नई के माडिपक्कम में एक चर्च में आग लगा दी गई। इस कानून का भारी विरोध हुआ। अल्पसंख्यकों के सभी प्रमुख संगठनों, दलित समूहों व भाजपा और एआईएडीएमके को छोड़कर, अन्य सभी राजनैतिक दलों द्वारा चैन्नई में 24 अक्टूबर 2002 को एक विशाल विरोध प्रदर्शन किया गया। सन् 2004 के आमचुनाव में एआईएडीएमके को एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद सरकार ने धर्मपरिवर्तन निरोधक कानून वापस ले लिया।
इस बार एआईएडीएमके का गठबंधन मुसलमानों के कट्टरपंथी संगठनों से था। इनमें शामिल था तमिलनाडु तौहीद जमात। चुनाव प्रचार की शुरूआत में मोदी ने यह प्रयास किया कि जयललिता उनकी पार्टी के साथ गठबंधन कर लें। इससे जमात नाराज हो गई। इसके बाद से मोदी और जयललिता एक दूसरे पर हमले करते रहे। एआईएडीएमके का घोषणापत्र जयललिता के महिमामंडन से भरा हुआ है। इसमें पुराची तलैवी ;क्रांतिकारी नेता.जैसा कि जयललिता को एआईएडीएमके में संबोधित किया जाता है.की उपलब्धियों और गरीबों के प्रति उनकी उदारता की जबरदस्त चर्चा है। घोषणापत्र को पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो तमिलनाडु के लोगों से अधिक जरूरतमंद कोई है ही नहीं और ना ही पुराची तलैवी जैसा कोई उदार शासक है जो उन्हें प्रचुर मात्रा में अनाजए वजीफे, दवाईयां व अन्य सभी जरूरत की चीजें उपलब्ध करवाता है। घोषणापत्र में उद्योगों व अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए नई नीतियां बनाने की बात कही गई है। घोषणापत्र में धर्मनिरपेक्षता अपनाने का वायदा किया गया है, जिसके अनुसार हर भारतीय सबसे पहले भारतीय है और फिर हिन्दू या मुसलमान। घोषणापत्र में कहा गया है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों व विविधता का सम्मान व शान्ति और सौहार्द की स्थापना। घोषणापत्र,सामाजिक न्याय को सभी आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से कमजोर वर्गों को समान अवसर उपलब्ध करवाने के रूप में परिभाषित करता है। घोषणापत्र में तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण की रक्षा करने की बात कही गई है वह भी तब जबकि इस आरक्षण को कोई खतरा ही नहीं है। अल्पसंख्यकों के लिए कुछ सुविधाओं का वायदा किया गया है जैसे 500 ;केवल ईसाईयों को येरूशेलम की यात्रा के लिए अनुदान व उलेमा के लिए पेंशन। तमिलनाडु सरकार, वक्फ संपत्तियों के विकास और अल्पसंख्यकों को स्वयं का रोजगार शुरू करने के लिए ऋण देने हेतु तीन करोड़ रूपए का बजट आवंटित करती है। जाहिर है कि यह राशि ऊँट के मुंह में जीरे से भी कम है। घोषणापत्र में वायदा किया गया है कि अगर एआईएडीएमके सत्ता में आई तो राज्य सरकार की इन सभी नीतियों को पूरे देश में लागू किया जायेगा। इसमें गैर.हिन्दू दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने का वायदा किया गया है।
डीएमके-डीएमके के घोषणापत्र में पार्टी के इतिहास का वर्णन किया गया है और उसकी द्रविड जड़ों पर जोर दिया गया है। इसमें अधिक मजबूत व प्रभावी संघीय ढांचे को लागू करने की भी बात कही गई है,जिसमें राज्यों को पूर्ण स्वायत्ता प्राप्त होगी और भारत सरकार को संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं होगा। एआईएडीएमके की तुलना में डीएमके के घोषणापत्र में धर्मनिरपेक्षता पर अधिक जोर दिया गया है। उसके अनुसार, धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में अपने धर्म का आचरण करना तो शामिल है ही,अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार भी शामिल है। घोषणापत्र में संविधान में संशोधन कर, समान नागरिक संहिता लागू करने का विरोध किया गया है। डीएमके यह वायदा करती है कि वह किसी भी धर्म के लोगों को, दूसरे धर्म के मानने वालों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाने देगी। इसमें सामाजिक व आर्थिक असमानता को समाप्त करने व समाज के कमजोर वर्गों को आरक्षण प्रदान करने की बात भी कही गई है। डीएमके इस पक्ष में है कि निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू हो और क्रीमी लेयर को आरक्षण न देने के प्रावधान को समाप्त किया जाए। वह जाति.आधारित जनगणना के पक्ष में भी है। वह 'तीसरे लिंग' को मान्यता देने और उनकी भलाई के लिए कार्यक्रम चलाने पर भी जोर देता है।
डीएमके का घोषणापत्र, सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की रपटों को लागू करने के पक्ष में है। वह गैर.हिन्दू दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की बात भी करता है। घोषणापत्र में कहा गया है कि कुल योजनागत व्यय का 19 प्रतिशत प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत मुसलमानों के आर्थिक एवं शैक्षणिक विकास पर खर्च किया जाना चाहिए। घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि मुसलमानों के लिए विशेष घटक योजना बनाई जाए। डीएमके केन्द्र सरकार से यह अनुरोध करेगी कि टाडा और पोटा की तरह,यूएपीए को भी वापस ले लिया जाए क्योंकि इस कानून का इस्तेमाल एक वर्ग विशेष को परेशान करने के लिए किया जा रहा है।
-इरफान इंजीनियर
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