मंगलवार, 1 जुलाई 2014

तालिबानी हिन्दू बनाने की मुहिम -1

सौगंध राम की खाते है!
    बात सन् 1991की है, जब राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद का विवाद देश में चरम पर था। हवा में चारों तरफ ‘बच्चा बच्चा राम का-जन्म भूमि के काम का’ और ‘जन्म भूमि के काम ना आए वह बेकार जवानी है-जिस हिन्दू का खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है’ जैसे नारे गूँजते थे। मेरी उम्र उस वक्त 17 वर्ष की थी, बाहरवीं कक्षा में पढ़ता था। मैं बिना घर वालों को बताए कारसेवा करने के लिए घर से भाग गया। राम शिलाएँ पूजित हो चुकी थीं, हम लोग उन दिनों भीलवाड़ा में राम मंदिर के लिए अभियान चला रहे थे। मेरी कारसेवा में शामिल होने की बेहद इच्छा थी, ताकि अपने स्वयंसेवक होने को और मजबूती दे सकूँ। अंततः मौका मिल गया और मुझे भी सैकड़ों लोगों के एक बलिदानी जत्थे में शामिल कर लिया गया। हमारी रवानगी से पहले जगह-जगह हमारे जुलूस निकाले गए, मैं बेहद रोमांचित था, मुझे याद है कि हम लोग गले में मालाएँ और सर पर भगवा पट्टी और ललाट पर रक्तिम तिलक लगा कर मुट्ठियाँ बाँधकर जय श्री राम तथा जय जय श्री राम के गगन भेदी नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे.उस वक्त हम सबकी जुबान पर एक ही गीत था रामजी के नाम पर जो मर जाएँगे-दुनिया में नाम अपना अमर वह कर जाएँगे।
    मुझे यकीन था कि हमारी भिडंत जरूर मुलायम सिंह की हिन्दू द्रोही पुलिस से हो जाएगी और हम मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम के नाम पर उनकी जन्म स्थली को मुक्त कराने के लिए अपना आत्मोत्सर्ग कर देंगे। हम एक ट्रेन के जरिए भीलवाड़ा से अजमेर पहँुचे, हमारे जत्थे में ज्यादातर नौजवान लोग थे और बाकी के साधू संत थे। अजमेर की एक धर्मशाला में सैकड़ों और लोग भी भगवा दुपट्टा ओढ़े पहले से ही जमा थे, इन सबको भी अयोध्या जाना था, उन्हें देख कर हमारा हौंसला दुगुना हो गया, हर चेहरा बलिदान की भावना से दमक रहा था, सबके मन में एक ही लक्ष्य था, जल्दी से जल्दी राम की जन्म भूमि तक पहुँचना और गुलामी के प्रतीक चिह्न बाबरी ढाँचे को ध्वस्त करना, हमारे साथ संघ (आरएसएस) और विश्व हिन्दू परिषद के
पदाधिकारीगण भी मौजूद थे, खाना खाने के बाद उन्होंने सबको सामूहिक दिशा निर्देश दिए कि हमें हर हाल में अयोध्या पहँुचना है, मुलायम सिंह सरकार अगर रोके, गिरफ्तारी करे या दमन करें, इस परिस्थिति में क्या करना है, उनसे कैसे बचना है, कैसे उन्हें चकमा देकर आगे जाना है। यह बताया गया। वरिष्ठ
अधिकारियों का स्पष्ट निर्देश था कि चाहे हमें खुद को क्यों ना मिटाना पड़े, गुलामी के उस कलंक बाबरी मस्जिद को उखाड़ फेंकना है, दिल कर रहा था कि उड़कर अभी भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या पहुँच जाऊँ और राम लला को मलेच्छ विधर्मियों के चंगुल से आज ही मुक्त करवा दूँ, आखिर हिन्दुओं के ही देश में हिन्दुओं के आराध्य देवता राम की जन्म स्थली पर हम गुलामी का यह बाबरी ढाँचा कब तक बर्दाश्त करेंगे। हमें साफ-साफ आदेश मिल चुका था कि किसी भी कीमत पर जान की परवाह किए बगैर हमें अयोध्या पहुँच कर बाबरी मस्जिद के ढाँचे की ओर बढ़ना है, कहा गया कि ढाँचा गिराने के लिए कुदाल, गेंती, फावड़े और सब्बल आदि हमें स्थानीय लोगों की ओर से उपलब्ध करवाए जाएँगे। अब हमारा एक मात्र लक्ष्य था-हर हाल में अयोध्या पहँुच कर बाबरी ढाँचे को गिराना और रामलला को मुक्त करवाना। शाम हुई और हम लखनऊ जाने वाली ट्रेन की ओर बढे़। भीलवाड़ा से संघ, विहिप तथा भाजपा के कई जाने माने चेहरे भी हमारे साथ आए थे, उनका साथ पाकर हमारा हौंसला बढ़ रहा था। मैंने मन ही मन भगवान श्री राम को धन्यवाद् दिया कि उन्होंने इतना शानदार मौका दिया कि आज मुझे इन बड़े-बड़े लोगों के साथ राम काज के लिए चुना गया है। मुझे लगा कि आज वाकई हर व्यक्ति राम के नाम पर शहीद होने को तत्पर है, छोटे- बड़े, अमीर-गरीब, खास या आम आदमी, सभी तरह के फर्क खत्म हो चुके हैं। लोग करोड़ों की दौलत, कारखाने, महल, ऊँचें पद और प्रतिष्ठा सब त्याग कर रामकाज करने को आतुर हैं, वाह रामजी क्या गजब लीला है तेरी हमें लग रहा था कि यह आजादी की दूसरी जंग है, हम खुद को स्वतंत्रता सेनानी समझ कर मन ही मन धन्य हो रहे थे, ऐसे उत्साह और खुशी के माहौल में हम ट्रेन पर सवार हुए। हम सबको अपना अपना टिकट दे दिया गया था यह कह कर कि अगर किसी कारणवश कोई बिछुड़ जाएँ तो खुद का टिकट तो खुद के पास होना ही चाहिए, हमें भी यह बात ठीक लगी, स्टेशन खचाखच भरा था, जाने वालों से ज्यादा पहुँचाने वाले आए थे। तनी हुई मुट्ठियों और चीखते चेहरों ने अपना पूरा दमखम वन्दे मातरम्, जयकारे बजरंगी-हर हर महादेव और जय जय श्री राम के नारों पर लगा रखा था। इतनी उत्तेजना और शोरगुल मैंने आज से पहले कभी नहीं महसूस की, ट्रेन की सीटी बज चुकी थी, हमने भी मुट्ठियाँ बाँधी और पूरा जोर लगाकर चीखे-सौगंध राम की खाते हैं-हम मंदिर वहीं बनाएँगे। हम खुश थे कि हमारा सफर अयोध्या की तरफ शुरू हो चुका था। ट्रेन सरकने लगी और हमारी बोगियों से बड़े-बड़े लोग भी सरकने लगे, अरे यह क्या? ये भाई साहब क्यों उतर रहे है, ये प्रचारक जी क्या यहीं रहेंगे, हमारे साथ नहीं चलेंगे, मैंने देखा कि धीरे धीरे तमाम सारे बड़े लोग, उद्योगपति, संघ प्रचारक, विहिप नेता और भाजपाई लीडरान ट्रेन से उतर गए, सब बड़े लोग हमें अयोध्या रवाना करके अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान कर गए पीछे रह गए हम जैसे जुनूनी दलित, आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग के युवा एवं साधू संत और हमें सँभालने के लिए कुछेक छुटभैय्ये नेता गण जो हमें बता रहे थे कि भाई साहब दूसरे जत्थों को रवाना करके सीधे ही अयोध्या पहुँच जाएँगे, हालाँकि उन्हें नहीं आना था, वे कभी नहीं आए, वे समझदार लोग थे, इसलिए घर लौट गए। समझदार लोग सदैव ही हम जैसे जुनूनी लोगों को लड़ाई में धकेल कर अपने-अपने दरबों में लौट जाते हैं, यही उनका बड़प्पन है, शायद इन्हीं चालाकियों से ही वे बड़े बनते होंगे।
 -भँवर मेघवंशी
मो-09571047777
कर्मश :
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित

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