आर एस एस की शाखा में
इस हादसे से हमने कोई सबक नहीं लिया, कारसेवा का जूनून भले ही उतर गया हो लेकिन देशभक्ति का ज्वर चढ़ा ही रहा, यह मात्र 13 साल की उम्र में ही चढ़ गया था, जब मैं कक्षा 6 का विद्यार्थी था, तभी देशभक्ति के सबसे प्रमुख स्वघोषित स्कूल आर.एस.एस. में भर्ती हो गया था। हुआ यह कि राजकीय माध्यमिक विद्यालय मोड़ का निम्बाहेड़ा, जहाँ मैं अध्ययनरत था, वहाँ के भूगोल विषय के अध्यापक महोदय बंशी लाल सेन ने हमारे गाँव के खेल मैदान में हम बच्चों को खेल खिलाना शुरू किया। वे बहुत अच्छा गाते भी थे और व्यायाम भी करवाते थे, हमें बहुत अच्छा लगता था। शुरू में खेल, फिर थोड़ा व्यायाम, एक दो गीत और कुछ अच्छी-अच्छी बातें, कुछ-कुछ बातें समझ में नहीं आती थीं, कुछ बातें उलझन भी पैदा करती थीं, खास तौर पर जब वे क्लास में भूगोल पढ़ाते हुए कहते थे कि-सूर्य आग का एक गोला है, जिसके पास कोई भी नहीं जा सकता है, अगर गया तो नष्ट हो जाएगा। मगर वे खेल के वक्त शाखा में सूर्य नमस्कार करवाते थे, इस दौरान ओऽम् सूर्याय नमः, रवये नमः, ओऽम् सवित्रे सूर्य नारायणाय नमः का मंत्रोचार कराते थे और हनुमानजी द्वारा सूर्य को मुँह में निगल जाने की कहानी बताते हुए सगर्व कहते थे कि-ऐसे थे हमारे बजरंग बली, जिन्होंने सूर्य भगवान को ही निगल लिया, पूरे ब्रह्माण्ड पर अँधेरा छा गया था। मैं इस बात से उलझन महसूस करने लगा, एक दिन हिम्मत करके पूछ लिया कि- गुरुदेव सूर्य देवता हंै, या आग का गोला? उनका जवाब पूर्णतः संघ परिवार की चिंतन प्रक्रिया का साक्षात् सबूत देता हुआ सामने आया, वे बोले-भैयाजी, शाखा में सूर्य देवता हैं लेकिन विद्यालय में वह आग का गोला हैं, मैं और अधिक भ्रमित हो गया, मैंने उनसे कहा कि-फिर हनुमान जी ने कैसे उन्हें निगला? उनका उत्तर था-बजरंग बली तो अतिशय बलशाली थे, सूर्य तो सिर्फ आग का एक गोला मात्र था, उन्होंने उसे न केवल मुँह में ले लिया बल्कि वे तो उसे चबा कर निगल ही जाना चाहते थे, सब लोकों पर छा गए अंधकार के बाद देवताओं ने आकर प्रार्थना की तब कहीं जा कर हनुमान जी ने सूर्य को उगला।
अन्ध आस्था
मेरी आस्था हनुमानजी में अत्यधिक दृढ़ हो गई, मुझे भूगोल विषय बकवास लगने लगा। अब मैं भूगोल के पीरियड में भी मन ही मन हनुमान चालीसा दोहराता रहता था, मुझे मालूम था कि इस विषय में कोई दम नहीं है, दमदार तो बजरंग बली हैं। वैसे भी गुरूजी ने एक दिन शाखा में कहा था कि संशय करने वाले लोग विनाश को प्राप्त हो जाते है (संशयात्मा विनष्यति), फिर मैंने संदेह करना छोड़ दिया, श्रद्धा का नया दौर मेरी किशोरावस्था में ही प्रारंभ हो गया। भूगोल के गुरूजी ने मुझे विज्ञान से भी विमुख कर डाला। अब मेरी आस्था धर्म कर्म में बढ़ने लगी, वैसे भी गुरूजी ने शाखा में बता ही दिया था कि पूरे विश्व में हमारा धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, तो यह खेल, गीत और व्यायाम तथा थोड़ी सी देर जो बातचीत होती थी रोज, उसका नाम शाखा था और यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा थी। यह आर.एस.एस. की हमारे गाँव में एक ब्रांच थी जो नई नई खुली थी और हम बाल गोपाल उस शाखा की टहनियाँ थे।
हमारे गाँव की शाखा में हम बच्चों की संख्या तकरीबन 50 के आसपास थी ,सभी जातियों के बच्चे इसमें आते थे, उन जातियों के भी जो हम दलितों को नीचा समझते थे और सीधे मुँह बात भी नहीं करते थे, सब एक दूसरे को जी कह कह कर पुकारते थे, मैं भी भँवर से भँवर जी हो गया था और भँवर जी भाई साहेब होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा था। शाखा में मैंने अप्रत्याशित सफलताएँ प्राप्त कर लीं, मैं गणनायक से मुख्य शिक्षक बना और कार्यवाह बन कर शीघ्र ही जिला कार्यालय जा पहँुचा, जहाँ पर मुझे जिला कार्यालय प्रमुख की जिम्मेदारी मिल गई
-भँवर मेघवंशी
मो-09571047777
क्रमश :
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
इस हादसे से हमने कोई सबक नहीं लिया, कारसेवा का जूनून भले ही उतर गया हो लेकिन देशभक्ति का ज्वर चढ़ा ही रहा, यह मात्र 13 साल की उम्र में ही चढ़ गया था, जब मैं कक्षा 6 का विद्यार्थी था, तभी देशभक्ति के सबसे प्रमुख स्वघोषित स्कूल आर.एस.एस. में भर्ती हो गया था। हुआ यह कि राजकीय माध्यमिक विद्यालय मोड़ का निम्बाहेड़ा, जहाँ मैं अध्ययनरत था, वहाँ के भूगोल विषय के अध्यापक महोदय बंशी लाल सेन ने हमारे गाँव के खेल मैदान में हम बच्चों को खेल खिलाना शुरू किया। वे बहुत अच्छा गाते भी थे और व्यायाम भी करवाते थे, हमें बहुत अच्छा लगता था। शुरू में खेल, फिर थोड़ा व्यायाम, एक दो गीत और कुछ अच्छी-अच्छी बातें, कुछ-कुछ बातें समझ में नहीं आती थीं, कुछ बातें उलझन भी पैदा करती थीं, खास तौर पर जब वे क्लास में भूगोल पढ़ाते हुए कहते थे कि-सूर्य आग का एक गोला है, जिसके पास कोई भी नहीं जा सकता है, अगर गया तो नष्ट हो जाएगा। मगर वे खेल के वक्त शाखा में सूर्य नमस्कार करवाते थे, इस दौरान ओऽम् सूर्याय नमः, रवये नमः, ओऽम् सवित्रे सूर्य नारायणाय नमः का मंत्रोचार कराते थे और हनुमानजी द्वारा सूर्य को मुँह में निगल जाने की कहानी बताते हुए सगर्व कहते थे कि-ऐसे थे हमारे बजरंग बली, जिन्होंने सूर्य भगवान को ही निगल लिया, पूरे ब्रह्माण्ड पर अँधेरा छा गया था। मैं इस बात से उलझन महसूस करने लगा, एक दिन हिम्मत करके पूछ लिया कि- गुरुदेव सूर्य देवता हंै, या आग का गोला? उनका जवाब पूर्णतः संघ परिवार की चिंतन प्रक्रिया का साक्षात् सबूत देता हुआ सामने आया, वे बोले-भैयाजी, शाखा में सूर्य देवता हैं लेकिन विद्यालय में वह आग का गोला हैं, मैं और अधिक भ्रमित हो गया, मैंने उनसे कहा कि-फिर हनुमान जी ने कैसे उन्हें निगला? उनका उत्तर था-बजरंग बली तो अतिशय बलशाली थे, सूर्य तो सिर्फ आग का एक गोला मात्र था, उन्होंने उसे न केवल मुँह में ले लिया बल्कि वे तो उसे चबा कर निगल ही जाना चाहते थे, सब लोकों पर छा गए अंधकार के बाद देवताओं ने आकर प्रार्थना की तब कहीं जा कर हनुमान जी ने सूर्य को उगला।
अन्ध आस्था
मेरी आस्था हनुमानजी में अत्यधिक दृढ़ हो गई, मुझे भूगोल विषय बकवास लगने लगा। अब मैं भूगोल के पीरियड में भी मन ही मन हनुमान चालीसा दोहराता रहता था, मुझे मालूम था कि इस विषय में कोई दम नहीं है, दमदार तो बजरंग बली हैं। वैसे भी गुरूजी ने एक दिन शाखा में कहा था कि संशय करने वाले लोग विनाश को प्राप्त हो जाते है (संशयात्मा विनष्यति), फिर मैंने संदेह करना छोड़ दिया, श्रद्धा का नया दौर मेरी किशोरावस्था में ही प्रारंभ हो गया। भूगोल के गुरूजी ने मुझे विज्ञान से भी विमुख कर डाला। अब मेरी आस्था धर्म कर्म में बढ़ने लगी, वैसे भी गुरूजी ने शाखा में बता ही दिया था कि पूरे विश्व में हमारा धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, तो यह खेल, गीत और व्यायाम तथा थोड़ी सी देर जो बातचीत होती थी रोज, उसका नाम शाखा था और यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा थी। यह आर.एस.एस. की हमारे गाँव में एक ब्रांच थी जो नई नई खुली थी और हम बाल गोपाल उस शाखा की टहनियाँ थे।
हमारे गाँव की शाखा में हम बच्चों की संख्या तकरीबन 50 के आसपास थी ,सभी जातियों के बच्चे इसमें आते थे, उन जातियों के भी जो हम दलितों को नीचा समझते थे और सीधे मुँह बात भी नहीं करते थे, सब एक दूसरे को जी कह कह कर पुकारते थे, मैं भी भँवर से भँवर जी हो गया था और भँवर जी भाई साहेब होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा था। शाखा में मैंने अप्रत्याशित सफलताएँ प्राप्त कर लीं, मैं गणनायक से मुख्य शिक्षक बना और कार्यवाह बन कर शीघ्र ही जिला कार्यालय जा पहँुचा, जहाँ पर मुझे जिला कार्यालय प्रमुख की जिम्मेदारी मिल गई
-भँवर मेघवंशी
मो-09571047777
क्रमश :
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें