रविवार, 6 जुलाई 2014

अब किस मुंह से ‘आपकी अदालत’ में फैसले सुनाओगे शर्माजी ?


आप रजत शर्मा ही तो थे जब आपने लिखा था “कोई करोड़ो दर्शकों से पूछे कि उन्हें न्याय दिलाने के लिए न्यूज चैनल्स कैसे दिन-रात लड़तें हैं”.यह लेख आपने भास्कर में लिखा था. 28 नवम्बर 2011 को. आपके आर्टिकल का शीर्षक था- “नसीहत देने वालों की कमी नहीं”.rajat.sharma
मुकेश कुमार 
रजत शर्मा जी आपके इस करोड़ों लोगों में आपकी चैनल की एंकर तनु शर्मा क्यों नहीं है? याद दिलाऊं की तनु शर्मा ने इंडिया टीवी के कुछ मर्द व महिला पत्रकारों के उत्पीड़न से तंग कर आत्म हत्या तक की कोशिश की थी पर बच गयीं.शर्मा जी,तनु ने आरोप लगाया है की इंडिया टीवी की एक वरिष्ठ सहयोगी ने उन्हें “राजनेताओं और कॉरपोरेट जगत के बड़े लोगों को मिलने” और “ग़लत काम करने को बार-बार कहा”. तनु के मुताबिक़, “इन अश्लील प्रस्तावों के लिए मना करने के कारण परेशान किया जाने लगा, इसकी शिकायत एक और सीनियर से की तो उन्होंने भी मदद नहीं की, बल्कि कहा कि ये प्रस्ताव सही है.
अब आप की अदालत कंहा लगाना है,शर्मा जी?

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क्यों जो चैनल करोड़ों लोगों की न्याय के लिए लड़ते रहते हैं वो तनु शर्मा के नाम पर खामोश है?क्यों नहीं कोई खबरिया चैनल इसको खबर बना रहा है?क्यों नहीं कोई टी.वी चैनल इस पर पैकेज बना रहा है? क्या यह इस कथन को सच नहीं कर रहा है की ‘एक वाचडॉग दुसरे वाचडॉग को नहीं काटता’.
गीतिका शर्मा,जिया खान और वैष्णवी के मामलों से यह कितना अलग मामला रहा होगा की इसको तानने की फुरशत नहीं रही आपको?हमेशा सरोकार और न्याय की बात करने वाले पत्रकारों को किस तरह आपने हड़का या धमका दिया है? पत्रकारों के हित के लिए बनी कोई संस्था क्यों नहीं इसके लिए कुछ करती दिख रही है? क्यों बेबस है इस मामले में?
दूसरों के लिए लगभग चीखते हुए स्टूडियों में लड़ाई लड़ते हो,जब अपनी पर आई तो तुम उसको टिकर लायक  भी नहीं समझते? जब वैषणवी नाम की लड़की ने अभिषेक+ऐश की शादी के समय अपने हाथ की नसें काटी थीं तब तो तुम बड़े चौड़े होकर उसकी व्यथा-कथा बता रहे थे,अब कंहा हैं आपके सरोकार? मालिक के तलवे चाट रहा है तेरा सरोकार ? क्या-क्या नहीं दिखाया,अगर यह दिखा -बता देते तो क्या हो जाता ?हाथ बंधे हुए हैं या हाथ ही नहीं है ?
-इंडिया टी.वी. की समाचार वाचिका द्वारा आत्महत्या की कोशिश यह तो संकेत देता ही है की भारतीय खबरिया चैनलों में सब कुछ अच्छा नहीं है.यह गुलाबी जितना दूर से दिखता है उतना है नहीं.इसका भी एक काला स्याह पक्ष है.पर टी. वी. मीडिया में एक खबर नहीं है? फर्ज करो अगर यही घटना किसी भी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सरकारी,कंपनी या मल्टी नेशनल कंपनी के किसी कर्मचारी द्वारा किया जाता तो इनका रवैया यही रहता? अगर गुड़गांव की किसी कंपनी की यह घटना रहती तो इसको तानते नहीं? तब अपने हाथ हिला-हिला कर देश-दुनिया-समाज की ऐसी की तैसी नहीं करते?अब जब अपनी बजबजाती सड़ांध को बताने-दिखाने की बारी आई तो क्या हुआ?दूसरों के लिए न्याय और सरोकार की बात करने वाले अब अपने न्याय और सरोकार की बात पर आई तो यह भोथरी क्यों होने लगी?तुम पत्रकारिता के आलावा सब कुछ करते हो पर वो नहीं जिसका तुम दावा करते हो?गीतिका शर्मा के केस को तुम लोगों ने कैसे ताना था?अब क्यों खामोश हो?
सुसाइड नोट
पीपली लाइव के नत्था को कवर करने के लिए सारी मीडिया आ गई थी,क्योकिं वो पहला लाइव सुसाइडर था.आज जब तनु शर्मा ने फेसबुक पर लाइव सुसाइड नोट लिखा तब भी उतना ही मसाला था.तब क्यों चूक गए टी.आर.पी लेने से? अपनी सड़ांध दिखाना नहीं चाहते?दूसरों के एम एम एस (MMS)मजे लेकर दिखाते हो. अपने समय में नैतिकता याद आती है?
तनु शर्मा: जान देने का जोखिम
तनु शर्मा: जान देने का जोखिम

 किसी कंपनी के कर्मचारी की छटनी समाचार होती है और मीडिया के कर्मचारियों की छटनी कोई समाचार नहीं है?नेतायों के आर्थिक घोटाले समाचार हैं पर आपके घोटाले समाचार नहीं हैं?आप अपने चैनल में काम करने वाले महिलायों का उत्पीड़न (शारीरिक +मानसिक)करो तो ठीक और अगर यह कोई और करे तो तानने लगते हो खबर की तंबू ? अब जब आपके अन्दर की सड़ांध को दिखाने वाली गटर के मुहाने पर एक छोटी सी नल खोलने का काम तनु ने  किया तो इसको कवर करने में सांप क्यों सूंघ गया?दूसरे को कठघरे में बैठा कर सवाल करते हो तो अब कंहा गया आपका ज़मीर,अब क्यों नहीं अपने को कठघरे में रखकर सवाल पूछते हो?
चैनल्स में सड़ांध
बिना ड्राइवर की कार,राखी-मीका,जुली-मटुकनाथ,प्रीति-वाडिया की हेट स्टोरी,कटहल,आजम खान की भैंस जैसे धागे तो तानकर तम्बू बनाने वाले मीडिया वालों आज तेरी अन्दर की सड़ांध की वजह से कोई आत्महत्या करने को विवश हुआ.इसको कब दिखायोगे.यह चीख़-चीख कर कब बतायोगे की इसके गुनाहगार नंबर एक में कौन है और नंबर दो में कौन है?आप अपनी सड़ांध को दिखाने में शर्मा रहे हो शर्मा जी?
हो सकता है की यह गलत कदम हो जो उस एंकर ने उठाया हो,उसके पास शायद कोई और उपाय ही न बचा हो? आप इतने शक्तिशाली तो हो ही की उसके किसी भी क़ानूनी प्रयास को भोथरा कर देते.अब तक आप हर किसी की पोल खोलते हो आखिर अब तक आपकी पोल क्यों नहीं खुली? अब खुली है तो उसको तानते नहीं हो? अब अपने दिल का बोझ हल्का कर लो शर्मा जी,आज अपने गुनाह की गिनती कर लो.शायद हल्का हो जाये जमीर,और आईना के सामने शर्मिंदा न होना पड़े.
रजत शर्म (शर्मा) जी के नाम में ही शर्म है तो यह उनके लिए करने की बात नहीं है,वैसे भी अपनी अदालत लगाने वाले अपनी बीबी को तो बचा ही लेंगें. क्या वजह है की रितु का नाम गायब होता जा रहा है पुरे बहस से?रजत सच में आप बड़े वाले हो ? खबरिया चैनल वालों आपको नींद आती होगी,जब अपने ही साथ का कोई बंदा /बन्दी मीडिया हाउस के प्रभुओं की वजहों से आत्महत्या करने की कोशिश करता हो और उसकी न तो खबर बना पातें न टिकर?
यही काम किसी और संस्था या हाउस के बंदा/बन्दी ने किया होता तो क्या आप इसी तरह चुप्प रहते? माइक लेकर जब दूसरे की निजता की बाप-भाई (“माँ-बहन” कहना नारीवादी सोच के विरुद्ध हो सकती है) करते रहते हो तब कुछ समझ में आता है?याद रखो अगर आज तुम अपनी और सिर्फ अपनी चिंता कर रहे हो तो याद रखो कल तेरी चिंता कोई भी नहीं रखेगा.इस मामले को दबाने और रफा दफा करने के कितने प्रयास हो रहें होगें यह इसी से पता चलता है की इस  बहस से रजत शर्मा की बीबी रितु का नाम गायब होता जा रहा है. क्या उसकी कीमत पर और किसी की बलि चढ़ाई जाएगी?इसका मतलब यही है की जो प्रभु वर्ग है वो कुछ भी करेगा और आप कुछ नहीं कर पायेंगें।

मुकेश कुमार पंजाब विश्वविद्यालय में मीडिया रिसर्च स्कालर हैं. उनसे mukesh29kumar@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है
          साभार -         naukarshahi.in/

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