इस नौजवान को चार साल तक श्री राम सेना के द्वारा किए गए बम विस्फोट में जेल में रहना पड़ा, बाद में राज खुला तब ८ श्रीराम सेना के लोग गिरफ्तार हुए अशोक जम्बगी ने जेल में कहा की वह श्रीराम सेना पोल खोल देगा तो उसको जेल में मार डाला गया
2008 में तालीम ए आफ्ता नौजवानो को सिमी तंज़ीम से वाबिस्ता होने के ज़ुर्म में
गिरफ्तार करने का एक माहौल ही बन गया था.बदकिस्मती से बेलगाम शहर भी
इस फेरिस्त में शामिल था.बेलगाम शहर के ग्यारह नौजवान इस तूफ़ान कि ज़द में आ
गए .और देखते दिखाते इनकी तमाम ज़िंदगियाँ बिखर गयी.इंसान कंकण को
समुन्दर में यूँ ही फेंक देता है मगर समुन्दर कि गहराई सिर्फ कंकर जानता
है.सारे मुसलमान एक खबर समझ कर चंद लम्हो में भूल गए..लेकिन ग्यारह ऐसे
मकान..ऐसे घर ...और हर घर का एक एक फर्द अपनी मुस्कुराहट ही भूल गया
था.जीना और मरना बराबर ही था.सारी दुनिया अपने अपने कामो में मसरूफ
थी....खैर इस हादसे में कई घर बर्बाद हुए.वक़्त गुज़रता गया.बूढ़े वालिदैन
इंतज़ार करते -करते मर गए.यहाँ तक जनाज़े कि नमाज़ के लिए ज़ंजीरो में जखड़ कर
लाया गया ..वालिद कि जनाज़े कि नमाज़ बेटा पढ़ा भी रहा है तो ज़ंजीरों में
.....आप तस्सव्वुर भी नहीं कर सकते.बहोत सारे मुसलमानो के लिए वोह एक
फ़िल्मी सीन था.थोडा गम ..थोडा मलाल...!!फिर अपने रोज़मर्रा के कामों में
...पर थोड़ी देर के लिए कोई मुसलमानअपने आप को उसकी जगह पर रख कर देखे..उसकी
माँ कि जगह पर खड़े हो कर देखे.उसका छोटा भाई..बहेन...नहीं नहीं हमारे पास
वो दिल है ही नहीं उसके दर्द को महसूस करने के लिए..
बेलगाम के कुल ग्यारह नौजवान सिमी दहशतगर्दमुक़द्दमों में क़ैदख़ानो
में ठोंस दिए गए.तरह तरह कि अज़ीयतें झेलते हुए सफ़र ए ज़िन्दान कट रहा था.कोई
आवाज़ नहीं कोई ललकार नहीं.मुसलमान ऐसे थे के कुछ हुआही नहीं.किये होंगे
तभी तो पुलिस ने पकड़ा है वाली ज़हनियत पनप रही थी.क़ैद में उनके साथ क्या हुआ
कैसा पुलिश ज़ुल्म करती है..देश द्रोही के अलक़ाब से किस्स तरह बुलाया जाता
है..खाना कैसा रहता है..तमाम तफ़सीलात कि ज़रूरत अब नहीं है.बहरहाल बेलगाम
के नौजवानो को चार साल क़ैद में रखने के बाद बाइज़ज़त बरी कर दिया
गयाए .पी .एम्.सी. माल मारुति और खड़े बाज़ार और कुछ हुबलीकोर्ट बमधमाका.. !!
आखिर कार २०११ में रिहाई अमल में आयी.बेलगाम में जो मुक़द्दमे थे उसमे
सभी कि रिहाई हुयी लेकिन बेलगाम से बाहर वाले मुक़द्दमों में बेलगाम शहर के
आज भी 3 अफ़राद सात सालों से क़ैद खानों में है.
रिहाई के बाद सभी मुतास्सिरीन अपने गुज़ारे हुए ज़ख्मो के दर्द को भुलाने कि कोशिश करते करते अपने कामो में मसरूफ हो गए.
इक़बाल अहमद जकाती इन्ही अफ़राद में से था जिसने अखबार के ज़रिये मिल्लत
के हालात को मंज़रे आमपर लाने का आज़म किया और पैगाम ए इत्तेहाद हफ्तावारी
अखबार शुरू किया.शायद अखबार कि बेबाकी पुलिस वालों को अच्छी नहीं लगी.और
आनेवाले इंतखाबात के मद्दे नज़र भारतिया दंड विधान 1970कलम170के तहत
मुक़द्दमे दायर किया.जब इकबालजाकती ने पुलिस अफसर नदाफ से फ़ोन पर गुफ्तगू
फ़रमायी तो बताया गया के आप कि रौडी शीट बनायी गयी है और आगे शहरबदर करने का
भी हुक्म आ सकता है.इससे आप अंदाजा लगा सकते है के मुसलमान होना ज़ुर्म तो
है ही..लेकिन उससे भी बड़ा ज़ुर्म आप अपनी आवाज़ को बुलंद करना .शहर में जब ये
खबर फैली के पैगाम ए इत्तेहाद के मुदिर इक़बाल अहमद जकाती पर 107और राउडी
शीट को खोलने कि बात पुलिस कर रही है तो शहर के नौजवानो ने एस एम् एस के
ज़रिये खबर को फैलायी.शहर के मुख्तलिफ तंज़ीमें अपना मुतालबा एस.पी . और डी
सी.को देनेवाले है.जब इक़बाल जकाती से पूछा गया तो उन्होंने बताया के जब से
अखबार निकाला है पुलिस कि जानिब से हमेशा हिरांसा किया जा रहा है.लेकिन अब
बेलगाम के लोग खामोश नहीं बैठेंगे और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे.समता
सर्व धर्म के जनाब रफ़ीक देसाई ने कहा के अगर इक़बाल जकाती के खिलाफ दायर
मुक़द्दमे वापिस नहीं लिए जाते और अगर राउडी शीट खोलने कि बात सही है तो बड़ी
तायदाद में अितजाजी जुलुस का अहतमाम किया जाएगा.रफ़ीक देसाई ने ये भी कहा
है के अगर इस साज़िश के पीछे किसी सियासी लीडर का हाथ या शय है तो उसका नाम
पोलिसे बताये।मेरी
गिरफ्तारी से लेकर रिहाई तक का सफर एक सख्त आज़माईश से कम न था. चार साल
जेल में सख्त हालात से गुजरने के बाद बाहर आया तो मेरे पिताजी बिस्तर पर थे
मानो के मेरी रिहाई का इंतज़ार कर रहे थे.खुद एक स्कूल टीचर होने की हैसियत
से इन्हे आतंकवाद का धब्बा अपने बेटे के माथे पे लगाया गया था बर्दाश्त न
हो सका..और सख्त सदमे में चले गए और इसी में इनका देहांत हो गया.गली से
गुज़रता तो मुझे कोई सलाम नहीं करता था.मस्जिदों में नमाज़ के लिए कोई बाजू
में आकर खड़ा होना पसंद नहीं करता था.लोगों में डर था के कही मै इक़बाल जकाती
के साथ खड़ा हो गया तो पुलिस की नज़रों में ना आ जाऊं.
आतंकवाद के झूठे इलज़ाम का दाग अपने माथे से मिटाना मुझे बहोत मुश्किल नज़र आ
रहा था.अदालत ने तो बाइज्जत बरी कर दिया.लेकिन लोगों की नज़ारे मुझे
आतंकवादी कह कर पुकार रही थी.ऐसे सख्त हालात में मैंने एक मुश्किल फैसला
लिया,अखबार निकालने का.पैगाम ए इत्तेहाद के नाम से मैंने अखबार शुरू
किया.लेकिन अखबार खरीदनेवाले भी कोई न था.मई मस्जिदों के सामने खड़ा हो कर
पांच रुपये में एक अखबार बेचने की कोशिश करता.लोग भिखारियों को पांच रुपये
दे कर जाते लेकिन अखबार के लिए कोई नहीं देता.लेकिन चंद लोगों ने मुझे
सहारा दे कर खड़ा करने की कोशिश की.जिसमे मेरा भाई सफे अव्वल में है
समीउल्ला जकाती ने मुझे प्रिंटिंग के लिए पैसे दिए और कुछ लोग आगे बढ़ कर
सामने आये और अखबार को बंद होने से बचा लिया.बेबाक लिखना पुलिस को भी पसंद
नहीं आया.मुझे कई बार पुलिस थाने में बुला कर पुलिस और भगवा आतंकवाद के
खिलाफ लिखने से बाज़ आने की धमकिया मिली.लेकिन मै अपने काम में लगा
रहा.आहिस्ता..आहिस्ता..अखबार बढ़ने लगा और आज हिंदी में सबसे ज़्यादा
पढ़जानेवाला अखबार पैगामे इत्तेहाद हो गया है.
शहर ए बेलगाम के कमेटियों ने बेबाक लिखनेके लिए मेरी हिम्मत अफ़ज़ाई फ़रमाई जिनका मैं शुक्रगुज़ार हूँ..
लेकिन लोगों की नज़रों में अपना मक़ाम बना ने के लिए मुझे इम्तेहान से गुज़ारना पड़ा।
शहर ए बेलगाम के कमेटियों ने बेबाक लिखनेके लिए मेरी हिम्मत अफ़ज़ाई फ़रमाई जिनका मैं शुक्रगुज़ार हूँ..
लेकिन लोगों की नज़रों में अपना मक़ाम बना ने के लिए मुझे इम्तेहान से गुज़ारना पड़ा।
-इक़बालअहमद जकाती .
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