बुधवार, 6 अगस्त 2014

भारतीय इतिहास का ‘बत्रा युग’


जनाब पी एन ओक का नाम कितने लोगों ने सुना है, जिन्होंने फौज से रिटायरमेण्ट के बाद अपनी उम्र यही लिखने में गुजार दी कि ‘क्रिश्चानिटी और इस्लाम दोनों हिन्दु धर्म से ही व्युत्पन्न हैं’ या ‘ताजमहल की तरह कैथोलिक वैटिकन, काबा और वेस्टमिन्स्टर अब्बे’ ये सभी एक जमाने में शिवमंदिर थे,’ या ‘वैटिकन मूलतः वैदिक रचना है जिसका मूल नाम वाटिका है’ और ‘पोप का पद किसी जमाने में वैदिक पुरोहितवर्ग का प्रतीक है’ ‘भारत में इस्लामिक आर्किटेक्चर’ नाम से कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं है, वगैरा।
भाजपा की अगुआई में जब पहली दफा राजग की सरकार बनी, उन दिनों ओक ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था और एक याचिका दायर की थी कि ताजमहल के इतिहास का पुनर्लेखन किया जाए क्योंकि उसे शाहजहां ने नहीं बल्कि एक हिन्दू राजा ने बनाया है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट की द्विसदस्यीय पीठ ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह ‘बकवास’ है और याचिका का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि ‘किसी बाॅनेट में मधुमक्खी घुस गयी है, इसलिए यह याचिका दायर हुई है’ (समबडी हैज ए बी इन हिज बानेट, हेन्स धिस पीटिशन)
अब गुजरात सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों के लिए अनिवार्य बना दी गयी दीनानाथ बात्रा की किताबों को पलटें, तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह ‘हिन्दू संस्कृति के गौरव’ का बखान करते हुए कहीं कही जनाब ओक को भी मात देते हैं।
गौरतलब है कि विगत 30 जून को गुजरात सरकार ने एक परिपत्रा के जरिए राज्य के 42,000 सरकारी स्कूलों को यह निर्देश दिया कि वह पूरक साहित्य के तौर पर दीनानाथ बात्रा की नौ किताबों के सेट को शामिल करे। इन किताबों को लेकर पिछले दिनों ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ ने दो तीन भागों में स्टोरी की। अलग अलग किताबांे के अलग अलग पन्नों पर अंकित सामग्री में से कुछ अंशों को इसमें पाठकों के साथ साझा किया गया थाः
- क्या आप भारत का नक्शा बना रहे हैं ? इस बात की गारंटी कर लें कि आप उसमें पाकिस्तान, अफगाणिस्तान, नेपाल, भूतान, तिब्बत, बांगलादेश, श्रीलंका और माइनामार अर्थात बर्मा को भी शामिल कर रहे है। यह सभी अविभाजित भारत या ‘‘अखंड भारत’’ का हिस्सा हैं।
- पाकिस्तान का स्वतंत्राता दिवस 14 अगस्त को , राष्ट्रीय छुटिटयों में शामिल करना होगा जिसे ‘‘अखण्ड भारत स्मृति दिवस’’ के तौर पर मनाना चाहिए।
- आप की सालगिरह पर मोमबत्ती न जलाएं क्योंकि वह ‘‘पश्चिमी संस्कृति’’ का हिस्सा है और उसका विरोध किया जाना चाहिए। इस दिन स्वदेशी कपड़ों को पहने, हवन का आयोजन करें, अपने इष्टदेव की पूजा करें, गायों को भोजन दें
अनिवार्य वाचन के लिए सरकार के प्रायमरी एवं सेकेण्डरी स्कूलों में इस साल से अनिवार्य बनायी गयी यह किताबें न केवल भारत की संस्कृति, इतिहास और भूगोल के ‘‘तथ्यों’’ से बच्चों को अवगत कराती है, वह विज्ञान खासकर मील का पत्थर माने जानेवाली खोजों को लेकर भी अलग नज़रिया रखती हैं। ‘तेजोमय भारत’ किताब में भारत की ‘महानता’ के किस्से बयान किए गए है:
अमेरिका स्टेम सेल रिसर्च का श्रेय लेना चाहता है, मगर सच्चाई यही है कि भारत के बालकृष्ण गणपत मातापुरकर ने शरीर के हिस्सों को पुनर्जीवित करने के लिए पेटेण्ट पहले ही हासिल किया है .. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि इस रिसर्च में नया कुछ नहीं है और डा मातापुरकर महाभारत से प्रेरित हुए थे। कंुती के एक बच्चा था जो सूर्य से भी तेज था। जब गांधारी को यह पता चला तो उसका गर्भपात हुआ और उसकी कोख से मांस का लम्बा टुकड़ा बाहर निकला। द्वैपायन व्यास को बुलाया गया जिन्होंने उसे कुछ दवाइयों के साथ पानी की टंकी में रखा। बाद में उन्होंने मांस के उस टुकड़े को 100 भागों में बांट दिया और उन्हें घी से भरपूर टैंकों में दो साल के लिए रख दिया।दो साल बाद उसमें से 100 कौरव निकले। उसे पढ़ने के बाद मातापुरकर ने एहसास किया कि स्टेम सेल की खोज उनकी अपनी नहीं है बल्कि वह महाभारत में भी दिखती है। (पेज 92-93)
हम जानते हैं कि टेलीविजन का आविष्कार स्काटलेण्ड के एक पादरी ने जान लोगी बाइर्ड ने 1926 में किया। मगर हम आप को उसके पहले दूरदर्शन में ले जाना चाहते हैं ..भारत के मनीषी योगविद्या के जरिए दिव्य दृष्टि प्राप्त कर लेते थे। इसमें केाई सन्देह नहीं कि टेलीविजन का आविष्कार यहीं से दिखता है .. महाभारत में, संजय हस्तिनापुर के राजमहल में बैठा अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग कर महाभारत के युद्ध का सजीव हाल दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को दे रहा था। पेज 64
हम जिसे मोटरकार के नाम से जानते हैं उसका अस्तित्व वैदिक काल में बना हुआ था। उसे अनाश्व रथ कहा जाता था। आम तौर पर एक रथ को घोड़ों से खींचा जाता है मगर अनाश्व रथ एक ऐसा रथ होता है जो घोड़ों के बिना - यंत्रा रथ के तौर पर चलता है, जो आज की मोटरकार है, ऋग्वेद में इसका उल्लेख है। - पेज 60
हम आसानी से देख सकते हैं कि जहां पी एन ओक ने अपने आप को हिन्दू धर्म के सर्वोपरि साबित करने तक सीमित किया था, वहीं दीनानाथ बात्रा विज्ञान की खोजों की जड़ें भी हिन्दू धर्म में ढंूढ लेते हैं और वैदिक काल को सर्वश्रेष्ठ काल बताते हैं।
यह तो कोई सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी बता सकता है कि ऐसी मनगढंत बातें पढ़ना अनिवार्य बना कर बाल मन को किस कदर अवरूद्ध किया जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि गुजरात के सरकारी स्कूलों में पूरक पाठयक्रम में शामिल इन किताबों में प्रधानमंत्राी जनाब नरेन्द्र मोदी एवं गुजरात के शिक्षामंत्रियों भूपेन्द्र सिंह चुडासमा, नानूभाई वडानी और वासुबेन त्रिवेदी आदि के सन्देश भी शामिल किए गए हैं। क्या यह पूछा जाना जरूरी नहीं कि संविधान की कसम खाएं यह सभी महानुभाव आखिर किस बुनियाद पर ‘अखंड भारत’ के नाम पर पड़ोसी सम्प्रभु राष्ट्रों को भारत के नक्शे में शामिल करने की इस अनर्गल हरकत को औचित्य प्रदान कर रहे हैं। और ऐसी वैज्ञानिक खोजें - जिनके आविष्कार को लेकर दुनिया जानती है - उन्हें ‘वैदिक काल’ की खोज बता कर दुनिया में अपनी हंसी उड़वाना क्यों चाहते हैं ?
अन्त मंे, सुकरात से लेकर पाॅलो फ्रायरे तक महान शिक्षकों ने हमेशा शिक्षा की ऐसी व्यवस्था की हिमायत की है जो प्रश्न पूछने के बच्चों की क्षमता को बढ़ावा दे, उनके आलोचनात्मक चिन्तन जगाए जो पारम्पारिक प्राधिकारों को चुनौती दे सके। किसी भी परिघटना की वस्तुनिष्ठ पड़ताल ही ज्ञान के विकास एवं सामाजिक भलाई को बढ़ावा दे सकती है।
और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध विद्या भारती के प्रमुख दीनानाथ बात्रा ब्राण्ड समाजविज्ञान इस सभी का प्रतिलोम है।
-सुभाष गाताडे
लोकसंघर्ष   पत्रिका के सितम्बर   2014 में प्रकाशित होगा

1 टिप्पणी:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुप्रीम कोर्ट ने सटीक टिप्पणी किया था !

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