संघ का गोपनीय पत्र
मनुवादी ब्राह्मणवादी वर्णाश्रमधर्म का पालन करने वाली सामाजिक व्यवस्था ने हम दलितों और शूद्रों को हजारों साल से गुलाम बना कर रखा, जब यह व्यवस्था आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी राज में चरमराने लगी तो जातिवादी कट्टर चितपावन ब्राह्मणों ने आर0एस0एस0 जैसा संगठन खड़ा किया, जो हिन्दुत्व की आड़ में उसी पुरातन जातिवाद और सड़ी गली वर्ण व्यवस्था को बेहद चतुराई से बचाने की कोशिश में लग गया, दलित पिछड़ों और महिलाओं को शाश्वत गुलाम बनाये रखने के लिए ही ऐसे संगठन काम करते हैं, ये लोग योजनाबद्ध तरीके से देश, धर्म, संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीयता जैसे लोक लुभावन मनभावन जुमलों के जरिये हमें मानसिक रूप से दास बना लेते हैं, फिर हम लोग वही करते हैं जो ये लोग चाहते हैं। आज शूद्र (पिछड़े) वर्ग के लोग ब्राह्मणवाद की लाश को बड़े ही अभिमान के साथ पालकी में लिए अपने कंधों पर ढो रहे हैं।
मुझे संघ के चिंतको द्वारा लिखित पुस्तकों का अब दूसरा पहलू भी समझ में आने लगा था, मैंने संघ में रहते हुए द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर जिन्हें गुरूजी गोलवलकर के नाम से जाना जाता है, अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘विचार नवनीत ‘ (बंच ऑफ थॉट) में वे जाति को भारतीय समाज व्यवस्था का वैशिष्ट्य निरूपित करते हैं तथा वर्ण व्यवस्था का खुलकर समर्थन करते हैं, मतलब जो बात हम दलितों के लिए अत्यंत दुखदायी है वह संघ के विचारकों के लिए अद्भुत और विशिष्ट है! मुझे उन्हीं दिनों किसी दलित संगठन द्वारा भेजा गया आर0एस0एस का एक गोपनीय पत्र भी मिला, जिसे पढ़कर मैं पूरी तरह से हिल गया। पत्र उच्च वर्ण के हिन्दुओं को संबोधित था तथा उनका आह्वान करता था कि वे हिन्दू समाज की जातिय संरचना को और मजबूत करें, क्योंकि इसी जाति व्यवस्था के चलते ही हिन्दू समाज बच पाया, अन्यथा सारे लोग मुसलमान या ईसाई बन चुके होते। गोपनीय पत्र समरसता के नाम पर पढ़े लिखे नौकरी पेशा दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को एकजुट करके उन्हें और अधिक हिंदूवादी बनाने के तौर तरीकों का भी पर्दाफाश करता था, साथ ही आर0एस0एस0 के आरक्षण विरोधी विचारों को भी प्रकट करता था, यह गोपनीय पत्र आँखें खोलने वाला था, मुझे और अधिक स्पष्ट हो गया कि कोई भी धार्मिक कट्टरपंथी और मूल तत्ववादी संगठन दलितों का हितैषी नहीं हो सकता है। मुझे लगा कि अनायास ही सही पर मैं इस अन्धे कुँए से बाहर आ गया था लेकिन मेरे जैसे हजारों दलित युवा थे जो अभी भी काली टोपी खाकी नेकर और सफेदकमीज पहन कर हाथ में लट्ठ लिए घूम रहे हैं और खुद को बड़ा सौभाग्यशाली हिन्दू समझ रहे है, उन्हें इस अन्धे कुँए से कौन बाहर निकालेगा? ये भोले लोग स्वयं को गर्व से हिन्दू कहते नहीं अघाते हैं पर संघी सवर्ण हिन्दू इन्हें अपने बराबर का हिन्दू समझना तो दूर की बात इन्सान भी नहीं समझते हंै। हमारे एक पत्रकार साथी सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया जो कि शाहपुरा भीलवाड़ा से ‘संयुक्त एकता‘ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र निकालते थे, उन्होंने आर0एस0एस0 के इस गोपनीय पत्र को प्रकाशित करने का साहस कर दिखाया, संघी उनके पीछे पड़ गए, उन्हें बहुत सताया गया, उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल हो गई, मुश्किल से जमानत हो पाई, लेकिन पत्रकार खुरदिया इससे घबराये नहीं बल्कि और उग्र हो गए, वे और अधिक जोर शोर से संघी पाखण्ड और उनके दलित आदिवासी विरोधी एजेंडे को उजागर करने में लग गए, कामरेड खुरदिया प्रतिशोध की इतनी खतरनाक भावना से लबरेज थे कि उन्होंने ऐसी कई जगहों पर मिटटी में काँच के छोटे-छोटे टुकडे़ बिछा दिए जहाँ पर आर0एस0एस0 की सुबह शाम शाखाएँ लगा करती थीं, वे संघियों के खिलाफ सीधी कार्यवाही के समर्थक थे, वे चाहते थे कि हम लोग उनसे सशस्त्र संघर्ष करें, लेकिन मैं इस मामले में अहिंसा और कानूनी रास्तों का हामी था, लेकिन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद हमारी मित्रता काफी समय तक बनी रही, फिर वे एक दिन अचानक गायब हो गए, कई साल बाद पता चला कि वे आजकल दिल्ली में रहकर डेरा सच्चा सौदा के साथ काम कर रहे है, ब्लॉग भी लिखते हैं और विभिन्न मुद्दों पर राष्ट्रीय अखबारों में भी उनके लेख छपते हैं। आर0एस0एस0 को लेकर अब उनके विचार क्या है , यह तो नहीं मालूम लेकिन उनके लेखन में साम्प्रदायिकता तो नहीं झलकती है, आगे क्या होगा पता नहीं क्योंकि जैसे-जैसे संघी लोग सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज हो रहे हैं, बुद्धिजीवी अपनी केचुलियाँ बदलते नजर आ रहे हैं।
-भँवर मेघवंशी
लोकसंघर्ष पत्रिका -सितम्बर अंक में प्रकाशित
मनुवादी ब्राह्मणवादी वर्णाश्रमधर्म का पालन करने वाली सामाजिक व्यवस्था ने हम दलितों और शूद्रों को हजारों साल से गुलाम बना कर रखा, जब यह व्यवस्था आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी राज में चरमराने लगी तो जातिवादी कट्टर चितपावन ब्राह्मणों ने आर0एस0एस0 जैसा संगठन खड़ा किया, जो हिन्दुत्व की आड़ में उसी पुरातन जातिवाद और सड़ी गली वर्ण व्यवस्था को बेहद चतुराई से बचाने की कोशिश में लग गया, दलित पिछड़ों और महिलाओं को शाश्वत गुलाम बनाये रखने के लिए ही ऐसे संगठन काम करते हैं, ये लोग योजनाबद्ध तरीके से देश, धर्म, संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीयता जैसे लोक लुभावन मनभावन जुमलों के जरिये हमें मानसिक रूप से दास बना लेते हैं, फिर हम लोग वही करते हैं जो ये लोग चाहते हैं। आज शूद्र (पिछड़े) वर्ग के लोग ब्राह्मणवाद की लाश को बड़े ही अभिमान के साथ पालकी में लिए अपने कंधों पर ढो रहे हैं।
मुझे संघ के चिंतको द्वारा लिखित पुस्तकों का अब दूसरा पहलू भी समझ में आने लगा था, मैंने संघ में रहते हुए द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर जिन्हें गुरूजी गोलवलकर के नाम से जाना जाता है, अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘विचार नवनीत ‘ (बंच ऑफ थॉट) में वे जाति को भारतीय समाज व्यवस्था का वैशिष्ट्य निरूपित करते हैं तथा वर्ण व्यवस्था का खुलकर समर्थन करते हैं, मतलब जो बात हम दलितों के लिए अत्यंत दुखदायी है वह संघ के विचारकों के लिए अद्भुत और विशिष्ट है! मुझे उन्हीं दिनों किसी दलित संगठन द्वारा भेजा गया आर0एस0एस का एक गोपनीय पत्र भी मिला, जिसे पढ़कर मैं पूरी तरह से हिल गया। पत्र उच्च वर्ण के हिन्दुओं को संबोधित था तथा उनका आह्वान करता था कि वे हिन्दू समाज की जातिय संरचना को और मजबूत करें, क्योंकि इसी जाति व्यवस्था के चलते ही हिन्दू समाज बच पाया, अन्यथा सारे लोग मुसलमान या ईसाई बन चुके होते। गोपनीय पत्र समरसता के नाम पर पढ़े लिखे नौकरी पेशा दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को एकजुट करके उन्हें और अधिक हिंदूवादी बनाने के तौर तरीकों का भी पर्दाफाश करता था, साथ ही आर0एस0एस0 के आरक्षण विरोधी विचारों को भी प्रकट करता था, यह गोपनीय पत्र आँखें खोलने वाला था, मुझे और अधिक स्पष्ट हो गया कि कोई भी धार्मिक कट्टरपंथी और मूल तत्ववादी संगठन दलितों का हितैषी नहीं हो सकता है। मुझे लगा कि अनायास ही सही पर मैं इस अन्धे कुँए से बाहर आ गया था लेकिन मेरे जैसे हजारों दलित युवा थे जो अभी भी काली टोपी खाकी नेकर और सफेदकमीज पहन कर हाथ में लट्ठ लिए घूम रहे हैं और खुद को बड़ा सौभाग्यशाली हिन्दू समझ रहे है, उन्हें इस अन्धे कुँए से कौन बाहर निकालेगा? ये भोले लोग स्वयं को गर्व से हिन्दू कहते नहीं अघाते हैं पर संघी सवर्ण हिन्दू इन्हें अपने बराबर का हिन्दू समझना तो दूर की बात इन्सान भी नहीं समझते हंै। हमारे एक पत्रकार साथी सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया जो कि शाहपुरा भीलवाड़ा से ‘संयुक्त एकता‘ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र निकालते थे, उन्होंने आर0एस0एस0 के इस गोपनीय पत्र को प्रकाशित करने का साहस कर दिखाया, संघी उनके पीछे पड़ गए, उन्हें बहुत सताया गया, उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल हो गई, मुश्किल से जमानत हो पाई, लेकिन पत्रकार खुरदिया इससे घबराये नहीं बल्कि और उग्र हो गए, वे और अधिक जोर शोर से संघी पाखण्ड और उनके दलित आदिवासी विरोधी एजेंडे को उजागर करने में लग गए, कामरेड खुरदिया प्रतिशोध की इतनी खतरनाक भावना से लबरेज थे कि उन्होंने ऐसी कई जगहों पर मिटटी में काँच के छोटे-छोटे टुकडे़ बिछा दिए जहाँ पर आर0एस0एस0 की सुबह शाम शाखाएँ लगा करती थीं, वे संघियों के खिलाफ सीधी कार्यवाही के समर्थक थे, वे चाहते थे कि हम लोग उनसे सशस्त्र संघर्ष करें, लेकिन मैं इस मामले में अहिंसा और कानूनी रास्तों का हामी था, लेकिन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद हमारी मित्रता काफी समय तक बनी रही, फिर वे एक दिन अचानक गायब हो गए, कई साल बाद पता चला कि वे आजकल दिल्ली में रहकर डेरा सच्चा सौदा के साथ काम कर रहे है, ब्लॉग भी लिखते हैं और विभिन्न मुद्दों पर राष्ट्रीय अखबारों में भी उनके लेख छपते हैं। आर0एस0एस0 को लेकर अब उनके विचार क्या है , यह तो नहीं मालूम लेकिन उनके लेखन में साम्प्रदायिकता तो नहीं झलकती है, आगे क्या होगा पता नहीं क्योंकि जैसे-जैसे संघी लोग सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज हो रहे हैं, बुद्धिजीवी अपनी केचुलियाँ बदलते नजर आ रहे हैं।
-भँवर मेघवंशी
लोकसंघर्ष पत्रिका -सितम्बर अंक में प्रकाशित
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