महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन टूट गया है। गठबंधन सीटों के बंटवारे को लेकर टूटा है। शिवसेना, जैसा कि सभी जानते हैंए एक अत्यधिक दकियानूसी संगठन है। वैसे भी यह आश्चर्य की बात है कि एक संगठन,जिसके नाम से 'सेना' शब्द जुड़ा हो वह राजनीतिक पार्टी कैसे हो सकता है?उससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि चुनाव आयोग ने एक 'सेना' को राजनैतिक पार्टी के रूप में मान्यता प्रदान कर रखी है।
शिवसेना की स्थापना बालासाहेब ठाकरे ने की थी। राजनीति में प्रवेश के पहले,ठाकरे मुंबई के एक अखबार में बतौर कार्टूनिस्ट सेवारत थे। अपने संगठन का नाम उन्होंने शिवाजी के नाम पर रखा था। यहां यह स्मरण दिलाना प्रासंगिक होगा कि राज्य पुनर्गठन आयोग ने वैसे तो भाषा.आधारित राज्यों के गठन की सिफारिश की थी परंतु महाराष्ट्र और गुजरात को एक ही राज्य रहने दिया था, इसका जोरदार विरोध महाराष्ट्र और गुजरात में हुआ। महाराष्ट्र में विरोध अपेक्षाकृत ज्यादा आक्रामक था और उसने अनेक स्थानों पर हिंसक रूप ले लिया था। यद्यपि महाराष्ट्र के निर्माण की मांग करने वाली समिति में कांग्रेस को छोड़कर, सभी राजनीतिक दल शामिल थे परंतु इस आंदोलन के दौरान एक संकुचित भाषा.आधारित विचार ने जन्म लिया था। महाराष्ट्र के निर्माण के लिए बनी समिति के नेताओं में प्रोफेसर पी.के. अत्रे भी शामिल थे। वैसे तो वे एक महान साहित्यकार थे परंतु उन्होंने आंदोलन के दौरान कुछ ऐसी बातें कहीं जिससे महाराष्ट्र आंदोलन ने एक काफी संकुचित रूप ले लिया। प्रोफेसर अत्रे ने अनेक अवसरों पर कहा कि भारतवर्ष के राज्यों में इतिहास तो सिर्फ महाराष्ट्र का है बाकी राज्यों का तो मात्र भूगोल है। सच पूछा जाये तो बालासाहेब ठाकरे ने इसी तरह के विचारों से प्रेरित होकर शिवसेना की स्थापना की थी। वैसे बालासाहेब ठाकरे शिवसेना को एक हिंदुत्ववादी पार्टी मानते थे। परंतु मेरी राय में शिवसेना वास्तव में एक हिंदू.विरोधी पार्टी है। शिवसेना का एक प्रमुख नारा है 'मुंबई में सिर्फ मराठी भाषी ही रह सकते हैं'। इस नारे के चलते शिवसैनिकों ने अनेक बार मुंबई में रहने वाले गैर मराठी भाषा.भाषी नागरिकों पर हिंसक हमले किए। मुंबई में मराठी भाषियों की संख्या भले ही ज्यादा हो परंतु मुंबई को देश की सबसे बड़ी औद्योगिक और व्यवसायिक नगरी बनाने में गैर मराठी भाषा.भाषियों का भी योगदान है। मुंबई हर दृष्टि से उतना ही कास्मोपोलिटन शहर है जितना कि न्यूयार्क, लंदन और पेरिस हैं। इसलिए उसे किसी भी हालत में एक ऐसा शहर नहीं बनाया जा सकता जिसमें एक ही भाषा बोलने वाले रह सकें। मुंबई में देश में बोली जाने वाली सभी भाषाओं के प्रतिनिधि रहते हैं। वास्तव में मुंबई एक लघु भारत ही है। जब यह नारा लगाया जाता है कि मुंबई में सिर्फ मराठी भाषी रह सकते हैं और जो मराठी भाषी नहीं उन्हें मुंबई छोड़ देना चाहिए तो इस नारे का सर्वाधिक प्रतिकूल असर हिंदुओं पर ही पड़ता है। उत्तरप्रदेश के हिंदू, मुंबई के नागरिकों को दूध पिलाते हैं, उत्तरप्रदेश और बिहार के हिंदू मुंबई में टैक्सी और ऑटो चलाते हैं। ये सब ऐसे हिंदू हैं जो रोजी.रोटी के लिए मुंबई आते हैं और अपने असाधारण श्रम से मुंबई को जिंदा रखते हैं। ऐसे हिंदू.विरोधी संगठन से भारतीय जनता पार्टी का नाता वैसे भी अस्वाभाविक था।
भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा है। संघ का कहना है कि वह हिंदुओं की रक्षा के लिए और हिंदुओं की एकता के लिए समर्पित है। इस उद्देश्य को हासिल करने की राजनीतिक जिम्मेदारी, भारतीय जनता पार्टी को सौंपी गई है। शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर यह जिम्मेदारी कैसे पूरी की जा सकती है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर ढूंढना अनिवार्य है।
इस तरहए सच पूछा जाये तो भाजपा को चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर ही नहीं, बल्कि वैचारिक आधार पर भी, शिवसेना से अपना संबंध पहले ही तोड़ लेना चाहिए था। फिर,शिवसेना की कुछ ऐसी गतिविधियां भी हैं जो भाजपा के एजेण्डे में नहीं हैं। जैसे.शिवसेना कहती है कि मुंबई में पाकिस्तान की किक्रेट टीम को हम खेलने नहीं देंगे, पाकिस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन नहीं होने देंगे, प्रसिद्ध गजल गायक मेंहदी हसन और गुलाम अली समेत पाकिस्तान के गायकों का कार्यक्रम नहीं होने देंगे। इस तथ्य के बावजूद कि भारत की सबसे महान गायिका लता मंगेश्कर, इन दोनों प्रसिद्ध गजल गायकों की प्रशंसक हैं। हम पाकिस्तान के गायकों को तो गाना नहीं गाने देंगे परंतु प्रसिद्ध अमरीकी गायक माइकल जैक्सन को गाने की इजाजत देंगे। इसके अलावाए शिवसेना का घोषित एजेण्डा मुस्लिम.विरोधी भी है। जब 1992 में मुंबई में दंगे हुए तो ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से कहा कि मेरे सैनिकों ने हिंदुओं की रक्षा की है। मुंबई के दंगों में शिवसेना की भागीदारी का श्रीकृष्ण आयोग ने अपनी अद्भुत रिपोर्ट में अनेक बार उल्लेख किया है। बाबरी मस्जिद तोड़ने का श्रेय भी बालासाहेब ठाकरे ने अपने ;लड़कों; को दिया था।
शिवसेना ने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज का नाम सुझाया था। आज जब नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि उन्हें भारत के मुसलमानों के देशभक्त होने पर पूरा भरोसा है, जब वे सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि भारत का मुसलमान अलकायदा का साथ नहीं देगा, इसके बावजूद यदि घनघोर मुस्लिम.विरोधी शिवसेना से भाजपा अपना संबंध बनाये रखती तो यह कहां तक उचित होता?
शिवसेना एक घोर अवसरवादी संगठन भी है। एनरोन नाम की एक विदेशी कंपनी ने महाराष्ट्र में बिजली का कारखाना डालने का प्रस्ताव किया था। शिवसेना ने इसका घोर विरोध किया। परंतु जब शिवसेना और भाजपा की सरकार बनी तो शिवसेना ने एनरोन को महाराष्ट्र में बिजली का कारखाना स्थापित करने की इजाजत दे दी। अवसरवादिता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? शिवसेना और उसके संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने कभी भी भारतीय संविधान, न्यायपालिका और मीडिया के प्रति सम्मान नहीं दिखाया है। जो भी समाचारपत्र या चैनल,ठाकरे या शिवसेना के विरूद्ध लिखता है, उसके दफ्तरों पर हमले किए जाते हैं। बालासाहेब ठाकरे का दृष्टिकोण कितना संकुचित था,इसका एक बहुत ही दिलचस्प उदाहरण है। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान जब पोखरन में परमाणु विस्फोट हुआ तो ठाकरे ने हिंदू वैज्ञानिकों को ही बधाई दी। इसी तरह, जब मुंबई में एक मराठी भाषी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया तो बालासाहेब ठाकरे ने कहा कि मराठी भाषी बलात्कार कर ही नहीं सकते।
अब प्रश्न यह है कि भाजपा ने स्थाई रूप से शिवसेना से तलाक लिया है या कुछ समय बाद स्थिति बदल सकती है? इस संबंध में अभी कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। एक और मुद्दा है जिसका यहां उल्लेख करना आवश्यक है। भारतीय जनता पार्टी, राजनीति में परिवारवाद की विरोधी है। परंतु जब शिवसेना में परिवारवाद आया तो भाजपा मौन धारण किए रही। बालासाहेब ठाकरे ने अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उनके इस निर्णय से खफा होकर,उनके भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से अपना संबंध विच्छेद कर लिया और एक नई पार्टी बना ली थी। यह सभी लोग मानते हैं कि राज ठाकरे में नेतृत्व की क्षमता ज्यादा है और शिवसेना के संकुचित विचारों के आधार पर गतिविधियां संचालित करने की रणनीति में राज ठाकरे को पारंगता हासिल है। इस तरह, देखा जाये तो शिवसेना और भाजपा के बीच असमानताएं ज्यादा थीं इसलिए दोनों के संबंध विच्छेद से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
-एल.एस. हरदेनिया
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