
इसका एक और महत्वपूर्ण पक्ष है आई.एस.आई.एस. को हथियारों की आपूर्ति। आई.एस.आई.एस. जिन हथियारों से यह युद्ध लड़ रहा है उसका पचासी प्रतिशत हिस्सा अमरीकी और यूरोपीय हथियारों का है। एक तरफ इन देशों की कंपनियाँ आई.एस.आई.एस. से तेल खरीदकर उसे आर्थिक रूप से मजबूत कर रही हैं दूसरी और उन्हीं देशों के हथियार इस कथित आतंकवादी संगठन को उपलब्ध हैं। आई.एस.आई.एस. के खिलाफ लड़ाई में एक अहम और निर्णायक मोड़ उस समय आया था जब उसके लड़ाके बड़ी सख्या में कुर्दों के घेरे में आ गए थे लेकिन अमरीका ने उस नाजुक मोड़ पर कुर्दों को दिए जाने वाले हथियार बगदादी के समर्थकों के क्षेत्र में गिरा दिए जिससे पूरी बाजी पलट गई। इस गलती का सारा ठीकरा अमरीका ने इराकी पाइलटों के सिर फोड़ दिया और कहा गया कि अनुभवहीन इराकी पाइलटों की गलती से ऐसा हुआ। जबकि यह पूरा आपरेशन अमरीका की निगरानी में चल रहा था। अमरीका और उसके मित्र देश इराक सरकार को नजरअंदाज करके कुर्द लड़कों को आई.एस.आई.एस. से लड़ने के लिए हथियार दे रहे हैं। पश्चिम की इस नीति से केवल इराक की सम्प्रभुता ही आहत नहीं होती बल्कि आने वाले समय में उसके अस्तित्व को गम्भीर खतरा हो सकता है। अमरीका की इस रणनीति को विशेषज्ञ भविष्य में अलग कुर्दिस्तान राज्य के लिए सशस्त्र संघर्ष की भूमिका के तौर पर देख रहे हैं जो ईरान और तुर्की जैसे देशों को भी अपनी लपेट में ले लेगी। इस तरह यह पूरा क्षेत्र अशांति की भेंट चढ़ जाएगा। इस तरह देखा जाए तो अमरीका केवल आई.एस.आई.एस. के पैदा करने का ही जिम्मेदार नहीं बल्कि इस बहाने से उसे मध्यपूर्व में एक बार फिर प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का मौका मिल गया है जहाँ उसकी कंपनियाँ कच्चे तेल और हथियारों की कालाबाजारी कर रही हैं। दिन के उजाले में वह साँप मारने का नाटक करता है और दुनिया की आँख में धूल झोंककर रात के अंधेरे में उसे दूध भी पिलाता है। जेहादी या आतंकवादी संगठन के तौर पर प्रचारित करके दुनिया को डराना और फिर इस काल्पनिक खतरे से निपटने के नाम पर अपने हित साधने का यह अमरीकी हथकंडा है। अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन से लेकर इराक में आई.एस.आई.एस. और अलबगदादी के उदय तक अमरीकी साम्राज्य का इतिहास गंदगी से भरा हुआ है। यदि दुनिया अब भी न चेती तो भविष्य में भी वह ऐसे खतरों से पाक नहीं हो सकेगी।
जहाँ तक मुस्लिम जगत का सम्बंध है उसने अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी है। वह आई.एस.आई.एस. के तौर तरीकों को पहले ही एक स्वर में गैर-इस्लामी करार दे चुका है। जार्डेन के पाइलट को जिस क्रूरता के साथ आई.एस.आई.एस. ने जला कर मारा है उसकी पूरी इस्लामी दुनिया में निंदा हुई है। अमरीका विरोधी माने जाने वाले यूसुफ अल-करजावी ने भी उसकी इस हरकत को इस्लाम मुखालिफ बताते हुए कहा है कि आग से जला कर मारने की सजा की इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं है चाहे वह दुश्मन सेना का हमलावर सिपाही क्यों न हो। आई.एस.आई.एस. इस्लाम और मुसलमानों का शुभचिंतक नहीं दुश्मन है।
-मसीहुद्दीन संजरी
मो.09455571488
लोकसंघर्ष पत्रिका मार्च 2015 में प्रकाशित
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