सोमवार, 16 मार्च 2015

‘‘कांग्रेस मुक्त भारत’’ देश के लिए सार्थक या घातक-3

यहीं से प्रारम्भ हुआ देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल। जनता पार्टी की हुकूमत का कार्यकाल मात्र ढाई साल चला। हुकूमत के पतन का कारण दो विपरीत विचारधाराओं के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित न होना बना। जनसंघ का नाम बदल कर आर0एस0एस0 की सलाह व मदद से भारतीय जनता पार्टी बनी। आर0एस0एस0 उनसे रिश्ते तोड़ने की बात की तो उनका असली चेहरा सामने आ गया और उन्होंने सभा को त्यागना पसंद किया। आर0एस0एस0 से अपने रिश्ते नहीं तोड़े। उस समय अटल बिहारी ने कहा था कि आर0एस0एस0 हमारी जननी है कोई बेटा अपनी मां से रिश्ता कैसे तोड़ सकता है। परिणाम स्वरूप जनता पार्टी हुकूमत का पतन हो गया।
     1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लोगांे ने फिर विश्वास प्रकट किया। मुस्लिम वोट जो आपातकाल के दौरान जबरी नसबंदी से नाराज था, वह भी पुनः इंदिरा गांधी पर विश्वास करते हुए कांग्रेस में वापस लौट आया। लेकिन कांग्रेस के बुरे दिनों के दौरान काली टोपी उतार कर सफेद टोपी पहने संजय गांधी की अनुभवहीनता का लाभ उठाकर नए कांग्रेसियों ने इंदिरा
गांधी जैसी समझदार व परिपक्व राजनेत्री को यह समझाने में कामयाबी हासिल कर ली कि पहली बार कांग्रेस मुस्लिम समर्थन के बगैर सभा में वापस आयी है इसलिए अगर वह खुलकर हिन्दू कार्ड खेले तो फिर उसे कोई सभा से कभी हिला न सकेगा। इंदिरा गांधी इस झांसे में आ गईं और वीर बहादुर सिंह, अरूण नेहरू व आरिफ मो0 खां जैसे कांग्रेसी लीडरों ने अपनी मजबूत पकड़ पी0एम0 कार्यालय में बना ली।
    उधर साम्राजी शक्तियांे ने जब देखा कि इंदिरा गांधी ने उनके इरादों को शिकस्त देकर उन्हें देश की सत्ता पर अपनी पिट्ठू शासकों को बिठा कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के उनके सपनों को ढेर कर दिया है तो उन्होंने अपने जियाउल हक के द्वारा संचालित आई0एस0आई0 व अमरीकी सी0आई0ए0 के द्वारा सिक्खों के भीतर खालिस्तान तहरीक की लहर को पैदा कर पंजाब में आतंकवाद की फसल को पनपाना शुरू कर दिया। इसका जवाब इंदिरा गांधी ने अपने मिजाज के मुताबिक दमन से दिया और आपरेशन ब्लू स्टार अभियान का नाम देकर सैन्य शक्ति से आतंक का प्रयाय बन चुके भिंडरवाला व उनके साथियों का नरसंहार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में कर खालिस्तान तहरीक को कुचल डाला।
    परिणाम स्वरूप धार्मिक भावनाओं से आहत उन्हीं के सिक्ख सुरक्षा गार्डों ने उनके निवास स्थल पर गोलियों से भून कर उनकी हत्या कर दी। बात यहीं तक नहीं रुकी राजधानी देहली सहित कई राज्यों में सिक्खों के विरुद्ध हिन्दुओं के क्रोध ने हिंसा का रूप धारण कर लिया और उनकी हत्या व उनके व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लूटकर जलाने का कार्य उस वक्त तक जारी रहा जब तक राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण कर शान्ति की अपील नहीं की। नेहरू इंदिरा के बाद कांग्रेस का क्या होगा की बात उठने लगी। अन्र्तराष्ट्रीय जगत में भी साम्राज्यवादी ताकतें उत्साहित थी कि अब राजनैतिक तौर पर अनुभवहीन राजीव गांधी को अपने हिसाब से वह कंट्रोल कर संचालित कर लेंगे। विदेशी मीडिया में उनकी खूब प्रशंसा रही। अमरीका के पहले दौरे पर उनके अमरीकी सदन के भाषण पर खूब तारीफों के पुल बांधे गए। वहीं कांग्रेस में मौजूद पूँजीवादी व साम्प्रदायिक सोच के लोगों ने राजीव को अपने काबू में कर उनसे गलत नीतियों पर अमल करवाना प्रारम्भ भी कर दिया। वर्षों से ठण्डे बस्ते में चले आ रहे बाबरी मस्जिद का ताला 1986 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह ने कोर्ट के रास्ते से आदेश प्राप्त कर खुलवा दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नामक संस्था का वजूद, अमल में आ गया और मुहम्मद आजम खां, सैयद शहाबुद्दीन, उबैदउल्ला आजमी, अहमद बुखारी जैसे धुआंधार वक्ताओं का उदय यदि एक समुदाय से हुआ तो उसके जवाब में अशोक सिंघल, साध्वी ऋतम्भरा, साध्वी उमा भारती, साक्षी महाराज और महंत अवैद्यनाथ जैसे उत्तेजनात्मक व आपत्तिजनक भाषण देने वाले राजनेताओं ने भी भारतीय राजनीति में अपनी जगह बना ली। कार्यकाल मात्र दस माह का रहा, उसके पश्चात एक साल तक इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने रहे। फिर 1988 से 13 माह तक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एन0डी0ए0 सत्ता पर काबिज रही और 1998 के आम चुनाव में अटल बिहारी के नेतृत्व में एन0डी0ए0 ने 298 सीटें लेकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और कांग्रेस अपने सहयोगियों को साथ लेकर केवल 136 सीटें ही ला पाई। कांग्रेस का बुरा हश्र तब हुआ जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ली। कांग्रेस की हार पर सोनिया गांधी को भी निशाने पर लिया गया लेकिन सोनिया गांधी ने कठोर परिश्रम कर यहीं से प्रारम्भ हुआ देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल। जनता पार्टी की हुकूमत का कार्यकाल मात्र ढाई साल चला। हुकूमत के पतन का कारण दो विपरीत विचारधाराओं के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित न होना बना। जनसंघ का नाम बदल कर आर0एस0एस0 की सलाह व मदद से भारतीय जनता पार्टी बनी। आर0एस0एस0 उनसे रिश्ते तोड़ने की बात की तो उनका असली चेहरा सामने आ गया और उन्होंने सभा को त्यागना पसंद किया। आर0एस0एस0 से अपने रिश्ते नहीं तोड़े। उस समय अटल बिहारी ने कहा था कि आर0एस0एस0 हमारी जननी है कोई बेटा अपनी मां से रिश्ता कैसे तोड़ सकता है। परिणाम स्वरूप जनता पार्टी हुकूमत का पतन हो गया।
     1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लोगांे ने फिर विश्वास प्रकट किया। मुस्लिम वोट जो आपातकाल के दौरान जबरी नसबंदी से नाराज था, वह भी पुनः इंदिरा गांधी पर विश्वास करते हुए कांग्रेस में वापस लौट आया। लेकिन कांग्रेस के बुरे दिनों के दौरान काली टोपी उतार कर सफेद टोपी पहने संजय गांधी की अनुभवहीनता का लाभ उठाकर नए कांग्रेसियों ने इंदिरा
गांधी जैसी समझदार व परिपक्व राजनेत्री को यह समझाने में कामयाबी हासिल कर ली कि पहली बार कांग्रेस मुस्लिम समर्थन के बगैर सभा में वापस आयी है इसलिए अगर वह खुलकर हिन्दू कार्ड खेले तो फिर उसे कोई सभा से कभी हिला न सकेगा। इंदिरा गांधी इस झांसे में आ गईं और वीर बहादुर सिंह, अरूण नेहरू व आरिफ मो0 खां जैसे कांग्रेसी लीडरों ने अपनी मजबूत पकड़ पी0एम0 कार्यालय में बना ली।
    उधर साम्राजी शक्तियांे ने जब देखा कि इंदिरा गांधी ने उनके इरादों को शिकस्त देकर उन्हें देश की सत्ता पर अपनी पिट्ठू शासकों को बिठा कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के उनके सपनों को ढेर कर दिया है तो उन्होंने अपने जियाउल हक के द्वारा संचालित आई0एस0आई0 व अमरीकी सी0आई0ए0 के द्वारा सिक्खों के भीतर खालिस्तान तहरीक की लहर को पैदा कर पंजाब में आतंकवाद की फसल को पनपाना शुरू कर दिया। इसका जवाब इंदिरा गांधी ने अपने मिजाज के मुताबिक दमन से दिया और आपरेशन ब्लू स्टार अभियान का नाम देकर सैन्य शक्ति से आतंक का प्रयाय बन चुके भिंडरवाला व उनके साथियों का नरसंहार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में कर खालिस्तान तहरीक को कुचल डाला।
    परिणाम स्वरूप धार्मिक भावनाओं से आहत उन्हीं के सिक्ख सुरक्षा गार्डों ने उनके निवास स्थल पर गोलियों से भून कर उनकी हत्या कर दी। बात यहीं तक नहीं रुकी राजधानी देहली सहित कई राज्यों में सिक्खों के विरुद्ध हिन्दुओं के क्रोध ने हिंसा का रूप धारण कर लिया और उनकी हत्या व उनके व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लूटकर जलाने का कार्य उस वक्त तक जारी रहा जब तक राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण कर शान्ति की अपील नहीं की। नेहरू इंदिरा के बाद कांग्रेस का क्या होगा की बात उठने लगी। अन्र्तराष्ट्रीय जगत में भी साम्राज्यवादी ताकतें उत्साहित थी कि अब राजनैतिक तौर पर अनुभवहीन राजीव गांधी को अपने हिसाब से वह कंट्रोल कर संचालित कर लेंगे। विदेशी मीडिया में उनकी खूब प्रशंसा रही। अमरीका के पहले दौरे पर उनके अमरीकी सदन के भाषण पर खूब तारीफों के पुल बांधे गए। वहीं कांग्रेस में मौजूद पूँजीवादी व साम्प्रदायिक सोच के लोगों ने राजीव को अपने काबू में कर उनसे गलत नीतियों पर अमल करवाना प्रारम्भ भी कर दिया। वर्षों से ठण्डे बस्ते में चले आ रहे बाबरी मस्जिद का ताला 1986 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह ने कोर्ट के रास्ते से आदेश प्राप्त कर खुलवा दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नामक संस्था का वजूद, अमल में आ गया और मुहम्मद आजम खां, सैयद शहाबुद्दीन, उबैदउल्ला आजमी, अहमद बुखारी जैसे धुआंधार वक्ताओं का उदय यदि एक समुदाय से हुआ तो उसके जवाब में अशोक सिंघल, साध्वी ऋतम्भरा, साध्वी उमा भारती, साक्षी महाराज और महंत अवैद्यनाथ जैसे उत्तेजनात्मक व आपत्तिजनक भाषण देने वाले राजनेताओं ने भी भारतीय राजनीति में अपनी जगह बना ली। कार्यकाल मात्र दस माह का रहा, उसके पश्चात एक साल तक इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने रहे। फिर 1988 से 13 माह तक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एन0डी0ए0 सत्ता पर काबिज रही और 1998 के आम चुनाव में अटल बिहारी के नेतृत्व में एन0डी0ए0 ने 298 सीटें लेकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और कांग्रेस अपने सहयोगियों को साथ लेकर केवल 136 सीटें ही ला पाई। कांग्रेस का बुरा हश्र तब हुआ जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ली। कांग्रेस की हार पर सोनिया गांधी को भी निशाने पर लिया गया लेकिन सोनिया गांधी ने कठोर परिश्रम कर वह चाहे कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी क्योंकि आज भी भारतीय समाज अपने अतीत के आदर्शों के प्रति मन में सम्मान रखता है। धार्मिक सहिष्णुता आपसी मेल जोल, अमन शान्ति यहाँ के आम नागरिक के खून की
धरोहर है इसे थोड़े समय के लिए उत्तेजित कर बहकाया तो जा सकता है लेकिन अन्त में सुबह का भूला शाम को वापस जरूर आता है।
-तारिक खान
 मो.09455804309

लोकसंघर्ष पत्रिका  मार्च 2015  में प्रकाशित

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