भूटान, ब्राज़ील, नेपाल, जापान, यूनाइटेड स्टेट्स, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, सेशेल्स, मारीशस, श्रीलंका, सिंगापुर. फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, चाइना, मंगोलिया, साउथ कोरिया, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान. कज़ाकिस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान व यूएई में यह नारा लग चूका है कि भारत में मजदूर सस्ते हैं और वहां न्यूनतम मजदूरी 5000 से 9000 रुपये में इंजीनियर मिल सकते हैं. जल, जंगल, जमीन भी सस्ते दरों पर मिल जायेंगे, हवा-पानी, नदी-नाला सब प्रदूषित कर दोगे कोई कार्यवाई नहीं होगी, चाहे जितना मुनाफा कमाओ और लूट कर अपने मुल्क ले जाओ. हम इसमें आपकी मदद करेंगे. आम जनता के शरीर में कोई बूँद खून की नहीं बचे लेकिन हम आपके मुनाफे में कोई कमी नहीं होने देंगे. मेक इन इंडिया नारे को साकार करना है. इन सब बातों के विरोध में भारतीय मजदूर वर्ग 2 सितम्बर को अपनी 12 सूत्री मांगों के समर्थन में आम हड़ताल करेगा.
सरकार बोलती कुछ है, और करती कुछ है. श्रम मेव जयते का नारा लगाने वाली सरकार श्रमिकों के
अधिकार को खत्म करना चाहती है. सरकार नया श्रम कानून लाकर मजदूरों का हक
छीनने की योजना बना रही है.यह बातें एटक के पदाधिकारी विद्यासागर
गिरि ने कही.
न्यूनतम वेतन को देश भर में 15,000 रु महीना किया जाए, जो फिलहाल अभी विभिन्न राज्यों में 5,000 से लेकर 9,000 रु तक है. विनिवेश और श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करेंगी यूनियन
विरोधी
व कर्मचारी विरोधी नीतियों तथा सरकार की वायदा खिलाफी की पोल खोलने
के लिए मैदान में उतर गए है; सरकार श्रम कानून को कमजोर कर कॉरपोरेट हाउस को फायदा पहुंचाना चाहती है. आजाद भारत के 68
वर्ष के संघर्ष को सरकार एक झटके में खत्म कर रही है. मजदूरों के पीएफ का
पैसा शेयर बाजार में लगाया जा रहा है. हर यूनियन विकास का पक्षधर है, लेकिन मेहनतकश की कीमत पर कॉरपोरेट का
विकास स्वीकार नहीं.
विरोधी
व कर्मचारी विरोधी नीतियों तथा सरकार की वायदा खिलाफी की पोल खोलने
के लिए मैदान में उतर रहे है. मजेदार बात यह है कि सरकार व नागपुर मुख्यालय का अनुवांशिक संगठन भारतीय मजदूर संघ से सम्बद्ध यूनियनें भी हड़ताल में शामिल हो रही हैं. दुनिया भर के कॉर्पोरेट सेक्टर को देश के अन्दर आमंत्रित कर रोजगार के अवसर तो बढाए जा सकते हैं किन्तु मजदूर को सम्मानजनक जीने लायक वेतन नहीं दिलाया जा सकता है इसीलिए श्रम कानूनों में परिवर्तन किये जा रहे हैं और कृषि योग्य जमीनों का अधिग्रहण कर किसान से मजदूर बनाने की प्रक्रिया बड़ी तेजी से जारी है जबकि इसके पूर्व में विभिन्न सरकारों का यह नारा था " मजदूर से बना किसान, बढ़ गयी उसकी शान " किन्तु वर्तमान सरकार किसान को भूमिहीन कर मजदूर बना देना चाहती है ताकि कॉर्पोरेट सेक्टर को पढ़े लिखे मजदूर से लेकर अनपढ़ मजदूर सस्ते दामों पर मिल सके. बातें बड़ी-बड़ी हैं जनता की भलाई के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बना पाए हैं. सीधे-सीधे देश को दुनिया भर के कॉर्पोरेट सेक्टर की गुलामी के लिए सभी कानूनों में संशोधन या समाप्त करने का सिलसिला जारी है. इन सब बातों से यही लगता है कि आओ दुनिया के धनपतियों मेरे देश को लूट लो, असली नारा यही है.
सुमन
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