देश के सांस्कृतिक मंत्री महेश शर्मा ने एलानिया तौर पर यह वक्तव्य जारी किया हैकि लेखकों को लेखन कार्य बंद कर देना चाहिए. इसका सीध -सीधा अर्थ यह है की नागपुरी कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए ही लेखन करने की स्वतंत्रता अब देश में है. नागपुरी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सीधा-सीधा अर्थ यह है कि देश के अन्दर चुड़ैल है, भूत हैं, प्रेत हैं, जिन्नाद हैं, जिन्द हैं, नटवीर हैं, भुइंया हैं, भवानी हैं, देवी आती हैं, जिन्नाद आता है, पुनर्जन्म है, स्वर्ग है, नर्क है.
इस देश के अन्दर तर्क और बुद्धि वाले लोगों की साम्यवादी दलों की यथार्थवादी दलों की विचारधारा ने यह सारे भ्रम समाज से लगभग ख़त्म कर दिए थे लेकिन प्राइवेट इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स ने भूत-प्रेत, जिंद-जिन्नाद की काल्पनिक कहानियो से पुन: जिन्दा कर दिया है. सुबह होते ही लगभग सभी प्राइवेट इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स ज्योतिष से लेकर तंत्र-मन्त्र-घंट का प्रवचन प्रारंभ कर देते हैं. जिसके कारण देश के अन्दर लाखों महिलाओं को चुड़ैल या डायन बता कर पीट-पीट कर मार डाला गया. नागपुरी मुख्यालय शैतान की तरह हँसता और मुस्कुराता रहा. पुष्पक विमान से इस देश के निवासियों को उडाता रहा. हकीकतन यह है कि एक अच्छी खासी तादाद के लोग गोबर से गेंहू निकाल कर खाने के आदी हो गए हैं. पत्ते व पेड़ों की छालें उबाल कर जिन्दा रहने की कोशिश प्रारंभ हुई है. हद तो तब हो गयी है कि एक बहुसंख्यक समाज के बड़े तबके के ऊपर यह भावनात्मक रूप से यह बात हावी हो गयी है कि गाय उनकी अम्मा है. सोचने समझने की स्तिथि को कुंद कर दिया है. एक जानवर को जो हमारे लिए बहु उपयोगी अवश्य है उसको माँ का रूप दे दिया गया लेकिन बुद्धिनिर्पेक्ष लोगों की समझ में यह आ गया की गाय माँ है और उसका मांस खाने वाले लोगों को मार डालना चाहिए. उनकी बुद्धि ने यह कभी नहीं सोचा की कोई अपनी माँ के खाल का जूता पहनता है. हड्डियाँ निकाल कर बेचता है. बीमार होने पर या दूध न देने पर कसाई के हाथ माँ को बेच देने का प्रचलन कभी नहीं रहा है लेकिन बुद्धि निरपेक्ष लोगों को यह स्तिथि भी स्वीकार हो गयी की माँ की खाल के जूते पहन लेने माँ के पुत्र बैल के अंडकोष समाप्त कर बधिया बना देंगे और फिर लाचार हो जाने पर अपने भाई को काट कर बेच डालेंगे. घर के अन्दर आज भी यह बड़े गर्व के साथ कहा जाता है कि क्या बैल हो गए हो. गौ पुत्र यानी मोदी टोडीज बैल हो गए हैं. तभी देश का सांस्कृतिक मंत्री लेखकों से कहता है कि सोचना समझना बंद कर दो, लिखना बंद कर दो.
देश में गाय के सवाल के ऊपर लोगों को पीट-पीट कर मार डाला जायेगा दूसरी तरफ देश के आधे हिस्से में गाय अम्मा नहीं रहेगी, उसको काट कर खाया जायेगा. मंत्री मंडल में गाय खाने वाले भी रहेंगे उनको कभी पीट-पीट कर मारा नहीं जायेगा जैसे किरण रिजिजू या पारिकर उनको देश में सम्मानित किया जायेगा और निरीह लोगों को गाय के सवाल के ऊपर पीट-पीट कर मार डाला जायेगा. अब गाय रहेगी, बैल बुद्धि का प्रतीक हो जायेगा. लेखक, विचारक, दार्शनिक, वैज्ञानिक बैल हो यही सरकार की मंशा है. बुद्धि और विवेक की बात करना, तर्क की बात करने का मतलब अपनी हत्या गोविन्द पानसरे, नरेन्द्र दाभोलक व एम एम कुलबर्गी की तरह से कराना होगा. इसका मतलब है की बैलगाड़ी से चलना किसी दुसरे मुल्क का गुलाम होना, नागपुरी मुख्यालय की मंशा है और इसी दिशा में देश को दूसरी गुलामी की तरफ देश को ले जाने का प्रयास हो रहा है. अब आपको सोचना है की आप गुलाम रहना चाहते हैं या आजाद। आजाद रहना चाहते हैं तो मैदान-इ-जंग में आना पड़ेगा. इसमें जान भी जा सकती है.
सुमन
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